मिलकर जीएं, जीवन में संगीत पैदा होगा
मनुष्य एक सामजिक प्राणी है। यह बात हम सभी जानते हैं। उसे अपने अस्तित्व के लिए अपने ही जैसे मनुष्यों की ज़रूरत पड़ती है।
वह रिश्तों में बंधन चाहता है, उसकी गर्माहट में सुकून हासिल करना चाहता है। वह बेशर्त प्रेम करना चाहता है। वह झुक जाना चाहता है किसी भरे हुए बादल की तरह। वह कुछ लोगों, चीज़ों और भावनाओं को अपने लिए बचा लेना चाहता है। चलिए अब एकदम आधुनिक परिवार की ओर चलते हैं जहाँ हम दो ओर हमारे दो। ज्यादा हुआ तो माँ बाप। आजकल बच्चों को अक्सर हायर एजुकेशन के लिए बाहर जाना पड़ता है।
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फिर वह विदेशों में या बड़े शहरों में बस जाते हैं। उनमें से तो कुछ कभी भी नहीं लौटते।
वे उनकी मृत्यु के समय उपस्थित होते हैं और सर मुंडा कर गायब हो जाते हैं। हालांकि गाँव में हालात कुछ बेहतर हैं। ६० के आस पास के दम्पत्ति, जिनके बच्चे आत्मनिर्भर हैं, इस बात को बखूबी समझते होंगें। कुछ माँ-बाप तो बच्चों की बदलती आवश्यकताओं, मूड, फ्रेंड सर्कल से तासलमेल बिठाने की पूरी कोशिश करते हैं पर अधिकांश तो इतना भी नहीं कर पाते और हर वक्त शिकायतों से भरे नज़र आते हैं।
ज्यादातर माँ-बाप अपने बच्चों की आलोचना करते हैं। उनकी आलोचना मत कीजिये, न उनसे बहुत अपेक्षाएं रखिये। वे अपने समय से बहुत मुठभेड़ कर रहे हैं, उनका साथ दीजिये। उनको सुनिए। उनके साथ हँसिये। उनकी नज़रों से उनकी दुनिया देखिये। उन्हें समझने की कोशिश कीजिये। उन्हें उतना स्पेस और उतनी आजादी दीजिये। हर समय सवालों के कटघरे में मत टाँगिए।
यह लगभग हर मनुष्य की समस्या है कि उसे लगता है, दूसरा उसे नहीं समझता। हिन्दुस्तान के हज़ारों परिवार में पति-पत्नी एक दूसरे के साथ रिश्तों में फंसे नज़र आते हैं। उनका दम घुटता है। साथ रहने में नर्क महसूस करते हैं पर अलग होने का साहस नहीं जुटा पाते। कुछ लोग तो अपने को महत्वपूर्ण होने का अहसास कराये जाने के अहसास में किसी भी हद तक जा सकते हैं।
साथ में मिलकर जीएं। रिश्तों की महत्ता स्वयं ही अनुभूत होगी। जीवन में संगीत पैदा होगा। जीवन सुरम्य लगने लगेगा। थोड़ा रिश्तों में एक दूसरे की प्रशंसा करनी सीखिए। सिर्फ प्रशंसा करने से ही साधारण सा रिश्ता असाधारण रूप से महकने लगेगा।
१. इंसानी वजूद के लिए अमृत हैं रिश्तेः
हां इंसानी वजूदों के लिए आज भी बेहद ज़रूरी हैं रिश्ते। इन्हें और लचीला होना पड़ेगा। दूसरे रिश्तों तो हैं ही, पति-पत्नी के रिश्ते, बहु-बेटी के रिश्ते को भी। कोई गुलामी के लिए तैयार नहीं। डोर को जितना अधिक खींचेंगे, उतना टूटेंगे।
२. रिश्तों को सींचिये मीठे संवाद सेः
अब व्यक्ति का इतना विकास हो गया है कि एक का व्यक्तित्व दूसरे से मेल नहीं खाता। सो उस दूसरे व्यक्ति के नज़रिये को भी देखने कि कोशिश कीजिये, आपको दूसरा पहलू भी नज़र आने लगेगा। आत्माभिव्यक्ति किसी भी इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरत होती है। सुनिए, अच्छे श्रोता बनिए। सिर्फ अपनी नहीं, उनकी भी पसंद जानिये।
३. सीख लीजिये दोस्ती का हुनरः
हर माँ बाप को अपने बच्चे से दोस्ती की कला आनी चाहिए कि वह निर्भय होकर उनसे सब कुछ कह सके, जिसे कहने को वह किसी लड़के या लड़की को खोजता फिरता है। आपसी समझ जितनी गहरी होगी, दोस्ती उतनी मजबूत।
अगर हम दो पौधे एक साथ लगाते हैं, वे एक साथ बढ़ते हैं, एक साथ मिटटी की क्वालिटी बढ़ती है। इन्हें सिनर्जी कहते हैं। अपने रिश्तों के साथ भी हमें यही करना चाहिए। मिलकर बढ़िए और एक दूसरे को मजबूत बनाइये।
इसी मजबूती से मधुर संगीत निकलेगा।
सांवरी सिधवानी
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