कुहू-कुहू कर गाने वाली कोयल
पर्यावरण का संतुलन बहुत जरूरी है। गर्मी में जिस तरह हम लोगों का गला सूखने लगता है और ठण्डा पानी पीने को मन करता है, उसी तरह पक्षी भी प्यास लगने पर पानी की तलाश करते हैं। छोटी-छोटी चिड़ियां तालाबों और गड्ढों में एकत्र पानी पीने जाती हैं तो वहां पानी गर्म मिलता है।
इसके साथ ही ताक में रहने वाले उनके शत्रु भी इसी अवसर पर उनका शिकार कर लेते हैं। इसलिए चिड़ियों को ठण्डा पानी पिलाने के लिए अपने घर के आसपास ही मिट्टी के किसी बर्तन में रोज सबेरे पानी भर दिया करें। इसके साथ ही खाने के लिए कुछ पदार्थ भी डाल दें तो देखेंगे कि वे चिड़ियां आपकी कितनी अच्छी दोस्त बन जाती हैं।
घरों में रहने वाली गौरैया, कबूतर आदि तो दिन भर वहीं दिखाई पड़ेंगे। ये पक्षी हमारे लिए अच्छा वातावरण तैयार करते हैं गर्मी व बरसात के दिनों में सबेरे ही कुहू-कुहू की आवाज कानों में मिश्री घोल देती है। यह आवाज कोयल पक्षी की हंै। यह पक्षी गर्मी का मेहमान हैं और गर्मी के समाप्त होते ही वहां चला जाता है जहां गर्मी पड़ रही होती है।
कोयल घरेलू कौए से मिलता-जुलता पक्षी है। हालांकि दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर होता है। कौआ जहां कांव-कांव की कर्कष आवाज करता है वहीं कोयल सुरीली आवाज में हमें गीत सुनाती है। कोयल का आकार भी कौए से छोटा होता है। इन दोनों की समानता के कारण ही कहा जाता है कि कोयल अपने अण्डे कौए के घोसले में रख देती है और कौआ उन्हें अपना समझकर पालता है।
बच्चे भी दोनों के एक समान होते हैं, लेकिन जब ये बच्चे बड़े होते हैं तब इनकी आवाज से कौआ इन्हें पहचानता है लेकिन अण्डों के प्रति इतना लगाव वह दिखा चुका होता है कि बच्चों को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाता। कोयल की दुम कुछ लम्बी होती है। नर कोयल का रंग चमकीला होता है और चोंच पीलापन लिए हुए हरी होती है। इसकी आंखें गहरी लाल होती हैं। मादा कोयल का रंग भूरे रंग का होता है।
उसके शरीर पर सफेद चित्तियां और धारियां भी पायी जाती हैं। यह पक्षी भारत में सभी जगह पाया जाता है।
कोयल के बारे में बहुत से लोगों को भ्रम होता है कि मादा कोयल ही सुरीली आवाज में कुहू-कुहू करती है लेकिन
पक्षी-विशेषज्ञों के अनुसार नर कोयल पक्षी की आवाज सुरीली होती है। अपनी सुरीली आवाज से वह मादा कोयल को आकर्षित करता है।