पानी को व्यर्थ बहने से बचाएं -सम्पादकीय भीषण गर्मी ने इस बार ऐसे तेवर दिखाए कि हर कोई बेबस रह गया। देश में कई जगह पारा रेड अलर्ट पर आ गया। दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान में पारा 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था। गर्मी के ऐसे भयंकर मौसम ने सबके हाथ खड़े करा दिए थे। कहीं बिजली की सप्लाई नहीं, तो कहीं पानी के लिए जनता तरसती हुई दिखी। क्योंकि भीषण गर्मी में पानी की कमी सबसे बड़ी त्रासदी होती है। खबरों में जैसे दिल्ली का जल संकट छाया रहा। जनता को पानी के लाले पड़ गए। यहां तक कि देश की सर्वोच्च अदालत को भी हस्तक्षेप करना पड़ा। दिल्ली सरकार पानी की कम आपूर्ति के लिए हरियाणा व हिमाचल को जिम्मेदार ठहरा रही थी।
मामला पूरा सुर्खियों में रहा। लेकिन क्या जनता को पानी आसानी से मिल रहा है? ये तो राजधानी की बात थी, जो बड़े लेवल की थी और सुर्खियों में आ गई, लेकिन ऐसे कितने ही छोटे-छोटे शहरों-कस्बों में अनगिनत घटनाएं होती हैं, जिनको सुर्खियों में आने का मौका ही नहीं मिलता। लोग पानी के लिए तरसते रह जाते हैं। गर्मियों के दिनों में ऐसा अक्सर होता है। लेकिन कभी इसके बारे आप लोग सोचते हैं, कि आखिर ऐसे हालात क्यों बन रहे हैं? हर वर्ष गर्मी अपने रिकॉर्ड तोड़ रही है। ग्लोबल स्तर पर ये चुनौती बन रहा है। अपने देश में हालात विकट हो रहे हैं। पानी के स्त्रोत घटते जा रहे हैं। गर्मी का दायरा बढ़ रहा है। हीटवेव के दिन लम्बे चलने लगे हैं। इस बार 20-21 दिन तक लू ने अपने तेवर दिखाए, जिससे हालात नाजुक बन गए। केन्द्रीय जल आयोग के मुताबिक देश में मई के महीने में 150 प्रमुख जलाशयों का पानी 22 प्रतिशत ही रह गया था और देश में 1 से 30 मई तक हीटवेव के 20 हजार के लगभग संदिग्ध मामले आए थे।
बेंगलुरू में भी पानी के लिए मारामारी की खबरें पूरे देश ने देखी। देश का महानगर पानी के लिए तरस गया। क्योंकि वहां भी जलाशयों का पानी खत्म हो गया था। ग्राउंड वाटर सूख गया, जिससे हालात बेकाबू हो गए। बात ये नहीं है कि पानी खत्म हो गया, मिल गया और फिर ढाक के वही चार पात! हर साल इन्हीं हालातों से दो-चार होते रहे और बातें भूली-बिसरी हो गई। बात पते की ये है कि हम इन घटनाओं से सबक क्या ले रहे हैं? क्योंकि साल-दर-साल स्थिति नाजूक होती जा रही है। पानी की मांग बढ़ रही है। पीने के लिए, खेती के लिए, औद्योगिकरण के लिए, इमारतों के निर्माण के लिए, यानि पानी की डिमांड हर दिन बढ़ रही हैं, मगर इसके स्त्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं। हर कदम पर हमें पानी की जरूरत है, लेकिन क्या कभी किसी ने इस ओर मिलकर कदम उठाए हैं?
क्या इसकी गंभीरता को जानने का प्रयास किया है? हम अपनी भावी पीढ़ियों को विरासत में क्या रेगिस्तान देकर जाने वाले हैं? क्योंकि ऐसे ही चलता रहा, तो जहां आज पानी के दम पर बड़े-बड़े खेत दिखाई देते हैं, ऐसा खदशा (संदेह) जताया जा रहा है कि अगले कुछ सालों से वो बंजर और शुष्क मैदान बन जाएंगे। खेतों में तो दूर, पीने के लिए पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए इस बारे में सोच-विचार करना होगा। यह चिंता का विषय है। पानी को हमें बचाना होगा। मिलकर प्रयास करना होगा। हर किसी को जागरूक होना होगा। क्योंकि ये सिर्फ सरकारों का ही नहीं है, हम सबकी जिम्मेदारी बनती है। अभी भी संभल जाएंगे, तो आने वाली हमारी पीढ़ियां खुशहाल रह सकेंगी। पानी की बचत करना और उसका सदुपयोग करना भी सीखना होगा। वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक अपनानी होगी। ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करना होगा।
हर बार, हर मौसम से इसके लिए उपाय करने होंगे। जैसे गर्मी के सताए जनमानस को अब मानसून से राहत की उम्मीद रहती है। देश में मानसून की लहर चल रही है। मानसून भी अपने नए-नए रंग दिखाता है। कभी कहीं हद से ज्यादा और कहीं औसत से भी कम। वैसे इसके भी भीषण गर्मी की तरह अपने अलर्ट होते हैं। जैसे 64.5 एमएम से 115.5 एमएम के बीच इसका येलो अलर्ट और 115.5 से 204.4 एमएम तक ओरेंज, अब जब क्षेत्र में एक दिन में 204.5 एमएम तक बारिश हो तो इसके रेड अलर्ट की घोषणा की जाती है। मौसम विभाग के अनुसार इस बार भी मानसून मेहरबान रहने वाला है। जो देश की आर्थिक व्यवस्था को बूस्ट करता है। अत: हमें मानूसन का इंतजार रहता है और इसके साथ ही बरसने वाले पानी को सहजने की ओर अग्रसर होना होगा। इन बारिशों का पानी यूं ही व्यर्थ बह जाता है।
हर बार पानी का यूं ही बह जाना सिस्टम की नाकामी को दर्शाता है। मानसून का बरसना किसी वरदान से कम नहीं है। मगर हम इसका कितना लाभ उठा पाते हैं, ये सोचने वाली बात है। कितने नदियों, नालों का पानी कहीं बाढ़ के रूप में त्राहिमाम मचाता है और कहीं बिना पानी सूखा रह जाता है। बात है इसको समायोजित करने की। इस अनमोल पानी को संभालने की। चाहे इसे कुओं के रूप में संभालें या बावड़ियां बनाकर (और कई जगहों पर शायद ऐसा चल भी रहा है) या कृत्रिम झीलें व तालाब इत्यादि में जमा करके इसके दोहन को बचा सकते हैं। आम नागरिक इस वर्षा के पानी को अपने घर में भी सहेज कर रखने का उपाय कर सकता है। वर्षा-जल सबसे स्वच्छ व बहुत शुद्ध होता है। इसको कई दिनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है। छोटे-छोटे कदम भी पानी को बचाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। ऐसा करके हमें समझना होगा कि ये सिर्फ हम पानी ही नहीं बचा रहे, बल्कि अपना भविष्य बचा रहे हैं। इसलिए इस मानसून से ही टैंकों आदि में वर्षा-जल के संचयन की यह शुभ शुरुआत तो जरूर कर लेनी चाहिए।
-सम्पादक