Son! Do not keep stress, chant the name day and night - Experiences of Satsangis

बेटा! टेंशन ना रक्खीं, नाम जपो दिन-रात -सत्संगियों के अनुभव

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत

प्रेमी होशियार चंद इन्सां सेवादार छायावान समिति पुत्र श्री दीवान चंद गांव चक निधाना तहसील गुरुहरसहाये जिला फिरोजपुर (पंजाब) से अपने भाई बलकार चंद पर पूज्य हजूर पिता जी की हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-

सन् 2006 की बात है । मेरे भाई बलकार चंद को अचानक पेट दर्द हुआ। जलालाबाद के डॉ. कुमार से अल्ट्रासाउंड करवाया, तो उसने अपैंडैक्स बताया। हमने सिविल हस्पताल जलालाबाद से आॅप्रेशन करवा लिया। अगले दिन 7 जून को मरीज के पेट में एक गोला-सा बन गया तथा पेट फूल गया। उसके बाद जलालाबाद तथा फाजिल्का के कई डाक्टरों से चैकअप करवाया, परन्तु बीमारी का किसी को भी पता न चला।

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19 जुलाई को हमने मरीज को गुरु गोबिंद सिंह मेडिकल कॉलेज फरीदकोट में दािखल करवाया। चैकअप व अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने 22 जुलाई को मरीज को पी.जी. आई. चण्डीगढ़ के लिए रैफर कर दिया। हम अपने घर वापिस आ गए। 23 जुलाई को मैंने रिपोर्ट डॉ. डूमड़ा जलालाबाद को दिखाई तो डॉक्टर ने कहा कि इस मरीज को कैंसर हो गया है। अगर बुजुर्ग होता तो कहीं जाने की जरूरत नहीं थी। आप इसे पी.जी.आई. चण्डीगढ़ ले जाओ। हम 24 जुलाई को चण्डीगढ़ पहुंचे। वहां मरीज को सर्जीकल वार्ड में दाखिल कर लिया गया।

25 जुलाई तथा 3 अगस्त को सिटी सकैन करवाए गए। लेकिन 5 अगस्त को छुट्टी दे दी कि मरीज का आॅपरेशन नहीं होगा तथा मरीज दवाई से ही ठीक हो जाएगा। 12 अगस्त को मरीज का टैस्ट करवाना है तथा रिपोर्ट देखकर दवाई चालू की जाएगी। मैंने वहां ड्यूटी दे रहे डॉ. अमित को विनती की कि मरीज को दाखिल कर लो, हम इसे घर ले जाकर क्या करेंगे, बहुत दूर से आए हैं। इस विनती पर डॉक्टर ने हमें फोन नं. दे दिया कि एमरजैंसी जरूरत पड़ने पर आप सुबह नौ बजे से शाम 5 बजे तक बात कर सकते हो।

 हम घर वापिस आ गए तथा 12 अगस्त को फिर से टैस्ट करवा कर लाए। 15 अगस्त को बहुत ही ज्यादा दर्द हुआ तो फोन पर डॉ. अमित से बात की। डॉक्टर ने कहा कि मरीज को लेकर आओ तथा एमरजैंसी में दाखिल करवा दो तथा डॉक्टर को कह दो के मेरे (डॉ. अमित) से फोन पर बात करें। हम 16 अगस्त को शाम पांच बजे पी.जी.आई.चण्डीगढ़ एमरजैंसी में पहुंच गए। मगर स्टाफ मरीज को दाखिल नहीं कर रहे थे।

करीब रात 11 बजे डॉ. अमित एमरजैंसी में आए और दाखिल करने के लिए कहा। मरीज को सुबह पांच बजे दाखिल करके वार्ड सी फलोर नं. 15 मेडिसन वार्ड में भेज दिया। मैंने हस्पताल में अपने सतगुरु परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को हाजिर नाजिर मानते हुए विनती की कि पिता जी, आप बख्शणहार हो, इस जीव को बख्श दो। आप जी से वादा करता हूं कि मैं इस जीव को डेरे जरूर लेकर आऊंगा तथा नाम-शब्द भी दिलाऊंगा। मैं रो रहा था और साथ ही पूज्य पिता जी के आगे अरदास कर रहा था कि पिता जी, लोग क्या कहेंगे कि सारा परिवार दरबार में सेवा करता है तथा मालिक ने इनकी भी नहीं सुनी।

आखिर पिता जी ने मेरी फरियाद सुन ली तथा उसी दिन 23 अगस्त को दवाई लगवाकर शाम 4 बजे मरीज को छुट्टी दे दी और कहा कि अगली दवाई 11 सितम्बर को लगाई जाएगी। हम वापिस घर आ गए।

27 अगस्त को डेरा सच्चा सौदा सरसा में सत्संग था। मैं अपना वादा पूरा करने के लिए बलकार चंद को साथ लेकर परिवार सहित डेरा सच्चा सौदा सरसा पहुंच गया। सत्संग के दौरान मरीज को बीमारों वाला प्रसाद तथा नाम-शब्द दिला दिया। शाम की मजलिस के बाद पिता जी सचखण्ड हॉल में से तेरावास की तरफ जा रहे थे। हम मरीज को रिक्शा में बैठाकर तंदुरूस्ती के लिए अर्ज करने के लिए जा रहे थे। मेरा परिवार, मरीज की पत्नी तथा उसके छोटे-छोटे बच्चे भी साथ थे। मैंने आगे होकर पूज्य पिता जी को अर्ज की कि पिता जी! मेरे भाई को कैंसर हो गया है।

पिताजी ने फरमाया, ‘कहां पर है बेटा?’ मैंने कहा, पिता जी, पेट में। पूज्य हजूर पिता जी ने दोबारा पूछा, ‘बेटा दवाई कहां से चल रही है?’ पिता जी, पी.जी.आई. चण्डीगढ़ से चल रही है। तो पिता जी ने फरमाया, ‘ठीक है बेटा! अपने हस्पताल में दिल्ली वाले डॉक्टर आते हैं। चैकअप करवा लो, दिखा लो।’ दयालु सतगुरु जी ने मरीज पर अपनी दया-दृष्टि डालते हुए वचन फरमाया, ‘बेटा! टेंशन ना रक्खी, नाम जपो बेटा दिन-रात।’

सच्चे पातशाह जी का वचन मानते हुए हम मरीज को रिक्शा में बैठाकर शाह सतनाम जी स्पैशलिटी हस्पताल में ले गए। उस समय हस्पताल में बहुत ज्यादा भीड़ थी। हम रात को नौ बजे एमरजैंसी में दाखिल हो गए। डॉक्टर ने फोन पर दिल्ली वाले डॉक्टर से बात करके ड्रिप लगा दी तथा कुछ टैस्ट किए। डॉक्टर ने बताया कि दिल्ली वाले डॉक्टर 16 सितम्बर को आएंगे। हम 11 सितम्बर को पी.जी.आई चण्डीगढ़ दवाई दोबारा लगवाने के लिए पहुंच गए। दवाई लगा दी तथा डॉक्टर ने कहा कि यह दवाई 6 से 8 बार लगवानी पड़ेगी, जो 21 दिनों के बाद लगेगी। इसके बाद 16 सितम्बर को पूज्य पिता जी के वचनानुसार दिल्ली वाले डॉक्टरों से चैकअप करवाने के लिए दरबार के हस्पताल में पहुंच गए। उन्होंने रिपोर्ट्स चैक की तथा कहा कि दवाई बिल्कुल ठीक चल रही हैं। 6 से 8 बार लगेगी, मरीज बिल्कुल ठीक हो जाएगा।

यह दवाई का तो एक बहाना ही था, बीमारी तो पूज्य हजूर पिता जी ने उसी टाइम खत्म कर दी थी, जब मरीज पर दृष्टि डालकर वचन किया था कि बेटा टेंशन ना रखीं। मरीज को आठ बार दवाई लगवाई गई। मरीज बिल्कुल ठीक है। इस बात को लगभग सोलह वर्ष हो गए हैं। पूज्य हजूर पिता जी के अहसानों को हम कैसे भुला सकते हैं। हमारे परिवार के पास ऐसे शब्द नहीं है, जिनसे हम पूज्य पिता जी का धन्यवाद कर सकें।

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