Satguru ji kept his disciple's shame - experiences of satsangis

सतगुरु जी ने अपने शिष्य की लाज रखी – सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत

प्रेमी सुखदेव सिंह फौजी इन्सां पुत्र सचखण्ड वासी बंत सिंह गांव घुम्मण कलां जिला भटिंडा से अपने पर हुई परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमतों का वर्णन करता है:-

सन् 1988 की बात है कि जब मैंने अपने भाइयों की प्रेरणा से परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन किए व सत्संग सुना। मैं परम पिता जी के सत्संग से इतना प्रभावित हुआ कि नाम लिए बिना न रह सका। उस समय मैं फौज में भर्ती था। नाम लेने पर अपने सतगुरु परम पिता जी पर इतना विश्वास हो गया कि मुझे महसूस होता है कि अगर दुनिया में रब्ब है तो सच्चे सौदे में परम पिता जी के रूप में ही है। मैं अपने सतगुरु परम पिता जी का स्वरूप (फोटो) हमेशा अपने बक्से में बहुत ही सत्कार से रखा करता था तथा जब भी समय मिलता, दर्शन करता रहता था। मालिक सतगुरु का नाम जपता रहता था।

उस समय हमारी आर्मी यूनिट की लोकेशन उत्तराखण्ड के गढवाल मण्डल में जोशीमठ थी। उस समय मेरी ड्यूटी आर्मी की यूनिट का राशन-पानी लाने पर लगाई गई थी। उस समय मेरे साथ वाले कुछ शरारती आदमियों (फौजियों) ने मेरी शिकायत सी. ओ. साहिब(करनल) के पास कर दी कि ये आदमी अपने किसी बंदे की फोटो रखता है तथा उसकी पूजा करता है। ये अपने धर्म को नहीं मानता। ये बंदे को मानता है तथा पूजता है।

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उक्त शिकायत की जानकारी मुझे लांस नायक ने दी तथा मुझे हुक्म दिया कि कल को सुबह तेरी पेशी है। मैंने उससे पूछा कि मैंने कोई गुनाह तो किया नहीं, फिर मेरी पेशी क्यों है और कहां है? मुझे कहां पर बुलाया गया है? उस ने बताया कि कल रविवार को सुबह सवेरे तुझे हैली पैड ग्राउंड में बने गुरुद्वारा साहिब में बुलाया गया है। मैंने अपने सतगुरु परम पिता जी का ध्यान करके मालिक के नारे, ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा, हाजिर नाजिर जिंदाराम तेरा ही आसरा, परम संतों के न्यारे राम तेरा ही आसरा लगाए’ तथा मालिक सतगुरु के चरणों में अरदास की कि हे मालिक! तू ही इज्जत रखने वाला है। वैसे वहां पर किसी की शिकायत हो जाती तो उसे बहुत सजा दी जाती थी, मार-कुटाई भी की जाती थी।

मैंने जहां पर पहुंचना था, वह जगह पन्द्रह किलोमीटर चढ़ाई पर थी। वहां पर पैदल ही जाना पड़ता था, और कोई साधन नहीं था। मैं अगले दिन सुबह तक पैदल चल कर उस जगह पर पहुंच गया। वहां पर सभी फौजी गुरुद्वारा साहिब के अंदर बैठे हुए थे। मुझे गुरुद्वारा साहिब से चाली-पचास कदम दूर खड़ा कर दिया गया। जब सी.ओ. साहिब गुरुद्वारा साहिब के अंदर आए तो उसके उपरांत पाठी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब के वाक लिए। जब सी.ओ. साहिब गुरुद्वारे से बाहर आए तो उनके साथ मेजर साहिब तथा सूबेदार मेजर भी बाहर आए। सूबेदार मेजर ने मेरी तरफ इशारा करते हुए सी.ओ. साहिब को कहा कि वो बंदा वो खड़ा है।

सभी अफसर चलकर मेरे पास आए तो मैं सावधान की पॉजिशन में खड़ा था। मैंने उन्हें सलूट दिया। सी.ओ. साहिब ने मुझे मुखातिब होते हुए कहा कि हम नहीं जानते कि तू किसको मानता है। पर हमारी पल्टन पर मेहर भरा हाथ रखे जिसको तू मानता है। उसके बाद सी.ओ साहिब ने हुक्म दिया कि इसको फ्री किया जाए। इसको कोई कु छ नहीं कहेगा। ये गुरुद्वारे में अपनी सेवा करेगा। यह आदेश सुन कर शिकायत करने वाले निरुतर हो गए। इस प्रकार एक तरफ सतगुरु ने मेरी लाज रखी तो दूसरी तरफ मुझे भजन बंदगी और सेवा के लिए खुला समय मिला।

उक्त घटना के उपरान्त सभी फौजी भाई तथा अफसर मुझे जानने लगे कि ये आदमी सौ प्रतिशत वैष्णु है। फौज में ऐसा वैष्णु बंदा मिलना मुश्किल है। उसी समय के दौरान जनरल साहिब, फौजी अमले तथा उनके परिवारों ने हेमकुण्ड साहिब, दर्शन करने के लिए जाना था। उस समय हमारी पल्टन में से दस वैष्णु आदमी चुने गए जिन्होंने आगे जाकर संगत के लिए खाने-पीने का प्रबंध करना था तथा साथ-साथ में प्रोटेक्शन भी करनी थी। उनमें मैं भी था। हम गोबिंद घाट से पैदल चलकर एक दिन में घगरिया पहुंचे। अगले दिन सुबह तीन बजे हमारे सूबेदार इन्चार्ज ने हमें उठा दिया और हुक्म दिया कि आपने जल्दी-जल्दी आगे जाना है और संगत के लिए चाय-पानी का प्रबंध करना है।

उससे आगे ऊपर की तरफ चढ़ाई थी जहां पर बर्फ ज्यादा पड़ती है। मैंने अपने सतगुरु परम पिता जी को याद किया तथा नारा लगा कर अरदास की कि आगे आप ने ही हमारी लाज रखनी है। जब हम आगे पहुंचे तो वहां बर्फ ही बर्फ थी, और कुछ नहीं था। न गांव, न शहर, न आबादी, न लकड़-बालण, कुछ भी नहीं था। मैंने सूबेदार को विनती की कि आप इतनी भक्ति करते हो, आप पानी-धाणी का इन्तजाम तो करवाओ। सूबेदार मुझ पर गमर् हो गया तथा मुझे कहने लगा कि मैं कहां से पानी का इन्तजाम करूं? यहां कहां है पानी। वह कहने लगा कि तू भी तो सच्चे सौदे का प्रेमी है, तू अपने गुरु से मंगवा कर दिखा। मैंने कहा कि वह तो सर्व कला सामर्थ है।

वह सब कुछ कर सकता है। वह गुस्से से कहने लगा कि फिर करवा। मैंने अभी सोचा ही था कि एक बंदा हमारा फौजी भाई लकड़ियों की तालाश में जाने लगा तो उसे भरा-भराया बर्फ में से पानी का टीन मिला। मैंने सूबेदार को कहा कि ले पानी आ गया। वह हैरान हो गया। यह पानी कहां से आ गया। हम बर्फ झाड़-झाड़ कर झाड़ियां तोड़ने लगे। सभी के मन में था कि यह जलेंगी नहीं। मालिक सतगुरु द्वारा दिए गए ख्याल अनुसार हमने पत्थरों का चूल्हा बनाया। जब उसमें झाड़ियां जलाई तो लटा-लट जल उठी। हमारी खुशी का कोई पारावार न रहा।

सूबेदार मुझे कहने लगा कि मैं तुझे मान गया। वह मुझसे प्रेम करने लगा तथा हर काम में मेरी सहायता करने लगा। इस तरह मेरे सतगुरु ने मेरी हर जगह पर लाज रखी। मैं अपने सतगुरु के अहसानों का बदला कैसे भी नहीं चुका सकता। अब मेरी परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरणों में यही अरदास है कि सेवा सुमिरन का बल बख्शना जी तथा हमारे सारे परिवार पर दया मेहर रहमत बनाए रखना जी।

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