अमेरिका-जापान को भेज रहा करोड़ों के जैविक उत्पाद
आजकल ऐसी अवधारणा बन गई है कि खेती घाटे का सौदा है। मानसून और मौसम पर आधारित होने के कारण खेती किसानी में जोखिम बना रहता है।
इसलिए कोई भी नहीं चाहता है कि उसका बेटा पढ़-लिखकर खेती करे। किसान भी चाहता है कि उसका बेटा पढ़-लिखकर कोई अच्छी सरकारी नौकरी करे। राजस्थान के जालोर निवासी योगेश के घर वाले भी यही चाहते थे कि वह पढ़-लिखकर कोई अच्छी सरकारी नौकरी करे।
उन्होंने अपने पिता भीखाराम और चाचा पोपटलाल की लाख समझाइशों के बावजूद भी सरकारी नौकरी के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। लेकिन योगेश ने निश्चय किया था कि वह जैविक खेती ही करेगा और और पढ़ाई खत्म करने के बाद उसने खेती में एक तरह से चमत्कार किया और अपनी मंजिल हासिल की। आर्गेनिक और व्यावसायिक खेती करने में योगेश ने न सिर्फ सफलता प्राप्त की, बल्कि आज वह दूसरे किसानों को भी सफलता की राह पर आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन कर रहे हैं। जीरे और मसाला जातीय अन्य नकदी फसलों की खेती कर योगेश आज 60 करोड़ रुपए टर्नओवर का कारोबार कर रहे हैं। उसके साथ आज 3000 किसान हैं जो खेती में अपना भाग्य चमकाने में लगे हैं।
योगेश की खेती में रूचि उनकी पढ़ाई के दौरान जगी। योगेश ने ग्रेजुएशन के बाद आॅर्गेनिक फार्मिंग में डिप्लोमा किया था। परिणाम यह हुआ कि खेती में उनका इंटरेस्ट जाग उठा, पर घर वाले चाह रहे थे कि योगेश गवर्नमेंट जॉब की तैयारी करें। उनसे यहां तक कहा गया कि यदि खेती का शौक ही चढ़ आया है, तो एग्रीकल्चर सुपरवाइजर बनकर खेती और किसानों की सेवा करनी चाहिए, सीधे तौर पर किसान बनकर खेती करने का जोखिम मत उठाओ।
2009 में की खेती की शुरूआत
योगेश ने वर्ष 2009 में अपने खेत से खेतीबाड़ी की शुरूआत की। उनके मुताबिक, उस वक्त जैविक खेती का माहौल आज जैसा नहीं था, इसलिए खेती की शुरूआत में मैंने इस बात पर ध्यान दिया कि मेरे क्षेत्र में ऐसी कौन सी उपज है जिसे उगाने पर किसानों को ज्यादा फायदा होता है, जिसकी बाजार में ज्यादा मांग रहती है। हमारे इलाके में जीरा बहुतायत में होता है। जैसा कि सभी जानते हैं कि जीरे को नकदी फसल कहा जाता है और बंपर उपज से बंपर मुनाफा भी होता है। मैंने उस समय 2 बीघा के खेत पर जीरे की जैविक खेती का ट्रायल किया। खेती को लेकर वो मेरा पहला कदम था, जिसमें मैं असफल रहा। अनुभवहीन होने के कारण उपज न के बराबर हाथ लगी। लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
गुरु के रूप में मिले शर्मा जी
ऐसे में जब वे पहली बार असफल हुए तो उन्होंने काजरी के जैविक कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरुण के शर्मा की मदद ली। उन्होंने योगेश के साथ कई अन्य किसानों को गांव आकर ट्रेनिंग दी, जिसके बाद उन सभी लोगों ने फिर जीरा उगाया और मुनाफा भी हुआ। योगेश कहते हैं, दूसरी बार की खेती से ये समझ बनी थी कि अकेले के बजाय समूह में खेती करना ज्यादा लाभदायक है, लेकिन शुरूआत में किसानों को जोड़ना आसान नहीं था, तो सिर्फ सात किसानों का साथ मिला। क्योंकि सवाल ये भी था कि बिना यूरिया, डीएपी और पेस्टीसाइड के खेती हो भी सकेगी क्या? योगेश ने काजरी के वैज्ञानिकों की मदद से जैविक खाद और फसल रक्षा के लिए दवाइयां बनानी सीखीं। उनके प्रयोग से अच्छे परिणाम मिले थे और सात किसानों से शुरू हुआ कारवां 3000 तक पहुंच गया। वैज्ञानिक डॉ. शर्मा के मार्गदर्शन में उन्होंने जैविक खाद और दवाइयां बनाना सीखा। इन प्रयोगों को खेतों में आजमाने से परिणामों में चौंकाने वाले बदलाव हुए।
अपनी कंपनी बनाई
योगेश आज रैपिड आॅर्गेनिक प्रा.लि. नामक कंपनी के बैनर तले किसान संगठन में रहते हुए एकजुटता से जैविक खेती की नई इबारत लिख रहे हैं। निदेशक के नाते वे किसानों को जैविक कृषि के प्रति समर्पित और जागरूक रहते हुए मानव हित में केमिकल फ्री खेती के लिए दिन-रात प्रोत्साहित कर रहे हैं। योगेश के अनुसार फिर उनका कारवां के 1000 किसान पिछले 5-7 सालों से पूरी तरह जैविक प्रमाणित हैं। 1000 किसान कन्वर्जन-2 में हैं, जबकि शेष 1000 किसान सी-3 फेज में हैं। किसानों के जैविक सर्टिफिकेशन को गंभीरता से लेते हुए उसने सभी को जैविक खेती से जुड़ी ट्रेनिंग करवाई और खेतीबाड़ी की बारीक से बारीक बात को भी हल्के में न लेने की सलाह दी। इन सभी किसानों के आॅर्गेनिक सर्टिफिकेशन के खर्चे को भी योगेश ने ही वहन किया।
वैसे भी उनके इलाके के किसान आर्थिक रूप से इतने कमजोर हैं कि प्रामाणीकरण का अतिरिक्त बोझ उन पर डालना मुझे मुनासिब नहीं लगा। 2009 में योगेश का टर्नओवर 10 लाख रुपए था। उनकी फर्म रैपिड आॅर्गेनिक प्रा.लि (और 2 अन्य सहयोगी कंपनियों) का सालाना टर्नओवर आज 60 करोड़ से भी अधिक है। आज यह सभी किसान जैविक कृषि के प्रति समर्पित भाव से जुड़कर केमिकल फ्री खेती के लिए प्रयासरत हैं। योगेश के नेतृत्व में यह सभी किसान अब सुपर फूड के क्षेत्र में भी कदम रख चुके हैं। योगेश चिया और किनोवा सीड को खेती से जोड़ रहे हैं, ताकि किसानों की आय दुगुनी हो सके। अब वे ऐसी खेती पर कार्य कर रहे हैं, जिसमें कम लागत से किसानों को अधिक मुनाफा, अधिक उपज हासिल हो।
विदेशों तक पहुंच बन गई
योगेश के अनुसार इसी बीच इंटरनेट के माध्यम से एक जापानी कंपनी से संपर्क हुआ। कंपनी के कुछ प्रतिनिधि उनके गांव में आए और किसानों के खेतों की विजिट की। पूरी तरह से हमें जाँचने-परखने के बाद उस कंपनी ने हमारे साथ एक करार किया। हमने सबसे पहले उन्हें जीरे की सप्लाई की। इस पहली खेप को जापान में बहुत सराहना मिली। इस सफलता को ध्यान में रखते हुए कंपनी ने हमारे साथ एक टाईअप कर लिया, जिसके चलते हमने उनको जीरे के अलावा सौंफ, धनिया, मैथी इत्यादि की भी सप्लाई की। इन दिनों हैदराबाद की एक कंपनी ने हमारे किसानों के साथ उनके खेतों में 400 टन किनोवा की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रखी है।
किसानों को राहत का एक तरीका यह भी
किसानों के साथ एक समस्या यह भी रही है कि जैविक प्रमाणपत्र होने पर ही उनकी उपज का अच्छा रेट मिलता है, लेकिन योगेश ने इसका एक तोड़ निकाला है वो उन किसानों से भी अच्छे रेट पर उपज खरीद लेते हैं जो जैविक खेती करते हैं। सर्टिफिकेट हो या न, लेकिन केमिकल का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। योगेश के मुताबिक इसके लिए उन्होंने अमेरिका की एक कंपनी से करार किया है। हजारों किसानों की आमदनी में इजाफा कर चुके योगेश के मुताबिक उनकी कंपनी रैपिड आॅर्गेनिक देश की पहली कंपनी है, जो जीरे को लेकर ट्रेड फेयर पहुंच रहे हैं।
मुनाफे की उगा रहे हैं फसल
जालोर में इस समय दक्षिण अमरीकी फसल किनोवा उगाने की पहल जोर पकड़ती जा रही है। जिले के तकरीबन 800 से अधिक किसान खेती के माध्यम से अच्छा मुनाफा ले रहे है। बता दें कि किनोवा के100 ग्राम दानों में मिलने वाली पौष्टिकता: प्रोटीन 14 से 18 ग्राम, काबोर्हाइड्रेट 7 ग्राम, वसा 2 ग्राम, रेशा 11 ग्राम, विटामिन ए, बी, सी, मिलती है। खनिज तत्व में केल्सियम मैग्नीशियम, लोहा, जिंक, मैंगनीज मिलता है। वहीं किनोवा का उपयोग अनाज के रूप में गेहंू मक्का के आटे के साथ मिलाकर ब्रेड बिस्किट एवं पास्ता बनाने में काम आता है। इसके अलावा पराठा, रायता, सलाद एवं चावल की तरह उपयोग किया जाता है। किनोवा फलेक्स के रूप में, भुने दाने के रूप में काम लिया जाता है। जल निकास युक्त विभिन्न जमीन में रबी की इस फसल की आसानी से खेती की जा सकती है। वैसे बरानी क्षेत्र के लिए यह फसल अधिक उपजाऊ है। अनुकूल तापमान 18 से 24 डिग्री है।
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