Mustard Crop

25 डिग्री तापमान सहने की क्षमता रखती है सरसों की फसल -भारत वर्ष में क्षेत्रफल की दृष्टि से 69 मिलियन हेक्टेयर तथा उत्पादन 7.2 मिलियन टन है। सरसों की खेती प्रमुखता से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम, पंजाब में की जाती है। सरसों के बीज में तेल की मात्रा 30-48 प्रतिशत तक पाई जाती है, वहीं इसको मसालों में प्रयोग किया जाता है।

भारत में सरसों की खेती शरद ऋतु में की जाती है। इस फसल के अच्छे उत्पादन के लिए 18 से 25 डिग्री ताप की आवश्यकता होती है, सरसों की फसल में फूल अवस्था में यदि अधिक वर्षा हो या फिर आसमां में बादल छाए रहते हैं तो यह इस फसल के प्रति असहनशील है। ऐसे मौसम में फसल पर चेपा कीट का अधिक प्रकोप होता है। ऐसी ही कई अन्य बीमारियां भी इस फसल पर समयानुसार आक्रमण करती हैं, जिनका समय रहते उपचार आवश्यक है।

गौरतलब है कि सरसों की फसल किसानों में बेहद लोकप्रिय है, क्योंकि इसमें कम सिंचाई एवं कम लागत से दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ होता है। भारत वर्ष में क्षेत्रफल की दृष्टि से सरसों लगभग 69 मिलियन हेक्टेयर में उगाई जाती है तथा इसका उत्पादन 7.2 मिलियन टन है। सरसों की खेती प्रमुखता से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम, पंजाब में की जाती है। सरसों के बीज में तेल की मात्रा 30-48 प्रतिशत तक पाई जाती है, वहीं इसको मसालों में भी प्रयोग किया जाता है, एवं तेल का उपयोग खाद्य तेल के रूप में किया जाता है। यही नहीं, साबुन, ग्रीस, फल एवं सब्जियों के परीक्षण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

सफेद रतुआ या श्वेत कीट रोग

जब तापमान 10-18 डिग्री के आसपास रहता है, तब सरसों के पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के फफोले बनते है रोग की उग्रता बढ़ने के साथ-साथ आपस मे मिलकर अनियमित आकार के दिखाई देते है। पत्ती के ऊपर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है। रोग की अधिकता में कभी-कभी रोग फूल एवं फल्ली पर केकडेÞ के समान फूला हुआ भी दिखाई देता है।

नियंत्रण :-

  • नियमित मात्रा में सिंचाई करे।
  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर रिडोमिल (एम.जेड 72 डब्ल्यू.पी.) अथवा मेनकोजेब 1250 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल में प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

सरसों का झुलसा या काला धब्बा रोग:-

पत्तियों पर गोल भूरे धब्बे दिखाई पड़ते हैं। फिर ये धब्बे आपस में मिलकर पत्ती को झुलसा देते है तथा धब्बों में केन्द्रीय छल्ले दिखाई देते है। रोग के बढ़ने पर गहरे भूरे धब्बे तने, शाखाओं एवं पत्तियों पर फैल जाते है। फल्लियों पर धब्बे गोल तथा तने पर लम्बे होते हैं। रोग ग्रसित फल्लियों में दाने सिकुड़े तथा बदरंग हो जाते हैं।

नियंत्रण :-

  • रोग आरंभ होने की दशा में मेनकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से पानी में घोलकर 2-3 बार 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।

सरसों का तना सड़न पोलियो रोग:-

इस रोग के लक्षण पत्ती के निचले भाग में मटमेले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। ये फसल या फूल के बाद ही पनपता है। प्राय: यह धब्बे रूई जैसे सफेद जाल से ढके होते है। रोग की अधिकता में पौधे मुरझाकर या टूटकर नीचे की ओर लटक जाते हंै।

नियंत्रण:-

  • संतुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करें।
  • कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम दवा से बीज उपचारित करें।
  • बीमारी के लक्षण दिखाई दे तब 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा का प्रति लीटर के दर से 10 दिन के अंतराल में छिड़काव करें।

कीट प्रबंधन :- सरसों का झुलसा या काला धब्बा रोग

मस्टर्ड एफीड (सरसों का चेपा):

सामान्यता सरसों का चेपा दिसम्बर में आता है एवं जनवरी-फरवरी में इसका प्रकोप ज्यादा दिखाई देता है। चेपा सामान्यता उसकी विभिन्न अवस्था जैसे नवजात एवं व्यस्क पौधों के विभिन्न भागों से मधुस्त्राव निकालते हैं जिससे काले कवक का आक्रमण होता है और उपज कम होती है।

नियंत्रण –

  • फसल की बुवाई अगेती में करनी चाहिये।
  • प्रभावित शाखाओं को 2-3 बार तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए जिससे चेपा को रोका जा सकता है।
  • नीम की खली का 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।
  • कीट का अधिक प्रकोप होने की अवस्था में आॅक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

मस्टर्ड सा-लाई (सरसों की आरा मक्खी):

सामान्यता सरसों पर मक्खी का प्रकोप सुबह और संध्याकालीन ज्यादा होता है, ये मक्खी सरसों की पत्तियों के आसपास वाली संरचना पर आक्रमण करती है, तथा बीच के समय मक्खी मृदा में ठहरी रहती है। इसके प्यूपा मृदा में दिखाई देते है।
– डॉ. जे.एस. मिश्रा, खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर, एमपी।

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