Special on the 101st Holy Avatar Day of His Holiness Shah Satnam Ji Maharaj
‘रब्बी जलाल खिल उठी फिजाएं,
प्यारे शाह सतनाम जी पधारे’
संत-सतगुरु कुल मालिक के प्रकट स्वरूप होते हैं। वे परम पिता परमात्मा के हुक्मानुसार सृष्टि-जगत के उद्धार के नमित-सृष्टि पर अवतार धारण करते हैं। दूसरे शब्दों में रूहानी फिलॉसफी के अनुसार संत-सतगुरु, रूहानी महापुरुषों का सृष्टि पर आगमन खुद-खुदा परमेश्वर के हुक्म व उसकी रजा में होता है।
हालांकि बाहरी वेशभूषा, बोलचाल, रहन-सहन आदि क्रियाओं के अनुरूप वो हमारी तरह ही इन्सान नजर आते हैं लेकिन अंतर्मुख से वो परमेश्वर से जुड़े, स्वयं परमेश्वर स्वरूप होते हैं। वो गॉड गिफ्टिड परमपिता परमात्मा की सच्ची शख्सियत होते हैं। वास्तव में खुद परमेश्वर अपनी बिछुड़ी रूहों को वापस लाने, परमपिता परमात्मा से मिलाप कराने के लिए ऐसे महापुरुषों को एक सशक्त वसीला बना कर सृष्टि पर भेजता है।
उदाहरण के तौर पर, जिस प्रकार हॉस्पिटल में मरीज भी होते हैं और डॉक्टर भी होते हैं। मरीज अगर अपनी बीमारी , अपने इलाज के लिए वहां दाखिल होते हैं तो वहीं डाक्टर साहिबान उनके उपचार, उनका इलाज करने के लिए वहां रहते हैं। बेशक रहने का स्थान एक ही है और शक्ल, सूरत में भी कोई अंतर नहीं, लेकिन उनका उद्देश्य वहां रहने का अलग-अलग है। इसी तरह सतगुरु, पीर-फकीर परमार्थ के मकसद से संसार में विचरते हैं तथा ‘न को वैरी नहिं बेगाना’ के उद्देश्य के तहत सरबत का भला, यानि तमाम जीव सृष्टि के भले के लिए कामना करते हैं और जहां तक संभव हो, अपने रहमों-करम के द्वारा जीवों पर काल-कर्म के भारी बोझ, उनके पाप-कर्माें से उन्हें निजात दिलाने का परोपकारी-करम करते हैं।
Table of Contents
संत कबीर जी की वाणी में आता है
तरुवर फल नहिं खात है,
सरवर पीवहिं न नीर।।
परमार्थ कै कारणै,
संतन भयो (धरा) सरीर।।
सच्चे युग प्रवर्तक पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का समूचा जीवन पवित्रता की मिसाल है। आप जी का जीवन तरुवर व सरवर की उदाहरण का प्राय: है। आपजी ने परहित परमार्थ यानि दूसरों की सुख-सुविधा के लिए अपने खुद की तथा अपने सुख-आराम की कभी परवाह नहीं की थी। सर्दी है या गर्मी, वर्षा है या आंधी या तूफान है जीवोद्दार के लिए आपजी का अपार रहमो-करम हमदर्दी व दया-भावना का दरिया निरंतर बहता रहा और ज्यों का त्यों अब भी बह रहा है। अति नसीबों वाले, भाग्यशाली जीव हैं जो पहले की तरह आज भी आप जी के अपार दया, रहमो-करम के सागर में डुबकियां लगा रहे हैं। आप जी के अपार रहमो-करम के दरिया से खुशियां पाकर मालामाल हो रहे हैं।
पावन जीवन चरित्र एक नजर में
रूहों के सरताज पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के आदरणीय पिता जी का नाम सरदार वरियाम सिंह जी सिद्धू और अति पूजनीय माता जी का नाम माता आस कौर जी था। आप जी का गांव श्री जलालआणा साहिब, तहसील कालांवाली जिला सरसा है। आप जी के पूज्य पिता जी एक बहुत बड़े जमीन-जायदाद के मालिक थे। आप जी के पूज्य दादा जी सरदार हीरा सिंह जी सिद्धू गांव, इलाके के जैलदार थे। पूजनीय माता-पिता जी हमेशा साधु-महात्माओं की अत्याधिक सेवा किया करते और मालिक की भक्ति में लीन रहते थे।
इस साधन-सम्पन्न परिवार में दुनियावी सुख-सुविधाओं की कमी नहीं थी। घर में हर वस्तु भरपूर थी, परन्तु संतान प्राप्ति की कामना पूज्य माता-पिता जी को हर समय सताती रहती थी। समस्त गांव वासी भी इस परिवार की मालिक के प्रति अपार श्रद्धा भावना तथा दीन-दुखियों के प्रति दया, हमदर्दी के भाव आदि सदगुणों से जानकार थे। इसलिए भी सभी लोग इस नेक दिल परिवार के प्रति सच्चे सत्कार व हमदर्दी की भावना रखते थे।
उन्हीं दिनों एक मस्त फकीर-बाबा का गांव श्री जलालआणा साहिब में आना हुआ। वह मालिक का कोई सच्चा फकीर था जो लोगों को ईश्वर की भक्ति के लिए प्रेरित करता था। पूज्य माता-पिता जी ने उस फकीर को अपने घर पर आमंत्रित किया और सच्चे दिल से उसका भरपूर स्वागत किया। वह फकीर बाबा कई दिनों तक श्री जलालआणा साहिब में विराजमान रहे। जितने भी दिन वो गांव श्री जलालआणा साहिब में रहे, दूध, भोजन-पानी वो पूजनीय सरदार वरियाम सिंह जी के यहां ही किया करते थे।
आदरणीय माता-पिता जी उस फकीर-बाबा को बड़े सत्कारपूर्वक पवित्र सेवा-भावना से बिठाकर अपने हाथों से सेवा करते (भोजन-पानी खिलाते)। एक दिन उस फकीर सार्इं ने अति प्रसन्न होकर कहा, माता जी, आपकी ईश्वर के प्रति भक्ति, सेवा प्रेम, सत्कार बहुत ही सराहनीय है। आपकी संतान-प्राप्ति की कामना परमेश्वर जरूर पूरी करेंगे। आपके घर कोई महापुरुष जन्म लेगा। ये कहकर वो फकीर-बाबा जी गांव से चले गए। परम पिता परमात्मा की अपार रहमत व फकीर-सार्इं की दुआओं से पूजनीय माता-पिता जी को 18 वर्ष के लम्बे इन्तजार के बाद परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के रूप में 25 जनवरी 1919 को संतान की प्राप्ति हुई।
आप जी के सृष्टि पर शुभ आगमन का पवित्र संदेश जैसे ही गांव वासियों, रिश्तेदारों-संबंधियों को मिला सब कहीं खुशी की लहर दौड़ गई। हर कोई उमंग, खुशियों से भर गया। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी प्रकृति स्वर-लहरियों में झूम उठी हो और चहुं ओर ईश्वरीय मस्ती छा गई हो। ऐसा क्यों न हो, क्योंकि कुल मालिक परम पिता परमात्मा स्वयं पूज्य परम पिता जी के स्वरूप में धुरधाम से उतर कर धरत पर आया है। आप जी के शुभ जन्म-बेला पर, आप जी के अवतार धारण करने पर हर तरफ से शहनशाही परिवार को बधाइयां, शुभकामनाएं मिलने लगी। उस समय के प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार पूरे गांव में थाल भर-भर कर शक्कर, गुड़, मिठाइयां, बतासे अनाज आदि जैसा भी रिवाज था, खुशियां बांटी गई तथा गरीबों की झोलियां अनाज से भर दी गई। जन-जन ने, सभी गांव वासियों ने वाहेगुरु परमात्मा को कोटि-कोटि नमन्, धन्यवाद, शुक्रिया अदा किया।
ईश्वरीय बाल स्वरूप के दर्शन
कुल मालिक के धरती पर प्रकटीकरण का शुभ समाचार पा के वो फकीर बाबा भी आकर पूज्य पिता सरदार वरियाम सिंह जी से मिला और बधाइयां दी। फकीर बाबा ने बताया कि ये कोई आम बच्चा नहीं है, खुद परमेश्वर आपके घर पर आया है। ये आपके पास चालीस वर्ष तक रहेंगे और उसके बाद परमेश्वर के कार्य (सृष्टि-उद्धार के कार्य) के लिए उन्हीं के पास चले जाएंगे जिन्होंने इन्हें आपके यहां भेजा है।
‘पूत के पांव पालने में ही पहचाने जाते हैं’। जो भी देखता बस देखता ही रह जाता। नजर हटाने को दिल न करता।
वो झींवर-भाई जो घर में पीने का पानी भरा करता था, एक दिन जब पानी भर के वापस जाने लगा, अचानक उसकी निगाह जैसे ही पालने में लेटे बाल रूप पूज्य परम पिता जी के मुस्कुराते चेहरे पर पड़ी तो वह अपनी सुध-बुध खोकर बिना पलक झपकाए पूज्य परम पिता जी को निहारने लगा। अचानक पूजनीय माता जी की निगाह उस झींवर भाई पर पड़ी कि ये ऐसे मेरे लाल को क्यों देख रहा है। कहीं इसकी नियत में कोई खोट तो नहीं! कहीं मेरे लाल को नजर ही न लगा दे! दौड़ कर अपने लाल को गोद में ले लिया। माता का अपने लाल के प्रति यह स्रेह देख कर वो भाई मुस्कुराते हुए कहने लगा, मां जी, मैं एकटक आपके लाल को इसलिए निहार रहा था क्योंकि इनमें मुझे हमारे महापुरुषों के दर्शन हो रहे थे, हमारे पूजनीय अवतार के मुझे दर्शन हो रहे हैं।
पूज्य माता जी ने अपने लाल को काला टीका लगाते हुए कहा कि मेरा बच्चा भी आम बच्चों की तरह ही तो है। ऐसे ही लोग कहते हैं। कहीं किसी की बुरी नजर ही न लग जाए।आप जी मात्र पांच वर्ष के थे, जब आप जी के पूज्य पिता जी मालिक की गोद में सचखण्ड जा समाए। आप जी का पालन-पोषण पूज्य माता जी और आप जी के पूज्य मामा जी( सरदार वीर सिंह जी) के उत्तम संस्कारों व आदर्शाें के आधार पर हुआ। आप जी ने प्राथमिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की। उपरान्त अगली शिक्षा के लिए मंडी कालांवाली में भी आपजी ने अपनी शिक्षा पूरी की।
परोपकारी दयालुता भाव
पूजनीय परम पिता जी बचपन से ही दयालुता के समुद्र थे। आप जी अपने घरेलू कार्याें के साथ-साथ परमार्थी व सामाजिक कार्याें में भी अधिक रूचि लेते थे। यह सच्चाई पूरे इलाके भर में प्रसिद्ध है कि जो भी कोई गरीब, जरूरतमंद दर पर आया, आप जी ने उसे कभी खाली नहीं लौटाया। समय व स्थिति के अनुसार आप जी उनकी झोलियां अपने दया-रहम, परोपकारोें से भर दिया करते। एक बार इलाके में जबरदस्त सूखा पड़ा। उस स्थिति में कौन किसी जरूरमंद की मदद करे! सबको अपनी-अपनी पड़ी हुई थी। ऐसे में शहनशाही परिवार ने हर जरूरतमंद की मदद की। जो भी फरियाद लेके दर पर आया यथा संभव उनकी मदद की गई।
ऐसी ही स्थिति में एक परिवार पूज्य माता जी के पास कुछ आर्थिक मदद के लिए आया। उनकी बेटी की शादी थी। कुछ दिन ही बाकी थे। आप जी भी उस समय अपने पूज्य माता जी के पास बैठे हुए थे। उनकी मजबूरी की व्यथा सुनकर आपजी ने पूज्य माता-जी से कहा, माता जी उनकी मदद जरूर करें। हालांकि आप जी अभी बालावस्था में ही थे। पैसे का तब बड़ा मोल था। आप जी ने कहा माता जी इन्हें 100 रुपए की जरूरत है तो डेढ़ सौ दे दीजिए, दो सौ दे दीजिए मान लो यह हमारी बहन की ही शादी है।
भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, मान लेते हैं कि यह आम बात है, परन्तु आप जी ने कभी किसी पशु को भी चरते हुए अपने खेत से नहीं हटाया था। बल्कि अपनी पावन मौजूदगी में भी अगर कोई पशु खेत में घुस कर फसल चर रहा है तो आप ने उसे कभी बाहर नहीं निकाला था। एक बार ऐसा ही हुआ, आप जी खेत की निगरानी में बैठे हुए थे, एक भैंसा आता और फसल चरने लग जाता। उस समय खेतों में चने की फसल लहलहा रही थी। आप जी ने उसे नहीं हटाया और फिर यह रोजाना की क्रिया ही बन गई। वह भैंसा पेट भरने पर आप के पास आकर बैठ जाता।
इस बात की पूज्य माता जी के पास जब शिकायत हुई तो आप जी ने अगले दिन उस भैंसे की पीठ थप-थपाते हुए कहा, भगता! अब तो अपनी शिकायत हो गई है, तू हिस्सेवार तुर-फिर के चर लिया कर। और सच में ही ही उस मौके के सभी गांव वासी भी इस सच्चाई के गवाह हैं कि उस दिन के बाद किसी भी व्यक्ति ने उस भौंसे को एक खेत में खड़े होकर चरता नहीं देखा था, बल्कि ठीक उसी तरह जैसे कि आप जी ने उसे समझायां तुर-फिर के ही चर लिया करता जब तक वह जीवित रहा। आप जी के परोपकार की अनेक मिसालें वर्णनीय हैं।
बड़े होने पर आप जी गांव व समाज के सांझे कार्याें में भी बढ़-चढ़कर सहयोग करते। आज जी हर भले कार्य में हमेशा आगे रहकर उसे पूरा करवाते। गांव में श्री गुरुद्वारा साहिब के निर्माण की सेवा का निर्णय पंचायत में हुआ जिसे आप जी ने प्रमुखता से आगे रहकर इस पवित्र कार्य को तन-मन-धन एवं अपना हर सहयोग देकर पूरा करवाया।
सतगुरु शाह मस्ताना जी का मिलाप
पूजनीय माता जी के पावन संस्कारों के सदका आप जी बचपन से परमपिता परमात्मा की भक्ति से जुड़े थे। आप सुबह-शाम पांच वाणियों का पाठ करते, पवित्र वाणी को बड़ी एकाग्रता से सुनते। धुर की वाणी आई!! जिनि सगली चिंत मिटाई!! बार-बार पढ़ते, गहराई से सोचते, विचार करते कि ये ऐसी कौन सी वाणी है जो सभी गम-फिकरों को मिटा दे। इस उद्देश्य से आप जी ने अनेक साधु-महापुरुषों से सम्पर्क भी किया। उनके प्रवचन सुने, उन्हें देखा, परखा भी, पर आपजी की पूर्ण तसल्ली नहीं हो सकी थी। इस दौरान आप जी का मिलाप पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से हुआ।
जैसा कि आप जी ने पूज्य बेपरवाह जी के बारे में जो सुन रखा था, आप जी ने डेरा सच्चा सौदा में सत्संग में भी उसी वास्तविकता को पाया। जैसे ही आपजी ने बेपरवाह जी के पवित्र मुख-वचनों से परम पिता परमेश्वर की सच्ची वाणी सुनी आप जी उसी पल से पूज्य सार्इं जी के मुरीद हो गए। जिस सच्चाई की तलाश थी वह आप जी ने पा ली थी। अन्दर-बाहर से आप जी की पूर्ण तसल्ली हो गई थी। आप जी तीन साल तक लगातार बेपरवाह जी का सत्संग जहां भी होता, सुनते, बेपरवाह जी की संगत में आते रहे। इस दौरान हालांकि आप जी ने नाम-शब्द लेने की भी बहुत बार कोशिश की, परन्तु बेपरवाह जी आप जी को हर बार यह कह कर नाम वालों से उठा दिया करते कि अभी आप जी को नाम लेने का हुक्म नहीं है, जब समय आएगा तो बुला कर, आवाज दे कर नाम देंगे तब तक आप सत्संग करते रहें आप को काल नहीं बुलाएगा। हम आप के खुद जिम्मेवार हैं।
ईश्वरीय दर्शन-भई आओ, तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं
एक बार एक पैड़ (पांव का निशान) को अपनी डंगोरी से घेरा बना कर पूज्य बेपरवाह जी ने अपने साथ आए सेवादारों से कहा, ‘भई आओ, तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं।’ उनमें एक सेवादार भाई ने कहा (वह भाई जानता था कि पाँव का ये निशान पूज्य परम पिता जी का है क्योंकि वह साथ था) कि यह पैड़ (पांव का निशान) तो श्री जलाल आणा साहिब के जैलदार सरदार हरबंस सिंह जी (पूज्य परमपिता जी का बचपन का नाम) की है। तो सार्इं जी ने डंगोरी जमीन पर ठोक कर कहा कि असीं किसी जैलदार को नहीं जानते, लेकिन ये पैड़ रब्ब की है।
दिनांक 14 मार्च 1954 को पूजनीय बेपरवाह सार्इं जी ने घूकांवाली में सत्संग फरमाया। सत्संग के बाद पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को आवाज लगा कर, बुलाकर फरमाया कि हरबंस सिंह जी, जहां नाम अभिलाषी बैठे हुए थे, हमारे मूढे के पास बैठो, हम अभी आ रहे हैं। आप जी ने अंदर कमरे में जा कर देखा, मूढे के पास खाली जगह नहीं थी, तो आप जी पीछे ही नामवालों में बैठ गए। पूज्य सार्इं जी जब अंदर आए तो आप जी को बुलाकर मूढे के पास बिठाया और वचन किए कि आप को इसलिए पास बिठाकर नाम देते हैं कि आप से कोई काम लेना है। आपको जिन्दाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।
पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां अपने एक भजन में इस वृत्तांत की सच्चाई इस प्रकार ब्यान फरमाते हैं:-
‘शाह मस्ताना जी पैड़ बताई जी, इत्थों लंघी मौज खुदाई जी।
पर किसे दे समझ न आई जी, दंग रह गई सब लुकाई जी
कर सकेआ न कोइ इतबार जीओ।
शाह मस्ताना जी आवाज लगाई जी, पास मूढे के बैठो आईजी
आज नाम की दात बताएंगे, रूहानियत का लीडर बनाएंगे।
घूकांवाली होय जाहिर जीओ,
कुल मालिक लेया अवतार जीओ।’
पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता जी को घूकांवाली में नाम-शब्द के बहाने दुनिया पर इस सच्चाई को जाहिर(प्रकट) कर दिया कि श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार हरबंस सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) स्वयं कुल मालिक खुद-खुदा के रूप में जीव सृष्टि के उद्धार हित मानवता का सहारा बन कर आए हैं।
गुरगद्दी बख्शिश-परीक्षा
पूजनीय परम पिता जी जब से पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी की पावन दृष्टि में आए उसी दिन से ही बेपरवाह सार्इं जी ने आप जी को अपना भावी उत्तराधिकारी मान लिया था और उसी दिन से आप जी के लिए परीक्षा-पर-परीक्षा भी साथ-साथ लेते रहे। इन्हीं रूहानी परीक्षाओं के चलते एक बार पूज्य बेपरवाह जी लगातार 18 दिन तक श्री जलालआणा साहिब दरबार में रहे। उस दौरान कभी गदराना का डेरा गिरवा दिया और कभी चोरमार का (डेरा सच्चा सौदा नाम से डेरे)। इधर डेरे गिरवा दिए और उन डेरों का सारा सामान लकड़ वाला गार्डर-शतीर जंगले, दरवाजे श्री जलालआणा साहिब डेरे में इकट्ठा करने का हुक्म फरमाया।
अभी सामान ढोया जा रहा था और पूज्य परमपिता शाह सतनाम सिंह जी गदराना गांव में ही थे, वहां से सामान उठवा रहे थे। इधर बेपरवाह मस्ताना जी ने ढोया हुआ सामान डेरा सच्चा सौदा घूकियांवाली के सेवादारों को उठवा दिया। इसके उपरान्त सार्इं जी ने गदराना का डेरा फिर से बनाने की स्वीकृति दे दी, तो वहां पड़ा बाकी सामान गदराना की साध-संगत को उठवा दिया। पूज्य परमपिता जी अपने अल्लाह पीरों, मुर्शिदे-कामिल के हुक्मानुसार दिन-रात एक करके डेरों का सामान ढोते व ढुआते रहे और इधर पूज्य सार्इं जी वह लाया गया सामान उठवा देते। यह स्वयं कुल मालिक का अपना अलौकिक खेल और वास्तव में पूज्य परमपिता जी की परीक्षा थी।
लेकिन पूज्य परम पिता जी तो पहले दिन से ही अपने आप को अपने प्यारे मुÞर्शिद शाह मस्ताना जी महाराज के सुपुर्द कर चुके थे। आप जी ने अपने मुर्शिद प्यारे के हर हुक्म को सत्वचन कह कर माना। इस तरह पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को हर तरह से योग्य देखते हुए एक दिन फरमाया, ‘असीं सरदार हरबन्स सिंह जी का इम्तिहान लिया, पर उन्हें पता तक नहीं चलने दिया।’ और फिर एक दिन आप जी को अपनी हवेलीनुमा मकान को तोड़ने का आदेश फरमाया। बाहरी निगाह से देखें, यानि दुनियादारी वालों के लिए तो यह बहुत सख्त इम्तिहान था, लेकिन आप जी ने दुनिया की लोक-लाज की जरा भी परवाह किए बगैर तुरंत अपने खुदा के वचन पर फूल चढ़ाए। अपने स्वयं के हाथों से हवेली की र्इंट-र्इंट कर दी और हवेली का मलबा ईटें(एक-एक कंकर), गार्डर, शतीर, लकड़ बाला और घर का सारा सामान ट्रकों, ट्रैक्टर ट्रालियों में भरकर अपने प्यारे खुदा की पावन हजूरी में डेरा सच्चा सौदा सरसा में लाकर रख दिया।
एक और सख्त इम्तिहान
माहवारी सत्संग का दिन था। शनिवार आधी रात को पूज्य बेपरवाह जी बाहर आए। सामान के इतने बड़े ढेर को देख कर आदेश दिया कि ये सारा सामान किस का है? अभी बाहर निकालो और आप ही रखवाली करो। सख्त सर्दी का मौसम और ऊपर से शीत लहर व बूंदाबांदी से वातावरण एकदम शीतमयी बना हुआ था। इतनी जबरदस्त ठण्ड कि हाथ-पांव सुन्न हो रहे थे। आप जी अपने प्यारे सतगुरु के हुक्म में पूरी रात-भर खुले आसमान के नीचे अपने सामान के पास बैठ के बेपरवाही अलौकिक आनन्द मानते रहे। सुबह होते ही सारा सामान एक-एक करके आई हुई संगत में बांट कर सार्इं जी की पावन हजूरी में बैठ गए और अपार खुशियां हासिल की।
सतनाम कुल मालिक, अपना स्वरूप बनाया
28 फरवरी 1960 को पूजनीय बेपरवाह जी के हुक्मानुसार पूजनीय परम पिता जी को सिर से पैरों तक नए-नए नोटों के लम्बे-लम्बे हार पहनाकर जीप पर पूरे सरसा शहर में एक बहुत ही प्रभावशाली शोभा-यात्रा(रूहानी जुलूस) निकाली गई। ताकि पूरी दुनिया को भी पता चले कि पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने श्री जलालआणा साहिब के सरदार सतनाम सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा में अपने उत्तराधिकारी के रूप में विराजमान किया है। इस शहनशाही जुलूस में आश्रम का हर जीव शामिल था। जुलूस की वापसी पर पूज्य शहनशाह जी ने वचन फरमाया कि आज से सरदार हरबंस सिंह जी को सतनाम कुल मालिक बना दिया वो सतनाम कुल मालिक, जिसके सहारे ये सब खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं।
पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता जी को स्टेज पर अपने साथ बिठाकर सरेआम साध-संगत में फरमाया ये वोही सतनाम है जिसे दुनिया जपदी-जपदी मर गई। असीं इन्हें सच्चे दाता सावण शाह साई के हुक्म से अर्शाें से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। जो इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा वो भी नर्काें में नहीं जाएगा। उसका भी उद्धार ये अपनी रहमत से करेंगे।
पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह के रूप में गद्दीनशीन होकर लगभग 31 वर्ष तक साध-संगत रूपी फुलवाड़ी को अपने अंतर-हृदय का प्रेम बख्शा, अपने रहमो करम के अमृत से इस प्रकार सींचा है कि समस्त साध-संगत तन, मन, धन से बलिहार है। आप जी की इस अपार रहमत सदका डेरा सच्चा सौदा दुनिया-भर में सूर्य के समान प्रकाशवान है। आप जी की पावन प्रेरणाओं से ही ये डेरा सच्चा सौदा दरबार अपनी सच्चाई, सफाई, ईमानदारी, अपनी निर्भरता और परमार्थी कार्याें, निष्काम सेवा-कार्याें तथा समाज व लोक-भलाई कार्याें के लिए दुनिया भर में मशहूर है। आप जी ने लाखों लोगों (11 लाख से भी ज्यादा) को नाम-शब्द प्रदान कर बुराईयों से मुक्त कर उन्हें आदर्श, पाक-पवित्र जीवन प्रदान किया तथा उनके लोक-प्रलोक को संवारा है।
पूजनीय परम पिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान किया। डेरा सच्चा सौदा आप जी की पाक-पवित्र प्रेरणाओं से पूजनीय गुरु जी के पावन मार्ग दर्शन में मानवता व समाज भलाई का प्रयाय बना हुआ है। आज पूरी दुनिया में डेरा सच्चा सौदा का नाम है। पावन अवतार दिवस की लख-लख बधाई हो जी।