धन्न ओहना प्रेमियां दे...

धन्न ओहना प्रेमियां दे… कलियुग का यह समय अपने चर्म पर पहुंच रहा है। बुराइयों का जोर दिनों-दिन बढ़ रहा है। कहने-सुनने को बेशक दुनिया आधुनिक हो रही है मगर इस आधुनिकता की आड़ में बुराइयां अपनी रफ्तार पकड़ रही हैं।

मनुष्य अपने इखलाक से गिरता जा रहा है। परस्पर प्रेम-प्यार, नि:स्वार्थ भाव खत्म होता जा रहा है। व्यक्ति अपने आप तक सीमित होता जा रहा है जो आधुनिकता की सबसे बड़ी देन है।

रिश्ते-नाते, घर-परिवार सब कुछ इस आधुनिकता की भेंट चढ़ रहे हैं। इन्सान के लिए अपनी सुख-सुविधाएं व पैसा, दौलत, शोहरत ही सब कुछ बन कर रह गया है। अपने निजी स्वार्थ व धन-दौलत के लिए ही जीना है।

आधुनिकता का यही मंजर दिख रहा है और नई पीढ़ी पर यही खुमार चढ़ रहा है। यह वास्तविकता है कि आधुनिकता के नाम पर नई जनरेशन अपने पूर्वजों के द्वारा दिए हुए संस्कारों से दूर होती जा रही है। व्यक्ति अपने मौलिक गुणों, धार्मिक प्रवृति, इन्सानियत की शिक्षा से बेमुख हो रहा है।

अपने धर्म-संस्कारों की उसे परवाह नहीं रही। जो धार्मिक प्रवृति, धर्म-संस्कार अपने बड़े-बुजुर्गाें बाप-दादा में थी वो आज की पीढ़ी में नहीं रही। दिनों-दिन इसका ह्नास होता जा रहा है। धर्म की शिक्षा से नाता टूट रहा है। धर्म की बातों को, धर्म की शिक्षा को फालतू की बातें समझा जा रहा है। जो आधुनिकता के नाम पर मनुष्य जीवन के लिए अत्यंत खतरनाक है।

लेकिन इसका दोषी कौन है?

किसको इसका जिम्मेवार ठहराया जाए? यह एक विचारणीय पहलू है। क्योंकि समाज जैसा दिखाएगा आने वाली पीढ़ी का वही रूप होगा। लोगों की आज की जो सोच है, जो नीतियां हैं वही आने वाली पीढ़ी का भविष्य है। देश में हो क्या रहा है, बच्चों को दिखाया क्या जा रहा है? धर्म के नाम पर डर, दहशत का माहौल पैदा किया जा रहा है।

धर्म की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। धर्म के नाम पर लोगों में भेदभाव पैदा करके आपसी भाईचारे को खत्म करने की कोशिशें की जा रही हैं। एक धर्म को सही, दूसरे को गलत बता कर एक दूसरे को नीचा दिखाया जा रहा है।

क्योंकि जात-पात या धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाना बड़ा आसान है। धार्मिक प्रवृति वालों को तंग परेशान किया जाता है। उनको धर्म के मार्ग से विमुख करने की कोशिशें की जाती हैं। ताकि धर्म का प्रसार न हो सके। लोगों में धार्मिकता का वातावरण न बन पाए।

क्योंकि धार्मिक प्रवृति वालों को जब परेशानी में डाला जाता है तो इसका असर अन्य लोगों पर जरूर पड़ता है। उनमें यही संदेश जाता है कि क्या करना है धर्म की राह पर चल कर। इससे लोगों की धर्म के प्रति रूचि कम होती है। बेशक धर्म के मार्ग पर चलने वाले अडिंग रहते हैं लेकिन दूसरे जो मन के कमजोर होते हैं वो इससे टूट जाते हैं।

क्योंकि धर्म को जानने वाले, धर्म को मानने वाले परेशानियों, कठिनाइयों से विचलित नहीं होते। क्योंकि उनको इस बात का ज्ञान होता है कि धर्म की राह पर ऐसी रुकावटें, अड़चनें आम बात है जो आदिकाल से चली आ रही हैं। आज देश में धर्म के प्रति साजिशें रचने वालों की कमी नहीं है।

कई बड़ी ताकतें इसके लिए काम कर रही हैं। उनका मकसद यही है कि देश में धार्मिक महत्व को किसी न किसी तरीके से कम किया जा सके। यह आम लोगों की सोच-समझ से परे होता है। क्योंकि उनकी साजिशें बड़Þे योजनाबद्ध तरीके से पेश की जाती हैं। ताकि लोगों का उन पर विश्वास आ जाए।

सब कुछ इस तरह से करते हैं कि लोगों को शक की कोई गुंजाइश ही ना रहे। और इतना प्रचार-प्रसार करते हैं कि सच्चाई को जानने, समझने वाले भी खामोश रह जाते हैं। कोई सच्चाई बताने की कोशिश भी करे तो उसको सुनने, मानने को भी कोई राजी नहीं होता।

ये बात अलग है कि एक अंतराल के बाद सच्चाई सामने आकर ही रहती है, लेकिन तब तक झूठी साजिशों के बहुत लोग शिकार हो कर रह जाते हैं। धर्म का जो नुक्सान, समाज का जो विखराव हो गया होता है उसकी लयात्मकता को हासिल करना बड़ा जद्दोजहद भरा होता है।

हाल के कुछ वर्षों पर नजर दौड़ाएं तो दिखता है कि देश में धर्म के प्रति साजिशों का नेटवर्क बड़ा मजबूती से अपनी पकड़ बना रहा है। देश को धार्मिक अस्थिरता की ओर धकेला जा रहा है। इन्ही साजिशों के तहत डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ षड्यंत्र रचे गए। करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं को कुरेदा गया।

पिछले कई वर्षाें से ये साजिशें रची जा रही थी। सच के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए, धर्म की शिक्षा पर चलने वालों को रोकने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए गए। 25 अगस्त 2017 को मानवता के लिए एक दर्दनाक घटनाक्रम हुआ। धार्मिक प्रवृति वालों को घोर मानसिक यात्नाओं से होकर गुजरना पड़ा।

इन्सानियत की राह पर चलने वाले निर्दोष 42 लोगों को जान से हाथ-धोना पड़ा।

आजाद भारत देश में यह ऐसा पहला घटनाक्रम है जिससे निहत्थे, निर्दोष व धार्मिक प्रवृति के लोगों पर गोलियां चला दी गई और सैकड़ों निर्दोष बेकसूर लोगों को जेलों में ठंूस दिया गया। उन पर झूठे केस बनाए गए। बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं को प्रताड़ित किया गया। इसीलिए कि वो डेरे में क्यों जाते हैं? भक्ति मार्ग पर क्यों चलते हैं? बड़े आश्चर्य की बात है कि आजाद देश की ये कैसी व्यवस्था है जिसने नागरिकों के मौलिक अधिकारों का जमकर हनन किया गया।

डेरा प्रेमी है तो क्या हुआ है, तो वो भी आजाद भारत देश के नागरिक जिनको कानून व संविधान ने पूरे अधिकार दे
रखे हैं। हालांकि नियमों व आदेशों के अनुसार ही उनका 25 अगस्त 2017 को पंचकूला जाना तय हुआ था। फिर भी उन पर जुल्मो-सित्तम किए गए। जो उस मंजर के चश्मदीद गवाह हैं, जिन को जेलों में ठूंस दिया गया और आज झूठे केसों का सामना करने कोर्ट में जाना पड़ रहा है।

कितनी भयानक तस्वीर थी उस दिन की। मौत का नंगा नाच देखा गया। उनके साथ इतने जुल्म इसलिए
किए गए ताकि वो डेरे जाना छोड़ दें और कईयों को तो स्पैशल बोला जाता कि ‘बोल, मैं डेरे नहीं जाऊंगा! यदि ऐसा नहीं बोलेगा तो बुरी तरह पेश आया जाएगा। उन्हें घेर-घेर कर अत्याचार किए गए।

आज भी सोशल मीडिया पर वो मंजर है जिसे देख कर जान निकलने को हो जाती है। और जिन लोगों ने अपनी आंखों के सामने इन अत्याचारों को होते देखा, क्योंकि बहुत से स्थानीय निवासियों ने बहुत नजदीक से इस भयावह मंजर को देखा, तो उनकी रूह कांप गई थी। निर्दोष लोगों को जो अपने घरों की ओर मुड़ रहे थे, उनको भी टारगेट किया गया। जबकि आज तक कहीं ऐसा नहीं हुआ होगा।

कहीं भी कोई आंदोलन इत्यादि होता है तो लोगों को वापिस जाने दिया जाता है। मगर यहां पर तो वो भी ना हुआ। घरों को लौटते हुओं पर भी जुल्म ढहाए गए। यही नहीं, दौड़ते-भागाते लोग घग्गर नदी में जान बचाने के लिए कूद पड़े तो उसका भी जलस्तर बढ़ा दिया गया। बच्चों व महिलाओं तक को इस नदी में से होकर गुजरना पड़ा। ऐसी घोर विपदा के जो भुक्तभोगी रहे हैं, उनकी आत्मा जुल्म करने वालों को कभी माफ नहीं करेगी। ये बात तो सर्वविदित है कि निहत्थों, भगतों, बेकसूरों पर जुल्म करने वाले कभी सुख-आराम से रह नहीं सकते। ये कैसा दोगलापन था।

एक तरफ लोगों को घर जाने के लिए बसों आदि की व्यवस्था भी करके दी गई तो दूसरी तरफ घेर-घेर कर उन पर जुल्म ढहाए गए। लोगों को कई-कई मिलोमीटर तक पैदल चलकर आना पड़ा। भूखे-प्यासे लोगों को जान के लाले पड़े हुए थे। दहशत, खौफ का ऐसा हौवा कि कहीं कोई अपनी फरियाद लेकर भी नहीं जा सकता था। क्या आजाद देश के आजाद नागरिकों के साथ ऐसा किया जाता है या सिर्फ इसीलिए था कि ये डेरा को मानने वाले हैं? लेकिन उनकी समझ से यह क्यों नहीं समझ आया कि ये वो ही डेरा प्रेमी हैं, भगत हैं जो समाज के भले के लिए, जन सेवा के लिए किसी की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटते। किसी देश से अपने नागरिकों के प्रति ऐसे कू्ररता भरे व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती।

विशेषकर लोकतंत्र में तो ऐसा हो ही नहीं सकता। नागरिकों को अपनी बात कहने करने की आजादी दी। ऐसा भी नहीं कि सभी को एक तराजू में तोला जाए। जुल्मो-सितम की इसी आंधी के बीच कुछ लोग फरिश्ते बन कर भी सामने आए।
अपनी तरफ से जितना हो सका सहयोग दिया। आने-जाने के साधन मुहैया करवा कर दिए। एक अनजान होते हुुए भी अपनेपन का अहसास करवाया। कई अधिकारियों, कर्मचारियों ने भी सेवा-समर्पण, सुविधा वाली बात को चरितार्थ करते हुए लोगों की मदद की। बच्चों, बुजुर्गाें, महिलाओं को सुरक्षा दी। उनको सही मार्गदर्शन दिया। उनको पता था कि ये लोग निर्दोष हैं। इनके साथ धक्का हो रहा है।

ऐसे में उन्होंने अपना फर्ज निभाते हुए पूरी हिफाजत दी। लेकिन ऐसे नेक इन्सान आटे में नमक के समान ही रहे। ऐसे भले व भद्र पुरुषों के लिए दिल से हमेशा दुआएं ही निकलती रहेंगी। परमात्मा उनका भला करे। क्योंकि जले पर नमक छिड़कने वाले तो मिल जाते हैं, लेकिन हमदर्दी जताने वाला कोई-कोई ही मिलता है।

इस पूरे प्रकरण पर इतना शोर-शराबा हुआ। इतनी बड़ी-बड़ी कहानियां बनाकर जनता को दिखाई गई कि सच्चाई इस शोरगुल में ही दब कर रह गई। पहले जैसे बताया कि धर्म को बट्टा लगाने के लिए साजिशों को बड़े प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जाता है कि सच्चाई का पता ही ना चले। ऐसा ही कुछ इस मामले में भी हुआ। एक गुमनाम चिट्ठी जिसका आज तक भी खुलासा नहीं हुआ कि चिट्ठी कहां से चली, किसने लिखी, कुछ विवरण नहीं है।

बस चिट्ठी आई है। और उसके आधार पर सब कार्यवाही कर दी गई। जबकि आप देखें किस प्रकार बड़े-बड़े गुनाहगार, जिनके बारे में हालांकि स्पष्ट पता चल जाता है, वो सरेआम अपने को निर्दोष साबित कर बरी हो जाते हैं और इधर सब कुछ एकदम खिलाफ कर दिया गया। फैसला जो हुआ सो हुआ, उसके बाद की जो भयंकर तस्वीर लोगों को दिखाई जाने लगी, वो एक बड़ी शर्मनाक साजिश का हिस्सा थी। जिसकी जितनी निंदा की जाए उतना ही कम है।

दुनिया के सामने सब कुछ तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। वास्तविक सच को दबाकर झूठ ही झूठ दिखाया गया। देश में जहर ही जहर घोला जाता रहा। मानस पटल पर एक दुर्भावना को भर दिया। ताकि लोग सच से भ्रमित रहें। जबकि कुछ बुद्धिजीवी वर्ग या वीआईपी कैटेगैरी के लोग भलीभांती जानते हैं कि ये सब कुछ एक प्लानिंग के तहत हुआ है। परन्तु आम लोगों ने इसकी गहराई को समझने की शायद कोशिश नहीं की होगी।

इस हादसे से जिन लोगों को दो-चार होना पड़ा। कोर्ट-कचहरियों के चक्कर काटने पड़े। अरेस्ट होना पड़ा और इस पूरे मामले की हकीकत से रूबरू होकर गुजरे हैं, उन्होंने अपनी आंखों से हकीकत को देखा और अपने कानों से सुना है। ये बात अलग है कि कुछ कारणों से वो खुलकर बताने से परहेज करते हैं। कोई भी इस प्रकरण की तह तक जाएगा तो उसको भी सच्चाई मालूम हो जाएगी। कुछ लोग ऐसे मिले जिनको पुलिस से पूछताछ करने के लिए बुलाया गया। हालांकि उन्हें अरेस्ट करने के कुछ भी सबूत नहीं थे।

कारण कि ये भी डेरे जाते हैं। उनसे जब इस पर चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि हमारा डेरे पर विश्वास उस दिन से बढ़ा है, घटा नहीं। कई दिनों तक उन्हें भी जांच-पड़ताल के नाम पर बुलाया जाता रहा और दवाब भी बनाया गया कि जैसा वो चाहते हैं प्रेमी मानें। कईयों ने बताया कि हमें पुलिस ने कहा कि यदि आप हमारी बात को मानोगे तो तुम्हें छोड़ देंगे। अधिकारियों ने उन्हें कहा कि उन्हें तीन काम करने होंगे, जिसमें पहला आप ने पांच-सात प्रेमियों के नाम देने हैं। दूसरा, हमें पता है कि आप सही हो, आप के गुरु भी सही हैं, फिर भी आपको हल्फनामें भर कर देने होंगे कि गुरु जी हमें गलत काम करने के लिए कहते थे।

और तीसरा कि अगर नहीं करोगे तो जेल जाना पड़ेगा। इतना जब उन्हें कहा जा रहा था तो उन्हीं का एक साथी अपने सीनियर से कहने लगा कि सर, ये उल्ट दिमाग के हैं। ऐसे अपने कहने से ये मानने वाले नहीं हैं। अगर इनका माइंड वाश करना है तो इनको आज का टाईम दे-दो और बोलो कि अपने घर में बीवी-बच्चों से सलाह कर ले और कल सुबह 10 बजे आ जाएं। क्योंकि इनके बच्चों या परिजनों का दबाव बनेगा तो ये मान जाएंगे। इतना कह कर उनको घर भेज दिया गया।

उनके अनुसार जब वो घर गए। अपने बच्चो आदि से सलाह-मशवरा करके अगले दिन सुबह दस बजे अधिकारियों के सामने पेश हुए तो बोले सर घर वालों से हम पूछ आए हैं। उन्होंने हमें बिल्कुल फ्री कर दिया है और हमारा यही फैसला हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते। हम ना तो किसी बेकसूर को फंसा सकते हैं और रही बात कि गुरु जी के खिलाफ हल्फिया ब्यान लिख दें कि वो हमें गलत करने के लिए कहते थे। ऐसा तो कभी सपने में भी नहीं हो सकता। क्योंकि सर मौत तो एक दिन आनी है। आप हमें मारना चाहते हो तो मार दो। मरने से नहीं डरेंगे। मगर उस गुरु के लिए हम ऐसा
कदापि नहीं कर सकते जिसने हमें सच्चाई का मार्ग दिखाया है।

जिंदगी दी है। सारी उम्र हम उनसे नेकी भलाई की शिक्षा लेते रहे हैं और आज उनके लिए ही हम ऐसा कह दें, ये तो आम बंदे के लिए भी नहीं कर सकते वो तो हमारे गुरु हैं और गुरु से बड़ा कोई नहीं हो सकता। इसलिए हम घर-परिवार से फ्री होकर आ गए हैं। आप जो चाहों, करो। उन प्रेमी भाईयों के मुंह से यह सुन कर अधिकारियों की भी आंखें खुली रह गई। आखिर सच्चाई तो सच्चाई है। और सच्चाई को मानने वाले सच्चे लोग भी होते हैं। वो अधिकारी भी प्रेमीयों की बात से प्रभावित हुए और आखिर उनको भी अपना निर्णय बदलना पड़ा। जबकि प्रेमियों के अनुसार वो हल्फिया ब्यानों का पुलिंदा ले भी आए थे और कह रहे  थे कि हमें तो प्रेशर है, आप को करना ही पड़ेगा। हम झूठ-सच नहीं जानते, बस जो
हम कह रहे हैं, वो करो।

आखिर प्रेमियों से उनको सहमत होना पड़ा और बड़ी मश्क्कत के बाद भी प्रेमी जब हल्फिया ब्यान न लिखकर अरेस्ट होने को तैयार हो गए तो उनको छोड़ दिया गया, वो भी इसलिए कि उनके खिलाफ अरेस्ट करने को कुछ नहीं था।
इसलिए बात ये है कि इस पूरे प्रकरण में सच-झूठ को तो देखा ही नहीं गया। बस जो प्लानिंग थी उसी को सिरे चढ़ाया गया। नेकी-भलाई, अच्चाई, सच्चाई की तरफ से आंखें मूंद कर भगतजनों को परेशान किया गया। उनको धर्म के मार्ग पर चलने से रोका गया। किसी को डरा धमका कर और किसी को लालच देकर इन्सानियत को इस मिशन से रोकने के प्रयत्न किए गए।

मगर धन्य हैं वो सब जिन्होंने अपने गुरु के नाम पर हर मुसीबत को झेला। लोगों के ताने-उलाहनों को सहन किया। अपने उपर हुए हर जुल्म को सतगुर की रजा मानकर वे जुल्मों को सहन करते गए। चाहे साथ कुछ भी हुआ, सहन किया मगर अपने विश्वास में कोई कमी नहीं आने दी। अपने हौंसले को बनाए रखा और आज भी उसी प्रकार बल्कि उससे भी बढ़-चढ़कर मानवता की सेवा में लगे हुए हैं।

 ऐसे प्रेमी जनों के लिए भजन में भी दर्ज है:-

धन्न ओहना प्रेमियां दे
जिन्हा गुरु नाल प्रीत निभाई।
सीने नाल हस्स ला लई।
जेहड़ी दुख ते मुसीबत आई।

जब सतगुर स्वयं ऐसे भक्तजनों को धन्य-धन्य कहते हैं तो सचमुच वो धन्य ही हैं और उनकी लाज भी स्वयं सतगुर रखते हैं। उनके घर-परिवारों, पीढ़ियों को खुशियां बख्शते हैं।

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