65वीं पावन स्मृति (18 अप्रैल) विशेष याद-ए-मुर्शिद परम पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज सिद्धे राह पावण आया सी
जीव-सृष्टि का सौभाग्य है कि हर युग में संत-महापुरुष सृष्टि-जीवों के मध्य विराजमान रहते हैं। सृष्टि कभी भी संतों से खाली नहीं होती। ‘संत न आते जगत में जल मरता संसार।’ संत सृष्टि जीवों का सहारा हैं। सृष्टि संतों के आसरे कायम है। संत परोपकारी होते हैं। संसार में आने का उनका मकसद जीवों को जीआ-दान, नाम, गुरुमंत्र देकर कुल मालिक परम पिता परमात्मा से मिलाने का होता है। वो मालिक की दरगाह से जीवों के लिए जीआ दान लेकर सृष्टि-जगत में आते हैं।
महान परोपकारी संत-महापुरुषों का सृष्टि नमित परोपकार केवल इस जगत तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि लोक, परलोक और उससे ऊपर दोनों जहां तक उनका नाता जीवों से होता है। सच्चे संत-महापुरुष स्वयं सच्चाई से जुड़े होते हैं और वे लोगों को भी हमेशा सद्मार्ग, अच्छाई, भलाई के साथ जुड़े रहने का उपदेश देते हैं। वे परोपकारी जन सच के पुरोधा होते हैं। वे हमेशा समस्त समाज का भला चाहते हैं। भला करते हैं। वे समाज में फैले झूठ, कपट, कुरीतियाँ, पाखण्डों का डटकर विरोध करते हैं। उनका पवित्र जीवन पूरी दुनिया के लिए मिसाल साबित होता है
ऐसे ही महान परोपकारी संत परम पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने संसार पर अवतरित होकर समूची जीव सृष्टि के उद्धार का महान करम फरमाया है। ऐसे महान परोपकारी, रूहानियत के सच्चे रहबर, पूर्ण रब्बी फकीर परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज को कोटि-कोटि नमन, लख-लख सजदा करते हैं।
Table of Contents
संक्षिप्त जीवन परिचय:-
सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने सन् 1891 (संवत 1948) की कार्तिक पूर्णिमा को पूज्य पिता श्री पिल्लामल जी के घर पूज्य माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से अवतार धारण किया था। आप जी मौजूदा पाकिस्तान के गाँव कोटड़ा तहसील गंधेय रियासत कोलायत-बिलोचिस्तान के रहने वाले थे। इसलिए जब आप जी अपने सतगुरु-हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के पवित्र चरणों से जुड़े, तो पूज्य बाबा जी आपजी को ‘मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी’ ही कहा करते थे। पूज्य माता-पिता जी ने आप जी का नाम श्री खेमामल जी रखा था। सतगुरु के प्रति अगाध श्रद्धा, दृढ़ विश्वास, सच्ची भक्ति, सच्चे प्रेम को देखकर, आप जी ने अपने मुर्शिद-ए-कामिल हजूर बाबा सावण शाह जी को हमेशा ही परमपिता परमात्मा, कुल मालिक के रूप में निहारा था। आप जी उन्हें अपना खुद-खुदा मानते थे। पूज्य बाबा जी ने पहले ही दिन (नाम-गुरुमंत्र प्रदान करते समय) आप जी को अपनी अपार दया-मेहर से नवाजते हुए वचन किया कि ‘हम तुझे अपनी दया-मेहर देते हैं, जो तुम्हारा सारा काम करेगी। डट कर भजन-सुमिरन और गुरु का यश करो।
अपने पूज्य सतगुरु सार्इं जी के हुक्मानुसार आपजी ने सिंध, बिलोचिस्तान, पश्चिमी पंजाब इत्यादि इलाकों में जगह-जगह सत्संग, गुरु के यश-गायन के द्वारा अनेक जीवों को ब्यास में ले जाकर पूज्य बाबा जी से नाम शब्द गुरुमंंत्र दिलाकर उद्धार कराया। उपरान्त पूज्य बाबा जी ने आपजी को अपनी अपार रहमतें, खुशियाँ व बख्शिशें प्रदान करके और अपनी भरपूर रूहानी-ताकत देकर बागड़ को तारने का आदेश दिया कि ‘मस्ताना शाह, आपको ‘बागड़ का बादशाह बनाया! जा मस्ताना, सरसा में जा, कुटिया (आश्रम) बना, सत्संग लगा और रूहों का उद्धार कर। ’ पूज्य बाबा जी ने अपने कुछ सत्संगी-सेवादारों की आपजी का सहयोग करने की स्वयं ड्यूटी भी लगाई। इस प्रकार अपने सतगुरु मुर्शिदे-ए-कामिल के हुक्मानुसार आपजी ने 29 अपै्रल 1948 को डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम की स्थापना की।
आप जी ने दिन-रात गुरु यश, रूहानी सत्संग लगाकर नाम-शब्द गुरुमंत्र प्रदान कर रूहों को भव सागर से पार लंघाने का परोपकारी-करम शुरु कर दिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, आज कुछ, कल कुछ और अगले दिन कुछ बढ़-चढ़कर लोग सच्चा सौदा में आकर आपजी की पावन शिक्षाओं से जुड़ने लगे। आपजी के द्वारा लगाया सच्चा सौदा रूपी रूहानी बाग, राम-नाम का बीज दिन-रात फलने-फूलने लगा, ये रूहानी बाग महकने लगा।
आपजी ने 1948 से 1960 तक मात्र 12 साल में हरियाणा, राजस्थान के अलावा पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों के गांवों, शहरों, कस्बों में जगह-जगह सत्संग लगाकर हजारों लोगों को नाम-शब्द से जोड़कर उन्हें नशे आदि बुराइयों, पाखण्डों, सामाजिक कुरीतियों से मुक्त किया। ‘हिन्दू-मुस्लिम सिक्ख इसाई, आपस में सब भाई-भाई’ का वास्तविक स्वरूप आप जी द्वारा स्थापित सर्व धर्म संगम, यहाँ डेरा सच्चा सौदा में आज भी देखा जा सकता है। कोई राम कहे या कोई अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड कहे, एक ही जगह पर सभी लोग इकट्ठे बैठकर अपने-अपने तरीके से उस एक परम पिता परमात्मा का नाम लेते हैं, कोई रोक-टोक नहीं। सभी को एक समान (बराबर) सत्कार, सम्मान दिया जाता है। इस प्रकार समाज व जीवोद्धार का यह सच का कारवां दिन-रात बढ़ने लगा, फलने-फूलने लगा।
वर्णनीय है कि ऋषि-मुनि, संत, गुरु, पीर-फकीर, बड़े-बड़े औलिया जो भी संसार में आए, उन्होंने अपने-अपने समय में, तत्कालीन समय व परिस्थितियों के अनुरूप उपरोक्त अनुसार बढ़ चढ़कर परमार्थी कार्य किए और समयावधि पूरी होने पर यहां से विदा ले गए।
मृत्यु लोक का विधान:-
शाह मस्ताना पिता प्यारा जी,
इह बाग सजा के टुर चलेआ।
भव सागर ‘च डुबदी दुनिया नूं कंडे पार लंघा के टुर चलेया।।
प्रकृति के इसी विधान के अंतर्गत पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने अपने अंतिम समय के बारे काफी समय पहले से ही इशारा कर दिया था। महमदपुर रोही दरबार में बात की कि ताकत का चोला छुड़ाएं तो तुम सिक्ख लोग तो दाग लगाओगे और तुम बिश्नोई लोग दफनाओगे (दबाओगे)! पूज्य शहनशाह जी ने वहां पर मौजूद प्रेमी प्रताप सिंह, रूपा राम बिश्नोई आदि सेवादारों में बात की । फिर स्वयं ही फरमाया, ‘यहां तो रौला पड़ जाएगा। यहां पर चोला नहीं छोड़ेंगे!’ इसी प्रकार रानियां दरबार में भी बात की कि ‘शो’ (चोला छोड़ना/ जनाजा निकालना) रानियां से निकालें या दिल्ली से! स्वयं ही फरमाया ‘दिल्ली से ही ठीक रहेगा।’ इस प्रकार पूज्य बेपरवाह जी ने अपना चोला छोड़ने से काफी समय पहले से ही इशारा करना शुरू कर दिया था। आप जी ने 28 फरवरी 1960 को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को बतौर दूसरे पातशाह गद्दीनशीन किया। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत की तमाम जिम्मेवारियां भी उसी दिन अपने उत्तराधिकारी पूज्य परम पिता जी को सौंपते हुए साध-संगत में वचन फरमाया:-
दुनिया रब्ब नूं ढूँढण जाए जी,
‘सतनाम’ नूं लभ्भ असीं लिआए जी,
इहदा भेद की दुनिया पाए जी,
खुद भेद बता के टुर चलेया।
‘ये वोही सतनाम हैं, जिसे दुनिया लभ्भदी-लभ्भदी मर गई, पर किसी को नहीं मिला। असीं अपने दाता सावण शाह सार्इं जी के हुक्म से सतनाम को अर्शों से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। जो भी दर्शन करेगा, इनका नाम उच्चारण करेगा, ये अपनी दया-रहमत से उसका पार-उतारा करेंगे।’ इस प्रकार सच्चे पातशाह शाह मस्ताना जी महाराज अपने सतगुरु कुल मालिक द्वारा सौंपे सभी परोपकारी कार्याें को पूर्ण मर्यादा पूर्वक पूरा करते हुए 18 अप्रैल 1960 को अपना पंच भौतिक शरीर त्याग कर ज्योति जोत समा गए।
मानवता की सेवा में समर्पित:-
पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के इस पवित्र स्मृति दिवस को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मानवता की सेवा में समर्पित करते हुए डेरा सच्चा सौदा मेंं याद-ए-मुर्शिद नि:शुल्क अपंगता (नि:शक्तता, विकलांगता) निवारण कैंप का आयोजन शुरु करवाया है। इसके तहत हर साल इस पावन अवसर पर इस परमार्थी कैंप के द्वारा पोलियो पीड़ितों के आॅप्रेशन किए जाते हैं और वहीं जरूरतमंदों को फिजियोथेरिपी आदि मेडिकल सेवाएं भी मुफ्त दी जाती है। कैलिपर भी मुफ्त बांटे जाते हैं।