पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत Board Examination
बहन हाकमा देवी इन्सां पत्नी सचखण्डवासी श्री सतपाल अहूजा इन्सां 183, विशाल नगर, पक्खोवाल रोड, लुधियाना(पंजाब)।
सन् 1972 की बात है, उस समय मैं दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। मेरे मायके श्री मुक्तसर साहिब में हैं। जनवरी 1972 में मेरे साथ एक घटना हुई। मैंने परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से सहायता के लिए पुकार की थी। परम पिता जी ने नूरी स्वरूप में प्रत्यक्ष प्रक्ट हो कर मेरी सहायता की और मुझे अपने घर तक सकुशल पहुंचाया था। उसके बाद मैं अपने सतगुरु द्वारा बख्शे नाम का सुमिरन करती रहती और मेरा हर समय ध्यान पूज्य परम पिता जी की याद में लगा रहता। वार्षिक परीक्षा के दौरान गणित का पेपर था।
उस समय भी मेरा ध्यान पूज्य परम पिता जी की याद में लगा हुआ था। जब मैंने सामने देखा तो सुपरडैंट की कुर्सी पर मेरे सतगुरु स्वयं पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज विराजमान हैं। मैं परम पिता जी के लगातार दर्शन कर रही थी व एक टक सतगुरु जी को निहार रही थी। लेडी सुपरडैंट थी, मुझे इस तरह टिकटकी लगा कर देख रही को उसने आकर मेरे चपेड़ मार दी। वह मेरी वाकिफ थी और मेरे घर के हालात को भली प्रकार जानती थी। वह मुझे कहने लगी कि तू इस तरह बिट-बिट क्यों तक्की जानी आँ? मैं कब से तुझे देख रही हूँ, इधर क्या देखती है? समय क्यों खराब कर रही है। पेपर का समय खत्म हो जाएगा। अपना पेपर हल कर।
मैं रोने लग गई। उसने मुझे धमकाते हुए कहा कि तू चुप नहीं होती तो मैं तुझे तीन सालों के लिए पेपरों से निकाल दूँगी। जिस समय उसने मेरे हाथ से पेपर पकड़ कर देखा तो सारे प्रश्न हल किए हुए थे। पूज्य परम पिता जी ने उस समय पता नहीं अपनी कौन सी शक्ति से पेपर करवा लिया था। सभी सहपाठियों से मेरे उस पेपर में अधिक अंक थे। मैंने पूज्य परम पिता जी को पत्र लिख कर हार्दिक धन्यवाद किया तो जवाब में परम पिता जी ने फरमाया, ‘बेटा, तेरा बेड़ा तो पार हो गया है।’ जब अखबार में नतीजा आया तो मेरे रोल नंबर के सामने मेरी फर्सट डिवीजन के अंक लगे हुए थे। पूज्य परम पिता जी के नौजवान स्वरूप पूज्य हजूर िपता डॉ. एमएसजी आप जी की रहमत को
क्यों न मानें। इसी तरह रहमत बनाए रखना जी।