चल उठ भई! तुझे तो ड्यूटी पर टाईम से पहुंचना है
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम | सत्संगियों के अनुभव
मास्टर लीला कृष्ण उर्फ लीलाधर पुत्र श्री पुरुशोत्तम दास, नानक नगरी, मकान न.122, मोगा (पंजाब)। प्रेमी जी अपने पूजनीय सतगुरु परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करता है:-
मैंने पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से नाम-दान प्राप्त किया हुआ है और मुझे अपने सतगुरु पर पूरा दृढ़ विश्वास है। सन् 1958 की बात है कि मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला खूईयां नेपालपुर जिला सरसा में अध्यापक लगा हुआ था और उसी गांव में ही रहता था। खूईयां नेपालपुर गांव साहूवाला व गांव पन्नीवाला मोटा के नजदीक पड़ता है।
उन दिनों में पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज का गांव श्री जलालआणा साहिब(परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की पावन जन्म भूमि) में रविवार को एक विशाल सत्संग था। श्री जलालआणा साहिब खूईयां नेपालपुर से करीब 12-13 मील की दूरी पर है। उन दिनों खूईयां से श्री जलालआणा साहिब तक आने-जाने का कोई साधन (बस, टांगा आदि) नहीं था। रास्ता कच्चा था। इसलिए मैं अपनी साईकिल से श्री जलालआणा साहिब पहुंच गया।
रात्रि का सत्संग था। उन दिनों में बेपरवाह मस्ताना जी महाराज रात को काफी देर तक सत्संग किया करते थे। उस दिन भी सतगुरु जी ने रात्रि के दो बजे तक सत्संग फरमाया तथा समाप्ति के बाद अधिकारी जीवों को नाम-दान की दात प्रदान की। मैंने अगले दिन सोमवार सुबह सात बजे ड्यूटी पर पहुंचना था। कच्चे रास्ते में साईकिल चलाने की वजह से मैं बहुत थका हुआ था। इस कारण मैंने सोचा कि आराम से सुबह 6:00 बजे जाऊँगा और स्कूल पहुंच जाऊँगा। मौज मस्तपुरा धाम श्री जलालआणा साहिब आश्रम में मिट्टी का काफी बड़ा एक चबूतरा था।
सत्संग के बाद गांव व आस-पास की साध-संगत तो अपने-अपने घरों को चली गई। कुछ साध-संगत कपड़ा इत्यादि बिछा कर उस चबूतरे पर ही लेट गई। उस चबूतरे पर करीब 100-150 आदमी अपनी चादरें ओढ़ कर सो रहे थे। मैं भी उन्हीं के बीच में अपने ऊपर चद्दर लेकर लेट गया। उस चबूतरे पर इतनी संख्या में सत्संगी सो रहे थे कि रात के अंधेरे में किसी आदमी की पहचान करना बड़ी मुश्किल था। मैं तो बेफिक्र होकर आराम से अपनी गहरी नींद में सो गया।
मुझे क्या पता था कि अगले दिन(सोमवार को) मेरे स्कूल की सालाना इंस्पैक्शन होने वाली है। उन दिनों सालाना इंस्पैक्शन अचानक(बिना सूचना दिए) ही हुआ करती थी। परन्तु पूरा सतगुरु तो अंतर्यामी है। वो तो अपने शिष्य की हर आने वाली मुश्किल, भयानक कर्म को अपनी दया-मेहर से टाल देता है। अगर शिष्य को अपने सतगुरु पर दृढ़ यकीन है और उन्हीं के वचनों को शत-प्रतिशत मानता है तो सतगुरु भी उस शिष्य की पल-पल संभाल करता है।
जब सारी साध-संगत गहरी नींद में सोई हुई थी तो लगभग प्रात: चार बजे अंतर्यामी दातार शहनशाह मस्ताना जी महाराज चौबारे में से बाहर आ गए और फरमाया, ‘असीं बाहर घूमने जाना है।’ इस पर सेवादारों ने अर्ज की, सार्इं जी! बाहर तो अभी बहुत अंधेरा है। सुबह होते ही चल पड़ेंगे। सच्चे पातशाह जी ने इस पर एकाएक तेज आवाज में फरमाया, ‘आपको रोकने का क्या अधिकार है? असीं तुम्हारे गुलाम तो नहीं? असीं बाहर रफा-हाजत के लिए जाना है।’ सर्व सामर्थ सतगुरु जी के वचन सुनकर सारे सेवादार चुप हो गए और चुपचाप शहनशाह जी के पीछे-पीछे चलने लगे। बेपरवाह मस्ताना जी महाराज चौबारे से उतर कर अचानक ही उस चबूतरे के पास आकर खड़े हो गए, जहां पर सारी साध-संगत सो रही थी।
परम दयालु दातार जी के पावन कर-कमलों में हर समय एक लाठी हुआ करती थी। अचानक ही शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने सोए हुए प्रेमियों में से मेरी टांग पर अपनी डंगोरी की नोक लगाई और उठ खड़ा होने को कहा। मैं एकदम घबराहट में खड़ा हो गया। अपनी आंखें मल कर मैंने देखा तो सामने शहनशाह मस्ताना जी महाराज खड़े हैं और फरमा रहे हैं, ‘यह कौन है भाई! तू सो क्यों रहा है? फिर स्वयं ही कहने लगे, तू तो मास्टर है, तूने ड्यूटी पर स्कूल नहीं जाना? तू कैसे आया था?’ मैंने जवाब दिया, सार्इं जी! मेरे पास साईकिल है और मैंने साईकिल पर ही वापिस खूईयां नेपालपुर जाना है। सतगुरु जी ने दोबारा फिर फरमाया, ‘अब चार बज चुके हैं तू अभी जा।
12-13 मील की यात्रा साईकिल पर करनी है। तू अपना साईकिल उठा और यहां से अभी ही चला जा। स्कूल की सरकारी ड्यूटी से लेट नहीं होना चाहिए।’ मैंने कहा- जी सत्वचन शहनशाह जी, मैं अभी ही चल पड़ता हूं। शहनशाह जी यह वचन फरमाकर वापिस चौबारे पर जाकर आराम फरमाने लगे।
उसी वक्त मैंने चादर अपने थैले में डाली, साईकिल उठाया और अपने स्कूल को रवाना हो गया। अपने कमरे में जाकर स्रान किया, कपड़े बदले व नाश्ता कर ठीक सात बजे अपनी ड्यूटी पर स्कूल में पहुंच गया। मैंने बच्चों की हाजरी लगाकर पढ़ाना शुरू कर दिया। मुझे पढ़ाते हुए अभी पांच सात मिनट ही हुए थे कि अचानक ही एक जीप स्कूल के गेट पर आकर रुक गई। उस जीप में जिला शिक्षा अधिकारी, सहायक जिला शिक्षा अधिकारी और दो कलर्क थे। चारों जीप से उतर कर स्कूल के अन्दर आ गए और मुझे कहने लगे कि आपके स्कूल का वार्षिक मुआयना करना है।
दोनों अफसर साहिबानों ने सभी कक्षाओं की पढ़ाई व लिखाई का निरीक्षण किया। हाजरी रजिस्टर व सरकारी फंड के हिसाब की पूरी पड़ताल की। इस काम में उन्होंने पूरे दो घंटे लगाए। हमारे स्कूल की पड़ताल करने के बाद वह और स्कूलों की इंस्पैक्शन के लिए चले गए। जैसे ही अफसर साहिबान विदा हुए मैंने अपने मन में बेहद खुशी अनुभव की और अपने सतगुरु का लाख-लाख बार धन्यवाद किया। मेरे मन में बार-बार ये ख्याल आने लगा कि अन्तर्यामी दातार पूजनीय मस्ताना जी महाराज अगर आज प्रात: चार बजे मुझे जगाकर स्कूल में न भेजते तो मैं शायद 9-10 बजे स्कूल पहुंचता और गैर-हाजिर पकड़ा जाता। पूजनीय परम दयालु दातार जी ने अपने शिष्य की इस अवसर पर लाज रखी और मेरी नौकरी को सुरक्षित रखा।