न बिगाड़ें बच्चों का भविष्य
पहले का समय अब नहीं रहा। डोली उठाते हुए बेटी को कहा जाता था कि बेटा यहां से तेरी डोली उठ रही है तेरी अर्थी तेरे ससुराल से ही उठेगी।
तब सारे फैसले घर के बड़े ही लेते थे। बच्चे उन्हें अक्षरक्ष पालन करते थे। सीधी सादी जिंदगी होती थी। यदा.कदा झगड़े होते भी थे तो सब मिल बैठकर हल निकाल लेते थे। एक दूसरे का सम्मान होता था।
धीरे – धीरे संयुक्त परिवार टूटते गए। न्युक्लेअर यानी एकांकी परिवारों में घर नहीं सिर्फ मकान रह गए। सब सदस्य अकेले पड़ते गए। आपसी मन मुटाव बढ़ने लगे पर उसका हल कहाँ निकालेंघ्
कहते हैं जो अपने बड़ों की नहीं सुनता उसे काले कोट वाले की सुननी पड़ती है। आज किसी में भी सहनशक्ति नहीं रह गयी है। छोटी – छोटी सी बात मुद्दा बन कोर्ट में पहुँचने लगी है।
गौर करें जिनको आपके रिश्ते तुड़वाने से कमाई हो रही है वह क्यों सुलह का रास्ता बताएंगे।
यदि कभी भगवान न करे, आपने रिश्तों की खटास के कारण तलाक का रास्ता चुना है तो पहले इन विकल्पों पर भी गौर कर लें।
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बात करेंः
यदि आपके साथी और आपने यह अंतिम फैसला ले लिया है कि आप दोनों एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं तो इसके बारे में बच्चों से बात करना बहुत ज़रूरी है। कोशिश करें कि आप दोनों मिलकर बच्चे को समझाएं। एक बात का ख्याल रखें कि अलग आप दोनों हो रहें हैं तो बच्चा यह न सोचें कि वह अपना एक अभिभावक खोने जा रहा है, क्योंकि भय का भाव उसके दिमाग और सोच पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
प्रेमः
अपने बच्चों को इस बात का एहसास दिलाएं कि आपके तलाक से उनको मिलने वाले प्यार में कोई कमी नहीं आएगी। अक्सर तलाक के दौरान बच्चे के मन में यह बात घर कर जाती है कि उसके माता पिता उससे प्यार नहीं करते। यह ख्याल कई बार बच्चे को विकृत विचारधारा की तरफ धकेलना शुरू कर देता है। इसलिए इस नाजुक वक्त पर आप दोनों मिलकर अपने बच्चे को बेशुमार प्यार दें।
निंदा न करेंः
कई माता पिता की यह आदत होती है कि वे अक्सर घर के झगड़ों के दौरान अपना पक्ष मज़बूत करने के लिए अपने साथी की निंदा बच्चों से करते हैं। तलाक के दौरान भी यह होना आम बात है। मगर आप यह न भूलें कि आप जितनी निंदा करते जाएंगे, वो बच्चां के मन में घर करती जायेगी। इसका नतीजा आगे चलकर यह होगा कि बच्चा आपसे दूरी बनाना शुरू कर देगा।
सम्मानः
स्थिति चाहे तलाक से पहले की हो या बाद की, यह बहुत ज़रूरी है कि माता पिता बच्चे के सामने एक दूसरे को सम्मान की दृष्टि से देखें। यदि आप दोनों बच्चे के सामने एक दूसरे की बेईज्जती करेंगे तो इससे बच्चे की नज़रों में भी आप दोनों की छवि प्रभावित होगी। आगे चलकर वह बड़ा होगा तो आप दोनों की इज्जत नहीं करेगा। इसके साथ ही उसके मन में रिश्तों और प्रेम को लेकर भी नकारात्मक विचार पनपेंगे।
जानकारी देंः
यदि आपके बच्चे छोटे हैं तो शायद वे आप दोनों के बीच हुए अलगाव की वज़ह को न समझ पाएं। मगर जब वह समझदार होने लगे तो दोनों उन्हें वज़ह ज़रूर बताएं। यदि आप उन्हें यह जानकारी नहीं देंगे तो वे यहाँ वहाँ से सुनी हुई गलत बातों को ही सच मानकर अपने जीवन में आगे बढ़ेंगे। इससे बेहतर है कि समय रहते आप अपने रिश्ते की सच्चाईयों को अपने बच्चों को बताएं।
विश्वास दिलाएंः
कई बार तलाक के दौरान बच्चों के मन में यह विचार आ जाता है कि उनके माता पिता के बीच हुए अलगाव की वज़ह वे हैं। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप बच्चे को इस बात का विश्वास दिलाएं कि आप दोनों के बीच हुए अलगाव की वजह वे नहीं है। ऐसा करने से बच्चे का आत्मविश्वास बिलकुल भी कमजोर नहीं होगा।
दिनचर्या हो नियमितः
तलाक के दौरान और उसके बाद बच्चे की दिनचर्या में कोई परिवर्तन न लाएं, क्योंकि वह उसे रिश्ते में आये बदलाव को महसूस करवाएगा। यदि बच्चा माँ के पास रह रहा है तो पिता बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारी को उसी रूप में निभाएं जैसे वे तलाक से पहले करते थे। जैसे बच्चे को घुमाने ले जाना, पेरेंट्स मीटिंग में जाना।
समय देंः
तलाक एक ऐसी स्थिति है जिसे एक कपल होने के नाते आप दोनों को स्वीकार करने में समय लगेगा, तो सोचिये ऐसे में बच्चों को कितने समय की जरुरत होगी। कई बार बच्चे इस बात को स्वीकार करने से इंकार करते हैं कि उनके अभिभावक अब साथ नहीं है। ऐसे में उन पर किसी भी तरह का दबाव बनाना गलत है।
खास ख्यालः
अगर चाहें तो अलगाव के बारे में बच्चे की क्लास टीचर या उसके पसंदीदा टीचर से चर्चा कर सकती हैं। इससे टीचर स्कूल में बच्चे का खास ख्याल रखेंगी। अक्सर जो बात माता पिता नहीं समझा पाते वो बात टीचर आसानी से समझा लेती है।
साथ देंः
अलगाव के बाद बच्चे कई बार अकेलापन महसूस करते हैं। कई बार वे माता पिता के सामने नहीं, बल्कि छिपकर रहते हैं। इससे वे कई बार डिप्रेशन का शिकार होने लगते हैं। इसलिए तलाक के दौरान और उसके बाद आप अपने बच्चे का हर कदम पर साथ दें।
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