Experiences of satsangis

बेटा! आग लग गई है, खड़ी हो जा… -सत्संगियों के अनुभव -पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर

बहन कुसुम इन्सां पत्नी प्रेमी शशि कुमार शर्मा इन्सां सुपुत्र राधेश्याम गांव काठा जिला मेरठ (उत्तर प्रदेश) से परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करती है:-

5 जनवरी 1983 की बात है। मैं तथा मेरा छह वर्षीय बेटा एक कमरे में सोए हुए थे। मेरे पति शशि कुमार साथ वाले दूसरे कमरे में थे। उस समय कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। मैंने अपना कमरा गर्म करने के लिए एक हीटर लगा रखा था जो मेरी चारपाई के बिल्कुल नजदीक था।

हम दोनों पति-पत्नी डेरा सच्चा सौदा बरनावा में चार-पांच दिन सेवा करके उसी दिन शाम को घर पहुंचे थे। थकावट के कारण हमें तुरंत ही नींद आ गई। अर्धनिंद्रा की अवस्था में मुझे आवाज सुनाई दी, बेटा! आग लग गई है, खड़ी हो जा। मैंने आवाज सुनी, परंतु यह समझी कि मुझे भुलेखा लग गया है। ज्यादा थकावट के कारण उठने की हिम्मत नहीं हुई को आवाज को अनसुना करके मैं फिर सो गई।

मेरे हाथ को किसी ने पकड़ा और मुझे खींच कर बैठाते हुए जोर से कहा, ‘बेटा! आग लग गई है और तू सोई पड़ी है।’ मैंने देखा तो मेरे गुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज स्वयं मेरे सामने खडेÞ हैं। वे आशीर्वाद देते हुए तुरंत अदृश्य हो गए। मैंने देखा तो रजाई को आग लगी हुई थी। आग लगातार ऊपर को बढ़ रही थी। मैं एकदम उठी, लड़के को खड़ा किया और अपने पति को भी आवाज लगाकर जगाया। हम दोनों ने जल्दी-जल्दी बीस-तीस बाल्टी पानी आग पर डाला और उसे बुझा दिया। रजाई और गद्दा दोनों जल चुके थे।

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मेरे पोलिस्टर की साड़ी पहनी हुई थी, अगर उसे आग लग जाती तो पोलिस्टर का वह कपड़ा जिस्म से चिपक जाता और बहुत नुक्सान होता। बच्चों को भी आंच तक नहीं आई। हमने सतगुरु का लाख-लाख शुक्रिया अदा किया। उस मालिक, सतगुरु परमपिता जी के गुणों को गाया नहीं जा सकता। हमारी परमपिता जी के प्रत्यक्ष नूरी स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी से यही अरदास है कि हमारी पूरी उम्र मानवता की सेवा व सुमिरन में ही गुज़रे जी।