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परमपिता परमात्मा के सच्चे भक्त थे पूज्य बापू जी : 5 अक्तूबर ‘परमार्थी दिवस’ पर विशेष
पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी पर्वतों से ऊँचे, समुन्द्रों से गहरे व शान्त आदि सभी गुणों से सम्पन्न थे। पूज्य बापू जी एक महान शख्सियत थे। परम पिता परमात्मा के सच्चे भक्त थे पूजनीय बापू जी।

त्याग की साक्षात मूर्ति, कुर्बानी की मिसाल थे पूज्य बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी। पूज्य बापू जी का सम्पूर्ण जीवन मानवीय चेतना का रौशन मुनार था। पूजनीय बापू जी परम पिता परमात्मा का वरदान प्राप्त इस युग के महान पुरुष थे।

वो अति शान्त स्वभाव, दीनता, नम्रता के सच्चे पुंज थे। वे आत्म-चिन्तन व सर्व धर्म संगम की प्रकाशमय किरण स्वरूप थे। साहस इतना महान कि 18 वर्षाें से जिस औलाद को पाने की इतनी ज्यादा तड़प को जितना पाल रखा था, सच्चे मुर्शिदे-कामिल के मात्र एक इशारे पर हँसते-हँसते उन्हें अर्पण कर दिया। केवल इतना ही नहीं, 23 वर्ष की पूरी जवान आयु, नन्हें-नन्हें साहिबजादियाँ, साहिबजादे भरा-पूरा परिवार और इसके अतिरिक्त दिलो-जान से अति प्यारे और इतने बड़े खानदान के इकलौते वारिस को, जबकि पता भी था कि फकीर बनने जा रहे हैं, अपने हाथों अपने दिल के टुकड़े को सतगुरु-मुर्शिदे-कामिल परम पिता शाह सतनाम सिंहजी महाराज को, उन्हीं के हुक्म से सौंप दिया। पूज्य बापू जी का यह बड़ा त्याग रूहानियत में इतिहास साबित हुआ।

जीवन परिचय

पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी राजस्थान प्रान्त के गांव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ जिला श्री गंगानगर के रहने वाले थे। गांव श्री गुरुसर मोडिया का यह पवित्र नाम पूजनीय गुरु जी संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज द्वारा डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह विराजमान करने पर मशहूर हुआ, पहले यह गांव चक मोडिया के नाम से जाना जाता था।

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जन्म एक इतिहास

पूज्य बापू जी के जन्म का इतिहास भी अपने-आप में बड़ा दिलचस्प है। आप जी के बड़े बुजुर्ग अति आदरणीय सरदार हरि सिंह जी, जिन्होंने गांव श्री गुरुसर मोडिया को बसाया, उनके सात सुपुत्र थे। स. संता सिंह, स. देवा सिंह, स. मित्ता सिंह, स. हरदित्ता सिंह, स. धर्म सिंह, स. निहाल सिंह और स. चित्ता सिंह। स. संता सिंह जी सातों भाईयों में सबसे बड़े थे। उनके तीन सुपुत्र थे जो तीनों ही छोटी आयु में भगवान को प्यारे हो गए थे। उनका पहला बेटा 1902 में पैदा होते ही प्राण त्याग गया। दूसरा बेटा नत्था सिंह 1913 में पैदा हुआ जो 10-11 वर्ष की आयु में भगवान को प्यारा हो गया और उनका तीसरा बेटा 1924 में पैदा हुआ जिसको 5-6 वर्ष की आयु में ईश्वर ने वापिस बुला लिया।

सन् 1929 को एक रात स.हरि सिंह जी को सुबह-सवेरे लगभग चार बजे एक अद्भुत दृष्टांत नजर आया। उन्हें एक जानी-पहचानी आवाज सुनाई दी। हरि सिंह जी ने उससे पूछा कि तू कौन है? आवाज ने जवाब में कहा, बाबा, मैं नत्था सिंह हूं। हरि सिंह जी ने पूछा इस तरह तेरे आने का मतलब, कभी आ जाता है, कभी चला जाता है? आवाज ने पलटवें जवाब में कहा, बाबा, अब मैं काफी समय तक नहीं जाता। वर्णनीय है कि नत्था सिंह स. संता सिंह जी का दूसरा बेटा था जो 10-11 वर्ष की आयु में भगवान को प्यारा हो गया था। नत्था सिंह का चेहरा(शक्ल-सूरत) बाबा हरि सिंह जी को हू-ब-हू याद था। सुबह-सवेरे (अपने नित्य-नेम, अपने रोजाना के रूटीन अनुसार) उठते ही बाबा हरि सिंह जी ने, स. संता सिंह जी के घर जाकर आवाज दी कि तेरा नत्था सिंह स. चित्ता सिंह जी के घर आ गया है।

बिल्कुल ठीक वही समय था जब बाबा हरि सिंह जी ने उस दृष्टांत में देखा, सुना व आभास किया था। स. चित्ता सिंह जी के घर पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी के रूप में बच्चे का जन्म हुआ था। पूज्य बापू जी का चेहरा, नयन-नक्श, शक्ल, सूरत बिल्कुल नत्था सिंह जैसा था। बड़े बुजुर्ग बाबा हरि सिंह जी के कहने पर यह बच्चा स. सन्ता सिंह का नत्था सिंह ही है , इस पर स. संता सिंह जी ने पूज्य बापू जी को गोद ले लिया। अर्थात् पूजनीय बापू जी के असल जन्मदाता तो स. चित्ता सिंह और माता संत कौर जी थे, क्योंकि स. संता सिंह जी व माता चंद कौर जी ने पूज्य बापू जी को गोद लिया था इसलिए पूज्य बापू जी उन्हें अपने जन्मदाता मानते व सत्कार करते थे।

जैसे स. संता सिंह जी व स. चित्ता सिंह जी दोनों सगे भाई थे, उसी तरह माता चंद कौर और माता संत कौर जी का आपस में बुआ-भतीजी का रिश्ता था। यानि माता चंदकौर जी माता संत कौर जी की बुआ लगती थी। इस तरह पूजनीय बापू जी का जन्म वर्ष 1929 संवत 1986 के मग्घर महीने में हुआ था। इसीलिए पूजनीय बापू जी का नाम बड़े बुजुर्गाें ने सरदार मग्घर सिंह जी रख दिया।

पूज्य बापू जी का सारा जीवन परमार्थी-जीवन था, परमार्थ से ओत-प्रोत था। एक बार जो पूज्य बापू जी के लिए कुछ हामी भी भर देता, उम्रभर उस व्यक्ति का आभार मानते थे। जैसे एक बार एक किसी भाई ने पूज्य बापू जी के लिए सच्ची गवाही दी थी कि हां, मैं नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी को जानता हूं, ये गरीबों, जरूरतमंदों के मसीहा हैं तो पूज्य बापू जी उस व्यक्ति के लिए, जब तक वह जीवित रहा उसके जरूरत का सामान, राशन वगैरा, पहनने के कपड़े व अन्य हर तरह की मदद करते रहे, कि इस व्यक्ति ने मेरे लिए हामी भरी है, तो हम भी उसकी हर तरह से मदद करेंगे ही करेंगे। यह उदारता का भाव उनका केवल उस च्यक्ति के लिए ही नहीं था, बल्कि गांव का हर जरूरतमंद व्यक्ति, जाति धर्म का कोई सवाल नहीं, जो मदद के लिए आया पूज्य बापू जी ने दिल खोल कर उसकी मदद की, ‘ना’ का तो मतलब ही कभी नहीं था। बल्कि अपनी इसी उदारता के चलते अपने आखिरी समय में भी एक गरीब परिवार की लड़की की शादी में मदद भिजवाई।

पूज्य बापू जी का अपने अति लाडले, अपनी इकलौती संतान पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के प्रति केवल पिता-पुत्र का ही लगाव नहीं था, बल्कि एक रूहानी रिश्ता पूज्य बापू जी अपने लाडले के प्रति अपने अंतर-हृदय में मानते थे। गांव के आदरणीय संत बाबा त्रिवेणीदास जी ने पूजनीय गुरु जी के अवतार धारण कर लेने से काफी समय पहले और 15 अगस्त 1967 को अवतार धारण कर लेने के बाद पूज्य बापू जी से कह दिया कि आप का बच्चा कोई ऐसा-वैसा बच्चा नहीं है, बल्कि यह खुद ईश्वर-स्वरूप है और पूज्य बापू जी ने खुद भी अपने अनुभवों में अपने लाडले में इस वास्तविकता को अपनी आंखों से देखा व अनुभव किया।

कंधों पर बिठाना बन गई पहचान

पूज्य बापू जी अपने लाडले को बहुत प्यार करते थे और अपने साथ ही सुलाते थे। पूज्य गुरु जी बाहर टूर्नामेंट खेलने जाते और जब तक घर नहीं लौटते पूज्य बापू जी की आंखें गली में घर के दरवाजे पर ही लगी रहती। खेत जाना होता, तो कंधे पर बिठाकर ही ले जाते। पूज्य गुरु जी बहुत मना करते कि अब हम बड़े हो गए हैं, हमें शर्म आती है। कहते, नहीं। कंधों पर बैठोगे तो ही चलेंगे, क्योंकि हम आप को तकलीफ नहीं देना चाहते। बेशक कंधों पर बैठे पूजनीय गुरु जी के पांव पूज्य बापू जी के घुटनों तक होते परन्तु बिठाते कंधों पर ही। और यही दिलचस्प घटना पूज्य बापू जी की पहचान ही बन गई कि जिसके कंधों पर उनका लाडला बैठा हो और उसके पैर उनके घुटनों तक हों, समझ लेना, वही हमारे गांव श्री गुरुसर मोडिया का नम्बरदार है। गांव वाले नम्बरदार पूज्य बापू सरदार मग्घर सिंह जी की यही पहचान बताते, जब कोई उनसे नम्बरदार के बारे पूछता।

महान त्याग

जीना सिखाए जो कुल दुनिया को,
बचपन बीता आपके आंगन में।
बाल-अवस्था में कितने लाड लडाए
चलना सिखाया उंगली पकड़ कर आपने।
एक पल भी न आपके बिन रहते,
कंधे पर उठाए घूमते गांव भर में
मुर्शिद ने जब कर दिया एक इशारा,
कर दी कुर्बानी उफ भी न की मुंह से।
पुण्य तिथि आज पूजनीय बापू जी की,
करोड़ों सिर झुक श्रद्धा से है सजदा करते।

जैसा कि बाबा त्रिवैणी दास जी ने बताया था कि 23 वर्ष तक ही आपके पास रहेंगे और वह समय अब आ गया था। जैसे ही अपने सच्चे मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का इशारा, पवित्र आदेश मिला जिन्हें हर समय अपने दिल, जान से लगाकर रखते थे, तुरन्त अपने लाडले को उनके अर्पण करने के लिए तैयार हो गए। जब कोई अति अनमोल व जान से प्यारी चीज अपने से अलग हो रही हो तो दिल सौ-सौ सोचता है, दिल सदमे की गहराइयों में गोते खाता है। एक अति असहनीय पीड़ा का अनुभव होता है, परन्तु धन्य-धन्य है उनका त्याग।

उन्होंने आंखों से एक आंसू भी अपने लाडले के सामने गिरने नहीं दिया। जबकि पता था कि लाडला भरी जवान उम्र में नन्हें-नन्हें साहिबजादियों, साहिबजादे, पूरे परिवार तथा इतने बडेÞ घराने, जमीन जायदाद, और राजा-महाराजाओं जैसे ठाठ-बाठ को त्याग कर फकीर बनने जा रहा है। क्योंकि सच्चे दाता रहबर का आदेश था, सत् वचन कह कर माना और माता-पिता ने अपने लाडले को दीन-दुखियों, समाजोद्धार व इन्सानियत की सेवा के लिए हमेशा के लिए अर्पण कर दिया।

पूजनीय बापू जी परम पिता परमात्मा के सच्चे भक्त थे। पूजनीय परम पिता जी बुजुर्ग अवस्था में उनकी कदम कदम पर संभाल व उनका मार्ग-दर्शन किया करते थे। चाहे पूजनीय परम पिता जी के स्वरूप की पूरी पहचान उन्हें तब नहीं थी, लेकिन सच्चाई तब स्पष्ट हुई जब पूज्य बापू जी ने पूज्य परम पिता जी (पूज्य परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) के नजदीक से दर्शन किए थे।

पूज्य बापू जी को अपने अंतिम समय का बहुत पहले ही ज्ञान था। इसीलिए तो कई महीने पहले ही उन्होंने अपने लाडले पूजनीय गुरु जी के पास अपने पौत्र के विवाह की बात कही कि मैं कुछ समय दोनों को अपनी आंखों के सामने देखना चाहता हूं। कुछ समय बीता, नया सफेद-कुर्ता पाजामा कहकर सिलवाया, हालांकि नए कपड़े पहले ही पूज्य बापू जी के बहुत थे। फिर एक दिन अपने अति लाडले (पूज्य गुरु जी) को अपने पास बिठा कर पूछा कि ‘हमने ऐसे कौन से कर्म किए थे, जो आप ने हमारे घर जन्म लिया है और हम संतों के जन्मदाता कहलवाए।’ इसके जवाब में पूज्य गुरु जी ने जो जवाब दिया कि ‘मालिक ही जानता है जो हम तुम्हारे घर आए हैं। तुम्हारा प्यार-मोहब्बत उस परम पिता परमात्मा से है, इसीलिए उन्होंने आप को चुना है।’ अपने लाडले के पवित्र मुख से इस असल सच्चाई को जानकर पूज्य बापू जी ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि ‘अब मैं संतुष्ट हूं।’

पूज्य बापू जी ने अपने अंत समय में वोही नया कुर्ता-पजामा ही पहना हुआ था। पूज्य गुरु जी से कहने लगे कि श्री गुरुसर मोडिया में फलां उस गरीब परिवार की बेटी की शादी है, मैं उसकी मदद करना चाहता हूं। अपने पूज्य बापू जी की मानवता भलाई की इस इच्छा के अनुरूप पूज्य गुरु जी ने तुरन्त उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया कि उस परिवार की पूरी-पूरी मदद की जाएगी। इस तरह पूज्य बापू जी ने अपने आखिरी समय में भी गरीबों-जरूरतमंदों की मदद का ख्याल किया। पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी 5 अक्तूबर 2004 को परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की पवित्र गोद में सचखण्ड, सतलोक जा समाए।
मालिक की ऐसी वडभागी रूहें जब इस संसार से विदाई लेती हैं, तो वे अकेले नहीं बल्कि रूहानी मण्डलों पर अटकी हुुई बहुत-सी अधिकारी रूहों को भी अपने साथ सचखण्ड, मालिक की गोद में ले जाया करती हैं।

पूज्य बापू जी के सम्मान में कुछ पंक्तियां

गोद में खेले जिनके दुनिया,
कभी गोद खेले वो आपके,
चढ़ा कंधों पर करवाई सवारी,
चोज देखे खूब खुदा के।
इक इशारा हुआ मुर्शिद का
की कुर्बानी हँसते-हँसते।
वार दिया इकलौते लाल को,
प्राणधार थे जो मात-पिता के।
आज 16वीं पुण्यतिथि पर
उस महान ईश्वरीय वरदान आत्मा की,
करोड़ों सिर झुके श्रद्धा में,
करने लगे सब सजदे।।

5 अक्तूबर पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी की पुण्य तिथि का यह दिन डेरा सच्चा सौदा में हर साल ‘परमार्थी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जहां जरूरतमंद, गरीबों की सहायतार्थ परमार्थी कार्य किए जाते हैं, वहीं रक्तदान शिविर आयोजित करके परमार्थ हित में बढ़चढ़ कर शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के सेवादार व साध-संगत द्वारा रक्तदान किया जाता है। अन्य भी परमार्थी कार्य किए जाते हैं। आज 5 अक्तूबर को पूज्य बापू जी की 16वीं पुण्यतिथि पर पूजनीय बापू जी को हम सब(सारी साध-संगत) कोटि-कोटि बार सजदा करते हैं, नमन करते हैं।

ऐसे थे पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी

पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी इन्सानियत के नाते प्रत्येक धर्म जाति के लोगों का बहुत आदर करते, सब से प्यार का व्यवहार करते। छोटे-बड़े, ऊँच-नीच का कोई भेदभाव न रखते। बड़ा घराना व नम्बरदार थे गांव के। घर में कोई न कोई आया ही रहता। अगर किसी की कोई जरूरत कहीं और से पूरी न होती तो लोग अक्सर ही कह देते कि तू नम्बरदार के पास जा, वो तेरा काम कर देगा। बिना खाना खिलाए जाने नहीं देते थे। लोग अपनी जरूरतों के लिए या विचार विमर्श करने के लिए पूज्य बापू जी के पास आया करते थे। बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी पूज्य बापू जी का कोमल हृदय किसी को भी मुसीबत में देखकर पिघल जाता और उसके कष्ट निवारण में जुट जाते।

रोजमर्रा की तरह एक बार पूज्य बापू जी अपने निवास स्थान पर बैठे हुए थे। उनके पास ही गांव तथा आस-पास के गांवों के कई भाई भी बैठे हुए थे। इलाके में सांझे काम करवाने के उपायों पर चर्चा हो रही थी। पूज्य बापू जी जरूरतमंदों को राशन तथा नकदी वगैर भी दे रहे थे। तभी श्री गुरुसर मोडिया का एक जमींदार भाई पूज्य बापू जी के पास आकर बैठ गया। उसको कोई काम नहीं था। पूज्य बापू जी का उससे गहरा लगाव था, क्योंकि वह भी पूज्य बापू जी की तरह अध्यात्मिक प्रवृति का व्यक्ति था।

पूज्य बापू जी को काम में व्यस्त देखकर वह भाई ज्यादा देर तक बैठा नहीं। वह उठकर अपने घर चला गया। पर बापू जी स्वभावानुसार अपने यहां पधारे सभी लोगों का दिल खोलकर स्वागत करते व सभी को चाय-पानी प्रेम पूर्वक पिलाकर ही भेजते। पास बैठे सभी लोगों की समस्याएं निपटाने के बाद पूज्य बापू जी को ध्यान आया कि थोड़ी देर पहले फलां जमींदार भाई हमारे यहां आया था। चाय-पानी भी पीकर नहीं गया। उसे मुझ तक कोई जरूरी काम भी हो सकता है। ऊँची विचारधारा के स्वामी पूज्य बापू जी उस जमींदार के घर उसको पिलाने के लिए चाय घर से बनाकर स्वयं हाथ में लेकर गए। पूज्य बापू जी ने उस जमींदार को चाय का प्याला प्रेम पूर्वक पकड़ाते हुए पूछा, तुम्हें मेरे तक कोई काम था, बताओ? पूज्य बापू जी के पवित्र हृदय की विशालता पर वह भाई अत्यन्त प्रसन्न हुआ। पूजनीय बापू जी की लंबी उम्र की दुआ करते हुए उसने बताया कि मैं तो वैसे ही आप जी को मिलने के लिए गया था।

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