children superstitious बच्चों को अंधविश्वासी न बनाएं
रमेश घर से खरीदारी के लिए निकल रहा था कि अचानक उसकी पत्नी ने उसे आवाज देते हुए रोका। इस पर रमेश पत्नी पर बरस पड़ा कि घर से किसी काम के लिए निकलते हुए पीछे से रोकना अपशगुन होता है। उसे इस बात का अंधविश्वास था कि अब उसका काम नहीं बनेगा।
उनका बेटा पिंटू यह सब देख रहा था जिससे उसके मन में यह बात बैठ गई। कुछ दिन बाद परीक्षा के लिए घर से जाते समय पिंटू की बहन ने उसे आवाज लगाकर रुकने के लिए कहा और इत्तफाक से उस दिन उसका एग्जाम अच्छा नहीं हुआ। कारण जो भी रहा हो पर इसका इल्जाम वह बहन पर डालने लगा कि उसने टोका, इसलिए वह सफल नहीं हुआ। यह कहां की बुद्धिमानी है? यह कोरा अंधविश्वास है जिसे बच्चे ने अपने परिवार से सीख लिया और उस पर अमल करने लगा।
बेमतलब के बहुत से अंधविश्वास हमारे परिवारों में देखने को मिलते हैं, जिनका कोई आधार नहीं होता। एक अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि लगभग आठ वर्ष तक के बच्चे का दिमाग काफी तेज दौड़ता है। उसे जो बताया जाए, वह बहुत अच्छे से सीखता है। अंधविश्वास जब हद से ज्यादा बढ़ जाए तो काफी खतरनाक सिद्ध होता है।
Children Superstitious बच्चों को तार्किक बनाएं:
- परिवार का माहौल जैसा होगा, बच्चा वैसा ही बनेगा, इसलिए पहले माता-पिता को जागरूक होना बहुत आवश्यक है। अगर बचपन में ही अंधविश्वास के बीज बो दिए गए तो वे बड़े होकर अपने निर्णय ठीक से नहीं ले पाएंगे।
- चीजों को साइंटिफिक तरीके से सोचना सिखाएं ताकि बच्चे बिना आधार के अंधविश्वासों के लिए तर्क करें। जैसे दूध का उबलकर गिरना अपशगुन माना जाता है जो एक अंधविश्वास है। इसका तर्क यह है कि दूध बहुमूल्य वस्तु है और उसके बर्बाद होने से धन का नुकसान होता है।
- व्यस्त जिंदगी के कारण समय के अभाव की वजह से माता-पिता बच्चों को व्यस्त करने के लिए टीवी देखने की तरफ प्रोत्साहित कर देते हैं ताकि वे उन्हें परेशान न करें जिसके चलते अंधविश्वास या डरावने सीरियलों का असर उनकी जिंदगी पर पड़ सकता है। बच्चा जो देखता है उस पर विश्वास करने लगता है, इसलिए टीवी पर वह क्या देख रहा है, माता-पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
- अंधविश्वासों में जकड़े लोग अपनी जिंदगी में बहुत-सी बेड़ियां खुद डालते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी आती है क्योंकि वे अपनी सफलता या असफलता का श्रेय किसी दिन, किसी वस्तु या ऐसी बातों पर डालते हैं जिनका कोई आधार नहीं होता और इसका सही कारण तलाश करने की कोशिश नहीं करते जबकि जो तर्क के आधार पर अपनी जिंदगी के फैसले लेते हैं वे हमेशा आगे बढ़ते हैं और रिलैक्स महसूस करते हैं।