भाई। बहुत अच्छी जगह गया है… -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी छोटा सिंह इन्सां पुत्र सचखंडवासी स. बंता सिंह, निवासी गांव घुम्मन कलां, जिला भटिंडा से अपने बड़े भाई दरबारा सिंह पर परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की हुई रहमत का वर्णन करता है-
मेरा बड़ा भाई दरबारा सिंह शुरू से ही धार्मिक स्वभाव का था। उसने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-शब्द लिया हुआ था। जब परमपिता जी का हमारे गांव में सत्संग हुआ तो उसने सत्संग करवाने में बड़ा योगदान दिया। वह हमारे गांव के सरकारी प्राईमरी स्कूल में जे.बी.टी. अध्यापक लगा हुआ था। प्रेम कोटली गांव हमारे गांव के नजदीक ही है। वहां के जे.बी.टी. अध्यापक भगवान सिंह से उसका बहुत प्रेम था। मेरे भाई दरबारा सिंह को अपने अंतिम समय का कुछ समय पहले ही पता चल गया था, या यूं कहूं कि सच्चे सतगुरु परमपिता जी ने उसे बता दिया था। उसने अपने कपड़े (कफन) सिलवाकर मास्टर भगवान सिंह को पकड़ाते हुए कहा कि यह मेरे कफन के कपड़े हैं। यह मेरे चोला छोड़ने के बाद मुझे पहनाने हैं। यह बात अगस्त 1979 की है।
उस दिन मेरा भाई दरबारा सिंह स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहा था। छुट्टी का समय होने पर भी उसने बच्चों को छुट्टी नहीं दी, बल्कि पढ़ाए जा रहा था। साथी अध्यापक कहने लगे कि टाइम हो गया है, इसलिए बच्चों को छुट्टी कर दो। वह कहने लगा कि अभी सवाल रहते हैं, मैं करवा देता हूं। साथी अध्यापक कहने लगे कि कल करवा देना, आज छुट्टी कर दो। वह कहने लगा कि मैंने तो चोला छोड़ना है। साथी अध्यापक हंसने लगे कि आपने चोला छोड़ना है! आपको क्या हुआ है? ऐसे अच्छे-भले का चोला नहीं छूटता। तू इतना तगड़ा बंदा है, तू ऐसे कैसे चोला छोड़ेगा! ऐसे मजाक मत करो! उसने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बच्चों को छुट्टी दे दी। स्कूल में छुट्टी के बाद वह अपने घर आ गया।
वह मुझे समझाने लगा कि मेरे कफन वाले कपड़े मास्टर भगवान सिंह प्रेम कोटली वाले के पास सिले पड़े हैं। मैं शाम को सात बजे चोला छोडुंगा। तू ऐसा करना कि सुबह-सवेरे मास्टर भगवान सिंह के पास जाना तथा कफन लाकर मुझे पहना देना। मेरे फूल (अस्थियां) परमपिता जी के पास लेकर जाना और अरदास करना कि यह मास्टर दरबारा सिंह के फूल हैं।
उस दिन शाम के समय मेरे बापू जी तथा हम सभी भाइयों का परिवार आँगन में इकट्ठे बैठे हुए थे। वह अपनी भाभियों को कहने लगा कि जल्दी-जल्दी खाना बना लो। उनमें से एक बोली कि आज मास्टर को भूख लगी है, इसलिए ऐसा बोल रहा है। वह कहने लगा कि अगर मैंने असली बात बता दी तो तुम लोग खाना नहीं खाओगे।
फिर अपने बापू जी को कहने लगा कि आप परमपिता जी से नाम ले लेना। (बाद में बापू जी ने नाम-शब्द ले लिया था।) उसने अपनी माता को याद किया कि बेबे कहां है। मैंने उसको बताया कि मैं अभी उसके पास से आया हूं। वह अंदर वाले घर से आ रही है। वह कहने लगा कि मेरा टाइम हो गया है। परमपिता जी आ गए हैं। मैं जा रहा हूं। मैं बेबे को नहीं मिल सकता। उसने ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा बोलकर चोला छोड़ दिया। अगले दिन सुबह मैं मास्टर भगवान सिंह से वही वस्त्र लेकर आया, जो उसको पहनाए गए। मास्टर भगवान सिंह भी आ गए। तब मेरे भाई का अंतिम संस्कार किया गया।
मेरे भाई दरबारा सिंह के बताए अनुसार उसके फूल लेकर हम डेरा सच्चा सौदा सरसा में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की हजूरी में आ गए, तो परमपिता जी ने फूलों (अस्थियों) पर अपनी पावन दृष्टि डालते हुए फरमाया कि ‘भाई! बहुत अच्छी जगह गया है। भाई, टूटियों से पानी ले जाना, यह पानी गंगा के पानी से कम नहीं। भाई, बजार से खीलें ले लेना, क्योंकि दुनियादारी का हिसाब है। ये फूल बहती नहर में डाल देना।’ परमपिता जी के वचनानुसार हमने बहती नहर में फूल डाल दिये।
इस तरह सतगुरु अपनी रूह को निजधाम ले गए। जिसने भी सच्चे सतगुरु से नाम-शब्द लिया है, सतगुरु इसी तरह रूह को अपने निजधाम, सतलोक, सचखण्ड ले जाता है, जैसा कि उपरोक्त करिश्मे से स्पष्ट है।