हर ज़र्रा नूर-ए-जलाल से है रोशन

पावन स्मृति विशेष Noor-e-Jalal
याद-ए-मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम जी महाराज
रूहानियत के सच्चे रहबर परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जिनका नूरे-जलाल सृष्टि के कण-कण जर्रे-जर्रे में समाया हुआ है, हर जर्रा जिनके नूरे-जलाल से रौशन है, महक रहा है, खुदा की खुदाई जिनके हुक्म में कार्यशील है। दोनों जहां, पृथ्वी, आकाश, पाताल, दसों-दिशाएं और सारी कायनात जिनके नूरे-जलाल से हरकत में हैं, ऐसे सच्चे रहबर दाता परमपिता शाह सतनाम जी महाराज के गुणगान करना सूर्य को दीपक दिखाने के मानिंद है।

सारी जिन्दगी चाहे कितने जन्म पाकर भी सतगुरु शाह सतनाम जी के गुणगान करने की कोशिश की जाए उस अकथनीय को कोई कथनीय नहीं कर सकता। गुरु-गुणों को वर्णन करना अति असंभव है। ऐसे दाता रहबर अनगिणत गुणों के भण्डार हैं, सतगुरु परमपिता शाह सतनाम जी।

जीवन परिचय

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज श्री जलालआणा साहिब जिला सरसा के रहने वाले थे। आप जी ने परम आदरणीय पिता जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी के घर पूजनीय माता आस कौर जी की पवित्र कोख से 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। बहुत ही ऊंचा व नेक दिल सिद्धू खानदान, धन-सम्पति इत्यादि जहां किसी भी दुनियावी चीज की कमी नहीं थी। हर दुनियावी पदार्थ घर में भरपूर था, कमी थी तो केवल खानदान के वारिस की। इतने बड़े खानदान, जमीन-जायदाद को कोई संभालने वाला भी हो।

जहां 17-18 वर्ष हो गए हों, इतने लम्बे इंतजार में, उदासीनता-निराशता का होना स्वाभाविक था। पूज्य माता-पिता जी ने साधु-संतों की सेवा में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी थी। जब समय आया एक सच्चे फकीर से उनकी भेंट हुई। उनकी सेवा भावना, उनके हृदय की पवित्रता से वो फकीर बाबा बहुत प्रसन्न हुए। फकीर बाबा ने पूज्य माता-पिता जी को दिलासा दिया कि आप की सच्ची तड़प, सच्ची दुआ भगवान को मंजूर हो गई है।

आपके घर आपका वारिस जरूर जन्म लेगा। आपजी के अवतार धारण करने पर उसी फकीर बाबा ने आशीर्वाद स्वरूप पूज्य माता-पिता जी को यह भी कहा कि भाई भगतो! ये कोई आम बच्चा नहीं है, बल्कि रब्बी जोत आपके घर खुद चल के आई है। ये केवल आपके खानदान, परिवार के ही वारिस नहीं, बल्कि जगत-उद्धारक हैं। सृष्टि के उद्धार नमित परमपिता परमात्मा ने इन्हें आपके यहां भेजा है। आपके यहां तो ये चालीस साल तक ही रहेंगे, उसके बाद अपने उद्देश्य, जीवोद्धार के पवित्र परमार्थी कार्य के लिए चले जाएंगे।

वर्णनयोग्य है जैसे शेरनी का दूध सोने के बर्तन में ही ठहर पाता है ठीक उसी तरह मालिक की ऐसी पवित्र हस्तियों को भी परमेश्वर ऐसे परिवारों, ऐसे जन्मदाता के यहां भेजता है जो उसके बहुत ही अजीज होते हैं, जो भजन-बंदगी, भक्ति-इबादत से जुड़े होते हैं। पूजनीय माता-पिता जी के पवित्र संस्कारों ने आपजी के अन्दर ईश्वरीय संस्कारों को और ज्यादा फलने-फूलने का पवित्र वातावरण प्रदान किया। परिणाम स्वरूप आपजी का नूरी बचपन हमदर्दी, दया-रहम, ईश्वरीय भक्ति आदि सद्गुणों से भरपूर था। वहीं जैसे-जैसे आपजी बड़े होते गए, इन पवित्र गुणों का दायरा भी और विशाल होता गया, और बढ़ता गया। अपने इन्हीं ईश्वरीय गुणों के कारण आपजी हर मन को प्यारे थे।

अपने उद्देश्य की प्राप्ति यानि परमपिता परमात्मा को पाने के लिए आप जी ने अनेक साधु-संतों से भेंट की, कई महात्माओं से गोष्टियां की, लेकिन कहीं से भी आप जी को संतुष्टि नहीं हुई। इसी दौरान आपजी ने डेरा सच्चा सौदा तथा पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी के बारे में भी चर्चा सुनी। आप जी जब बेपरवाह जी के सत्संग में पधारे, अंदर की हर चीज शीशे के समान स्पष्ट हो गई। आपजी उसी दिन से ही बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी के मुरीद हो गए। अंदर से हर शंका-भ्रम मिट चुके थे। नाम-दान के रूप में पूज्य बेपरवाह जी ने आपजी का निज-स्वरूप, ईश्वरीय रहमतें दर्शा दी।

आपजी ने अपना तन-मन-धन आदि सब कुछ अपने मुर्शिदे कामिल सार्इं मस्ताना जी महाराज को समर्पित कर दिया। आप जी ने कुल मालिक को अपने मुर्शिदे कामिल के रूप में पा लिया और सार्इं जी ने भी आप जी को अपने वारिस के रूप में पा लिया था।

ईश्वरीय निशानियां

नूरी बचपन में किस-किस तरह से आप जी ने जरूरतमंद लोगों की सहायता की, किसी को भी घर से निराश नहीं लौटने दिया। आप जी की रहमत को पा के हर कोई बागो-बाग हुआ। माता जी, मैं एक-एक फुलका सुबह-शाम कम खा लिया करूंगा, पर ये जो मांगते हैं, इन्हें निराश न करना। दर पे आए हर सवाली की आपजी ने भरपूर मदद की। कोई ईश्वरीय नूर ही ऐसा कह व कर सकता है।

‘रब्ब की पैड़’, ‘आप को रूहानियत का लीडर बनाएंगे जो दुनिया में नाम जपाएगा’ इत्यादि ईश्वरीय वचनों का असल उद्देश्य ही आप जी की ईश्वरीय हस्ती को दुनिया पर प्रकट करना था और पूज्य बेपरवाह जी ने समय आने पर हर चीज स्पष्ट कर दी।

महान त्याग

त्याग का रूहानियत में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है और जहां तक महान-त्याग का सवाल है वो अति महान है। रूहानियत के इतिहास में पूज्य परम पिता जी का त्याग बे-मिसाल मिसाल है। कहना तो आसान है तन-मन-धन भेंट चढ़ा दूं, लेकिन प्रैक्टीकली जो पूज्य परमपिता जी ने कर दिखाया, दुनिया वाले कभी सोच नहीं सकते। जब मकान तोड़ने और घर का सामान आदि सब कुछ उठा लाने का आदेश हुआ, स्वयं अपने हाथों से हवेली को तोड़ा और अपने मुर्शिद के वचनों को पूरा किया। फिर भी कदम-कदम पर कठिन से कठिन परीक्षा।

जो कुछ भी बेपरवाह जी आप जी से कहते, आप जी सत्वचन कहते हुए ठीक उसी तरह करते गए। इस प्रकार पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को हर तरह से अपने योग्य कर लिया था।

बना लिया अपना स्वरूप (उत्तराधिकारी)

पूजनीय मस्ताना जी महाराज ने आपजी को अब तक हर तरह से परिपूर्ण पा लिया था। दिनांक 28 फरवरी 1960 को पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह गद्दीनशीन किया। बेपरवाह जी ने सरेआम संगत में यह भी स्पष्ट कर दिया था कि ‘असीं सरदार- हरबन्स सिंह जी को सतगुरु सतनाम कुल मालिक बना दिया है।’ सार्इं जी ने यह भी फरमाया कि ‘ये रूहानी ताकत प्योंद का नमूना है प्योंद न लगे तो ताकत आती ही नहीं। असीं ता प्योंद ही लगाई है और इन्हें (श्री जलाल आणा साहिब के सरदार सतनाम सिंह जी को) सतगुरु, कुल मालिक बना दिया। मालिक ने इनसे बहुत काम लेना है।’ तेरे परोपकार दाता जो जाएं न गिनाए जी सच्चे रहबर पूज्य परमपिता जी के मानवता, समाज के प्रति अनगिणत परोपकार हैं।

समाज में व्याप्त कुरीतियों व बुराइयों को खत्म कर स्वस्थ समाज की नींव स्वयं पूज्य परमपिता जी ने रखी। विवाह-शादियों और जन्म-मरण पर जो कुरीतियाँ, रूढ़िवादी धारणाएँ, गलत-रस्मो रिवाज, दहेज प्रथा आदि समाज में आम प्रचलित थे, पूज्य परमपिता जी ने उनमें से निकलने का आसान तरीका साध-संगत को बताया। वहीं आपजी ने बिना दान-दहेज के विवाह , शादियों की मर्यादा स्थापित की जो आज भी डेरा सच्चा सौदा में ज्यों-की-त्यों प्रचल्लित है।

‘सच्चा सौदा सुख दा राह,
सब बंधनां तों पा छुटकारा
मिलदा सुख दा साह।’

सीमित परिवार जन-संख्या कंट्रोल करने का नुकता- ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की उक्ति पर चलने के लिए आप जी ने साध-संगत में बेटा-बेटी को एक समान मानने की प्रेरणा दी कि ‘हम दो हमारे दो’ और वक्त और स्थिति के अनरूप पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए नुक्ता ये दिया- ‘हम दो हमारा एक, एक ही काफी। वरना दो के बाद माफी’। बेटा-बेटी में अंतर नहीं करें, उन्हें अच्छे संस्कार दें।

अद्वितीय शख्सियत

परम पूजनीय परमपिता जी एक महान विभूति, अद्वितीय शख्सियत थे। आप जी के रूहानी जलवे, नूरी मुखड़े के दर्श-दीदार पाके हर कोई नत् मस्तक हो जाता था। आप जी खेत में अनथक किसान, पंचायत में प्रधान, बीमारों के लिए वैद्य लुकमान(वैद्य, डाक्टर, सर्जन) दीन-दुखियों के मसीहा, बेसहारों के सहारा, सच्चे हमदर्द, विशेषज्ञ, उस्ताद, रूहानियत के सच्चे रहबर, दया-रहम के पुंज थे। आप जी का समूचा जीवन बचपन से पाक-पवित्र व अलौकिक परोपकारों से भरपूर था।

अति सुन्दर सुडौल व स्वस्थ आकर्षक काया, ऊँचा-लम्बा कद, चौड़ा नूरी ललाट, वात्सल्य भरपूर नूरी-नेत्र, नूरानी सुन्दर मतवाली चाल, ईलाही नूरी जलाल से चमकता चेहरा, सब गम-फिक्ररों को काफूर कर देने वाली आप जी कि अति प्यारी ईलाही मुस्कान आपजी की पवित्र मुखवाणी जो कुटिल कठोर, हृदयों को भी मोम बना देती। जो भी सुनता, ऐसा मंत्र-मुग्ध होकर अपने आप से बेखबर हो जाता। आपजी की पवित्र रसना, अमृतवाणी, इलाही पवित्र नूरी स्वरूप आपजी की हर नूरानी अदा में इतनी जबरदस्त कशिश थी कि लोग कोसों से भंवरों की तरह खिंचे चले आते।

इस प्रकार लाखों लोग आपजी के द्वारा राम-नाम से जुड़कर दीन-दुनिया में मालामाल हुए हैं। देश, विदेश के करोड़ों लोगों के दिलों में आप जी की पवित्र याद समायी हुई है। आपजी ने 18 अप्रैल 1963 से 26 अगस्त 1990 तक इन 27-28 वर्षाें के दौरान जहां पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यू.पी आदि राज्यों में हजारों रूहानी सत्संग लगाए हैं, वहीं 11 लाख से भी ज्यादा नए जीवों को नाम-शब्द, गुरुमंत्र प्रदान करके मांस-अण्डा शराब आदि बुराइयों से उन्हें छुटकारा दिलवाया है और भवसागर से उनका पार उतारा किया।

आपजी ने साध-संगत के लिए जो एक बहुत ही अनमोल दात बख्शी। आपजी ने पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं अपने हाथों से डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गद्दीनशीन किया और इस प्रकार साध-संगत को हर तरह से बेफिक्र कर दिया। 23 सितम्बर 1990 को गुरगद्दी बख्शिश करने के लगभग पन्द्रह महीने बाद तक भी आप जी साध-संगत में मौजूद रहे। आप जी 13 दिसम्बर 1991 को अपना पंच भौतिक शरीर त्याग कर ज्योति-जोत समा गए।

कीते उपकार जेहड़े किवें मैं भुलावां,
गुण तेरे साहिबा दिन रात पेया गावां।
13,14,15 दिसम्बर पूज्य परम पिता जी को समर्पित

डेरा सच्चा सौदा में साध-संगत मौजूदा पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन दिशा-निर्देंशों पर मानवता भलाई कार्याें के प्रति पूरा वर्ष और हर समय सेवा के लिए तत्पर रहती है और विशेष कर दिसम्बर महीना पूरे का पूरा मानवता भलाई के कार्याें को समर्पित है। दिनांक 13, 14, 15 दिसम्बर के ये दिन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में बहुत अहम स्थान रखते हैं।

इस दिन डेरा सच्चा सौदा में याद-ए-मुर्शिद परमपिता शाह सतनाम जी नि:शुल्क आँखों का विशाल कैंप आयोजित करके जरूरतमंद लोगों पर अंधता निवारण का परोपकारी-करम किया जाता है। पूज्य गुरु जी के पावन दिशा निर्देशन में सन् 1992 से 2018 तक 27 ऐसे परोपकारी कैंप आयोजित किए जा चुके हैं, जिनके द्वारा हजारों लोग लाभांवित हुए हैं।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!