सतगुरु ने प्रेमी की समस्या का समाधान किया
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी भाग सिंह इन्सां (फौजी) पुत्र स. इन्द्र सिंह(हिम्मतपुरे वाले) शाह सतनाम जी नगर, सरसा (हरियाणा)। अपने ऊपर पूजनीय पर
परमपिता जी की रहमत का वर्णन करते हुए बाताता है कि
जब मैंने परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का सत्संग सुना तो सतगुरु ने मुझ पर इतनी कृपा की कि मुझे नाम की दात मिल गई। सतगुरु मालिक की प्रेरणा से मैं मानवता की सेवा में लग गया।
सन 2009 की बात है कि डेरा सच्चा सौदा के एक जिम्मेवार सेवादार ने मुझे कहा कि फौजी साहब गांव बेगू के पास सड़क पर कांटेदार झाड़ियां पड़ी हैं, उनको ट्राली में डालकर पांच नंबर मोटर पर ले जाओ और वहां फसल को बाड़ करवा दो ताकि सूअर वगैरह आकर फसल को खराब ना करें।
मैं अपनी जीप को एक तरफ खड़ा करके कांटेदार झाड़ियां ट्राली में डलवाने लग गया। जब ट्राली भर गई तो मैंने जब अपनी जेब में से जीप की चाबी निकाली तो उस समय गलती से हमारे फ्लैट की चाबी मेरी जेब में से गिर गई, परंतु मुझे कोई पता नहीं चला। जब कांटेदार झाड़ियां उतार ली गई तो उस समय तक काफी अंधेरा हो चुका था। सफाई वगैरह का काम पूरा करवा कर मैं अपने घर चला गया जब मैं अपने फ्लैट का दरवाजा खोलने के लिए अपनी जेब में से चाबी निकालने लगा तो चाबी नहीं थी। उस दिन हमारे परिवार के सभी सदस्य गांव गए हुए थे और घर में मैं अकेला ही था। मैं घबरा गया कि अब क्या बनेगा? जहाँ जीप खड़ी थी वहां चाबी देखने के लिए मैंने एक सेवादार को भेजा। उसने बताया कि फौजी साहब वहां चाबी नहीं है। फिर मैं खुद वहां गया, परंतु मुझे भी चाबी नहीं मिली।
ताला खोलने या तोड़ने के लिए मिस्त्री बुलाया गया, परंतु अजीब किस्म का ताला मिस्त्री भी नहीं तोड़ सका। जब समस्या का कोई हल नहीं हुआ तो मैंने अपने सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को याद किया कि पिताजी अब आप करो, जो करो। मेरे वश की बात नहीं है। मैंने थोड़ा सुमिरन किया विनती की तथा धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा लगाकर सो गया कि पिता जी, अब आप ही कोई हल करो। मुझे उस रात अच्छी तरह नींद भी नहीं आई। मैं अर्द्ध-निंद्रा की अवस्था में लेटा हुआ था कि परम पिता जी ने आवाज मारी ‘जाह चक्क लेया चॉबी उत्थे ही पई आ।’
उस समय सुबह के 4:00 बजे थे। मैं बैटरी लेकर वहां चला गया, जहां जीप खड़ी थी। जब मैंने चाबी देखने के लिए बैटरी की लाइट जगाई तो चाबी दूर से ही चमक पड़ी। चाबी देखकर मेरी सांस में सांस आई। मैंने अपने सतगुरु का लाख-लाख शुक्राना किया कि धन्य धन्य हो मेरे मालिक सतगुरु तू कैसे कैसे अपने जीवों की मदद करता है, तेरियाँ तू ही जाणे।