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अब किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं रहेगी -सत्संगियों के अनुभव

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत

प्रेमी गोबिंद इन्सां पुत्र श्री राजेश इन्सां गांव ढाणी गोपाल, तहसील भूना, जिला फतेहाबाद (हरियाणा)। प्रेमी जी अपने पर हुई पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत का वर्णन करते हुए बताते हैं:

अप्रैल 2025 की बात है। मेरी उम्र उस समय करीब 18 वर्ष थी। मैं राजस्थान के सीकर में मैडिकल की तैयारी करने के लिए गया हुआ था। वहाँ पर मैं पहले बिल्कुल ठीक रहा, किंतु कुछ समय बाद बीमार रहने लगा। एक दिन मेरे कमरे के बाहर फर्श पर पानी गिरा हुआ था, किंतु मैं इससे अनजान था। मैं जैसे ही बाहर निकला तो मेरा पैर फिसल गया और गिर गया। इसके एक सप्ताह के बाद मेरी कमर में दर्द होना शुरु हो गया। ईलाज के लिए मैं भूना आ गया। यहाँ मैंने डॉक्टर्स को दिखाया, पर किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

फिर मैंने फतेहाबाद में दिखाया, लेकिन वहाँ भी मुझे राहत नहीं मिली। इसके बाद हिसार में डॉ. पंकज इलाहाबादी के पास गया तो उन्होंने एम.आर.आई. करवाने को कहा। लेकिन इस टेस्ट में भी कुछ नहीं आया। इसके उपरांत मैं सीकर चला गया और वहाँ एक डॉक्टर को चैक करवाया तो उनको भी कुछ समझ नहीं आया और कमर का दर्द लगातार बढ़ता रहा, तो इस प्रकार दर्द से तंग होकर मैं वापिस भूना आ गया और यहाँ डॉक्टर अमित शर्मा से चैकअप करवाया।

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उन्होंने एक्सरे के लिए बोला। एक्सरे देखकर डॉक्टर ने बताया कि तुम्हारे कुल्हे की हड्डी टूट चुकी है और रीढ़ की हड्डी में भी कुछ दिक्कत है। डॉ. शर्मा ने जो दवाई बताई, वह मैं लगातार कई दिनों तक खाता रहा, लेकिन तकलीफ फिर भी कम नहीं हुई। तकलीफ इतनी बढ़ चुकी थी कि चलना-फिरना और बैठना भी मुश्किल हो गया था और ना ही सीधा लेट पा रहा था। जिस कारण मैं छाती व पेट के बल ही लेटता था।

18 जुलाई 2025 का वो सौभाग्यशाली दिन आया जब मेरे पापा मेरे इलाज के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में गए। उसके बाद उन्होंने मेरे लिए लंगर घर से बीमारों को दिया जाने वाला प्रशाद ले लिया। घर आकर मुझे वह प्रशाद दे दिया और मैंने ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा बोलकर व नाम का सुमिरन करते हुए वह प्रशाद खा लिया। उसी रात करीब आधी रात को पूज्य हजूर पिता जी ने सपने में मुझे दर्शन दिए। मैं एक अस्पताल में भर्ती था। पूज्य पिता जी डॉक्टर वाली ड्रैस पहने हुए थे। पूज्य पिता जी ने मेरे सिर पर अपना पवित्र हाथ रखा। इसके बाद अपने साथ लाए बर्फी के डिब्बे में से एक पीस में से आधा पीस प्रशाद के रूप में मेरे मुंह में स्वयं ही डाल दिया।

सर्वसामर्थ दातार जी ने मुझे मुखातिब करते हुए फरमाया, ‘बेटा! अब तुझे किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं रहेगी।’ यह वचन फरमा कर पूज्य पिता जी वहाँ से चले गए। अचानक मेरा पेट दुखने लगा तथा इससे मेरी आँख भी खुल गई। दर्द से मुझे दस्त लग गए जिससे मेरा पेट साफ हो गया। पेट साफ होते ही मुझे आभास हो गया कि मैं जैसे बिल्कुल ठीक हो गया हूँ। न मेरी कमर में दर्द था और न ही मेरे पैरों या टांगों में कहीं दर्द था। मैं एकदम आरामदायक स्थिति में आ चुका था। जो पैर या टांगें मैं मोड़ नहीं सकता था, मैं अब पालथी मार कर बैठ गया। मैंने देखा कि मुझे अब कोई तकलीफ नहीं थी।

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मैंने अपने सतगुरु पूज्य पिता जी का लाख-लाख शुक्राना किया। करीब पचास दिन से मैं उस बीमारी से परेशान था तथा दवाइयां खा-खाकर तंग भी आ चुका था और मुझे ईलाज की उम्मीद तक नहीं थी, परंतु सतगुरु जी की एक झलक ने मेरे सभी कष्टों को दूर कर दिया। अब मैं बिलकुल ठीक हूँ। उस दिन के बाद किसी दवाई की जरूरत ही नहीं पड़ी। मेरी पूज्य पिता जी के पवित्र चरणों में यही अरदास है कि हमारे सारे परिवार पर हमेशा रहमत बनाए रखना जी। हमारा सारा परिवार आप जी के हुक्म में पूरी दृढ़ता से सेवा व सुमिरन करता रहे और हमारी प्रीत आखिरी श्वास तक ओड़ निभ जाए जी।