राजपाल गांधी ने स्टीविया की खेती को दिया नया आयाम
वर्ष 2014 की बात है, जब हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन किसानों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कर रहे थे। स्वामीनाथन हरित क्रांति को उस वक्त लेकर आए जब देशवासी एक मुट्ठी भर अनाज के लिए तड़प रहे थे।
स्वामीनाथन ने उसी पुरस्कार समारोह के दौरान कहा था, ‘मिस्टर राजपाल गांधी विल ब्रिंग स्वीट रिवॉल्यूशन इन इंडिया।’ उन्होंने चीनी से भी अधिक मीठा, स्टीविया की खेती शुरू कर एक ऐसे आंदोलन को जन्म दिया है, जिससे न केवल लोगों का स्वाद बदलेगा, बल्कि किसानों को भी आमदनी का एक बेहतर जरिया मिलने वाला है।’ स्वामीनाथन ने ये बातें स्टीविया की खेती करने वाले राजपाल सिंह गांधी के लिए कही।
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मूल रूप से राजपाल गांधी पंजाब के जिला एसबीएस नगर के बंगा के रहने वाले हैं। उन्हें देश में स्टीविया की खेती को एक नया आयाम देने के लिए जाना जाता है। राजपाल के पास फिलहाल 200 एकड़ जमीन है, जिस पर वह न केवल स्टीविया की खेती करते हैं, बल्कि आम, एवोकाडो, बादाम, इलायाची, जेनसिंग जैसे 30,000 से अधिक पेड़ भी हैं। वह स्टीविया की प्रोसेसिंग भी करते हैं। उनके उत्पाद भारत के अलावा जर्मनी में भी भेजते हैं। इस पूरे काम को वह अपनी कंपनी ‘ग्रीन वैली स्टीविया’ के जरिए करते हैं।
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कैसे मिली प्रेरणा:
आपको बता दें कि राजपाल गांधी सफल किसान के साथ-साथ टैक्स कंसलटेंट भी हैं। शुरू से ही उनमें खेती करने की ललक थी, लेकिन उनके पास जमीन नहीं थी। फिर 2005 में उन्होंने शहर से कुछ किलोमीटर दूर, बालाचौर में 40 एकड़ जमीन खरीदी और खेती की शुरूआत की। यहां सबसे चुनौतीपूर्ण बात यह थी कि उनके घर में कोई भी खेती करने वाला नहीं था।
उनका मानना है कि आजकल किसानों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है और युवा पीढ़ी विदेश जा रही है, लेकिन वे लोगों के सामने एक उदाहरण पेश करना चाहते थे कि खेती घाटे का सौदा नहीं है, यदि आप उसे नए तरीके से करेंगे।
खैर, राजपाल गांधी के लिए खेती की राह आसान नहीं थी। उन्होंने शुरूआती दिनों में आलू और कई सब्जियों की खेती की, लेकिन उन्हें उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं हुई। फिर, उन्होंने सोचना शुरू किया कि यहां के मौसम और मिट्टी के हिसाब से सबसे अधिक कमाई देने वाली फसल कौन सी हो सकती है।
ऐसे में उन्हें स्टीविया के बारे में पता चला। इसके लिए न तो ज्यादा पानी की आवश्यकता थी और न ही ज्यादा देखभाल की। इस तरह स्टीविया की खेती करने का उन्होंने पक्का मन बना लिया। राजपाल के अनुसार ‘उस दौर में भारत में स्टीविया की खेती कहीं भी नहीं होती थी। उन्होंने इंटरनेट पर भी खूब सर्च किया तो उन्हें स्टीविया संबंधी कोई जानकारी नहीं मिली और न ही किसी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में इसकी पढ़ाई होती थी। फिर भी, राजपाल ने अपने बलबूते पर छह एकड़ जमीन पर स्टीविया की खेती की शुरूआत कर दी और तीन महीने के बाद फसल भी आ गई।
राजपाल की स्टीविया प्रोसेसिंग यूनिट
राजपाल के लिए असली चुनौती अब शुरू हुई। उस वक्त इसका कोई खरीदार नहीं था। कुछ लोग 50-100 ग्राम खरीद लेते थे। फिर उन्होंने खूब जांच वगैरह की कि लोग इसे खरीदते क्यों नहीं? उन्होंने खूब जानकारी जुटाई और बताया कि जापान में जहां 1970 के दौर से ही 60 फीसदी से अधिक आबादी शुगर की जगह पर स्टीविया का इस्तेमाल कर रही है, वहीं भारत में इसकी चीनी बनाने के लिए कोई यूनिट ही नहीं है। ऐसे में, उनके दिमाग में दो ही विचार घूमने लगे कि या तो वो स्टीविया की खेती बंद करनी होगी या फिर नया यूनिट लगाना पड़ेगा।
आखिर उन्होंने यूनिट लगाने का फैसला कर लिया। इसके बाद राजपाल ने रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब का सेटअप तैयार किया और एक यूनिट की शुरूआत की। 2012 में सेंट्रल मिनिस्ट्री आॅफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस की ओर से एक ग्रांट भी मिली, लेकिन उस वक्त स्टीविया को खाद्य सुरक्षा मानकों पर मान्यता नहीं मिली थी और इसे प्राप्त करने में उन्हें तीन साल लग गए। नवंबर 2015 में मान्यता मिलने के बाद, 2016 के शुरूआती दिनों से उनका बिजनेस अच्छी तरह से चलने लगा।
क्या हैं स्टीविया के फायदे
राजपाल अब अपनी आधी जमीन पर स्टीविया की खेती करते हैं। इतना ही नहीं, वे पंजाब, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कई अन्य किसानों से भी जुड़े हुए हैं और उनसे बाय बैक एग्रीमेंट के तहत स्टीविया की कांट्रेक्ट फार्मिंग करवाते हैं। राजपाल के अनुसार एक एकड़ में स्टीविया के करीब 30 हजार पौधे लगते हैं। एक बार पौधा लगाने के बाद पांच वर्षों तक सोचने की कोई जरूरत नहीं। फसल की कटाई हर तीन महीने में होती है।
इस तरह एक साल में तीन-चार बार कटाई होती है। एक एकड़ में हर साल 1.5 से 2 टन सूखी पत्तियां होती हैं। जिससे 2.25 लाख का रिटर्न आसानी से लिया जा सकता है। यदि एक पौधा लगाने में दो रुपए का खर्च आ रहा है, तो 30 हजार पौधे लगाने में करीब 60 हजार खर्च होंगे। इस तरह सलाना हर कटाई पर करीब 15-20 हजार का खर्च आता है, जो दूसरी फसलों के बराबर ही है। लेकिन इसमें हर साल 1.5 लाख का लाभ मिलता है, जो परंपरागत फसलों से कहीं ज्यादा है।’
नहीं पड़ती ज्यादा देखभाल की जरूरत
राजपाल बताते हैं कि स्टीविया को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह एक औषधीय पौधा है, जिस वजह से इसमें कभी कीड़े नहीं लगते हैं। वहीं, यदि एक किलो चीनी बनाने के लिए गन्ने की खेती में 1500 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, तो स्टीविया के लिए केवल 75 लीटर पानी की आवश्यकता होगी। जो करीब पांच फीसदी है। स्टीविया सूर्यमुखी परिवार का पौधा है। इसलिए इसे पूरी धूप की जरूरत होती है। गर्मियों में इसका पौधा तेजी से बढ़ता है।
करते हैं वैल्यू एडिशन
राजपाल बताते हैं कि स्टीविया गुणों में बिल्कुल तुलसी की तरह है। इसलिए लोग इसे मीठी तुलसी भी कहते हैं। इसमें कोई कैलोरी नहीं होती है और इसमें कई पोषक तत्व होते हैं। डायबिटीज के मरीज इसे चीनी के विकल्प के रूप में इस्तेमाल करते हैं। राजपाल स्टीविया की पत्तियों और पाउडर को बेचने के अलावा कई वैल्यू एडेड प्रोडक्ट भी बनाते हैं। वे स्टीविया को प्रोसेस करने के लिए एकोस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं।
राजपाल के उत्पाद
उन्होंने स्टीविया को मोरिंगा, ग्रीन टी, हल्दी और दूध जैसे कई चीजों के साथ भी लांच किया है। राजपाल वैल्यू एडेड स्टीविया को 3000 रुपए से 6000 रुपए किलो तक बेचते हैं।
सैकड़ों किसानों को कर चुके प्रशिक्षित
राजपाल 500 से अधिक किसानों को स्टीविया की ट्रेनिंग दे चुके हैं। हरियाणा के रोहतक में रहने वाले डॉ. कुलभूषण उनसे जुड़े ऐसे ही एक किसान हैं। कुलभूषण पहले पंजाब के कृषि विभाग में एक अधिकारी थे। वे कहते हैं, रिटायर होने के बाद, उसने एक एकड़ जमीन पर स्टीविया की खेती शुरू की। पहली बार में करीब दो क्विंटल उत्पादन हुआ। इसे उसने राजपाल को बेच दिया। गेहूं और धान जैसी परंपरागत फसलों की तुलना में इसमें ज्यादा लाभ मिलता है और लागत कम।
मिल चुके हैं कई पुरस्कार
2014 में एमएस स्वामीनाथन ने राजपाल को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करने के बाद, अपने 20 सदस्यीय बोर्ड में भी शामिल किया था। इसके अलावा उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
राजपाल गांधी को किया गया सम्मानित
2019 में दुनिया भर के 550 लोगों को अपने-अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदानों के लिए सम्मानित किया गया, जिसमें एक राजपाल गांधी भी थे। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भी शामिल था। राजपाल अंत में कहते हैं कि आज जब सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कोशिश कर रही है, तो स्टीविया की खेती उनके लिए वरदान साबित हो सकती है। इसे देश के अधिकांश हिस्सों में आसानी से उगाया जा सकता है। इसमें न किसानों को खाद-पानी के पीछे ज्यादा खर्च करने की जरूरत है और न ज्यादा मेहनत की। बस एक बार लगाइये और सालों तक चिंतामुक्त हो जाइए।
-साभार