Basant Panchami -sachi shiksha hindi

ऋतुराज है आया बसंत Basant Panchami

बसन्त पंचमी एक प्रसिद्ध भारतीय त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा सम्पूर्ण भारत में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं। बसन्त पंचमी के पर्व से ही बसन्त ऋ तु का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद-मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह का स्पर्श कराती है। बसंत ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है- ‘शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन’। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है।

भारत में पतझड़ ऋ तु के बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल खिले दिखाई देते हैं। खेतों में पीली सरसों लहलहाती बहुत ही मदमस्त लगती है। इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं जिन्हें देखकर किसान बहुत हर्षित होते हैं। चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है। इसीलिये वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ‘ऋतुराज’ कहा गया है। इस दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है।

बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य नारायण के उत्तरायण में प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। हालांकि विश्व में बदले हुए मौसम ने अनेक प्रकार के गणित बिगाड़ दिये हैं पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वों पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात, फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है।

बसन्त उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी, मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसन्त ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास बसन्त ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिन्दू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसन्त में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं। अत: राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है और इसे ऋतुराज कहा गया है।

बसन्त पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को ही अर्पित है। यह ज्ञान का त्योहार है, फलत: इस दिन प्राय: शिक्षण संस्थानों व विद्यालयों में विभिन्न कार्यक्रम होते है। विद्यार्थी पूजा स्थान को सजाने-संवारने का प्रबन्ध करते हैं। महोत्सव के कुछ सप्ताह पूर्व ही विद्यालय विभिन्न प्रकार के वार्षिक समारोह मनाना प्रारम्भ कर देते हैं। संगीत, वाद- विवाद, खेल- कूद प्रतियोगिताएं एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

बसन्त पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यत: विद्यारम्भ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसन्त पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसन्त पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्रान करने का विशेष महत्त्व बताया गया है।
रमेश सर्राफ धमोरा

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