वृद्ध व्यक्तियों की सबसे बड़ी समस्या होती है उपेक्षा और अकेलेपन की पीड़ा। कई घरों में बुजुर्गों के लिए सुविधाओं की कमी नहीं होती लेकिन घर के लोगों के पास समय का अभाव रहता है अत: वे बुजुर्गों के लिए समय बिलकुल नहीं निकाल पाते। एक वृद्ध व्यक्ति सबसे बात करना चाहता है।
वह अपनी बात कहना चाहता है, अपने अनुभव बताना चाहता है। वह आसपास की घटनाओं के बारे में जानना भी चाहता है। हमारे पास समय नहीं है या समय कम है तो भी कोई बात नहीं। हम अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करके उन्हें प्रसन्न रख सकते हैं व अपने कार्य करने के तरीके में थोड़ा-सा बदलाव करके उनके लिए कुछ समय भी निकाल सकते हैं। घर के बड़े-बुजुर्ग जब भी कोई बात कहें, उनकी बात की उपेक्षा करने की बजाय उसे ध्यानपूवक सुनें और उत्तर दें।
कई बुजुर्गों को सिर्फ अपनी बात कहनी होती है। वे उसी में संतुष्ट हो जाते हैं। उन्हें चुप करवाने की बजाय उनकी बात सुन लें। जब हम अपने छोटे बच्चों की किसी बात का जवाब बार-बार दे सकते हैं तो बड़े-बुजुर्गों की बात का जवाब देते समय क्यों झुंझला जाते हैं? याद कीजिए वो दिन जब आप बच्चे थे और आपकी हर सही-गलत इच्छा को पूरा करने का प्रयास किया जाता था।
बच्चों के लिए अपने माता-पिता के त्याग को याद रखना अनिवार्य है क्योंकि आखिर सभी को इस अवस्था से गुजरना होता है। यदि हम अपने बच्चों के सामने अपने वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा करेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे साथ भी यही दोहराया जाएगा क्योंकि बच्चे हमारे आचरण से ही तो सीखते हैं। यदि ऐसा नहीं होता है तो भी हमारा दायित्व है बुजुर्गों की अच्छी प्रकार से देखभाल करना व उनका सम्मान करना।
यदि आप अत्यधिक व्यस्त हैं और आपके पास सचमुच उनकी बात सुनने का समय नहीं है तो कम से कम ऐसा अभिनय अवश्य करें जिससे उन्हें लगे कि उनकी उपेक्षा न करके उनकी बात सुनी जा रही है। उन्हें विश्वास दिलाएँ कि घर में उनका सबसे अधिक महत्त्व है। वे इसी से प्रसन्न हो जाएँगे। उनके स्वास्थ्य और जरूरतों के बारे में पूछते रहें। घर में कोई भी कार्य करने से पहले उनकी सलाह ले ली जाए अथवा कार्य उनके हाथ से प्रारंभ करवा लिया जाए तो उन्हें लगेगा कि घर में आज भी उनका महत्त्व और सम्मान है। संभव है कोई अच्छी सलाह भी मिल जाए।
प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती? हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ ऐसे कार्य जरूर करता है जो प्रशंसा के योग्य होते हैं। अपने घर के बुजुर्गों के ऐसे कार्यों की चर्चा करते हुए उनकी प्रशंसा करेंगे तो उनको बहुत अच्छा लगेगा। यह असंभव है कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए कुछ न कुछ त्याग न किया हो।
कई बार हमें लग सकता है कि घर के बुजुर्गों की आवश्यकताएँ निरर्थक हैैं, क्योंकि हम उस अवस्था में नहीं होते हैं, अत: उनकी आवश्यकताओं को नजरअंदाज करना उचित नहीं। घर के बुजुर्गों की आवश्यकताओं को महत्त्व व प्राथमिकता देना अनिवार्य है। जब भी बाजर वगरा जाएँ, उनसे अवश्य पूछ कर जाएँ कि उन्हें कुछ मँगवाना तो नहीं है। उनकी जरूरत से कुछ यादा ही उनके लिए लेकर आएँ।
कम से कम ऐसी चीज तो पर्याप्त मात्रा में लाई ही जा सकती हैं जो उनके द्वारा प्रयोग न किए जाने पर घर के दूसरे सदस्य प्रयोग में ला सकें। कपड़े, खाद्य पदार्थ, स्वास्थ्यवर्द्धक चीज अथवा सामान्य दवाएँ जो उनके लिए उपयोगी हो सकती हैं विशेष रूप से उनको लाकर दें। यह हमारा कर्तव्य भी है और बड़े बुजुर्गों की प्रसन्नता के लिए अनिवार्य भी है। जिन घरों में किसी चीज की कमी नहीं होती लेकिन बुजुर्गों की जरूरतों को नजÞरअंदाजÞ कर उनकी उपेक्षा की जाती है, उन घरों में रहने वाले लोगों को इंसान ही नहीं कहा जा सकता।
जब भी किसी रिश्तेदारी वगरा में किसी पारिवारिक समारोह अथवा आयोजन आदि में जाना हो तो घर के बुजुर्गों को भी साथ ले जाएँ। वे न भी जाना चाहें तो भी हर बार उनसे जाने के बारे में पूछें जरूर। वहाँ से लौटने पर प्राप्त उपहार अथवा मिष्ठान्न आदि उन्हें दिखलाएँगे व कार्यक्रम के विषय में उन्हें बताएँगे तो उन्हें बहुत प्रसन्नता होगी।
यदि वे यात्र आदि करने में सक्षम हैं तो कुछ ऐसे कार्यक्रम जरूर बनाएँ जहाँ बुजुर्गों को साथ ले जाना संभव हो। घर में कोई भी मेहमान आए, उसको घर के बुजुर्गों से जरूर मिलवाएँ। उन्हें उनके कमरे तक लेकर जाएँ। कोई नया मेहमान है तो उसका परिचय दें। उन्हें अंत तक यह लगना चाहिए कि यह मेरा परिवार है और मैं इसका प्रमुख हूँ।
यदि बुजुर्गों में परिवार के प्रति आत्मीयता की भावना बनी रहेगी तो वो अपने अंत समय तक परिवार के लिए कुछ भी त्याग करने को तत्पर रहेंगे। वास्तव में बुजुर्गों का सम्मान करना भी हमारे ही हित में तो है। घर के बुजुर्गों का अकेलापन दूर करने के लिए कुछ घरेलू काम ऐसे होते हैं जो उनके पास बैठ कर, उनसे बतियाते हुए किए जा सकते हैं।
आपको लगता है कि घर में ऐसे कोई काम नहीं हैं जो उनके पास बैठ कर किए जा सकते हैं तो कुछ ऐसे काम खोज डालिए। मसलन आप सब्जियाँ काट रहे हैं अथवा सिलाई-कढ़ाई कर रहे हैं तो अपना सामान लेकर या तो उनके पास चले जाइए या उनको अपने पास बुलाकर बिठा लीजिए। काम भी हो जाएगा और बातचीत से घर के बड़े-बुजुर्गों का अकेलापन भी कुछ हद तक अवश्य दूर हो जाएगा।
अख़बार पढ़ रहे हैं, कपड़े तह करके रख रहे हैं अथवा कपड़ों पर प्रेस कर रहे हैं तो भी घर के बड़े-बूढ़ों के पास जाकर या उन्हें पास लाकर यह काम किया जा सकता है। घर में बहुत छोटे बच्चे हैं तो उन्हें घर के बुजुर्गों के पास ले जाकर उनका काम करें। छोटे बच्चों को घर के बुजुर्गों के पास खेलने के लिए प्रेरित करें।
इससे बुजुर्गों का भी मन लगा रहेगा और वो छोटे बच्चों को जरूरी जानकारी देने के साथ-साथ उन्हें नैतिकता का पाठ भी पढ़ाते रहेंगे। जिन घरों में बुजुर्गों का उचित सम्मान नहीं होता अथवा बुजुर्गों व छोटे बच्चों के बीच दूरी बनाकर रखी जाती है उन घरों में अगली पीढ़ियाँ कभी भी पूर्णत: उन्मुक्तहृदय, सामाजिक व सुसंस्कृत नहीं हो सकतीं अत: हर हाल में बुजुर्गों का सम्मान व उनकी उचित देखभाल अनिवार्य है।
– सीताराम गुप्ता