जब किसी की भावना को ठेस पहुंचती है तो प्यार से भरा ‘आई एम सॉरी’ sorry मरहम का काम करता है। रिश्तों में मधुरता लाता है, बिखरने से बचाता है, बरसों के बने रिश्तों को खोने से बचाता है। बस, ‘सॉरी’ बोलने का अंदाज ऐसा हो कि सामने वाले के दिल को छू जाए और वह बिना सोचे-समझे आपको माफ कर दे। आइये, इन टिप्स को अपना-कर ‘सॉरी’ बोलें तो यकीनन रिस्पांस अच्छा मिलेगा।
अगर ’सॉरी‘ बोलने में शर्म आ रही हो तो ‘सॉरी कार्ड’ पर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं या फूल के साथ ’सॉरी‘ लिख कर दे सकते हैं। जिससे आपने सॉरी मांगी है वह आपको माफ किए बिना शायद ही रह सके।
समय बड़ा बलवान होता है, यदि आप शुरू में माफी मांगते हैं पर माफी मांगने की कोशिश नाकाम हो जाती है तो ऐसे में घबराएं नहीं। सप्ताह दो सप्ताह बाद फूल या कार्ड भेजकर एक बार फिर कोशिश करें, क्योंकि अधिकतर लोग समय के साथ बातों को कूल लेते हैं और धीरे-धीरे उससे उबर कर बात को भुला देते हैं।
कभी कभी सामने सॉरी बोलने का प्रभाव उल्टा भी पड़ जाता है, क्योंकि बहस प्रारंभ हो जाने पर बात बढ़ सकती है। ऐसे में आप फोन कर सॉरी बोल दें। इसका लाभ हो सकता है।
अपनी पत्नी या रूममेट से ‘सॉरी’ बोलना हो तो थोड़ा इंतजार करने के बाद बोलें ताकि आपका पार्टनर शांत हो कर आपकी भावनाओं को समझ सके, इसलिए इन्हें कुछ टाइम अवश्य दें। उसी समय ‘सॉरी’ बोलने से गुस्सा बढ़ भी सकता है और आपके ‘सॉरी’ बोलने का प्रभाव भी उतना नहीं रहेगा।
sorry- ‘सॉरी’ का प्रयोग बस अपने को बचाने के लिए ही प्रयोग न करें। अपनी भूल सुधारने के लिए ‘सॉरी’ बोलें और कोई गलती आगे से न करें। ध्यान रखें, अगली बार कुछ भी बोलने से पहले पूरी सावधानी रखें, ताकि बार-बार माफी न मांगनी पड़े।
अगर सामने वाला अधिक गुस्से में है और वो चाहता है कि उस समय आप चले जाएं तो अच्छा यही होगा। अगर उन्होंने बिना सोचे माफ कर दिया तो भी बात आगे न बढ़ायें। उस चेप्टर को वहीं बंद कर दें।
माफी मांगते समय यह ध्यान रखें कि जबरदस्ती सामने वाले को स्पर्श न करें, न ही हग करें। अगर सामने वाला आपको दिल से माफ कर गले लगाना चाहता हो तो जरूर मौका दें।
-हीना गुप्ता
‘सॉरी’ बहुत अच्छी आदत है बोलना। आज के युग में मन इतना अंहकारी है, बन्दे के अन्दर इतनी ईगो है कि गलती कर लेने पर भी झुकता नहीं, अपनी गलती स्वीकार नहीं करता, ‘सॉरी’ नहीं करता और इसीलिए परस्पर द्वैष, खींचातान, एक-दुसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती है।
अपनी हउमै, ईगो, अंहकार की वजह से ही लोग एक-दुसरे से खहि-खहि कर, मैं किसी से क्या कम हूं ! इसलिए समाज में, परिवारों में, ईर्ष्या, नफरतें बढ़ रही हैं। नम्रता, दीनता, क्षमादान आदि गुणों से इन्सानियत महकती है। हर मां-बाप अपनी संतान को बचपन से सिखाएं, गलती कर लेने पर सॉरी कहें, गलती स्वीकार करें, ईगो, अंहकार को त्यागने पर इन्सान महान कहला सकता है।
– रूहानी सत्संग के प्रकाश से
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