मनोरंजन व आमदन का स्त्रोत है संगीत | Music is the source of entertainment
संगीत का बोलबाला पुरातन काल से रहा है। संगीत का जादू आज भी सिर चढ़कर बोलता है और धुनों पर कब शरीर में थिरकन की शुरूआत हो जाती है, इसका आभास तक नहीं हो पाता। महज मनोरंजन करने मात्र तक संगीत की अहमियत नहीं होती है। इसके अलावा मन की शांति और कई बार तो रोगियों के इलाज तक में संगीत का प्रयोग किया जाता है। संगीत को महज शौक मानने वालों की कमी नहीं है।
लेकिन विश्व के तेजी से बदलते परिदृश्य में संगीत एक महत्वपूर्ण प्रोफेशन का रूप धारण कर चुका है। खासतौर से युवाओं में इसका क्रेज आए दिन तेजी से बढ़ता जा रहा है।
संगीत को अपना करियर बनाने की इच्छा रखने वाले युवाओं के लिए महज संगीत में रुचि रखना ही काफी नहीं है। इसके अलावा उन्हें सृजनात्मक प्रतिभा का धनी, धुन का पक्का, मेहनती, संगीत की समझ, वाद्ययंत्रों का ज्ञानी आदि गुणों से भरा-पूरा होना भी जरूरी है।
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कैसे बनें संगीत में पारंगत
संगीत को मनुष्य की सबसे बेहतरीन खोजों में से एक माना जा सकता है। संगीत के जरिए न सिर्फ इमोशन, बल्कि अपनी भावनाओं को भी बखूबी जाहिर किया जा सकता है, लेकिन वास्तव में इस क्षेत्र में पारंगत होना कोई आसान काम नहीं है। वैसे प्रतिभा, सच्ची लगन और कठिन मेहनत की बदौलत इस क्षेत्र में कामयाबी हासिल की जा सकती है। आप नियमित रियाज के साथ-साथ ट्रेनिंग या फिर किसी अच्छे इंस्टीटयूट में दाखिला लेकर भी इस फील्ड में करियर का बेहतर आगाज कर सकते हैं।
संगीत से जुड़े कोर्सेज
इसके लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों तक में उपलब्ध हैं। कोर्सेज ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन के अतिरिक्त सर्टिफिकेट डिप्लोमा एवं पार्ट टाइम प्रकार के हो सकते हैं। विश्वविद्यालयों से लेकर संगीत अकादमियों तक में इस प्रकार के ट्रेनिंग कोर्सेज स्कूली बच्चों और युवाओं के लिए उपलब्ध हैं। बारहवीं के बाद संगीत से जुड़े कोर्सेज में एडमिशन लिया जा सकता है। उम्मीदवार चाहें तो सर्टिफिकेट कोर्स, बैचलर कोर्स, डिप्लोमा कोर्स और पोस्ट ग्रेजुएट लेवॅल के कोर्स कर सकते हैं। आमतौर पर सर्टिफिकेट कोर्स की अवधि एक वर्ष, बैचलर डिग्री कोर्स की तीन वर्ष और पोस्ट ग्रेजुएट लेवॅल कोर्स की अवधि दो वर्ष की होती है।
दसवीं के बाद संगीत का कोर्स
- संगीत में सर्टिफिकेट
- संगीत में डिप्लोमा
- वाद्ययंत्र में सर्टिफिकेट
बारहवीं के बाद संगीत का कोर्स
- संगीत में ग्रेजुएशन ( बी.म्यूजिक)
- संगीत में बीए
- संगीत में बीए (आॅनर्स)
ग्रेजुएशन के बाद संगीत का कोर्स
- संगीत में एमए (एम.म्यूजिक)
- संगीत में एमए
- संगीत में एमफिल
मास्टर डिग्री के बाद संगीत का कोर्स
- संगीत में पीएचडी
- संगीत के क्षेत्र में करियर की संभावनाएं
- देश-विदेश में युवाओं में संगीत से जुड़े बैंड बनाने और परफॉर्म करने का ट्रेंड जोर पकड़ता जा रहा है। इस प्रकार के बैंडस में वोकल आर्टिस्ट (गायक) और इंस्टूमैंट्रल आर्टिस्ट (वाद्ययंत्र कलाकार) दोनों का ही समन्वयन देखने को मिलता है। स्कूलों, कॉलेजों और अन्य छोटे लेवल पर तो इस प्रकार के अनेक बैंडस आज मार्केट में आ गए हैं।
सामान्यत:
लोग ऐसा मानते हैं कि संगीत को करियर का आधार बनाने पर टेक्नीकल क्षेत्र में ज्यादा कुछ करने की संभावनाएं बिलकुल सीमित हो जाती हैं, लेकिन वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है। अगर वास्तविकता के धरातल पर देखा जाए तो आधुनिक संदर्भ में स्थितियां बिल्कुल अलग है और संगीत के क्षेत्र में कई नए विकल्प उभरकर सामने आ चुके हैं। उन विकल्पों में से कुछ है –
स्टेज परफार्मेंस:
म्यूजिक शो, टेलीविजन म्यूजिक प्रोग्राम, म्यूजिक कंपीटिशन आर्म्ड फोर्सेज बैंडज, सिंफनी आर्केस्ट्रा, डांस बैंड, नाइटक्लब, कंसर्ट शो, रॉक और जैज ग्रुप इत्यादि में संगीत के जानकारों की बहुत अधिक मांग होती है।
म्यूजिक इंडस्ट्री: इस इंडस्ट्री में कई प्रकार के संगीत में पारंगत लोगों की अहम भूमिका होती है, इनमें विशेष तौर पर म्यूजिक सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर, कंपोजर, म्यूजिशियन, जैसे पदों के अलावा म्यूजिक बुक्स की पब्लिशिंग, म्यूजिक अलबम रिकार्डिंग म्यूजिक डीलर, म्यूजिक स्टूडियो के विभिन्न विभागों इत्यादि के अंतर्गत काम किया जा सकता है।
टेलीविजन:
ध्वनि रिकार्डिस्ट, म्यूजिक एडिटर, प्रोडक्शन, आर जे एवं डीजे म्यूजिक लाइसेंस में संगीत के जानकार और अनुभवी लोगों की जरूरत हमेशा पड़ती है।
संगीत थेरेपिस्ट:
विकलांगता के शिकार बच्चों और लोगों के अलावा मानसिक तनाव से ग्रस्त व्यक्तियों के उपचार में भी आजकल संगीत का प्रयोग किया जाने लगा है। तनाव दूर करने में तो संगीत एक अहम भूमिका निभाता है।
इस प्रोफेशन में सफल होने के लिए संगीत और थेरेपी का कुशल जानकार होना अति आवश्यक है। इनके लिए हॉस्पीटलों, मेंटल टैम्थ सेंटरों, नर्सिंग होम्स इत्यादि में रोजगार के भरपूर अवसर हैं।
स्टूडियो ट्रेनिंग:
संगीत शिक्षक के रूप में स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संगीत प्रशिक्षण संस्थाओं में करियर बनाने के बारे में भी सोचा जा सकता है। इनमें इन संस्थाओं में संगीत में विशेषता प्राप्त शिक्षकों का बहुत अधिक महत्व होता है। इस विषय के स्पेशलाइजेशन में विशेष रूप से म्यूजिक थियरी, म्यूजिक हिस्ट्री एंड लिट्रेचर, म्यूजिक एजुकेशन, म्यूजिकोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक, कंपोजिशन अथवा म्यूजिक थेरेपी आदि शामिल हैं।
इन सबके अतिरिक्त फिल्म इंडस्ट्री, चर्च म्यूजिशियन म्यूजिक लाइब्रेरियन, म्यूजिक अरेंजिंग, म्यूजिक सॉफ्टवेयर, प्रोडेक्शन म्यूजिक, वर्चुअल रिअल्टी साउंड एंवायरनमेंट इत्यादि जैसी विधाओं में भी अपना करियर बनाया जा सकता है।
संगीत की दुनिया में टीचिंग, सिंगिंग, म्यूजिशियन, रिकॉर्डिग, कंसर्ट, परफॉर्मर, लाइव शो, डिस जॉकी, वीडियो जॉकी और रेडियो जॉकी के रूप में भी करियर की शुरूआत किया जा सकता है। क्लासिकल, फॉक, गजल, पॉप, फ्यूजन आदि के क्षेत्र में भी अवसरों की भरमार है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं, जो संगीत से जुड़ी प्रतिभा को नई बुलंदियों तक पहुंचा सकते हैं।
कॉपीराइटर, रिकॉर्डिग टेक्नीशियन, इंस्ट्रूमेंट मैन्युफैक्चरिंग, म्यूजिक थेरेपी, प्रोडक्शन, प्रमोशन आदि क्षेत्र में भी बेहतरीन अवसर उपलब्ध हैं। अगर जॉब की बात की जाय तो एफएम चैनल्स, म्यूजिक कंपनी, प्रोडक्शन हाउस, म्यूजिक रिसर्च आॅर्गनाइजेशन, एजुकेशनल इंस्टीटयूट, गवर्नमेंट कल्चरल डिपार्टमेंट, म्यूजिक चैनल आदि में जॉब के लिए कोशिश किया जा सकता है।
संगीत की शिक्षा देने वाले कुछ प्रमुख कॉलेज या संस्थान:
- भारतीय कला केंद्र, दिल्ली
- दिल्ली यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
- अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय, मुम्बई
- पटना यूनिवर्सिटी
- भातखंडे म्यूजिक स्कूल, नई दिल्ली
- बाबासाहेब भीमराव अंबेदकर यूनिवर्सिटी, बिहार
- बनारस यूनिवर्सिटी, यूपी
- इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, मध्यप्रदेश
- अजमेर म्यूजिक कॉलेज, अजमेर
- बनस्थली विद्यापीठ, बनस्थली, राजस्थान
संगीत के क्षेत्र में मिलने वाली सैलरी
संगीत एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सैलरी का कोई तयशुदा पैमाना नहीं होता है। यदि आप अच्छे परफॉर्मर और संगीतज्ञ हैं, तो करोड़पति बनने में ज्यादा देर नहीं लगती है। वैसे इस क्षेत्र में आरजे, वीजे, रेडियो जॉकी के रूप में करियर की शुरूआत करके शुरूआती दौर में करीब 15 हजार रुपये प्रति माह सैलॅरी मिल सकती है। सिंगर, म्यूजिक कम्पोजर की आय उसकी योग्यता और प्रोजेक्ट पर निर्भर करती है। प्ले बैक सिंगर या अलबम के लिए कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर काम कर अच्छी कमाई की जा सकती है।
संगीत जगत से जुड़े कुछ अन्य तथ्य
आॅनलाइन मार्केटिंग के बढ़ते प्रचलन की वजह से संगीत जगत में बहुत विकास देखने को मिल रहा है। संगीत की आॅनलाइन मार्केटिंग से वितरण की लागत में लगभग 20 प्रतिशत की कमी आती है। इस वजह से भविष्य में इसकी उम्मीदें बढ़ी हैं।
एक अनुमान के अनुसार भारतीय संगीत उद्योग का वार्षिक कारोबार लगभग एक हजार करोड़ रुपए के बराबर है।
संगीत उद्योग के कारोबार में लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय फिल्मों के संगीत की, लगभग 21 प्रतिशत पुराने फिल्मी गीतों की, 10 प्रतिशत भक्ति गीतों की तथा क्षेत्रीय फिल्मों के गीतों की 7 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
डिजिटल संगीत के प्रति युवाओं का बढ़ता आकर्षण संगीत जगत के कारोबार को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है।
आज के परिदृश्य में संगीत से सम्बन्धित जुड़े कुछ पहलुओं के विषय में भी जानने की आवश्यकता है. जैसे कि यदि कोई व्यक्ति शास्त्रीय संगीत में कुछ करना चाहता है तो उसे हर हाल में अपने आप को किसी संगीत घराने से जोड़कर ही संगीत सीखना होगा आदि तथा यदि कोई कॉलेज या स्कूल में संगीत का शिक्षक बनना चाहता है तो उसे इसके लिए कहीं न कहीं से डिग्री हासिल करना ही होगा आदि।
ऐसे क्षेत्रों की परिस्थिति वश अलग अलग डिमांड होती है और उस डिमांड के अनुरूप लोग कार्य करते हैं। जैसे वोकल म्यूजिक की कुछ और डिमांड होती है जबकि शास्त्रीय संगीत की कुछ और। इसलिए इसे किसी विशेष परिधि में बांधना सही नहीं है क्योंकि यह एक क्रिएटिव फील्ड है और क्रिएटिविटी की कोई निश्चित परिधि नहीं होती है। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि इस विधा में रियाज का बहुत अधिक महत्व होता है।
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