Monsoon showers cool the body and mind - Sachi Shiksha

कभी रिमझिम हल्की फुहार, कभी घनघोर घटाओं का खूब बरसना और उसके बाद सारी प्रकृति का धुलकर निखर जाना, सबके मन को खूब भाता है। प्रकृति की सुन्दरता मन मोह लेती है। सचमुच, ऊपरवाले से बड़ा कोई चित्रकार नहीं! नीले नभ में इन्द्रधनुष देखकर जितने बच्चे खुश होते हैं, उतने ही हर उम्र के लोग भी। ये मौसम सभी के तन-मन को ताजगी का अहसास कराता है।

धूप ने सब कुछ लूट लिया था उसका! बेनूर हो गई थी उसकी दुनिया! सूख गए थे बाग-बगीचे व ताल-तलैया और तन्हाई के पहलू में ख्वाबीदा थी ख्वाइशों की तपती पगडंडी! आज रात जब आसमान में कैद बारिश उतर आई जमीं पर तो खिलखिलाकर हंस पड़ी मुरझाई मिट्टी, बूंदों की सरगोशी से! काफी दिनों बाद यह शहर भीगा-भीगा लगा! आसमान ने कुछ पल के लिए अपना कपाट क्या खोला, पुरानी यादों की कुछ बूंदें जमीं पर टपक पड़ी। कॉन्क्रीट के इस जंगल से 1400 किलोमीटर दूर कस्बे की कच्ची पगडंडी पर तेज बारिश में खड़ा रहता था मैं, इस उम्मीद में कि वो एक बार कह दे, ‘इधर आ जाओ, भीग जाओगे’…!

ऐसे न जाने कितने मंजर टूटकर गिर पड़े हैं आज और दबा जाता है मेरा जेहन यादों की बोझ से!

आसमान टूटकर बरस रहा है इन दिनों और बच्चे…कुछ दुबके हैं बिस्तर में और कुछ चिपके हैं कंप्यूटर से! एक हमारा बचपन था, कमबख्त बारिश की ताल पर रूमानी जज्बात यूं थिरकते कि पूरा मोहल्ला कूट डालते। हाथ की थपकी से चलते थे साईकिल के टायर। ना जाने कितनी कागज की कश्तियां डूबी हैं इस बारिश में। न जाने कितने कागज के एयरोप्लेन क्रैश हुए हैं इस मौसम में!

पुरानी यादों को भुट्टे की तरह भूनकर खाने के लिए कितना अच्छा होता है ये बरसात का मौसम। उफ्फ! सांवले बादल की ये झिलमिल टपकन…कमजर्फ गीला कर जाती है एहसासों के सूखे लिबास को। याद है तुम्हें वो दिन, जब हम स्कूल से छूटते ही निकल जाते थे साइकलिंग रेस के लिए और फिर मेरी जीत के बाद तुम आकाश में मुट्ठी भींच चिल्ला उठते ‘या…हू…’! उस दिन भी तेज बारिश हो रही थी। गीली पगडंडी पर फिसलन कुछ ज्यादा ही थी। हम स्कूल से छूट चुके थे। रेस शुरू हो गई थी। हमेशा की तरह तुम पिछली सीट पर बैठे चिल्ला रहे थे ‘कम आॅन….कम आॅन’ और सबको चीरता हुआ मैं आगे निकल आया था। मैं जीत चुका था!

दरअसल, ये सारी भावनाएं हर किसी के मन में होती हैं। अकेला मैं ही ऐसा नहीं हूं जिसका बचपन ऐसी ही यादगार बरसात के साथ बीता! न जाने कितने ही ऐसे लोग हैं, जो अपने समय की बरसात की मस्ती को याद करके आज खुश-खुश से झूम उठते हैं! आखिर हो भी क्यों नहीं! सावन का मौसम सभी को भाता है। झुलसा देने वाली गर्मी और उमस के बाद सावन की ठंडी बयार सबको मस्त बना देती है। कभी रिमझिम हल्की फुहार, कभी घनघोर घटाओं का खूब बरसना और उसके बाद सारी प्रकृति का धुलकर निखर जाना, सबके मन को खूब भाता है। प्रकृति की सुन्दरता मन मोह लेती है।

सचमुच, ऊपरवाले से बड़ा कोई चित्रकार नहीं! नीले नभ में इन्द्रधनुष देखकर जितने बच्चे खुश होते हैं, उतने ही हर उम्र के लोग। ये मौसम सभी के तन-मन को ताजगी का अहसास कराता है। ऐसा कोई भी नहीं होगा, जो इस हसीं मौसम में खुश न हो!

यूं तो एक बरस में भारतीय परम्परा के अनुसार मूलत: छह ऋतुएं होती हैं, पर मुख्यत: तीन ऋतुएं ही हम सबके स्मृतिपटल में अंकित रहती हैं- ग्रीष्म, बरखा और शीत! हर ऋतु जीवन के उस सत्य को उद्घाटित करती है जिसे जानते तो हम सब हैं, पर समझने का यत्न बहुत कम लोग करते हैं और वह सत्य है ‘जीवन-चक्र’! यहां कुछ भी स्थायी नहीं है। सब कुछ समय के चक्र के साथ परिवर्तित होता रहता है। मानव मन सुख-दुख, उल्लास-विषाद तथा प्रेम-द्वेष और न जाने कितनी भावनाओं को अपने भीतर समेटे हुए है वैसे ही प्रकृति भी शीतलता, ऊष्णता, शुष्कता सभी को समाहित कर सन्तुलन स्थापित करने की चेष्टा करती है।

क्या कभी आपने यह सोचा है कि अगर सूर्य की तीक्ष्ण किरणें धरती की कोख को जर्जर कर देती हैं, तो वहीं तमस बरखा की बूंदों में परिवर्तित हो जाती हैं। इसी प्रकार हम भी जब-जब जीवन की कठोर परीक्षाओं से तपन महसूस करने लगते हैं, मन उदास और खिन्न हो जाता है और कहीं शीतलता नहीं मिलती तो मान लीजिए कि तमस और बढ़ेगी। परन्तु बढ़ती तमस तो बरखा की उन बूँदों को आमंत्रण है, जहाँ बादलों के बरसने से पहले हवाएं भी अपनी श्वासों को थाम लेती हैं। हम सभी की जीवनयात्रा में न जाने कितने संघर्ष हैं जो हमें शिथिल कर देते हैं। पर बजाय निराश होने के यह समझें कि ये संकेत हैं सफलता के तथा आपके अनवरत प्रयासों के उपरान्त आशाओं के फलीभूत होने के!

वर्षा ऋतु हर बार एक सन्देश लेकर आती है और वह सन्देश है ‘अपनी धरती को भी प्यार करो! कुछ पल उसको भी दो! जन-जन का जीवन निहाल करो!’ कुछ समझे आप? नहीं न! क्या हम नहीं जानते कि कहीं इतनी बरसात है कि घर उजड़ रहे हैं और कहीं एक-एक बूँद को तरसती निगाहें! ऐसा क्यों? क्योंकि हमने अपनी धरती का ध्यान रखा ही नहीं! हजारों पेड़ काटे! धरती की जड़ों को खोखला कर दिया! पर अभी भी देर नहीं हुई है! कुछ बीज नन्हें हाथों में रख उसे धरती में बो कर देखो! बरसात का पानी कैसे उनका पोषण करता है और फिर मिलेगी घने पेड़ों की छाँव, उनके फल और निर्मल वातावरण।

यकीन मानिए प्रकृति को आप जो देंगे, वही आपको लौटाएगी। चाय की चुस्कियों के साथ अट्टालिकाओं में बैठे, हम प्रकृति की गोद में समाना भूल चुके हैं, यह ऋतु पुकार रही है कि आओ, मेरे समीप आओ और देखो कि जीवन कितना सुन्दर है। …तो चलें बरखा की बूँदों में डूबने और सुहाने मौसम का आनन्द उठाने…।
-अमित

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