जो ज्यादा प्यार करते हैं, वही पहल करते हैं Sachi Shiksha

सरला एक कामकाजी महिला है। दिन भर बाहर एक ट्रैवल एजेंसी के दफ्तर में काम करती है। घर आकर घर के काम में भी उसी तरह मेहनत करती है। पति भी एक अच्छी नौकरी में हैं। दो बच्चे हैं। दोनों की शिक्षा अच्छे स्कूल में हो रही है। घर में एक रिटायर्ड सास हैं जिन्हें पेंशन मिलती है। ऊपरी तौर पर देखें तो यह सुखी-संपन्न परिवार दिखता है। आमतौर पर यह धारणा होती है कि जिसकी आमदनी जितनी, वो उतना सुखी और खुश होता है।

इस लिहाज से सरला का परिवार भी खुश और सुखी परिवारों में गिना जाएगा।
लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? क्या सरला का परिवार खुश है? आइए, इस परिवार को एक अलग नजरिए से देखते हैं। ऊपरी तौर पर खुश और संपन्न दिखने वाले इस परिवार में लोगों को एक दूसरे से काफी नाराजगी दिखती है। नाराजगी की वजह कोई बड़ी बात हो, ऐसा नहीं है। बस एक दूसरे को न समझने और न जानने की शिकायत। यह आज की तारीख में हर एक परिवार की समस्या हो गई है, खासकर जब पूरा परिवार आर्थिक उपार्जन में लगा हो तो ऐसे टकराव परिवार का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन ही जाते हैं।

घर-बाहर का दायित्व निभाना आसान नहीं होता। अगर इसमें संतुलन न हो, किसी एक जगह भी गड़बड़ी हो तो उसका असर उसके व्यक्तित्व पर पड़े बिना नहीं रह सकता। साथ ही कामकाज की थकान भी एक तरह की चिड़चिड़ाहट पैदा करती है। सरला भी कुछ इसी तरह की जिंदगी जी रही है।अब बात करते हैं सास की, वह स्कूल में टीचर रही हैं। रिटायर्ड होकर अब घर में ही बेटे-बहू के साथ ही रहती हैं लेकिन बहू के साथ उनका रिश्ता भी दूसरी सासों की तरह छत्तीस का ही है। मध्यवर्गीय ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण उनकी हसरतें पारंपरिक हैं जिस पर उनकी बहू खरी नहीं उतरती। यही वजह है कि उनका आपसी रिश्ता खटास से भरा रहता है।

आर्थिक दृष्टि से संपन्न और सभी तरह की सुविधाओं से लैस होने के बावजूद इस परिवार में सुख नहीं दिखता है। सास-बहू के रिश्तों की खटास परिवार के दूसरे सदस्यों पर भी पड़े बिना नहीं रहती। इस परिवार में भी यही है। एक तरह का अबूझ तनाव इस परिवार के सदस्यों में साफ दिखता है। प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है? परिवार जैसी संस्थाओं के विकास के लिए काम करने वाली संजना कहती हैं कि अब वक्त बदल चुका है।

इस बात में संदेह नहीं कि आज के वक्त की अलग जरूरतें हैं लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि हमारी असली पूंजी हमारा परिवार ही है। परिवार की खुशहाली ही हमारी प्राथमिकताओं में होनी चाहिए। आप कहेंगे हमारी प्राथमिकता तो पहले से ही परिवार के प्रति है लेकिन मैं कहूंगी प्राथमिकता में रखने का मतलब भी तो हमें समझ में आना चाहिए। हमारी गलत धारणाएं हमें नुकसान देती हैं। ज्यादातर लोगों की मान्यता होती है कि पैसा ही खुशी का आधार है, पैसे से ही खुशी हासिल की जा सकती है। यही गलत धारणा परिवार की खुशियों में सबसे बड़ी बाधक है।

खुशी पैसे से नहीं मिलती, इसका अनुभव आपको भी कई बार हुआ होगा। अगर पैसे से खुशी मिलती तो सरला के परिवार में वो खुशी जरूर दिखती। वो आर्थिक रूप से संपन्न हैं लेकिन खुश नहीं हैं। खुशी एक दूसरे को समझने,जानने और उस अनुसार खुद को ढालने में है, खुद को जानने में है। क्या हम ऐसा कर पाते हैं? हमें यह ध्यान रखना होगा कि परिवार को हैल्दी रखने के लिए हर एक सदस्य को कार्य करने की जरूरत है। ऐसा नहीं कि हमारा यह तकिया कलाम हो जाए कि आपको क्या मालूम कि मैं घर-बाहर क्या झेलता हूं या क्या झेलती हंू? यह बात सही है कि आज के युग की अपनी समस्याएं हैं लेकिन हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि हर हाल में परिवार में तकरार न हो, ऐसी कोशिश करें। परिवार के भीतर का माहौल सुखद तो जग सुंदर लगेगा।

झगड़ा होने वाली बातों से परहेज करें। एक दूसरे के काम का पूरा-पूरा सम्मान करें। एक दूसरे की जरूरत का ध्यान रखा जाए। ऐसा नहीं कि यह सिर्फ पति का काम है या यह सिर्फ पत्नियां ही करती हैं। इसकी रट न लगाए रखें। बच्चों की देखभाल किसी एक पर न हो कर परिवार के हर बड़े सदस्य पर हो। घर में अगर बुजुर्ग हैं तो उनका,उनके पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का पूरा-पूरा सम्मान होना चाहिए। कोई ऐसी बात नहीं हो कि उनके मन को ठेस पहुंचे।

परिवार के उन सदस्यों का सहयोग लें जिससे आपकी खूब बनती है या जो आपकी बातोें को महत्त्व देते हैैंं। उन्हें इस कार्य में सहभागी बनाएं। ऐसा करने में अगर आपको कहीं से भी परेशानी होेती है तो आप किसी अच्छे आध्यात्मिक संस्थान से जुड़ कर सेल्फ डवलपमेंट के कार्यक्रमों से खुद को जोड़ें। हमारे अपने मूल्य समय की हर कसौटी पर खरे उतरने में पूरी तरह से सक्षम हैं। हमारी हर समस्या हर सवाल का जवाब हमारे अध्यात्म में है।

आज के संचार युग में इन संस्थानों की पहुंच टीवी और इंटरनेट के माध्यम से हमारी अंगुलियों में सिमट आई है तो इसमें कहीं से इंकार नहीं किया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि आप पहल करें क्योंकि यह बात सही है कि आप अपने परिवार से ज्यादा प्यार करते हैं। जो ज्यादा प्यार करते हैं, वही तो पहल करते हैं।

सूरज रजक

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