शादी में फिजूलखर्ची के बदले धन बेटी के नाम करें Instead of spending lavishly on marriage, donate money to your daughter
नीरू शादी के वर्ष भर बाद पीहर आई है। माता-पिता ने उसकी शादी बड़े खर्चे व धूमधाम से की थी लेकिन नई-नवेली नीरू का उदास चेहरा देखने से यह प्रतीत हो रहा है कि वह शादी के बाद से खुश नहीं है। कारण यह कि उसके पति का कमाने का जरिया स्पष्ट नहीं है।
donate money to your daughter पति व नीरू के पास धन भी नहीं जो खुद के लिए रोजगार में लगा सकें। नीरू के पिताजी के पास भी अब धन नहीं बचा है जो बेटी के वक्त पर काम आ सके। उन्होंने तो शादी व वर-विदाई में ही काफी पैसा खर्च कर दिया है। बहरहाल उसे पति के हालातों के साथ ही समझौता करना पड़ रहा है। ऐसा नीरू जैसी कितनी ही बेटियों के साथ हो जाता है। नीरू के पिताजी बताते हैं- ’काश! मुझे उसके पति की स्थिति का ज्ञान होता
तो मैं शादी में फिजूलखर्ची के बजाय उस पैसे को नीरू के पति के किसी व्यवसाय के लिए अथवा भविष्यनिधि के रूप में उपहार दे देता।’ सुजीता जो अपने पिता की स्थिति से भली-भांति वाकिफ थी,
उसने खुद ही पिता को अनावश्यक खर्च से मना कर अपने भावी पति अनिल पांडे को समझदारी से विश्वास में लेकर आर्य समाज में पवित्र फेरे के लिए मना लिया। यूं भी अग्नि के पवित्र फेरे ही संस्कारशील विवाह का मूल हैं। इसके अलावा सारे रस्मो-रिवाज खुशी के इजहार का तरीका हैं और कुछ आडंबर भी।
सुजीता के पिता ने उसके लिए जमा पैसों को फिक्स डिपोजिट में डाल दिया। युवती की अपने नाम पर जमा राशि एक हद तक आर्थिक सुरक्षा तो देती है, साथ ही जरूरत पड़ने पर उसके काम भी आती है, क्योंकि माता-पिता बार-बार रूपए-पैसे तो दे नहीं सकते। सच देखा जाए तो शादी-ब्याह में दिखावे और आडंबरों का कोई औचित्य नहीं। यंू ही आजकल झूठी प्रतिष्ठा आतिशबाजी, फूलों की सजावट, लाइटिंग, मंच सज्जा, रिसेप्शन व भोजन पर लाखों रूपए खर्च कर दिए जाते हैं। वास्तव में, इन तमाम फिजूलखर्चियों के बदले वही पैसा बेटी के नाम जमा कर दिया जाए तो भला बेटी हेतु इससे बेहतर उपहार और क्या हो सकता है।
हैरतअंगेज तथ्य यह है कि इन फिजूलखर्ची करने वालों में समाज के बड़े-बड़े अग्रणी लोग ही रहते हैं। अत: ब्याह के इन अपव्ययों से बचकर बेटी का बाप चाहे तो दूसरी दिशा में सोच सकता है। अपनी जमाराशि को विवेकपूर्ण प्रयोग कर सकता है। बैंकों, सरकारी व निजी अनेक योजनाओं में निवेश कर सकता है। हो सकता है बेटी व उसका पति स्वरोजगार करना चाहते हों। यूं भी बहुतेरे युवक-युवतियां टेक्नॉलॉजी की बड़ी-बड़ी तालिम हासिल करने के बावजूद पैसे के अभाव में हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हैं। ऐसी परिस्थिति में पत्नी का सहयोग ही उन्हें प्रेरित करता है। -विष्णुदेव मंडल