कोरोनावायरस प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए दोहरी चुनौती से कम नहीं है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान ब्लड फ्लो, मेटाबोलिज्म और हार्ट रेट बढ़ जाता है। इसके साथ ही इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है।
इस वजह से सांस लेने में तकलीफ, रेस्पिरेटरी डिसीज और इनफ्लुएंजा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इस वजह से महिलाओं को इंटेंसिव केयर की जरूरत होती है। एक इंटरनेशनल स्टडीज के मुताबिक 96% कोरोना पॉजिटिव महिलाओं में निमोनिया के लक्षण पाए गए। जन्म के समय या उसके बाद मां से संपर्क में आने के कारण कई बच्चे पैदा होते ही संक्रमण का शिकार हो गए।
सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने हाल ही में अमेरिका में कोरोना संक्रमित प्रेग्नेंट महिलाओं पर एक रिसर्च की है। इसके मुताबिक, 31% प्रेग्नेंट महिलाओं को कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इनमें से 1.5 % आईसीयू में और 0.5 फीसदी महिलाओं को वेंटिलेटर पर रखा गया। वहीं, इसके मुकाबले सिर्फ 6 फीसदी नॉन प्रेग्नेंट महिलाएं ही अस्पताल में दाखिल हुईं। अगर भारत की बात करें तो करीब 11 फीसदी प्रेग्नेंट महिलाओं को आईसीयू में रहना पड़ा। कोरोना की वजह से ज्यादातर महिलाओं को प्रीमैच्योर डिलीवरी फेस करना पड़ेगी। कोरोनाकाल से पहले दुनियाभर में करीब 13.6 फीसदी प्रीमैच्योर डिलीवरी होती थीं, लेकिन अब यह आंकड़ा दोगुना यानी 26% हो गया है।
11.6 करोड़ बच्चों का जन्म कोरोनाकाल में हुआ
संक्रमित महिलाओं के बच्चों पर भी कोरोना का असर देखने को मिला है। जन्म के समय या उसके बाद मां से संपर्क में आने के कारण कई बच्चे पैदा होते ही संक्रमण का शिकार हो गए। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक 11.6 करोड़ बच्चों का जन्म कोरोनाकाल में हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, नॉर्मल डिलिवरी वाले 2.7 फीसदी बच्चे कोरोना पॉजिटिव पाए गए, जबकि जिन बच्चों का जन्म सिजेरियन के जरिए हुआ, उनमें 5% संक्रमित हुए।
यानी लगभग 8 फीसदी बच्चे अपनी मां की वजह से कोरोना का शिकार हुए। कोरोना का असर ब्रेस्ट फीडिंग पर भी हुआ है। संक्रमण के डर से मांएं अपने बच्चे को दूध नहीं पिला रहीं। इससे बच्चों के इम्यून सिस्टम पर असर पड़ सकता है। हालांकि, सीडीसी के अध्ययन के मुताबिक सुरक्षा के मानकों को ध्यान में रखकर ब्रेस्ट फीडिंग कराई जा सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोरोनाकाल में पैदा होने वाले करीब 8 % बच्चे रेस्पिरेटरी डिसीज का शिकार हुए हैं।
आॅनलाइन मेडिकल चेकअप
कोरोना की वजह से ज्यादातर गर्भवती महिलाएं आॅनलाइन मेडिकल चेकअप करा रही हैं। लॉकडाउन के दौरान वाहन नहीं मिलने से कई प्रेग्नेंट महिलाएं रेगुलर चेकअप के लिए अस्पताल नहीं पहुंच पाईं। उन्होंने आॅनलाइन मेडिकल सहायता और फोन पर डॉक्टरों की सलाह ली।
गर्भवती महिलाओं पर कोरोना का प्रभाव
सेहतमंद वयस्कों की तुलना में गर्भवती महिलाओं को कोरोना वायरस अधिक प्रभावित नहीं कर रहा है। ऐसा माना जाता है कि अधिकतर महिलाओं में जुकाम या फ्लू के केवल हल्के या सामान्य लक्षण ही दिखते हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि जिन गर्भवती महिलाओं को यह संक्रमण होता है उनमें अन्य लोगों की तुलना में गंभीर लक्षण दिखने का खतरा अधिक होता है।
शिशु पर प्रभाव
इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिल पाया है कि कोरोना वायरस से ग्रस्त गर्भवती महिला या प्रसव के समय शिशु को भी अपनी मां से ये वायरस मिल सकता है। इसे वर्टिकल ट्रांसमिशन कहते हैं। हालांकि, दो ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें वायरस के शिशु में फैला है। इन दोनों ही मामलों में ये पता नहीं चल पाया है कि वायरस जन्म से पहले फैला था या जन्म के बाद। वहीं चीन में कोरोना वायरस से ग्रस्त चार गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के बाद शिशुओं में इस इंफेक्शन का खतरा नहीं देखा गया। विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भावस्था के दौरान शिशु के वायरस के संपर्क में आने की संभावना कम होती है। ऐसा कोई भी मामला अब तक सामने नहीं आया है जिसमें कोरोना वायरस से ग्रस्त गर्भवती महिला के शिशु के विकास पर कोई असर पड़ा हो।
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