Do not instill fear in children

बच्चों में भय पैदा न करें
आज हर घर परिवार में 2-4 बच्चे अवश्य मिलेंगे चाहे वह परिवार शिक्षित हो या अशिक्षित। बच्चों को रोने पर हर तरह से चुप करने के उपाय किये जाते हैं।

बच्चों के रोने के भी कई कारण होते हैं लेकिन उन्हें चुप कराने हेतु हर गृहिणी या परिवार का अन्य कोई भी सदस्य ज्यादातर एक ही रास्ता अपनाते हैं अर्थात् रोते बच्चे को डराना, डांटना और पीटना।

इन सब में बच्चे को डराना सबसे ज्यादा खतरनाक होता है जो आगे चलकर उसके मन मस्तिष्क में घर बना लेता है और फिर वह बच्चा बड़ा होने पर भी ‘डर‘ के साथ जीवन व्यतीत करता है। ऐसे में डर के साथ जी रहा बच्चा बड़ा होने पर भी कुछ कर सकने में असफलता का मुंह देखता है जिससे उसे मानसिक चोट पहुंचती है।

अक्सर देखा गया है कि रोते हुए बच्चे को चुप करने के लिए भयावह, काल्पनिक बातें सुनाकर चुप करवा दिया जाता है जो बच्चे के मन को झंझोड़ देती हैं।

बच्चों में उस समय तो ये बातें क्षणिक होती हैं लेकिन बच्चों के कोमल मन पर इन बातों का बहुत बुरा असर पड़ता है। उस समय तो मां-बाप या परिवार का कोई सदस्य यह नहीं सोचता कि इन डरावनी बातों का बच्चे के दिमाग पर क्या असर पड़ सकता है। बस बच्चा किसी तरह चुप हो जाये।


बच्चों के बाल मन में डरावनी और भयावह व काल्पनिक बातें घर बना लेती हैं और बच्चों के मन में इन सबका ‘डर‘ बैठ जाता है जो बड़े होकर भी नहीं निकल पाता और फिर वह ‘डर‘ बच्चों में कई प्रकार की मानसिक विकृतियों को पैदा कर देता हैं।

बच्चों को सुलाते समय लोरी या राजा-महाराजा की कहानियां भी सुनाकर सुला दिया जाता था लेकिन अब यह लोरी, कहानी कल की बात बनकर रह गयी है।

आजकल तो माता-पिता बच्चों को भूत-प्रेत, सुपरमैन, राक्षस, चुडैÞलों, शेर आ जायेगा, बिजली गिर जायेगी जैसी डरावनी बातें सुनाना ही पसन्द करते हैं जबकि इस तरह की कहानियां बच्चों के मन को भयभीत ही करती हैं।

अक्सर देखा गया है कि जवान होने पर भी लड़के अंधेरे में जाने से घबराते हैं और हल्की आहट होने पर भी वे पसीना पसीना हो जाते हैं तथा शरीर में भी कंपन सा हो जाता है।

इन सब बातों का कारण डरावनी कहानी व बातें ही होता है और बच्चा ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है उसी हिसाब से इन बातों को गहराई से लेने लगता है और आगे चलकर यही भय भयानक रूप धारण कर लेता है और फिर यह भय नहीं निकल पाता।

आज भी अनेक युवक, युवतियां बिल्ली, छिपकली, इंजेक्शन, या फिर बिजली से पूरी तरह डरते हैं। यह सब बचपन में मां-बाप या परिवार के किसी भी सदस्य के द्वारा डराये जाने का ही परिणाम होता है।

मां-बाप को चाहिए कि वे अपने बच्चों को रात्रि में सोते समय भूत-प्रेत की बातें न करें, दूध पिलाने या कोई भी छोटा-मोटा काम करवाने के लिये उन्हें काल्पनिक बातें कहकर भयभीत न करें बल्कि उन्हें महापुरूषों की साहसपूर्ण बातें बता कर साहस की प्रेरणा दें।

बच्चों को साहस की प्रेरणा व महापुरूषों की बातें साहसी व निडर बनाती हैं। बच्चों को भक्ति गाथाएं, बहादुरी की कहानियां व आत्मबल बढ़ाने वाली बातें बतानी चाहिएं। इन सबसे बच्चों में आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही, साथ ही अच्छी प्रेरणा भी मिलेगी और बच्चा साहसी बनेगा।

बच्चों में भयावह बातें, डरावनी कहानियां तथा जरूरत से ज्यादा डराना उनके आत्मविश्वास को खत्म कर देता है और उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर बना देता है।

बच्चों को अच्छा संस्कारमयी बनायें, उनमें डर पैदा न करें, आत्मविश्वास की भावना जागृत करें, तभी जाकर आपका बच्चा निडर व साहसी बनेगा जो बड़ा होकर भी इन सब बातों से नहीं घबरायेगा और अपने कार्यों में सफलता अर्जित कर सकेगा।

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