तेरे दर्श दा ही शौंक सानूं… -सम्पादकीय
डेरा सच्चा सौदा की साध संगत के लिए शुक्रवार, 17 जून का दिन खुशियां लेकर आया। जैसा कि सर्वविदित है कि पूज्य गुरु संत डॉ. एमएसजी 17 जून को सुबह आठ बजे शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा, जिला बागपत उत्तर प्रदेश में पधारे और साध संगत को वीडियो संदेश के जरीए रूहानी दर्श देकर निहाल कर दिया।
सालों से साध-संगत इस घड़ी के लिए तरस रही थी। क्योंकि रूह का सतगुरु से पल का बिछोड़ा भी असहनीय हो जाता है। और ये वही जानता है जिसकी प्रीत लगी होती है। एक-एक पल जो इंतजार में गुजरता है, सूलों जैसा चुभता है। और जहां पल नहीं, दिन नहीं इतने साल गुजर गए हों, उसके लिए ब्यां करना आसान नहीं। इसी इंतजार में अखियां राह देखती रहें कि एक झलक नूरानी मिल जाए। कोई घड़ी ऐसी आए, कोई दिन ऐसा आए कि इन अखियन को सतगुरु प्यारे के दर्श-दीदार हो जाएं। इसी तड़प में, इसी तलब में कितने साल गुजर गए।
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एक आस, एक विश्वास लिए हर दिन गुजरता गया। जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, तड़प, वैराग्य और भी गहरा होता गया। हालांकि बीच-बीच में भी अवसर आए लेकिन वो बात नहीं बनी जिस का इंतजार था। जिससे रूह को तसल्ली मिल सके। तडपती रूहों का वैराग अन्दर ही अन्दर बह के रह गया। जब गुरुग्राम का प्रवास सम्पन्न हुआ और दर्श-दीदार की हसरतेंं अधूरी ही रह गई तो मानो रूह में जैसे जान ही न रही हो। ऐसा हाल सिर्फ रूहानी प्यार में खोया हुआ इन्सान ही जान सकता है, दूसरों के लिए केवल सुनी-सुनाई बातें ही होती हैं। केवल रब्बी इश्क वाला ही जान सकता है कि दर्श न मिलने से रूह किस प्रकार कुलबुला रही है। जिस तन लागे, सो तन जाने और न जाने पीड़ पराई।
प्रीतम प्यारे के दर्श न हो पाने का रंजो-गम, तड़प-विरह का संताप रूह को मसोस कर रख देता है, लेकिन ‘राजी हैं हम उसी में, सतगुरु जिसमें तेरी रजा है’ की बात को अमली जामा पहनाते हुए साध-संगत ने चूं तक न की। संगत अपने रूहानी प्यार की दुआ सलामती में धीरज धरे रही। शबरी की हालत में पलक पावड़े बिछाए उसकी मौज को माना। दर्श की आस में उनके आने की खुशियां मनार्इं। जगह-जगह घी के दीये जलाए! गली-कूचों को संवार के रख दिया। हर घर में जगमग दीवाली की खुशियां महक उठीं। जब भी उसके आने की खबर मिली, कहीं से कोई सुगबुगाहट आई, विसाल-ए-सनम की ललक उछल उठी। प्यार की उमंग हिलोरे लेने लगी।
वो आएंगे…, हर हाल आएंगे…, ऐसे तूफानी अरमान लहरों की गति खाने लगे। गुरुग्राम में गुरु जी का आना ऐसे ही अरमानों को चिरस्थाई यौवन से भर गया। चाहतों को नए रंग से भर गया। मुलाकातों की कसक जगा गया। उम्मीद भरी दीद के ऐसे झरने बह उठे, जो नूरानी झलक तक ले गए। विरह-बिछोड़े में तड़पती रूहों को झलक का ऐसा नजारा मिला कि रेगिस्तान में रिमझिम बारिश होने लगी हो। रूहानी फुहारों से प्यासी धरा गद्गद् हो गई। रूह का रोम-रोम निहाल हो गया। इतने सालों बाद नूरानी झलक को देख साध-संगत धन्य धन्य हो गई।
वो शुभ घड़ी आ गई। लम्बे अरसे बाद अपने सतगुर प्यारे के मुखारबिंद से अमृत वचन श्रवण हुआ। पाक-पवित्र वचनों की अमृत वर्षा से हर कोई निहाल हो गया। मुद्दतों के बाद वो कशिश भरी नूरानी मीठी-प्यारी आवाज का चश्मा नसीब हुआ। एक-एक शब्द तन-मन व रूह को लबालब कर गया। नूरी मुखड़े का पाक दीदार व अमृत वचनों का झरना हर रूह को खुशनसीब बना गया। 17 जून का दिन साध-संगत के लिए ऐतिहासिक हो गया। इस दिन साध-संगत को जो नजारे मिले, कभी भुलाए नहीं जा सकते। दिलो-दिमाग में ये हमेशा तैरते रहेंगे और हर कोई अपने सतगुर का गुणगान करता रहेगा जो नजारे देने वाला है। जो रूहानी नजारे देने वाला है।
-सम्पादक