Asia Champion Captain of Indian Volleyball Team | Amit Insan

इंटरव्यू: एशिया चैंपियन भारतीय वॉलीबॉल टीम के कैप्टन अमित इन्सां से विशेष बातचीत
‘कभी चलने में भी सांस फूलता था, आज उसके अटैक से विरोधी भी सहम जाते हैं’ Asia Champion Captain of Indian Volleyball Team | Amit Insan

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पूज्य गुरू जी के एक टिप्स ने मुझे इस मुकाम तक पहुंचा दिया

बचपन में सांस की तकलीफ से जूझ रहे एक होनहार को पूज्य गुरू संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने एक बहुमूल्य टिप्स देकर उसके जीवन को इस कदर बदल दिया कि वह आज विश्व पटल पर विख्यात हो चुका है। जी हां, जिक्र हो रहा है भारतीय वॉलीबॉल टीम के कप्तान अमित इन्सां का। हाल ही में काठमांडू में हुए 13 वें दक्षिण एशियाई खेलों में अमित इन्सां के नेतृत्व में भारतीय टीम ने वॉलीबाल चैंपियनशिप जीत कर दुनियाभर के देशों को अपने इरादों से अवगत करवा दिया है।

स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम का स्वदेश में लौटने पर भव्य स्वागत किया गया। सिरसा में भी जिला उपायुक्त अशोक कुमार गर्ग ने खिलाड़ी अमित इन्सां का गर्मजोशी से स्वागत किया। पेश है भारतीय वालीबॉल टीम के कप्तान अमित इन्सां से बातचीत के कुछ खास अंश:-

प्रश्न: दक्षिण एशियाई खेलों में भारत को चैंपियन बनाने को आप किस नजर से देखते हैं?

उत्तर: हमारी पूरी टीम इसके लिए बधाई की पात्र है। क्योंकि मैदान में खड़ा हर खिलाड़ी जब पूरा सहयोग देता है तभी जीत की दहलीज को पार किया जा सकता है। भारत को चैंपियन बनाने में टीम वर्क अहम रहा।

प्रश्न: इस टूर्नामेंट में सबसे रोचक मैच कौन सा रहा?

उत्तर: हमारा फाइनल मुकाबला पाकिस्तान के साथ हुआ। मैच का पहला सैट जीतकर पाकिस्तानी टीम ने बढ़त बना ली थी, लेकिन हमने अगले दो सैट लगातार जीत कर मुकाबले को बड़ा रोचक बना दिया था। दोनों टीमों में चौथे सैट के दौरान जबरदस्त फाइट चली, हमने आखिर मैदान जीत लिया। सेमीफाइनल में हमने श्रीलंका की मजबूत टीम को शिकस्त दी थी।

प्रश्न: मैदान में आप किस प्वाइंट को बेहद महत्वपूर्ण मानते हो और खुद कहां खेलना पसंद करते हो?

उत्तर: मैच के दौरान वैसे तो मैदान का हर प्वाइंट ही महत्वपूर्ण है। मैच में ब्लॉकर के साथ अटैकर की भूमिका अहम होती है। मैं अटैकर के तौर पर खेलना पसंद करता हूं। मेरी हाइट इसमें मददगार साबित होती है, जिससे पूरे प्रैसर से अटैक करने का अवसर मिलता है। 195 सैंटीमीटर (6 फुट 5 इंच) हाइट की वजह से ही मैं जूनियर टीम का खिलाड़ी होने के बावजूद सीनियर टीम में प्रफोर्म कर रहा हूं।

प्रश्न: चैंपियन बनने के बाद सबसे गौरव के पल क्या थे?

उत्तर: जब भी किसी चैम्पियनशिप का समापन अवसर पर अवार्ड सेरेमनी होती है तो विजेता टीम के देश का झंडा ऊपर की ओर जाता है तथा नेशनल एंथम बजता है। जब भारत का राष्टÑीय ध्वज सबसे ऊपर हवा में लहराया तो दिल को बड़ा सुकून मिला। उस पल दिल में बेहद खुशी हुई कि उन्होंने भी आज देश के लिए कुछ किया है।

प्रश्न: एशियाई खेल में बेहतर प्रदर्शन के बाद आगे क्या लक्ष्य है?

उत्तर: मेरा सपना है कि मैं खेल में देश के लिए कुछ ऐसा करूं जो भारत की शान पूरी दुनिया में बढ़े। एशियन में तिरंगा फहराने के बाद अब ओलंपिक में भारतीय टीम को क्वालीफाइ करना मुख्य लक्ष्य है। इसके लिए दिल्ली में कैंप शुरू हो रहा है, जिसमें सभी खिलाड़ी पूरी मेहनत से तैयारी करेंगे।

प्रश्न: वालीबाल के किस खिलाड़ी को खेलते देखना ज्यादा पसंद करते हो और आपका पसंदीदा खिलाड़ी कौन है?

उत्तर: मैं इटली के विख्यात वालीबाल खिलाड़ी इवानजायत्से को जब भी खेलता देखता हूं तो बहुत अच्छा लगता है। उनसे खेल की बहुत सी बारीकियां भी सीखने का मिलती हैं। वैसे सबसे तेजतर्रार अंतर्राष्टÑीय फुटबॉलर खिलाड़ी रोनाल्डो हैं। उनका खेल बड़ा रोचक लगता है।

प्रश्न: वालीबाल में आपकी विशेष उपलब्धि क्या है?

उत्तर: मैं अब स्कूल लेवल पर 5 स्वर्ण पदक, 9 रजत सहित 25 पदक जीत चुका हूं। वहीं नेशनल स्तर पर 4 स्वर्ण, 3 रजत सहित कुल 13 पदक जीते हैं। वहीं इंटरनेशनल स्तर पर एक स्वर्ण, एक सिल्वर और एक कांस्य पदक सहित कुल 6 पदक जीत चुका हूं।

प्रश्न: क्या कभी प्रो-लीग टूर्नामेंट में खेलने का अवसर भी मिला है?

उत्तर: हां, पिछले वर्ष से शुरू हुई प्रो-वालीबाल में खेलने का अवसर पर मिला। यह वर्ष में एक बार होती है। मैं हैदराबाद टीम की ओर से खेला था जिसके लिए मुझे 5.30 लाख का पैकेज दिया गया था।

प्रश्न: परिवार किस व्यवसाय से जुड़ा है और कैसे प्रोत्साहित करता है?

उत्तर: मेरे पिता आर्मी से रिटायर्ड आफिसर हैं। इन दिनों वे खेतीबाड़ी करते हैं। झज्जर जिले के गांव दरियापुर में रह रहा मेरा परिवार मुझे हमेशा खेल के लिए उत्साहित करता रहता है। परिवार में माता-पिता सहित दो बहनें हैं।

प्रश्न: इस खेल से जुड़ाव कहां से शुरू हुआ और क्यों?

उत्तर: मैंने वर्ष 2005 में शाह सतनाम जी बॉयज स्कूल की द्वितीय कक्षा में प्रवेश लिया था। उस समय मेरा मकसद केवल शिक्षा प्राप्ति तक ही सीमित था। लेकिन यहां हर वर्ष लगने वाले खेल कैंपों को देखकर मेरे अंदर भी खेल की रूचि पैदा हुई। इसी दरमियान कोच दान सिंह ने मेरी कद को देखकर मुझे वालीबॉल खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। दिलचस्प बात यह भी है कि आज तक मेरे परिवार से किसी भी सदस्य का खेल से जुड़ाव नहीं रहा।

प्रश्न: खेल में इस उपलब्धि का श्रेय किसे देना चाहेंगे?

उत्तर: डेरा सच्चा सौदा के शिक्षण संस्थान में खेल, शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्म का भी ज्ञान दिया जाता है। यह आध्यात्मिक ज्ञान मेरे लिए एक नई स्फूर्ति बनकर आया। आज मैं खेल के जिस मुकाम पर पहुंचा हूं, उसमें पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का अहम योगदान रहा है। समय-समय पर उन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया। खेल को निखारने में कोच दान सिंह, अमित बुल्ला व परिजनों का भी बहुत सहयोग रहा है।

प्रश्न: जीवन से जुड़ी कोई विशेष वाक्या, जिसे आप सांझा करना चाहते हों?

उत्तर: मुझे बचपन में सांस की तकलीफ रहती थी। उन दिनों में बच्चों के साथ खेलना भी मुझे बड़ा मुश्किल सा लगता था। जब मैं डेरा सच्चा सौदा के शिक्षण संस्थान में आया तो एक बार पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से मिलने का अवसर मिला। मैंने जब अपनी बीमारी के बारे में बताया तो पूज्य गुरू जी ने मुझे नियमित प्राणायाम आसन करने के बारे में बताया। वहीं उन्हीं दिनों में मैं वॉलीबाल भी खेलने लगा था। पूज्य गुरू जी के बताए अनुसार मैंने नियमित प्राणायाम करना शुरू कर दिया।

धीरे-धीरे मेरी सांस की बीमारी स्वयंत:

ही ठीक होती चली गई और खेल में भी निखार आता गया। जीवन में इतना बड़ा बदलाव मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था, जो पूज्य गुरू जी के बताए एक टिप्स से आया है।

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