सम्पादकीय corona
विश्वव्यापी कोरोना महामारी दिनों-दिन भयंकर होती जा रही है। देश में इसका विकराल रूप देखने को मिल रहा है। लेकिन विडम्बना यह है कि जब देश में मामले कम थे लोगों में भय था, घरों में टिके हुए थे,
कोई बाहर निकलने को राजी नहीं था, बेशक कानून के अनुसार सख्ती बरती जा रही थी, फिर भी लोगों के मन में कोरोना को लेकर बहुत सतर्कता थी। लेकिन अब जबकि देश में मामले बढ़ते जा रहे हैं और मौत का आंकड़ा भी उसी प्रकार बढ़ रहा है, फिर भी लोग जैसे लापरवाह हो गए हैं। पहले मामले न्यूनतम स्तर पर थे। और लॉकडाउन था। लोग घरों में बैठे ही डर रहे थे। कहीं आस-पास कोई मरीज नहीं था, दूर-दराज की खबरों को सुन कर ही घबरा जाते थे।
Table of Contents
अब लॉकडाउन खुल चुका है।
सरकार की तरफ से कोई ज्यादा सख्ती नहीं रही है। क्योंकि सरकार ने एक बार सबको चलना सिखा दिया है। लॉकडाउन का मतलब ही यह था कि लोगों में संभल कर चलने की एक आदत बन जाए। जो सावधानियां बताई गई थी, उन को धारण किया जाए जैसे सोशल डिस्टैंस्ंिग, मास्क लगाना, सैनिटाईजर का इस्तेमाल इत्यादि गार्ईड लाईन दी गर्इं जिन पर चलना जरूरी है।
लॉकडाउन का यही उद्देश्य था कि इस महामारी से निपटने में जो कारगर उपाय हैं वो किए जाएं और जनता को उन पर चलना सिखाया जाए। क्योंकि सरकार के लिए लॉकडाउन को लम्बी अवधि तक बनाए रखना संभव नहीं रहा और लोगों को अपना बचाव खुद की करने हिदायतों के साथ लॉकडाउन को क्रमानुसार खोल दिया गया है। अब चूंकि लॉकडाउन खुल चुका है। कहीं है भी तो सख्त नहीं है और जनता को पूरी छूट है।
लेकिन अब ये हमारी जिम्मेवारी है कि हमने कोरोना जैसी महामारी से अपना बचाव कैसे करना है। क्योंकि अब मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पहले जहां कोरोना पेशेंट की ट्रेवल हिस्ट्री ही बताई जाती थी, अब स्थिति कुछ और बन चुकी है। अब कम्यूनिटी ट्रांसमिशन हो रहा है। और बड़े शहरों से छोटे शहरों और गांवों तक लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। इनमें ऐसे भी मरीज मिल रहे हैं जिनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं होती! इससे स्पष्ट है कि कोरोना अब कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की ओर निकल पड़ा है। यही भयावह स्थिति है। और यही वक्त है जिसमें हमें बहुत ज्यादा संभलने की जरूरत है।
इससे छोटी-सी भी भूल या लापरवाही आपकी जिंदगी पर भारी पड़ सकती है।
कोरोना के संक्रमण से परिस्थितियां बिगड़ रही हैं। इससे निपटने की चुनौतियां बढ़ रही हैं। पूरा देश अलर्ट पर है और खतरे की घण्टी बज चुकी है। क्योंकि इसके आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो इसके बहुत कम मरीज थे, जो अप्रैल में 33406 और मई में 1,55,492 मरीज आ गए। वहीं जून में ही यह आंकड़ा साढे 5 लाख के बरीब पहुंच गया। अगर सिर्फ जून की बात करें तो 3,18,415 मरीज आ चुके हैं।
इस प्रकार यह आंकड़ा जून तक साढे 5 लाख के करीब पहुंच गया है, यह इसकी भयानक तस्वीर है। क्योंकि पहले एक लाख तक पहुंचने में 110 दिन लगे थे और अब साढे 5 लाख तक पहुंचने में केवल 40 दिन ही लगे हैं। और अभी इसकी रफ्तार और भी बढ़ रही है। अगर इसे अब भी न रोका गया तो जूलाई में इसका और भी भयानक रूप सामने आ सकता है। क्योंकि बरसात के मौसम में (विज्ञानियों के अनुसार) इसमें और इजाफा हो सकता है।
इसलिए देशवासियों को बहुत संभलकर चलना होगा।
आने वाले दिन किसी बड़ी त्रासदी वाले न बन जाएं। फिर पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। इससे अच्छा यही है कि अभी संभल कर चला जाए। सरकारें भी कोरोना के आगे कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि इस महामारी की अभी तक कोई दवाई हाथ नहीं लगी है। इसलिए इसने सब के होश उड़ा रखे हैं। स्वयं डॉक्टर भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। कोरोना की स्थिती दिल्ली व महाराष्टÑ में काफी खतरनाक हो चुकी है।
पंजाब व हरियाणा में भी मामले बढ़ रहे हैं।corona
अर्थात देश में कोरोना का संकट गहराता जा रहा है। अत: कोई इसको हल्के में लेने की गलती ना करे। यह एक छुपा हुआ दुश्मन है जो किसी पर भी कभी भी वार कर सकता है। अब ये अपने हाथ में है कि हमने अपने इस छुपे हुए दुश्मन से कैसे बचकर रहना है। बाद में पछताने से बेहतर यही है कि अभी ही सम्भल कर चला जाए।
सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook, Twitter, LinkedIn और Instagram, YouTube पर फॉलो करें।