पाठशाला से पहले नन्हे की शिक्षा

पाठशाला से पहले नन्हे की शिक्षा

लद गए वह दिन जब बच्चे 7-8 साल के हो जाने पर स्कूल जाते थे। उससे पहले की शिक्षा घर पर बड़े बुजुर्गों के द्वारा होती थी। दादा दादी सर्दियों में बाहर धूप में या गर्मियों में पेड़ की छाँव में नाती पोतों को पढ़ाते मिलते थे। पढ़ाई होवा नहीं थी। बच्चे खेलखेल में सीखते जाते थे। प्रकृति के समीप शिक्षा मिलती थी। बच्चे सहज भाव से नदियों वृक्षों पहाड़ों की जानकारी आदर भाव से लेते थे। उनकी इजत करते थे।

आज तो बच्चे के जन्म पर ही बर्थ सर्टिफिकेट के साथ साथ शुरू हो जाती है प्ले स्कूल की खोज। एक बार किसी के मुहं से सुना था ’अज कल ते जमदे बच्चे नू टेंशन है कि इंजेक्शन दी लाइन विच लगना है’।

मतलब कि आज पैदा होते ही बच्चे को टेंशन है कि उसे इंजेक्शन की लाइन में लगना है। जो उम्र बच्चे की तुतला कर बोलने की होती है, उस मासूम उम्र में हम उसे पोयम्स राइम्स आदि रटाने लगते हैं।

प्री स्कूल:

प्री स्कूल कॉन्सेप्ट अपने साथ कई टेंशन्स तो लाता है पर यह आज की जरूरत बन चुका है। आज शिक्षा का पैटर्न पूरी तरह से बदल चुका है। बच्चे भी पहले से अधिक स्मार्ट बन चुके हैं।
आज स्कूल जाते समय बच्चे के मन में भय के स्थान पर एक आत्मविश्वास होता है। वह टीचर्स के साथ ऐसे बात करता है जैसे वह उन्हें पहले से ही जानता है।

नन्हे के स्कूल में पहला कदम रखने का समय आ गया है। उसे उस समझ और जानकारी से लैस करके भेजें, जो उसके व्यक्तित्व की भी नींव बनेंगे।

माता पिता बच्चों के भविष्य को लेकर कई तरह के सपने बुनते हैं। ये सपने उनके जन्म के साथ के साथ ही शुरू हो जाते हैं। जब वो पहली बार पाठशाला जाते हैं तो माता-पिता को उसके पीछे उनका सुनहरा भविष्य नजर आता है। बच्चों को कई तरह की नसीहतें देकर पाठशाला भेजा जाता है। लेकिन कुछ जरूरी बातें भी उन्हें सिखाएं, जो उनके विकास के लिए बेहद जरूरी हैं।

अपने सामान पहचानना

ये उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना एक दोस्त बनाना, क्योंकि बच्चों को वे सभी चीजों आकर्षित करती हैं जो रंग-बिरंगी होती हैं। बच्चों की अधिकांश वस्तुएं आकर्षक रंगों में ही होती हैं। ऐसे में अगर वह अपना बैग या बोतल नहीं पहचान पाता है, तो उसे असुविधा होगी. उसे उसकी चीजों की पहचान और उसकी पसंद के चित्र आदि की बोतल, टिफिन आदि दिलाएं साथ ही जूते पहनना या उतारना, कपड़े जगह पर रखना आदि भी जानकारी दें।

हाथ धोना व पोंछना

पालक बच्चों की सफाई को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि सामान्यत: इतने छोटे बच्चों को स्वयं भोजन आदि ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें बड़े या बुजुर्ग ही खिला देते है। जिसकी वजह से उनके हाथों पर ध्यान कम ही जाता है। लेकिन अगर आप उन्हें स्कूल भेजने वाले हैं तो उन्हें साफ-सफाई का ध्यान रखना सिखाएं। ऐसे में बच्चा बीमार भी कम होगा और उसे साफ रहने की आदत भी पड़ेगी।

किताबों से दोस्ती

स्कूल भेजने से लगभग दो से तीन हफ्ते पहले ही अपने बच्चों के साथ किताब पढ़ें या कोई कहानी की किताब उसके लिए लें, जिसमें चित्रों के माध्यम से कहानी व्यक्त की गयी हो। अचानक स्कूल भेजने और किताबों के इस्तेमाल से वह घबरा सकता है। ऐसे में उसे किताबों से दोस्ती करना सिखाएं।

समय प्रबंधन

यूं तो बच्चे अपनी मर्जी के मालिक होते हैं। जब जो मनचाहे वही करते हैं, लेकिन स्कूल का अपना समय होता है जहां सभी कार्य समयानुसार होते हैं। जैसे स्कूल का वक्त, लंच टाइम आदिं स्कूल जाने के कुछ दिनों पहले से ही बच्चे का टाइम मैनेज कर लें जैसे उठने का टाइम, खेलने का टाइम आदि। इसके लिए स्कूल भेजने के एक से दो महीने पहले बच्चे को जल्दी उठने की आदत डलवाएं ताकि स्कूल जाते वक्त उसे परेशानी का सामना न करना पड़े।

बोर्ड गेम्स या पजल्स खेलें

स्कूल में ज्यादातर वक्त बच्चों को बैठकर पढ़ाने और सिखाने में जाता है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे एक ही स्थान पर अधिक समय तक बैठने के आदि नहीं होते हैं इसके लिए उन्हें घर पर बोर्ड गेम या पजल्स लाकर दें ताकि उनके बैठने की आदत और एकाग्रता में वृद्धि हो।

कुछ समय उसके साथ बिताएं

बड़ों की बातें बच्चे नहीं समझते है। लेकिन उनके बातचीत करना अपने आप में महत्वपूर्ण होता है। आप उनसे जितनी बातें करेंगे, वे उतने ज्यादा सुनने में परिपक्व होंगे। स्कूल जाने से पहले अगर आप उनसे बातें करेंगें, तो वो स्कूल से आने के बाद स्कूल की सारी बातें आपसे साझा करेंगें।

वॉशरूम फ्रेंडली

बच्चों के साथ ये सबसे बड़ी चुनौती होती है। बच्चों को जब वॉशरूम जाना होता है तो वे इस बात को किसी के साथ साझा नहीं करते। उन्हें किसी अनजान व्यक्ति से इस तरह की बात कहना आसान नहीं लगता। उन्हें इन बात के लिए तैयार करें कि उन्हें वॉशरूम जाने के बारे में कैसे बोलना है।

’न’ जैसे शब्द से बचें

अपने बच्चे के किसी भी काम के लिए ’न’ नहीं या गलत जैसे शब्दों के उपयोग से बचना चाहिए। उनके द्वारा किये गए कोई भी काम को आप पहले प्रोत्साहित करें, बाद में उसके सही तरीके बताएं। जैसे यदि वह रंग भर रहा है और उससे रंग चित्र से बहार हो गया है, तो उसे आप इतने सुंदर रंग भरने की शाबाशी दें और फिर बाद में ये समझा दे कि रंग चित्र से बाहर चला गया है। अगर अंदर ही रहता तो ज्यादा सुंदर दीखता। यह सकारात्मकता उसे स्कूल में भी बहुत मदद देगी।
सदा याद रखें कि बच्चों के साथ बच्चे बने बिना आप बच्चों का मन नहीं जीत सकते और बिना उनका मन जीते आप उनके नहीं हो सकते और उन्हें पालना है तो उनका बनना ही होगा।

बच्चे कच्ची व गीली मिटटी जैसे होते हैं। आप अपनी कल्पना के द्वारा उन्हें मनचाहा आकार दे सकते हैं। सिर्फ धैर्य की जरूरत। आप मनचाही मूर्त गढ़ सकते हैं। स्कूल जाने से पहले उन्हें इतना संस्कारित कर दें ताकि वह अपना सही परिचय जमाने को खुद दे सकें।
मधु सिधवानी

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