घर को पिंजरा न बनाएँ -माता-पिता का यह दायित्व है कि वे बच्चों को ऐसे संस्कार दें जिससे बच्चे बुजुर्गो की बात मानें। उनके पास जाकर बैठें, उनके साथ अपने स्कूल और साथियों की बातों को साझा करें। उनके पास बैठकर अपने स्कूल का होमवर्क करें, टी वी देखें और कुछ इनडोर गेम खेलें।
पिंजरा चाहे लोहे का हो अथवा चांदी का या सोने का ही क्यों न हो पर पक्षी को सदा यही स्मरण करवाता रहता है कि तुम्हारे पंखों को बांध दिया गया है। तुम कैदी हो। अब तुम चाहो तो भी उन्मुक्त गगन में अपनी इच्छा से नहीं उड़ सकते। इसका कारण है कि अब वह मालिक की दया का मोहताज है। उस पक्षी को नित्य कितने ही बढ़िया पकवान खिला दिए जाएं पर स्वतंत्रता की कड़वी निबौरी उसे अधिक प्रिय लगती है। बेशक उसे बड़े पक्षियों से डरकर रहना पड़ता है, फिर भी पक्षी को उसी लुका-छिपी में आनन्द आता है।
इसी प्रकार घर चाहे महल हो, फार्म-हाऊस हो, फ्लैट हो या फिर टूटी-फूटी झोंपड़ी हो, परन्तु उस घर के लोग यदि परस्पर एक-दूसरे से मिल करके या बात करके राजी नहीं होते तो सब बेकार हो जाता है। घर के लोगों में परस्पर छत्तीस का आंकड़ा हो तो वे आपस में किसी दूसरे सदस्य की शक्ल देखकर बौर हो जाते हैं। ऐसे हालात में उस घर के सभी ऐशो-आराम धूल के समान लगने लगते हैं। ऐसे घर में किसी का मन नहीं लगता, वहाँ से भाग जाने का मन करता है। उस घर में नित्य प्रति बनने वाले बढ़िया-से-बढ़िया पकवानों में भी किसी को कोई आनन्द नहीं आता।
घर के सदस्यों में यदि प्यार-मोहब्बत हो तो छोटे-से घर में या टूटी-फूटी झोंपड़ी में भी सुख-चैन रहता है। वहाँ पकने वाली रूखी-सूखी रोटी में भी छप्पन भोग जैसा आनन्द मिल जाता है, जिसे सब एकसाथ मिल-बैठकर प्यार से खाते हैं। घर में चाहे कितने ही अभाव या परेशानियां क्यों न आ जाएं पर मिल-जुलकर हर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। सबके सहयोग से उनसे निपटने में भी सुविधा होती है।
घर में युवावर्ग को कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए उन्हें सवेरे से शाम तक अपनी नौकरी में व्यस्त रहने पड़ता हैं। घर में बुजुर्ग और बच्चे ही पीछे रहते हैं। माता-पिता का यह दायित्व है कि वे बच्चों को ऐसे संस्कार दें जिससे बच्चे बुजुर्गो की बात मानें। उनके पास जाकर बैठें, उनके साथ अपने स्कूल और साथियों की बातों को साझा करें। उनके पास बैठकर अपने स्कूल का होमवर्क करें, टी वी देखें और कुछ इनडोर गेम खेलें। इस तरह करने से बुजुर्गो का समय कट जाता है और उन्हें अकेलेपन का अहसास नहीं होता। बच्चों का दिन भी अच्छे से व्यतीत हो जाता है और वे बोर नहीं होते।
पेट भरने के लिए समय पर भोजन मिल जाना ही वृद्धों के लिए पर्याप्त नहीं होता, उन्हें यह अहसास करवाना भी आवश्यक होता है कि वे परिवार पर बोझ नहीं हैं। उनकी उनके बच्चों को बहुत आवश्यकता है। आयु बढ़ने के कारण शरीर के शक्तिहीन हो जाने के कारण वे कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। इसलिए समय बिताने की समस्या उन्हें सदा ही परेशान करती रहती है। वे प्रतीक्षा करते रहते हैं कि कब बच्चे स्कूल से आएं और घर में चहल-पहल हो जाए। अपने अकेलेपन से घबराए हुए रहने वाले वे, बच्चों के घर आने पर बहुत सहज अनुभव करते हैं।
यह बात बहुत गलत है और इसे असभ्यता की श्रेणी में भी रखा जा सकता है कि घर में बैठे बड़े-बुजुर्ग बच्चों को बुलाएँ और वे उनके पास आने से मना कर दें या बहुत ही बेरुखी से उन्हें उत्तर दें। बुजुर्ग सारा दिन घर पर अकेले रहते हैं। यदि घर के बच्चे भी अपने दादा-दादी के पास नहीं जाएंगे तो वे निराश और हताश हो जाएँगे। वृद्धावस्था में यह अकेलापन किसी अभिशाप से कम नहीं होता। इसी अकेलेपन से घबराकर कुछ लोग आत्महत्या जैसा घृणित कार्य तक कर बैठते हैं। जोकि सभी धर्मों के अनुसार भी बहुत गलत है। ‘आत्मघाती महापापी’। इसके अतिरिक्त कुछ लोग अवसाद के शिकार भी हो जाते है।
घर में रहने वाले बड़ों के मित्र या बन्धु-बान्धव उन्हें मिलने के लिए आएंगे। यदि उनकी आवभगत बच्चे नहीं करेंगे तो यह उनके संस्कारों को दर्शाएगा। इससे यह भी ज्ञात होगा कि वे बच्चे कितने हृदयहीन बनते जा रहे हैं। एक और बात जो बहुत महत्त्वपूर्ण है वह कहना चाहती हूँ। दिन के समय घर के सभी सदस्य अपनी व्यस्ताओं के कारण एकसाथ बैठकर भोजन नहीं कर सकते परन्तु रात के समय उन सबको मिलकर भोजन करना चाहिए। इससे घर के सदस्यों में प्यार बना रहता है। यदि किसी सदस्य की कोई समस्या है तो वहां बैठे हुए उस पर भी विचार किया जा सकता है।
घर को घर बनाने का प्रयास करना चाहिए। उसे पिंजरा या जेल बनने से बचाना चाहिए। आज यदि बच्चों को संस्कारी न बनाया गया तो कल वे जिद्दी, मुंहफट और चिड़चिड़े हो जाएंगे। इसका प्रभाव बुजुर्गों के साथ-साथ माता-पिता पर भी पड़ता है। घर के सभी सदस्यों का यह परम दायित्व है कि वे परस्पर मिलजुलकर रहें, भाईचारा बनाए रखें। इस प्रकार सामंजस्य होने की स्थापना में घर के किसी भी सदस्य को घुटन महसूस नहीं होगी। हंसते-खेलते जीवन के रास्ते काटने में सबको सुविधा होगी। -चन्द्र प्रभा सूद