मुहिम से बढ़ा रहे बेटियों का रुतबा Student birthday
अनुकरणीय पहल: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारे को सार्थक करने में जुटे अध्यापक धर्मेंद्र शास्त्री
शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) पर विशेष एच. सिद्धू
आपने ‘सेल्फी विद माई डॉटर’ के नाम से एक सामाजिक मुहिम के बारे में अवश्य सुना होगा, लेकिन एक सरकारी अध्यापक ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ मुहिम को एक नया आयाम देते हुए सेल्फी विद माई स्टूडेंट बर्थडे की अनुकरणीय पहल शुरू की हुई है। संस्कृत अध्यापक धर्मेंद्र शास्त्री बेटियों को शिक्षा के प्रति जागरूक कर रहे हैं, वहीं उनकी उच्चतर शिक्षा प्राप्ति में आने वाली अड़चनों को भी अपने प्रयास के द्वारा दूर करने की पूरी कोशिश करने में जुटे हुए हंै।
सेल्फी विद माई स्टूडेंट बर्थडे के रूप में उन्होंने उन बेटियों को एक नई पहचान दिलाने की कोशिश की है जो परिवार की गरीबी व तंगहाली की वजह से इंटरनेट जैसे संसाधनों से कोसों दूर थी। अब तक हजारों बेटियों संग सेल्फी की फोटो उनके फेसबुक एकाउंट पर पोस्ट हो चुकी हैं। धर्मेंद्र शास्त्री हर स्कूली बच्चे का जन्मदिन खास अंदाज में मनाते हैं, वहीं खुद का बर्थडे भी स्कूली बच्चों के साथ ही विश करते हैं।
इस बारे में टीचर धर्मेन्द्र शास्त्री ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि 19 अप्रैल 1993 में मेरी ज्वाइनिंग सिरसा जिले के गांव बरासरी में हुई थी। हालांकि मेरा गृह जिला कैथल है। मैं ज्वाइनिंग के लिए जब सिरसा पहुंचा तो कई लोगों से मैंने बरासरी गांव के बारे में पूछा तो किसी से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। यह बात मन में महसूस हुई तो उसी दिन ठान लिया कि इस गांव को स्कूल के द्वारा इस ऊंचे मुकाम तक पहुंचाऊंगा।
जैसे-तैसे मैं बरासरी के राजकीय मिडल स्कूल में पहुंचा तो वहां की स्थिति और भी भयावह थी। गांव के लोग बहुत ही कम संख्या में बेटियों को शिक्षा दिलाने के लिए स्कूल में भेजते थे, और जो स्कूल में आती थी वह भी आठवीं कक्षा के बाद आगे नहीं पढ़ पाती थी, क्योंकि परिजन उनको पढ़ने के लिए दूसरे गांवों में भेजने को कतई तैयार नहीं थे। टीचर शास्त्री के अनुसार, उसी दौरान बरासरी स्कूल से ही छात्राओं का जन्मदिन मनाने की शुरूआत की। प्रार्थना सभा में ही छात्रा को बर्थडे विश किया जाता और सभी बच्चे तालियां बजाकर उसे बधाई देते थे।
साथ ही बेटियों को खास त्वज्जो देकर साईकिल चलाना सिखाया। एक वर्ष की जदोजहत के बाद गांव के लोगों का मन बदला और 1994 में आठवीं पास करने वाली सभी लड़कियों का मैंने खुद जाकर जमाल के सरकारी स्कूल की 9वीं कक्षा में दाखिला करवाया। अपने गांव से जमाल तक की दूरी साइकिल से तय करने वाली उन लड़कियों में कई आज सरकारी पदों पर हैं, जो मेरे लिए गर्व की अनुभूति से कम नहीं है। इस कदम से मेरा हौसला इतना बढ़ा कि बेटियों को शिक्षा दिलाना अपने जीवन का मकसद ही बना लिया। धर्मेंद्र शास्त्री का कहना है कि स्कूल उन्हें बहुत प्यारा लगता है और यहां आने वाला हर बच्चा मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है ‘आई लव माई स्कूूल, स्टडेंट इज माई लाइफ।’ Student birthday
Table of Contents
पिता बने प्रेरणा, अर्धांगिनी बनी सहयोगी
धर्मेंद्र शास्त्री बच्चों के प्रति इस प्यार का श्रेय अपने पिता स्वर्गीय रामचंद्र कौशिक को देते हैं, जिन्होंने सरकारी अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दी थी। वहीं समय-समय पर उनकी अर्धांगिनी कमलेश रानी भरपूर सहयोग देती रहती हैं और स्कूली बच्चों की बेहतरी के लिए नए-नए आइडियाज उपलब्ध करवाती हैं।
सोशल मीडिया को बनाया जागरूकता का माध्यम
टीचर शास्त्री ने बच्चों के मनोभावों को प्रस्तुत करने के लिए सोशल मीडिया को माध्यम बनाया हुआ है। स्कूली बच्चे के बर्थडे पर उनके साथ सेल्फी लेकर उसे फेसबुक व वटसअप जैसे माध्यम से प्रचारित करते हैं, जिससे बच्चों में गर्व की अनुभूति होती है। अध्यापक धर्मेंद्र शास्त्री का कहना है कि उनकी इस मुहिम का कई स्कूलों व अध्यापकों ने अनुसरण किया है, जिससे गुरू-शिष्य का भाव फिर से संचारित होने लगा है।
जहां भी गए, दिया सुंदरता व हरियाली का पैगाम
अपने 27 वर्ष के सेवाकाल में अध्यापक धमेंद्र शास्त्री सिरसा जिले के गांव बरासरी, खैरेकां, नेजाडेला गांव में शिक्षा का उजियारा फैला चुके हैं। मौजूदा समय में वे फूलकां के राजकीय विद्यालय में सेवाएं दे रहे हैं। शास्त्री जी जिस भी स्कूल में रहे उन्होंने वहां के बच्चों को जन्मदिन पर एक पौधा अवश्य लगाने के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि उनके प्रयासों से खैरेकां स्कूल ने वर्ष 2005 में सौंदर्यकरण में खिताब जीता। वहीं वर्ष 2016-17 में नेजाडेला स्कूल ने पौधारोपण में सीआरपी में गोल्ड मैडल हासिल किया। वर्ष 2019 में फूलकां स्कूल ने सौंदर्यकरण में ब्लॉक स्तर पर प्रथम स्थान हासिल किया।
14 भाषाओं में ासखाया देशभक्ति का गीत
‘तारे कितने नील गगन में…! गीत के बोल गुनगुनाते हुए धर्मेंद्र शास्त्री ने बताया कि बेटियों के प्रति मेरा लगाव हमेशा से ही रहा है। मेरे घर में भी दो बेटियां हैं, और स्कूल की सभी छात्राएं मुझे अपनी बेटियों की तरह ही लगती हैं। बच्चों में देशभक्ति की लौ को हमेशा जिंदा रखने का प्रयास किया है। बच्चों को हिंदी, राजस्थानी, पंजाबी, उडिया, तेलुगु, मराठी, मल्यालम, गुजराती, कन्नड़ आदि 14 भाषाओं में देशभक्ति के गीत साखाए हैं। 26 जनवरी व 15 अगस्त जैसे अवसरों पर इन राज्यों के विशेष परिधानों में बच्चों से प्रस्तुतियां भी करवाई हैं।
नई शिक्षा नीति पर शिक्षाविदें के विचार
प्रोफेसर अनिल सदगोपाल देश के जाने माने शिक्षाविदों में से एक है। वे शिक्षा से जुड़ी कई समितियों में शामिल भी रहे हैं। उनका कहना है कि इस शिक्षा नीति को मूलत: तीन बिंदुओं से देखने की जरूरत है। पहला- इससे शिक्षा में कॉरपोरेटाइजेशन को बढ़ावा मिलेगा, दूसरा इससे उच्च शिक्षा के संस्थानों में अलग-अलग ‘जातियां’ बन जाएँगी, और तीसरा खतरा है अति-केंद्रीकरण का। वे अपने इस विचार के पक्ष में तर्क भी देते हैं। उनके मुताबिक मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नीति आयोग ने स्कूलों के लिए परिणाम-आधारित अनुदान देने की नीति लागू करने की बात पहले ही कह दी है। ऐसे में जो स्कूल अच्छे होंगे, वो और अच्छे होते चले जाएंगे और खराब स्कूल और अधिक खराब।
———————————————–
जेएनयू के वीसी प्रोफेसर जगदीश कुमार ने कहा कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति ऐतिहासिक है, वह इस लिहाज से कि जितना राय मशविरा इसे लाने से पहले किया गया है वह पहले कभी नहीं हुआ। लाखों की तादाद में ग्राम पंचायतों, हजारों की तादाद में ब्लॉक स्तर और सैकड़ों की तादाद में जिला स्तर पर इस पूरे विषय पर चर्चा की गई और तब कहीं जाकर इसे अंतिम रूप दिया गया। अलग-अलग राज्य सरकारों से भी इस पर राय मांगी गई थी और उन्होंने भी अपने राज्य के अनुसार इस नीति में सुझाव दिए। कुमार के मुताबिक इससे ज्यादा समावेशी राष्ट्रीय शिक्षा नीति हो ही नहीं सकती थी। यह नीति प्रतियोगिता को बढ़ावा देगी।
———————————————–
दिल्ली के जाने-माने स्कूल स्प्रिंगडेल की प्रिंसिपल अमिता वट्टल भी इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को एक अच्छी शुरूआत मानती हैं। उनके मुताबिक अब बिल्कुल निचले स्तर पर छात्रों को बुनियादी शिक्षा दी जा सकेगी ताकि वह बेहतर भविष्य के लिए तैयार हो सकें। उन्होंने साफ किया कि अब तक लोग वोकेशनल एजुकेशन पर ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे जिसकी वजह से हम सिर्फ ग्रेजुएट पैदा कर रहे थे लेकिन अब स्कूली शिक्षा में भी वोकेशनल एजुकेशन को शामिल करने से बेहतर छात्र निकल कर सामने आएंगे। इस पूरी शिक्षा नीति में रीजनल लैंग्वेज को तवज्जो देने पर भी ज्यादा जोर दिया गया है।
सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook, Twitter, और Instagram, YouTube पर फॉलो करें।