सतगुरु आए चोला धार जी… MSG संत-सतगुर का धरा पर प्रकट होना एक युग प्रवर्तक करिश्मा होता है, जिसका इतिहास युगों-युगों तक अमिट रहता है। वो काल खण्ड जिसमें संत-सतगुर अवतार धारण करते हैं, उसकी वो घड़ी या साल ही नहीं, बल्कि पूरी की पूरी सदी ही अमर हो जाती है। ऐसा प्रताप होता है संत-अवतारों के इस लोक मेें आने का। बेशक वो आम मनुष्यों की तरह ही विचरते हैं और आम लोग उन्हें अपनी तरह ही देखते हैं, लेकिन वास्तव में वो अपार शक्ति के पुंज होते हैं जिसका पता दुनिया को एक समय पर चल जाता है। उनका मकसद रूहों का उद्धार करना होता है।
वो अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए मनुष्य का चोला धार कर आते हैं, ताकि मनुष्य को उनकी भांति ही समझाया जा सके, क्योंकि आमजन को पता ही नहीं मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और यहां किसलिए आया हूं? संत-सतगुर ही बंदे को बताते हैं कि तू मालिक का स्वरूप हैं। अपने देश को अपने मालिक को भूल कर दर-दर की ठोकरें क्यों खा रहा है? वो हमें जगाने आते हैं, समझाने आते हैं। इसे हम एक उदाहरण के साथ समझ सकते हैं।
एक समय की बात है, शेर का एक बच्चा किसी भेड़-बकरियां चराने वाले को मिल गया। बच्चा तो शेर का था, परंतु भेड़-बकरियों में रहने लगा। इस तरह अपनी हस्ती व अपना सब कुछ भूल-भुलाकर वह भी अपने आपको भेड़-बकरियों की संतान व भेड़-बकरियों को ही अपने बहन-भाई, अपने साथी मान बैठा था। वह भेड़-बकरियों की तरह घास-फूस चरता, उनका ही वह दूध पीता और उन्हीं की तरह ही जगह-जगह घूमता, झाड़ियों में मुंह मारता। एक दिन जंगल में जहां भेड़-बकरियां चर रही थी, वहां एक शेर आ गया।
शेर अपनी अंश (शेर के उस बच्चे) को भेड़-बकरियों में चरता देखकर बड़ा हैरान हुआ। मौका पाकर वह उसके (शेर के बच्चे के) पास गया और सच्चाई समझाने की कोशिश की कि तू तो शेर का बच्चा (हमारी अंश) है और इनके साथ क्यों फिर रहा है? ये (भेड़-बकरियां) तो हमारा खाना (भोजन) है। पहले तो वह नहीं माना, क्योंकि वह उनका ही दूध पीता था, कि नहीं, ये ही मेरे बहन-भाई हैं। मैं इनकी ही अंश हूं। शेर उसे पास ही एक नदी पर ले गया और कहा कि पानी में देख, तेरी और मेरी शक्ल एक जैसी है या नहीं? शेर के बच्चे ने कहा कि शक्ल तो अपनी एक जैसी ही है। शेर ने फिर कहा कि जैसे मैं गर्जता (दहाड़ता) हूं, तू भी वैसी आवाज निकालना। शेर दहाड़ा और फिर बच्चे ने भी उसी तरह दहाड़ लगाई। शेर की दहाड़ सुनकर भेड़-बकरियां भाग गई और वह चरवाहा भी भाग गया और शेर का बच्चा अपनी कुल में मिल गया। वह शेर के साथ जंगलों में चला गया।
बात यही समझने वाली है! शेर और शेर के बच्चे की तरह हम मनुष्य भी अपने नूरी स्वरूप को भूलकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अनंत काल इन्हीं जूनियां को भुगतने में गुजर जाते हैं। फिर संत-सतगुर हम दुखियारों पर तरस करके इस धरा पर आते हैं और हमें अपने निज-देश, परमपिता परमात्मा के बारे में बताते हैं। शेर के बच्चे की तरह जो उनके वचनों को मान गया, उसे जन्म-मरण से निजात मिल जाती है। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां इस धरा पर अवतार धार कर आए हैं।
पूज्य गुरु जी के अनथक प्रयासों सदका आज 7 करोड़ से भी अधिक श्रद्धालु अनन्य भक्त बन चुके हैं और यह कारवां दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। बुराई के इस युग में जहां काल ने अपने मक्कड़जाल बिछा करके जीवों को बुरी तरह फंसा रखा है, वहीं पूज्य गुरु जी लोगों को बुराइयों से निकालकर उन्हें अच्छाई, भलाई की ओर लगा रहे हैं। पूरी दुनिया पूज्य गुरु जी के इन अकथनीय प्रयासों को नतमस्तक है। आज करोड़ों श्रद्धालु अपने महान सतगुर के प्यार के दीवाने हैं। पूरी दुनिया में पूज्य गुरु जी के अथाह प्यार का समंदर बह रहा है। अपने सतगुर के पावन अवतार दिवस को हर कोई खुशियों के साथ मना रहा है। परम पावन अवतार दिवस की गाथा हर कोई गा रहा, सुना रहा है।
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पावन जीवन परिचय
पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी इलाके के बहुत बड़े जमींदार व हरमन प्यारे नम्बरदार थे। घर में बरकतों के भंडार थे। किसी भी चीज की कमी नहीं थी, परंतु संतान प्राप्ति की इच्छा उन्हें हर समय कचोटती रहती थी कि इतने बड़े खानदान का एक वारिस तो होना चाहिए। विवाह को 18 वर्ष व्यतीत हो रहे थे। यह गम उन्हें हर समय सताय रहता। पूजनीय बापू जी का गांव के एक प्रसिद्ध संत बाबा त्रिवेणी दास जी के साथ बहुत प्रेम-प्यार, बहुत श्रद्धा व अच्छा मेल-मिलाप था। वो संत जी बहुत करनी वाले, धर्म-कर्म व परमपिता परमात्मा में पूर्ण विश्वास रखने वाले थे।
पूजनीय बापू जी जब भी कभी बहुत ज्यादा उदास हो जाते तो वो संत जी उनका धैर्य बंधाते कि नम्बरदार जी, आप उदास क्यों होते हो! आप के घर कोई आम बच्चा नहीं, बल्कि परमपिता परमेश्वर खुद अवतार लेगा। आपके घर खुद ईश्वरीय ताकत जन्म लेगी। इस प्रकार पूजनीय माता-पिता जी की सच्ची तड़प, सच्ची भक्ति, सेवा व सच्ची लगन और संत-बाबा की दुआ से खुद परमेश्वर स्वरूप पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने पूजनीय पिता नम्बरदार मग्घर सिंह जी के घर अति पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां की पवित्र कोख से 15 अगस्त 1967 को इकलौती संतान के रुप में अवतार धारण किया। आप जी गांव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ जिला श्री गंगानगर (राजस्थान) के रहने वाले हैं।
आप जी सिद्धू वंश के एक बहुत ही लैंड-लॉर्ड परिवार से संबंध रखते हैं। पूजनीय माता-पिता जी को कुल मालिक के रूप में प्राप्त हुई पुत्र रत्न की अनमोल सौगात पर बधाई देते हुए संत-बाबा त्रिवेणी दास जी ने पूजनीय बापू जी से कहा कि भाई भगतो! आपके घर ऐसा-वैसा बच्चा नहीं, खुद परमेश्वर का नूर प्रकट हुआ है। ये आपके पास 23 साल की उम्र तक ही रहेंगे और उसके बाद ये अपने कार्यों, मानवता व समाज भलाई आदि जीवोद्धार के पवित्र कार्यों में लग जाएंगे, जिसके लिए परमेश्वर ने इन्हें भेजा है। धन्य भाग्य हैं आपके कि परमेश्वर ने अपना नूर प्रकट करने के लिए आपके घर को ही चुना है।
आपजी की महानता को सिद्ध करती अनेकों दिलचस्प घटनाएं आपजी के जन्म के साथ जुड़ी हुई हैं, उनमें कुछ-एक घटनाएं निम्न अनुसार वर्णन योग्य हैं:-
नूरी बचपन की अद्भुत रब्बी निशानियां
पूजनीय बापू जी आपजी को बहुत ज्यादा प्यार किया करते, और हर समय आपजी को अपनी आंखों के सामने रखते थे। आप जी ने पूजनीय बापू जी को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर अपना नूरानी रूप दिखाकर उनके विश्वास को और भी सुदृढ़ किया। पूजनीय बापू जी जब भी खेत जाते या जब भी कभी गांव में पंचायत में जाते तो आपने लाडले को अपने कंधों पर बिठा कर ले जाते। एक बार पूजनीय बापू जी आपजी को कंधों पर बिठा कर जब खेत की तरफ जा रहे थे तो अचानक आपजी ने एक खेत की तरफ उंगली करके कहा, उम्र तब करीब चार-कु वर्ष की रही होगी, ‘बापू जी, यहां पहले अपने खलिहान हुआ करते थे।’ पूजनीय बापूजी अपने नन्हें लाडले बेटे के बालमुख से यह सब सुनकर आश्चर्यचकित रह गए।
वाकई उस खेत में पहले साझा खलिहान जरूर था, लेकिन वह तो पूज्य गुरु जी के जन्म से भी काफी समय पहले की बात थी। पूजनीय बापू जी ने अपने लाडले को बहुत लाड़ व श्रद्धापूर्वक निहारा और उन्हें संत-बाबा द्वारा कही गई यह बात कि ‘ये परमेश्वर स्वरूप हैं, खुद परमेश्वर ने आपके घर अवतार धारण किया है।’ की प्रत्यक्ष सच्चाई को निहारकर पूजनीय बापू जी का पवित्र हृदय प्यार व सत्कार से भर गया। पूजनीय बापू जी आपजी को बचपन से ही ईश्वर के प्रत्यक्ष स्वरूप में निहारते थे।
चनों की रिकार्ड तोड़ पैदावार हुई
पूजनीय बापू जी अपनी कुछ जमीन हर साल ठेके पर दिया करते थे। वो ठेकेदार भाई पूजनीय बापू जी से अगले साल के ठेके के लिए बात कर रहे थे। बात करने से पहले ही आपजी ने अपने पूजनीय बापू जी से कहा, उम्र वही करीब 4-5 वर्ष की, कि इस जमीन पर इस साल अपने खुद काश्त करेंगे। वो ठेकेदार भाइयों ने पूजनीय बापू जी से अनुनय, विनय, विनती की कि आप जमीन नहीं दोगे तो हम खाएंगे क्या?
हम तो भूखे मर जाएंगे। तो आपजी ने उनकी मनोदशा कोे देखते हुए दूसरी साईड वाली जमीन की तरफ उंगली कर दी। पूजनीय बापू जी ने भी उन्हें कहा कि काका ठीक कहता है कि आप उधर वाली जमीन ले लो। पूजनीय बापू जी ने उस वर्ष उस जमीन पर चनों की बुआई करवाई। समयानुसार खूब बारिश हुई, जमाना अच्छा लगा और वहां से चनों की भरपूर पैदावार हुई, भंडार भर गए। पूजनीय बापू जी का विश्वास और सत्कार आपजी के प्रति और दृढ़ हो गया कि संत-बाबा ने हमारे लाडले के प्रति जो भविष्यवाणी की थी, जो कुछ भी कहा था, सौ प्रतिशत सही है।
डिग्गी का पहला टक तो नम्बरदार के काके से ही लगवाएंगे
एक बार गांव में वर्षा के पानी को संभालने के लिए एक बड़ी डिग्गी बनाने का पंचायत से मता पास हुआ। उन दिनों पीने का पानी दूर से लाना पड़ता था। पूरे गांव के इस शुभ साझे काम के लिए गांव के कुछ मुखिया लोगों ने समस्त गांववासियों की राय के अनुसार संत-बाबा त्रिवेणी दास जी से उनका आशीर्वाद लेने और डिग्गी का मुहूर्त करवाने के लिए विनती की। पूरे गांव की इस एकमत राय अर्थात् डिग्गी बनाने के इस विचार से बहुत खुश हुए। उन्होंने जहां डिग्गी खुदाई का मुहूर्त, तिथि, वार, शुभ समय बताया, वहीं ये भी कहा कि ‘डिग्गी खुदाई का शुभारंभ नम्बरदार के काके (बेटे) के हाथों से पहला टक लगवाकर करेंगे।’
वैसे तो संत-बाबा की इस बात से सभी लोग सहमत थे, सबकी सौ प्रतिशत सहमति थी, हो सकता है कि 2-4 व्यक्तियों ने शायद अपने मते अनुसार कहा हो कि वह काका (पूज्य गुरु जी) तो अभी बहुत नन्हा बालक है, 3-4 साल का बच्चा कस्सी, फावड़ा कैसे उठा पाएगा! लेकिन संत-बाबा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि ‘पहला टक तो आपां नम्बरदार के बेटे से ही लगवाएंगे।’ संत-बाबा के मार्गदर्शन में डिग्गी खुदाई आदि का इतना बड़ा कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हुआ। सभी गांववासियों ने अपनी इच्छानुसार इस शुभ कार्य में यथायोग्य सहयोग किया। गांव में खुशी का माहौल था। प्रचलित प्रथा के अनुसार सभी गांववासियों के सहयोग से मीठे चावलों का यज्ञ किया गया। मीठे चावल सारे गांव में बांटे गए, सभी को खिलाए गए।
डिग्गी का कार्य मुकम्मल हो चुका था। संत-बाबा ने गांववासियों से कहा, वचन किए कि ‘इस डिग्गी का पानी कभी खत्म नहीं होगा, चाहे कितना भी उपयोग होता रहे, क्योंकि इसका मुहुर्त अपने एक ऐसे महापुरुष, ऐसी रब्बी हस्ती से करवाया है, जिसकी महानता का पता समय आने पर सबको मालूम पड़ेगा।’ गांववालों के अनुसार, कि डिग्गी का पानी सचमुच ही कभी खत्म नहीं हुआ था, हालांकि आस-पड़ोस के गांव वाले भी यहां से पानी भर कर ले जाते रहे थे।
कर्मठता की जीवंत मिसाल
पूज्य गुरु की कर्मठता पर नजरसानी करें तो पता चलता है कि अपनी कर्मठता की मिसाल पूज्य गुरु जी स्वयं आप ही हैं। यह बात तो हम पहले ही बता चुके हैं कि पूज्य गुरु जी का जन्म बहुत बड़े लैंडलॉर्ड परिवार में हुआ है। आपजी ने 7-8 वर्ष की आयु में ही अपने पूजनीय बापू जी के इतने बड़े जमींदारा कार्य को पूर्ण तौर पर और बहुत ही समझदारी से स्वयं संभाला हुआ था। आपजी लगभग इसी आयुवर्ग में ट्रैक्टर भी चलाने लग गए थे। हालांकि इसके लिए आपजी को किसी से कोई ट्रैनिंग वगैरह लेने की जरूरत नहीं पड़ी थी। ट्रैक्टर भी लगभग सबसे पहले पूजनीय बापू जी के घर में ही आया था। हालांकि पूज्य गुरु जी के पांव कल्च-ब्रेक तक भी नहीं पहुंच पाते थे, मानो ट्रैक्टर अपने-आप ही दौड़ा चला आ रहा है, ऐसा गांववासी बताते हैं, क्योंकि पूज्य गुरु जी उस टैÑैक्टर की सीट पर बैठे नज़र नहीं आते थे।
आपजी ने अपनी जमीनों पर बहुत सख्त परिश्रम किया। न रात देखी न दिन, न मई-जून की तपिश और न वर्षा-अंधेरी की कभी परवाह की। राजस्थान के इस एरिया में जब से नहर आई, नहरी पानी आया, तो जहां पहले केवल 20 एकड़ में ही पानी जमीन में लगता था, आपजी के सख्त परिश्रम से अपनी पूरी की पूरी जमीन में नहर का पानी लगने लगा है, यानि सारी जमीन नहरी जमीन बन गई है। जो पहले ज्यादातर बरानी जमीन थी। गांववासी यह भी मानते हैं कि पूज्य गुरु जी ने जब से पूजनीय बापू जी के कृषि-कार्यों को अपने हाथ में लिया था, फसल भी दोगुनी-चौगुनी और आमदन भी दोगुनी-चौगुनी होती है, क्योंकि खेतीबाड़ी के सारे काम के साथ-साथ आढ़तियों का हिसाब-किताब भी पूज्य गुरु जी स्वयं किया करते, चाहे पूज्य बापू जी के कितने ही सीरी-सांझी, नौकर आदि थे, लेकिन फसलों की बीज-बिजाई व देख-रेख आदि सभी कार्य पूज्य गुरु जी स्वयं ही किया करते। खेती के साथ ही पढ़ाई-लिखाई व खेल टूर्नामेंट आदि सभी तरह की गतिविधियों में भाग लेना भी होता था।
इसी तरह यहां सरसा दरबार में भी हर तरह का कृषि कार्य आपजी स्वयं करते हैं। यहां बात पूज्य गुरु जी की कर्मठता की हो रही है। आपजी के सख्त परिश्रम व प्रेरणाओं से ही डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम शाह मस्ताना जी धाम सरसा की रेतिली-टिब्बों वाली ज़मीनों में, जहां गर्मियों में तापमान 47-48 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है, लेकिन कौन सा ऐसा फल, सब्जियां या अन्य फसलें हैं जो पूज्य गुरु जी ने अपने सख्त परिश्रम से न उगाए हों। यहां तक कि ठंडे प्रदेशों में होने वाले सेब जैसे फल और अखरोट, बादाम जैसे मेवे (ड्राईफ्रूट) भी पूज्य गुरु ने खुद की मेहनत से यहां की ज़मीनों में उगाए हैं। एक ही समय में और एक ही जगह पर तरह-तरह के फल, और तेरह-तेरह सब्जियों की पैदावार इकट्ठी लेना किसी अजूबे से कम नहीं है। तो यह कहा जा सकता है कि पूज्य गुरु जी कर्मठता की जीवित मिसाल आप खुद ही हैं।
रब्ब ने रब्बी जोत को अपने पास बैठाया-नाम-गुरुमंत्र दिया
पूज्य गुरु जी बचपन में ही राम-नाम से जुड़ गए। आप जी ने 5-6 वर्ष की आयु में यानि 25 मार्च 1973 को पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से अपने पूजनीय बापू जी के साथ नाम (गुरुमंत्र) प्राप्त किया। उस दिन नाम-दान का कार्यक्रम शाह मस्ताना शाह सतनाम जी धाम के तेरावास व सचखंड हाल के बीच वाले पंडाल में रखा गया था। उस दिन नामाभिलाषी जीव भी काफी संख्या में आए हुए थे। आपजी अपने पूजनीय बापू जी के साथ नाम लेने वालों में पीछे ही बैठे हुए थे। पूजनीय परमपिता जी जब नाम-दान बख्शने के लिए आए तो आपजी को अपने पास बुलाकर कहा कि ‘काका, अग्गे आ जाओ।’ पूजनीय परमपिता जी ने आपजी का हालचाल भी पूछा, ‘काका, केहड़ा पिंड है? होर तां सब ठीक है?’ इस प्रकार पूजनीय परमपिता जी खुद खुदा ने डेरा सच्चा सौदा के भावी वारिस खुदा रूप अपने उत्तराधिकारी को अपने पास बिठाकर नाम-गुरुमंत्र प्रदान किया।
रूहानी तूफानमेल ताकत:
जैसे-जैसे आपजी अपनी आयु के पड़ाव में आगे बढ़ते गए, आपजी का मानव व समाज-हितैषी कार्यों का दायरा भी विशाल से और विशालतम होता गया। विशेषकर डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गद्दीनशीन होने के बाद तो मानवता व समाज भलाई के कार्य तूफान-मेल गति से बढ़ते ही चले गए तथा और भी बढ़ते ही जा रहे हैं।
पूजनीय सच्चे दाता रहबर परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने स्वयं अपने पवित्र हाथों से ही पूज्य गुरु जी (संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को 23 सितंबर 1990 को डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गुरगद्दी पर विराजमान किया और किसी तरह का कोई शंका-भ्रम भी किसी के अंदर नहीं रहने दिया।
पूज्य गुरु जी के डेरा सच्चा सौदा में गुरगद्दी पर विराजमान होने के बाद रूहानी व मानवता भलाई के कार्यों की डेरा सच्चा सौदा में मानो सैलाब आ गया हो, मानो बाढ़-सी आ गई हो। पूज्य गुरु जी के पावन मार्ग-दर्शन में जहां एक तरफ कुल मालिक परमपिता परमात्मा का रूहानी कारवां दिन दोगुनी, रात चौगुनी गति से बढ़ता चला जा रहा है, वहीं डेरा सच्चा सौदा साध-संगत के उत्साह व सहयोग से आज विश्व स्तरीय भलाई कार्यों द्वारा बच्चे-बच्चे के मन में घर कर गया है। दुनिया का कौन-सा ऐसा शख्स है, जो आज पूज्य गुरु जी द्वारा संचालित 168 मानवता भलाई कार्यों से वाकिफ न हो। डेरा सच्चा सौदा के मानवता भलाई के सभी 168 कार्य देश-विदेश में 7 करोड़ से ज्यादा साध-संगत द्वारा बढ़-चढ़कर किए जा रहे हैं।
पूज्य गुरु जी अपने पावन अवतार दिवस 15 अगस्त व देश की आजादी की वर्षगांठ को पौधारोपण करके मनाते हैं और देश-विदेश की समस्त साध-संगत भी अपने पूज्य गुरु जी के पावन अवतार दिवस पर हर साल लाखों पौधे लगाकर धरा को हरियाली की सौगात देकर पर्यावरण की सुरक्षा में अपनी अहम भागीदारी करती है। पूज्य गुरु जी अपने ऐसे अननिगत जनहित परोपकारों के द्वारा मानवता के उद्धार में आज भी दिन-रात लगे हुए हैं।
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन अवतार दिवस (डॉ. एमएसजी अवतार दिवस) एवं स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनाएं तथा समस्त साध-संगत को लख-लख बधाई हो जी!