homemaker not housewife -sachi shiksha hindi

अब घरेलू महिला नहीं, होममेकर कहिए

अधिकतर लोगों का नजरिया, कामकाजी महिलाओं की तुलना में घरेलू महिलाओं को हीन समझना होता है। घर की जिम्मेदारियों के प्रति पूर्ण समर्पित रहने के बावजूद नौकरी करती महिलाओं जितना, सम्मान व इज्जत नहीं मिलती घरेलू महिलाओं को। आखिर यह पक्षपातपूर्ण रवैय्या क्यों?

माना कि नौकरीपेशा औरतें आय में योगदान देती हैं किंतु घर की औरतें भी तो घर के प्रति कम योगदान नहीं देती। घर का पूरा दारोमदार उन्हीं पर रहता है। चूंकि वे घरेलू कार्य ही करती हैं, अत: अवैतनिक काम करने वालों को अनुपयोगी समझा जाता है।

Control home expenses - Home Managementआमतौर पर यह भी देखा जाता है कि घरेलू महिलाएं छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिये दूसरे सदस्यों के सामने हाथ फैलाती हैं यानी दूसरों पर निर्भर रहती हैं, जबकि कामकाजी महिलाएं पैसों के मामले में स्वयं पर निर्भर होती हैं, अत: घरेलू महिलाएं उपेक्षा एवं तिरस्कार की भागीदार बन जाती हैं जबकि कमाऊ स्त्रियों को प्यार एवं सम्मान मिलता है।
घरेलू महिलाओं को ‘घर बैठी है’ बोलना उचित नहीं है। घर में क्या काम नहीं होते? सुबह से शाम तक गृहस्थी के कार्यों से जूझती हैं, अनेक घरेलू पचड़ों का सामना करती हैं। किन किन शारीरिक, मानसिक परिस्थितियों से पाला पड़ता है, इसे एक घरेलू औरत के सिवाय भला कौन जान सकता है।

किसी कारणवश पति महोदय को घर के काम एक दिन भी करने पड़ जायें तो पसीने छूट जायेंगे। खाना बनाना, झाड़ू-बर्तन, कपड़े, बच्चों की देखभाल के साथ अन्य सामान लाने बाजार जाना, गृहस्थी के कार्य करना जैसे दाल चावल साफ करना, अन्य चीजों की सही तरीके से देख-रेख करना, ये सब करना पति के बस की बात नहीं।

अत: यह कहना उचित होगा कि घरेलू महिलाएं भी अपने पैरों पर खड़ी हैं। वे स्वयं पर निर्भर नहीं होती वरन अन्य सदस्य उन पर निर्भर होते हैं। उसके बिना घर की कल्पना निरर्थक है। उसके अभाव में परिवार का हर सदस्य अपने आपको पंगु समझने लगेगा। ऐसे में वह आय का स्रोत न बढ़ा घर को सुख-शांति, प्रेम, स्रेह की छाया से आच्छादित करती हैं, सेवाभाव से सभी के मन को प्रफुल्लित कर मोह लेती हैं जो पैसों से कहीं बढ़ कर है। ऐसी घरेलू महिलाओं को आत्मनिर्भर समझना ठीक होगा।

यहां पर घरेलू महिलाओं का सुघड़, गृहिणी होना आवश्यक है जो अपने बच्चों को सही शिक्षा, संस्कार दे सकें, सास-ससुर की तीमारदारी मां बाप की सेवा जितना ही करें, घर में ही अचार-पापड़, बड़ी, जैम इत्यादि बना कर बाजार का खर्च कम करें, घर में ही सुधार सिलाई-कढ़ाई-बुनाई कर अपनी प्रतिभा को उजागर करें, मितव्ययी हों न कि घर के सदस्यों के प्रति कठोर व्यवहार करें, तीखे बोल द्वारा सास-ससुर को झिड़की दें, पति को हमेशा उनसे अलग रहने को कहें, कीमती समय अपने मेकअप, करने, सैर-सपाटे में बिता दें, बच्चों को उपेक्षित छोड़ दें, ऐसा करने से वह सम्मान, इज्जत, प्रेम, स्रेह की डोरी में कभी बंध नहीं सकती जबकि दूसरी ओर सुघड़ गृहिणी अपनी सुघड़ता से सहज ही घर-परिवार के साथ साथ मुहल्ले, आस-पास एवं समाज में भी प्रतिष्ठा पा सकेगी।

आसमान को छूती महंगाई एवं भौतिक विलासिता के सामान जुटाने आधुनिकता की होड़ में शामिल हो आज नौकरीपेशा औरतों की संख्या काफी बढ़ी है, फिर भी घरेलू महिलाएं अवैतनिक कार्य द्वारा बच्चों का सर्वांगीण विकास करती हैं, उनके उज्जवल भविष्य की निर्माता होती हैं। वे डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर, सैनिक, शिक्षक इत्यादि बनाने में परोक्ष रूप से समाज एवं देश को अपना अमूल्य योगदान देती हैं। तभी तो आज की घरेलू महिला को हाउसवाइफ न कहकर ‘होममेकर’ कहा जाता है। -सुमित्रा यादव

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