उत्साह से अपना उद्धार करें
एक वाकया है जो कि सचमुच में घटित हुआ। एक दार्शनिक किसी काम से बाहर जा रहे थे, इस कारण एक टैक्सी में सवार हुए।
टैक्सी में बैठने के बाद दार्शनिक ने टैक्सी वाले की उदास शक्ल देखकर पूछा-क्यों भाई, तुम बीमार हो? यह सुनकर टैक्सीवाला बोला सर! क्या आप डाक्टर हैं? उस दार्शनिक ने जवाब दिया ‘नहीं, दरअसल तुमहारा चेहरा तुम्हें थका हुआ और बीमार बता रहा है।
इस पर टैक्सी वाला ठंडी आह भरते हुए बोला ‘ हां, आजकल मेरी पीठ में दर्द रहता है। उम्र पूछे जाने पर वह बोला ‘तीस वर्ष’। इस पर दार्शनिक ने कहा‘ इतनी कम उम्र में पीठ दर्द। यह तो मात्र व्यायाम से बिना दवा के ही ठीक हो सकता है।
इसके बाद दार्शनिक ने दूसरा प्रश्न पूछा‘ क्यों भाई, क्या आजकल धंधा मंदा चल रहा है? टैक्सीवाले ने आश्चर्य से कहा ‘साहब, आपको कैसे पता चला?’ क्या आप कोई ज्योतिषी हैं? दार्शनिक मुस्कुराते हुए बोला ‘भैया, मैं ही क्या, कोई भी तुम्हें यही कहेगा। अरे, जब तुम हर वक्त बुझे हुए चेहरे से सवारियों का स्वागत करोगे तो भला कौन तुम्हारी टैक्सी में बैठना चाहेगा? तुम्हारी आमदनी तो कम होगी ही। जीवन में सफलता के लिए ‘उत्साह’ का होना जरूरी है।
यह सुनकर टैक्सीवाला जैसे सोते में जागा हो और बोला, सर! आज आपने मुझे मेरी गलती का अहसास करा दिया, इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। फिर तीन-चार वर्षों के बाद एक दिन सज्जन ने उसी दार्शनिक की पीठ पर हाथ रखते हुए, मुस्कुराते हुए पूछा ‘सर जी! कैसे हैं आप? दार्शनिक ने कहा ‘ठीक हूं बेटा! पर मैंने तुम्हें पहचाना नहीं। इस पर वह सज्जन बोले, सर, मैं वही टैक्सीवाला हूं जिसे आपने उत्साह का पाठ पढ़ाया था। आज आपकी दी हुई शिक्षा के कारण ही मेरी बारह टैक्सियां किराए पर चल रही हैं और व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है तथा परिवार में भी खुशहाली है। अब मैं भी हर उदास मायूस व्यक्ति को उत्साह के साथ मुस्कुराते हुए काम करने की सलाह देता हूं।
दार्शनिक ने कहा- यह बेहद जरूरी है कि उत्साह से अपना उद्धार स्वयं करें। फिर उस सज्जन ने दार्शनिक को नतमस्तक होकर, चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया और प्रसन्नता व खुशी से पुन: मिलने का वायदा किया। अक्सर हम अपनी समस्याओं को लेकर चिंतित रहते हैं और यह भूल जाते हैं कि हम पर विधाता की कितनी कृपा है और जिस दिन इस कृपा को समझ लेंगे, उस दिन जीवन आनंद से सरोबार हो जाएगा। यह तो स्वाभाविक बात है कि जब आप अच्छा महसूस करते हैं तो आप मुस्कुराते हैं लेकिन जब आप मुस्कुराते हैं तो आप अच्छा महसूस करते हैं, अंदर की खुशी प्रकट होती है। अंदर की खुशी हमेशा बरकरार रहे, इसके लिए जीवन में ‘ उत्साह’ होना जरूरी है। यह उत्साह प्राप्त करने के लिए ‘स्व’ को जानकर ‘स्व- चिंतन’ करना चाहिए। अपना उद्धार स्वयं करें इसके लिए अपने आपको को जानना व पहचानना है।
चित्त में उत्साह के बीज बोएंगे तो उत्साहवर्धन होगा और यदि हम निराशा के बीज बोएंगे तो निराशा ही निराशा होगी। संत- महात्मा हमेशा कहते हैं कि हमेशा अपनी मस्ती में जिओ और अपने करतार का चिंतन करते हुए दुनिया के सभी कर्तव्य कर्मों को भलीभांति पूरा करो। सारी चिंता व समस्याओं का चिंतन न करके उनके समाधान के तरीके अपनाने चाहिए तथा चिंतन ‘स्व’ का करना चाहिए। ‘कर्मप्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा’ अर्थात समस्या हमारी अपनी ही बनाई गई है और उसका फल भी हमें भुगतना है लेकिन जीवन में उत्साह है तो सारी समस्याएं अपने आप हल हो जाती हैं और निराशा का कोई स्थान नहीं रहता।
सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना, अनुशासन जीवन में हो तथा अच्छे विचारों और सदकर्मों का सृजन, जीवन में उत्साह भरता है। उत्साह के महत्त्व को जानकर, समझकर अपने जीवन का उद्धार स्वयं करें और दूसरों को भी प्रेरणा मिले, ऐसा जीवन खुद खुशहाली में जिएं।
-आर.डी. अग्रवाल