Cockpit Technique मिट्टी रहित कोकोपीट तकनीक से बंपर पैदावार ले रहा नंदलाल
रे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती’, यह गाना अक्सर सुनने को मिलता है और देश की मिट्टी में ये कुशल किसान अपने हुनर और श्रम से इसको साकार कर रहे हैं। आखिर हो भी क्यों ना, इतनी मेहनत और खून-पसीने से उगाई गयी फसल किसी सोने से कम नहीं होती। लेकिन आज के परिवेश में किसानों को इस सोने रूपी फसल को उगाने के लिए मिट्टी की भी जरुरत नहीं पड़ती। आज तरह-तरह के आधुनिक तकनीक की खेती से बिना मिट्टी की खेती संभव है। सिर्फ संभव ही नहीं, बल्कि यह अच्छी पैदावार के साथ जबरदस्त मुनाफा भी देती है। अब आधुनिक तकनीक के आने से किसानों का मिट्टी की गुणवत्ता और जलवायु पर निर्भरता खत्म हो गयी है।
Cockpit Technique हम एक ऐसे ही किसान की बात कर रहे हैं, जिसने अपनी सोच और बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल कर खेती को मुनाफे के सौदे में तब्दील कर दिखाया है। इनका नाम है नंदलाल डांगी। नंदलाल राजस्थान जिला उदयपुर के महाराज खेड़ी गांव के रहने वाले हैं। नंदलाल आज बिना मिट्टी की खेती कर सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं। मिट्टी रहित कोकोपीट तकनीक तथा पॉली हाउस तकनीक द्वारा खेती कर नंदलाल बम्पर पैदावार कर रहे हैं।
उन्होंने साल 2013 में अपनी पत्नी और भाई के नाम राजकीय सहायता प्राप्त कर करीबन आठ हजार वर्गमीटर (दो एकड़) भूमि पर संरक्षित खेती के लिए तीन पॉली हाउस में खीरा, टमाटर व शिमला मिर्च की खेती शुरू की। नंदलाल की बोई शिमला मिर्च की डिमांड फाइव स्टार होटलों में है और मिर्च की कीमत वह खुद तय करता है। यही नहीं, नंदलाल की शिमला मिर्च जापान भी जा चुकी है।
एक बार टमाटर व खीरा की फसल भूमि सूत्रकृमि से बुरी तरह प्रभावित हो गई। इससे नंदलाल की बहुत फसल भी बर्बाद हो गई थी और उन्हें नुकसान भी हुआ। नंदलाल मिट्टी की गुणवत्ता से परेशान थे, पर जल्द ही उनको इसका हल मिल गया। उन्हें पता चला कि कोकोपीट विधि द्वारा खेती करने से सूत्र कृमि की समस्या नहीं आती। नंदलाल ने अपने पड़ोसी राज्य गुजरात के एक कृषि सलाहकार की मदद लेकर मृदा के स्थान पर कोकोपीट के उपयोग का पूरा ज्ञान हासिल किया। इस आईडिया की शुरूआत 2013 में हुई जब नंदलाल गुजरात गए हुए थे।
इस दौरान उन्हें इजरायली तकनीक के बारे में जाना। गुजरात के साबरकांठा में हिम्मतनगर नगर निकाय में उन्होंने देखा कि एशियन एग्रो कंपनी सब्जियों का उत्पादन कोकोपीट में कर रही है। कोकोपीट नारियल की भुसी से तैयार हुई मिट्टी जैसे तत्व को कहते हैं, पर ये मिट्टी नहीं होती।
उसके बाद उन्होंने नारियल के बुरादे का उपयोग करते हुए मिट्टी रहित खेती का तरीका शुरू किया। Cockpit Technique
नंदलाल ने कोकोपीट को 5-5 किलोग्राम की प्लास्टिक की थैलियों में भरकर कुल 13,000 थैलियों में बीजारोपण कर एक एकड़ पॉलीहास क्षेत्र में खीरे की खेती आरम्भ की। इस विधि में पौधों की गुणवत्ता बरकरार रखने व इसे पोषक देने के लिए इन्हें पूर्ण रूप से फर्टिगेशन विधि द्वारा बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली शुरू की। नन्दलाल ने विभिन्न प्रकार के सॉल्ट की व्यवस्था की, ताकि पौधों को सभी 16 तत्वों से पोषित किया जा सके। बुआई के करीब 45 दिन बाद फूल आने लगे व खीरे लगने लगे। नंदलाल की यह खीरे की फसल पूर्ण रूप से गुणवत्तापूर्ण व सूत्र कृमि प्रकोप रहित थी।
पहले जहाँ वे अपनी दो एकड़ जमीन पर सालभर में मुश्किल से मात्र 20 टन खीरा उगा पाते थे, मिट्टी रहित कोकोपीट खेती की तकनीक ने उनकी तकदीर ही बदल दी और उनकी उपज चार गुना बढ़कर 80 टन सालाना हो गई। किसान नंदलाल के फसल की पैदावार में आई बढ़ोतरी के कारण उनकी वार्षिक आय बहुत बढ़ी है। अपनी सफलता को देखते हुए उन्होंने अब तुर्की की एक उत्तम खीरे की प्रजाति युक्सकेल 53321 हाइब्रिड का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। अब आलम यह है कि नन्दलाल के 4000 वर्गमीटर पॉली हाउस से करीब 450 क्विंटल खीरा उत्पादन हो रहा है। जिसे साधारण बाजार भाव पर भी बाजार में बेचा जाये तो उन्हें प्रति माह एक लाख रुपए से अधिक शुद्ध मुनाफा मिल रहा है।
Table of Contents
हौसले का दूसरा नाम है नंदलाल Cockpit Technique
नंदलाल ना केवल किसानों के लिए एक प्रेरणा हैं, बल्कि उन लोगों के लिए भी एक गाइड हैं जो एक बार गिरकर ही हार मान लेते हैं। नंदलाल ने एक बार फसल का नुकसान होने के बाद भी हौसला नहीं हारा और नई तकनीक सीख कर सफल हुए व अपने हौसले से नई मिसाल कायम की।
खर्चा एक लाख, कमाई 3.60 लाख
किसान नन्दलाल ने केवल आधा बीघा जमीन में 60 क्विंटल शिमला मिर्च पैदा की। इस पर लगभग 1 लाख का खर्चा आया और कमाई हुई 3.60 लाख की। इस तरह से नंदलाल को 2.60 लाख का शुद्ध लाभ हुआ। नंदलाल सरपंच भी रह चुका है, इस दौरान उसने देश में कई जगहों की यात्रा की और खेती के मॉडल जाने।
2017 में की थी नारियल के बुरादे से खीरे की खेती
नंदलाल डांगी नारियल के बुरादे से खीरे की खेती कर प्रति माह औसतन सवा लाख रुपये कमा रहा है। उसने महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की सलाह ली और उसके बाद उसने पॉली हाउस में खीरे की वैज्ञानिक खेती की शुरूआत की। पॉली हाउस के अंदर जमीन से ऊपर क्यारी बनायी गयी और उसमें नारियल के बाहरी आवरण के बुरादे को पॉलीथीन के बैग में डालकर चाइनीज खीरे की खेती शुरू की गई। कम पढेÞ-लिखे डांगी ने बताया कि दो एकड़ जमीन पर उन्होंने तीन पॉलीहाउस का निर्माण कराया जिस पर नारियल के बैग में खीरे के 9500 बीज बोये गये। प्रत्येक बैग में करीब डेढ़ किलो नारियल का बुरादा डाला गया और उसमें खीरे के बीज को अंकुरित कराया गया।