शाह मस्ताना जी आए जगत में -सम्पादकीय
संत, गुरु, पीर-फकीर, महापुरुष सृष्टि व समाज के भले के लिए जगत में आते हैं। जीवों का उद्धार करना ही उनके जीवन का मकसद होता है। संसार संतों के सहारे ही कायम है। ‘संत न आते जगत में तो जल मरता संसार’। संत समस्त जीव-सृष्टि को अपना सहारा प्रदान करते हैं। वे परमपिता परमात्मा से हमेशा सबके भले की ही दुआ करते हैं। सबके लिए भला मांगना और भला करना ही उनकी फितरत होती है। वे काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, खुदी, मन-माया, मोह-ममता और नफरत आदि बुराइयों की आग में सड़-बल रहे जीवों को अपने शीत हृदय से लगाकर उनका उद्धार करते हैं।
महान परोपकारी संत अमृत की बहती ऐसी पवित्र जलधारा के समान हैं, जो बड़े-बड़े गुनाहगारों, पापियों, बड़े-बड़े अहंकारियों का अपनी दया-मेहर, रहमत से पल में पार-उतारा कर देते हैं। जैसे जेष्ठ-आषाढ़ में तपी धरती सावन की बौछारें से चहूं ओर एक अनोखी महक, सोंधी-सोंधी खुशबू व ठंडक का अहसास करवाती है, संतों की अमृतमयी वाणी ईर्ष्या-नफरत, दुनिया की विषे-वासनाओं में तपते लोगों के दिलों को ठंडा-शीत करके उन्हें अमरत्व प्रदान करती है। इतिहास गवाह है कि कौडे जैसे राक्षस, सज्जन जैसे ठग, गणका जैसी वेश्या, चोर-डाकू-लुटेरे भी महान संतों की सोहबत को पाकर उच्च कोटि के भक्त कहलाए हैं। संत हर प्राणी-मात्र के प्रति हमेशा परोपकार व सद्भावना की भावना रखते हैं और उनकी परोपकारी भावना पाकर हर जीव परमपिता परमात्मा के गुण गाता हुआ निहाल हो जाता है।
शाह मस्ताना जी आए जगत में, रूहों का उद्धार किया।
जगत-उद्धारक बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय पिता श्री पिल्लामल जी के घर अति पूजनीय माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से विक्रमी संवत 1948 (सन् 1891) की कार्तिक पूर्णिमा को अवतार धारण किया था। आप जी पाकिस्तान के गांव कोटड़ा, तहसील गंधेय, रियासत कलायत-बिलोचिस्तान के रहने वाले थे। आप जी को बचपन से ही ईश्वर की भक्ति का शौक था। आप जी ने अपने घर में भगवान सत्यनारायण जी का मंदिर बना रखा था और अपने उस छोटे से मंदिर में अपने भगवान सत्यनारायण जी की सोने की मूर्ति स्थापित की हुई थी। आप जी अपने ईष्ट देव सत्यनारायण जी की भक्ति में घंटों बैठे रहते।
एक दिन जब आप जी अपने भगवान सत्यनारायण जी की भक्ति में लीन थे, तो अचानक सफेद लिबास में एक फकीर-बाबा ने प्रवेश कर आप जी से कहा कि अगर आप अपने भगवान सत्यनारायण जी को पाना चाहते हैं, तो पूरे गुरु से मिलाप करो। उस फकीर-सार्इं का चेहरा इलाही नूर से दग-दग कर (दमक) रहा था। उपरांत आप जी सच्चे गुरु की तलाश में लग गए। ज्यों ही आप जी ने डेरा ब्यास (पंजाब) के पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह महाराज के दर्शन किए, तो उसी पल अपना और अपना सब कुछ उन पर कुर्बान कर दिया, क्योंकि वो फकीर बाबा वही थे, जिन्होंने आप जी को सच्चे गुरु से मिलाप करने को कहा था।
पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज ने आप जी के बेपनाह सतगुरु प्रेम व सच्ची भक्ति पर खुश होकर आप जी को जीवों का उद्धार करने और बागड़ को तारने का हुक्म देकर सरसा में भेज दिया कि ‘डेरा बनाओ और सत्संग लगाओ, जीवों का उद्धार करो।’ आप जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल के हुक्मानुसार 29 अप्रैल 1948 के शुभ दिन को सर्वधर्म संगम व मानवता भलाई केन्द्र डेरा सच्चा सौदा की शुभ स्थापना की। आप जी ने 12 साल तक नोट, सोना, चांदी, कपड़े, कम्बल आदि बांट-बांट कर 1 लाख 48 हजार 277 जीवों को नाम-गुरुमंत्र देकर उन्हें नशे आदि बुराइयों से मुक्त कर दोनों जहानों में उनका उद्धार किया। सच्चे सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने दुनिया को राम-नाम की भक्ति के साथ-साथ सच की कमाई यानि ज्ञानयोगी व कर्मयोगी बनने की एक नई दिशा दिखाई, दुनिया को जिंदाराम का पाठ पढ़ाया।
आप जी ने राम-नाम की ऐसी ज्योति प्रज्जवलित की, जो आज बिना किसी भेदभाव के पूरी दुनिया के दिलों में जगमगा रही है। पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज की पूज्य तीसरी पावन बॉडी मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (डॉ. एमएसजी) की पाक-पवित्र प्रेरणा व अति योग्य मार्ग-दर्शन में डेरा सच्चा सौदा अपनी उसी पावन मर्यादा के अनुसार चलते हुए आज पूरी दुनिया में अति पवित्र भावनाओं से जाना जाता है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के 133वें पावन अवतार दिवस की सारी सृष्टि को बहुत-बहुत मुबारकबाद हो जी!