World Organ Donation Day - Sachi Shiksha

World Organ Donation Day इन्सान अपने तन के गुरूर में बड़ा इतराता है, लेकिन मरने के बाद यह शरीर खाक में मिल जाता है। कितना अच्छा हो कि मरने के बाद ये अंग किसी को जीवनदान दे सकें। हिन्दू धर्म की धारणा है कि एक हाथ से दिया गया दान हजारों हाथों से लौटकर आता है। जो हम देते हैं वो ही हम पाते हैं।

World Organ Donation Day हिन्दू धर्म में दान

दान अर्थात् देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना। हिन्दू धर्म में दान 4 प्रकार के बताए गए हैं- अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान एवं अभयदान एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अंगदान का भी विशेष महत्व है। दान एक ऐसा कार्य है, जिसके द्वारा हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि समाज एवं प्राणीमात्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं।

किंतु दान की महिमा तभी होती है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। यहां समझने वाली बात यह है कि देना उतना जरूरी नहीं होता जितना कि ‘देने का भाव’। अगर हम किसी को कोई वस्तु दे रहे हैं लेकिन देने का भाव अर्थात् इच्छा नहीं है तो उस दान का कोई अर्थ नहीं। दान का सही अर्थ होता है देने में आनंद, एक उदारता का भाव, प्राणीमात्र के प्रति एक प्रेम एवं दया का भाव।

पवित्र गीता में भी लिखा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है, उसके फल पर नहीं। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, यह तो संसार एवं विज्ञान का धारण नियम है। इसलिए उन्मुक्त हृदय से श्रद्धापूर्वक एवं सामर्थ्य अनुसार दान एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ-साथ स्वयं हमारे भी व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होता है और सृष्टि के नियमानुसार उसका फल तो कालांतर में निश्चित ही हमें प्राप्त होगा।

आज के परिप्रेक्ष्य में दान देने का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि आधुनिकता एवं भौतिकता की अंधी दौड़ में हम लोग देना तो जैसे भूल ही गए हैं। हर संबंध व हर रिश्ते को पहले प्रेम, समर्पण, त्याग व सहनशीलता से दिल से सींचा जाता था, लेकिन आज हमारे पास समय नहीं है, क्योंकि हम सब दौड़ रहे हैं और दिल भी नहीं है, क्योंकि सोचने का समय जो नहीं है! हां, लेकिन हमारे पास पैसा और बुद्धि बहुत है, इसलिए अब हम लोग हर चीज में इन्वेस्ट अर्थात निवेश करते हैं, चाहे वे रिश्ते अथवा संबंध ही क्यों न हों!

World Organ Donation Day श्री रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि ‘परहित के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं है।’ दानों में विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान होता है, क्योंकि उसे न तो कोई चुरा सकता है और न ही वह समाप्त होती है। एक व्यक्ति को शिक्षित करने से हम उसे भविष्य में दान देने लायक एक ऐसा नागरिक बना देते हैं, जो समाज को सहारा देगा, न कि समाज पर निर्भर रहेगा।

इसी प्रकार आज के परिप्रेक्ष्य में रक्त एवं अंगदान समाज की जरूरत है। जो दान किसी जीव के प्राणों की रक्षा करे, उससे उत्तम और क्या हो सकता है? हमारे शास्त्रों में ऋषि दधीचि का वर्णन है जिन्होंने अपनी हड्डियां तक दान में दे दी थीं, कर्ण का वर्णन है जिसने अपने अंतिम समय में भी अपना स्वर्ण दंत याचक को दान दे दिया था। डेरा सच्चा सौदा में ऐसे बहुतेरे दधीचि हैं, जिन्होंने जीते-जी रक्तदान के साथ-साथ अंगदान के रूप में गुर्दादान किया है, वहीं मरणोपरांत नेत्रदान व शरीरदान के सैकड़ों जीवंत उदाहरण दुनिया के सामने पेश किए हैं।

अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक इंसान (मृत और कभी-कभी जीवित भी) से स्वस्थ अंगों और टिशूज को ले लिया जाता है और फिर इन अंगों को किसी दूसरे जरूरतमंद शख्स में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इस तरह अंगदान से किसी दूसरे शख्स की जिंदगी को बचाया जा सकता है। चिकित्सा वैज्ञानिकों का कहना है कि एक शख्स द्वारा किए गए अंगदान से 50 जरूरतमंद लोगों की मदद हो सकती है।

दान की असल परिभाषा को समझना हो तो इन्सान को प्रकृति से सीख लेनी चाहिए, जो रोज हमें कुछ ना कुछ देती ही रहती है। सूर्य अपनी रोशनी, फूल अपनी खुशबू, पेड़ अपने फल, नदियां अपना जल, धरती अपना सीना छलनी करके भी दोनों हाथों से हम पर अपनी फसल लुटाती है। इसके बावजूद न तो सूर्य की रोशनी कम हुई, न फूलों की खुशबू, न पेड़ों के फल कम हुए, न नदियों का जल। इसलिए दान एक हाथ से देने पर अनेक हाथों से लौटकर हमारे ही पास वापस आता। किंतु दान देने का जज्बा नि:स्वार्थ भाव से परिपूर्ण हो, समाज की भलाई के लिए उत्साहित हो।

World Organ Donation Day किन-किन अंगों का दान

हमारे देश में लीवर, किडनी और हार्ट के ट्रांसप्लांट होने की सुविधा है। कुछ मामलों में पैनक्रियाज भी ट्रांसप्लांट हो जाते हैं, लेकिन इनके अलावा दूसरे अंगों का भी दान किया जा सकता है:

अंदरूनी अंग मसलन गुर्दे (किडनी), दिल (हार्ट), यकृत (लीवर), अग्नाशय (पैनक्रियाज), छोटी आंत (इन्टेस्टाइन) और फेफड़े (लंग्स), त्वचा (स्किन), बोन और बोन मैरो, आंखें (कॉर्निया)

World Organ Donation Day दो तरह के अंगदान

  • एक होता है अंगदान और दूसरा होता है टिशू का दान। अंगदान के तहत आता है किडनी, लंग्स, लीवर, हार्ट, इंटेस्टाइन, पैनक्रियाज आदि तमाम अंदरूनी अंगों का दान। टिशू दान के तहत मुख्यत: आंख, हड्डी और स्किन का दान आता है।
  • ज्यादातर अंगदान तब होते हैं, जब इंसान की मौत हो जाती है लेकिन कुछ अंग और टिशू इंसान के जिंदा रहते भी दान किए जा सकते हैं।
  • जीवित लोगों द्वारा दान किया जाने वाला सबसे आम अंग है किडनी, क्योंकि दान करने वाला शख्स एक ही किडनी के साथ सामान्य जिंदगी जी सकता है। वैसे भी जो किडनी जीवित शख्स से लेकर ट्रांसप्लांट की जाती है, उसके काम करने की क्षमता उस किडनी से ज्यादा होती है, जो किसी मृत शरीर से लेकर लगाई जाती है। भारत में होने वाले ज्यादातर किडनी ट्रांसप्लांट के केस जिंदा डोनर द्वारा ही होते हैं।
    इसके अलावा आंखों समेत बाकी तमाम अंगों को मौत के बाद ही दान किया जाता है।

सामान्य मौत और ब्रेन डेथ का फर्क

सामान्य मौत और ब्रेन डेथ में फर्क होता है। सामान्य मौत में इंसान के सभी अंग काम करना बंद कर देते हैं, उसके दिल की धड़कन रुक जाती है, शरीर में खून का बहाव रुक जाता है। ऐसे में आंखों को छोड़कर जल्दी ही उसके सभी अंग बेकार होने लगते हैं। आंखों में ब्लड वेसल्स नहीं होती, इसलिए उन पर शुरूआती घंटों में फर्क नहीं पड़ता। यही वजह है कि घर पर होने वाली सामान्य मौत की हालत में सिर्फ आंखों का दान किया जा सकता है।

लेकिन ब्रेन डेथ वह मौत है, जिसमें किसी भी वजह से इंसान के दिमाग को चोट पहुंचती है। इस चोट की तीन मुख्य वजहें हो सकती हैं: सिर में चोट (अक्सर एक्सिडेंट के मामले में ऐसा होता है), ब्रेन ट्यूमर और स्ट्रोक (लकवा आदि)। ऐसे मरीजों का ब्रेन डेड हो जाता है लेकिन बाकी कुछ अंग ठीक काम कर रहे होते हैं – मसलन हो सकता है दिल धड़क रहा हो। कुछ लोग कोमा और ब्रेन डेथ को एक ही समझ लेते हैं लेकिन इनमें भी फर्क है। कोमा में इंसान के वापस आने के चांस होते हैं। यह मौत नहीं है। लेकिन ब्रेन डेथ में जीवन की संभावना बिल्कुल खत्म हो जाती है।

World Organ Donation Day आंखों के अलावा बाकी अंगों का दान

आंखों के अलावा बाकी सभी अंगों का दान ब्रेन डेड होने पर ही किया जा सकता है। वैसे जिन वजहों से इंसान ब्रेन डेड होता है, उनका इलाज करने और मरीज को ठीक करने की पूरी कोशिश की जाती है और जब सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं और इंसान ब्रेन डेड घोषित हो जाता है, तब ही अंगदान के बारे में सोचा जाता है।

ब्रेन डेड की स्थिति में कई बार मरीज के घरवालों को लगता है कि अगर मरीज का दिल धड़क रहा है, तो उसके ठीक होने की संभावना है। फिर उसे डॉक्टरों ने मृत घोषित करके उसके अंगदान की बात कैसे शुरू कर दी। लेकिन ऐसी सोच गलत है। ब्रेन डेड होने का मतलब यही है कि इंसान अब वापस नहीं आएगा और इसीलिए उसके अंगों को दान किया जा सकता है।

World Organ Donation Day कौन कर सकता है

कोई भी शख्स अंगदान कर सकता है। उम्र का इससे कोई लेना-देना नहीं है। नवजात बच्चों से लेकर 90 साल के बुजुर्गों तक के अंगदान कामयाब हुए हैं। अगर कोई शख्स 18 साल से कम उम्र का है तो उसे अंगदान के लिए फॉर्म भरने से पहले अपने मां-बाप की इजाजत लेना जरूरी है।

बेमिसाल: बहू ने लीवर देकर बचाई ससुर की जान

बेटी जब बहू बनकर आती है तो उसके लिए सास-ससुर भी मां-बाप की तरह ही होते हैं। उनकी सेवा में वह अपना सर्वत्र न्यौछावर कर देती है। कुछ ऐसी ही अनूठी सेवा का नमूना पेश किया है गांव बेलरखा (जींद) स्थित धत्तरवाल पट्टी में रहने वाले प्रदीप धतरवाल की पत्नी मोनिका ने, जिसने अपने ससुर को जिगर का टुकड़ा देकर उनको नया जीवन प्रदान किया है। प्रदीप की शादी आठ वर्ष पहले मोनिका से हुई।

मोनिका जब से इस संयुक्त परिवार का हिस्सा बनी, तभी से वो अपने ससुर अजमेर की दरियादिली से पूरी तरह प्रभावित थी। जब ससुर को लीवर कैंसर हुआ और उनकी जान पर बन आई तो बहु ने बेटी बन ससुर की जान बचाने का निश्चय किया। कागजी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दिल्ली स्थित मेदांता अस्पताल में डॉ. ए.एस. सोएन द्वारा आॅप्रेशन किया गया। यह आॅप्रेशन पूरी तरह से सफल रहा और ससुर अजमेर की जान बच गई। मोनिका भी वापस घर लौट आई है और स्वास्थ्य लाभ ले रही है।

मोनिका के दो बच्चे (एक लड़का व एक लड़की) हैं। संयुक्त परिवार होने के चलते सभी एक साथ रहते हैं। ससुर अजमेर दरिया दिल इंसान हैं और पूरे परिवार को संभाले हुए हैं। जब ससुर की बीमारी का पता चला तो मोनिका ने जिगर का कुछ हिस्सा दान करने की सहमति जताई। मायका पक्ष व ससुरालजनों की रजामंदी ली गई। बाकायदा पीजीआईएमएस रोहतक में बोर्ड का गठन हुआ, जिसमें मंजूरी ली गई।

जब सब कुछ सिरे चढ़ गया तो मेदांता अस्पताल में यह जटिल आॅप्रेशन किया गया। इसमें मोनिका के जिगर का कुछ अंश लेकर ससुर अजमेर के लीवर में ट्रांसप्लांट किया गया। ससुर अजमेर ने कहा कि बहुएं भी बेटियां ही होती हैं, बस ये समझ का फर्क है। मोनिका जैसी बहुएं हर घर में हों तो धरती पर ही स्वर्ग बन सकता है। मुझे अपनी बहु पर गर्व है।
-बिन्टू श्योराण, नरवाना।

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