अटूट विश्वास का प्रतीक: रक्षाबंधन – रक्षाबंधन: 22 अगस्त विशेष
त्यौहार हमारी जिंदगी में अहम मायने रखते हैं। व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ने और संस्कारों से बांधने का इससे बेहतर विकल्प और कोई हो भी नहीं सकता। इसी प्रथा को और भी दृढ़ करता है राखी का त्यौहार! यह हमारे भारतीय समाज में परिवार के महत्व को दर्शाता है। यूं तो भारत में हर दिन भाई-बहन एक साथ मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहते हैं लेकिन रक्षाबंधन का खास दिन भाई-बहन के रिश्ते के मर्म और कर्तव्य को उल्लेखित करता है।
रक्षा बंधन का पर्व एक ऐसा पर्व है, जो धर्म और वर्ग के भेद से परे भाई-बहन के स्नेह की अटूट डोर का प्रतीक है। बहन द्वारा भाई को राखी बांधने से दोनों के मध्य विश्वास और प्रेम का जो रिश्ता बनता है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। रक्षा बंधन के पर्व का सबसे खूबसूरत पहलू यही है कि यह पर्व धर्म और जाति के बंधनों को नहीं मानता। अपने इसी गुण के कारण आज इस पर्व की सराहना पूरी दुनिया में की जाती है। रक्षाबंधन, जिसका अगर हम शाब्दिक अर्थ देखें तो रक्षा का अर्थ है ‘सुरक्षा’ व बंधन है ‘रिश्ता निभाने का संकल्प’। अपने भाई या बहन के प्रति प्रेम और उसका ख्याल रखना ही इस त्यौहार का आधार है। यह पूरे परिवार को एक साथ जोड़ता है और यही एकजुटता उत्सव के रूप में इस दिन दर्शाई जाती है।
हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई पर राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है। विश्वकवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने इस पर्व पर बंग-भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था।
बहनें थालों में फल, फूल, मिठाइयाँ, रोली, चावल तथा राखियाँ रखकर भाई का स्वागत करती हैं, रोली – चावल से भाई का तिलक करती हैं और उसके दाएँ हाथ (कलाई) में राखी बाँधती हैं। राखी बहन के पवित्र प्रेम और रक्षा की डोरी है। बहनें भाइयों को राखी बाँधकर परमेश्वर से दुआ माँगती हैं कि उनके भाई सदा सुरक्षित रहें और इस मायावी संसार में अच्छे कर्म करते हुए नैतिक जीवन बिताएं। भाई भी राखी बँधवाकर बहन से यह प्रतिज्ञा करते हैं कि ‘अगर बहन पर कोई संकट या मुसीबत आए, वह उस संकट का निवारण करने में बहन की सहायता के लिए अपनी जान की भी बाजी लगा देंगे।’
चंद्रशेखर आजाद का प्रसंग:-
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे। फिरंगी उनके पीछे लगे हुए थे। फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतु आजाद एक तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्टे आजाद को डाकू समझ कर पहले तो उस औरत ने शरण देने से इन्कार कर दिया लेकिन जब आजाद ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आजाद को आभास हुआ कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आजाद ने महिला से कहा, ‘मेरे सिर पर पांच हजार रुपए का ईनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ़्तारी पर पांच हजार रुपए का ईनाम पा सकती हैं और आप अपनी बेटी का विवाह सम्पन्न करवा सकती हैं।’
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यह सुन विधवा रो पड़ी। उसने कहा- ‘भैया! तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखे घूमते हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।’ यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बाँध कर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रुपए पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- ‘अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट!’ -आजाद।