शहनशाह जी ने सारे भ्रम दूर किए -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
प्रेमी जसवंत सिंह पुत्र स. लाभ सिंह चीका मण्डी जिला कैथल(हरियाणा) से सतगुरु जी के एक अजीब करिश्मे का वर्णन करता है:-
सन् 1957 की बात है कि उस समय हमारा सारा परिवार जलंधर जिले के गांव सूजो कालिया में रहता था। मेरे चाचा करतार सिंह जी लाट साहिब रामपुर थेड़ी जिला सरसा में रहते थे। एक बार मेरा चाचा रामपुर थेड़ी से गांव सूजो कालिया में हमारे घर आया। उसने हमें बताया कि सरसा में एक पूर्ण संत, फकीर आया है जो माया बांटता है, कपड़े बांटता है और गधों को बूंदी खिलाता है। हमने उसे कहा कि तू झूठ बोलता है। ऐसा नहीं हो सकता। फकीर तो दर-दर मांगते फिरते हैं, माया बांटने वाला कोई नहीं देखा।
उनके कहने पर मेरे बापू जी और माता जी सरसा गए। उन्होंने बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन किए, सत्संग सुना व नाम ले गए। वे कई दिनों तक डेरा सच्चा सौदा सरसा में आते-जाते रहे। घर वापिस लौटकर मेरे बापू जी ने हमें बताया कि वाकई ही तेरे चाचे की बातें सच्ची हैं। वो सब कुछ बांटते हैं। हमने अपनी आंखों से देखा है। वे (मस्ताना जी) कुश्ती (घोल) करवाते हैं। जीतने वाले को चांदी और हारने वाले को सोने के डालर देते हैं। मेरे माता-पिता के ऐसा कहने पर मैं सत्संग सुनने के लिए सरसा आया। उस समय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज सच्चा सौदा बागड़ (राजस्थान) में थे। मैं पूछता-पूछता वहीं पहुंच गया और सत्संग सुनकर नाम ले लिया।
फिर हमारा सारा परिवार प्रेमी बन गया। नाम लेने के बाद मैं जब भी डेरा सच्चा सौदा में जाता दो-तीन महीने सेवा में लगा जाता। जैसा शहनशाह मस्ताना जी महाराज का हुक्म होता मैं वैसे ही सेवा करता। एक बार चोजी सतगुरु जी ने हमें (दो सेवादारों को) हुक्म फरमाया, ‘जाओ पाथियां बेच आओ। गाड़ी पर चढ़ जाओ। जैसे कोई ले, दे देना। कोई पैसा दे तो भी ठीक है और न दे तो भी ठीक है।’ शहनशाह जी का हुक्म मिलते ही हमने दो बोरियां पाथियां की भर लीं और उठा कर रेलवे स्टेशन सरसा पर चले गए। गाड़ी आई और उसमें चढ़ गए तथा अगले स्टेशन पर उतर गए।
सतगुरु के हुक्मानुसार हमने गांव में होका दिया कि ले लो भाई ले लो, सच्चे सौदे की पाथियां ले लो! लोग हमें देखकर हंसते तो हम ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा लगा देते। वो पाथियां हमने बेच दी। उन पाथियों के बदले हमें दो मोरी वाले पैसे मिले जबकि हमारा किराया उससे ज्यादा लग गया। हमें महसूस हुआ कि हमारी दिहाड़ी भी नहीं पड़ी। जब हम वापिस आए तो उस समय सार्इं मस्ताना जी महाराज पहले बने गेट की ड्योढी में खड़े थे जो शाह मस्ताना जी धाम के उत्तर-पूर्वी दिशा में था। बेपरवाह जी हमें देखकर बहुत खुश हुए और वचन फरमाया, ‘जलंधरिया बेटा! बेच आए। बहुत मुनाफा उठा आए। जिस घर में भी पाथी जलेंगी, खाना बनेगा, वो सब प्रेमी बन जाएंगे।’
मैं जब भी डेरा सच्चा सौदा में सेवा करता तो शहनाशाह जी महाराज मुझे जलंधरिया कहकर बुलाते। शहनशाह जी ने मेरा नाम कभी नहीं लिया था। जब कभी मैं पास न होता तो शहनशाह जी दूसरे सेवादारों को मुझे बुलाने के लिए भेजते तो भी यही कहते कि जलंधरिया को बुलाकर लाओ। शहनशाह मस्ताना जी के बिना मुझे कोई भी जलंधरिया नहीं कहता था और न ही किसी ने कहा।
जब बेपरवाह मस्ताना जी महाराज अपना नूरी चोला बदल गए तो मुझे इस बात का सबसे अधिक पश्चताप हुआ कि मुझे जलंधरिया कहने वाला इस दुनिया में नहीं है। यह बात मेरे अंतर-हृदय में बैठ गई कि अब मुझे कोई जलंधरिया नहीं कहेगा।
दुकानदारी के साथ-साथ मैं वैद्यगी भी करता हूं, इस विचार से कि जितना किसी का भला हो सके करना चाहिए। सन् 2001 की बात है। मैं अपने द्वारा बनाई पीलिए की दवाई लेकर डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में सेवा कर रहे सत् ब्रह्मचारी सेवादार वैद्य आत्मा सिंह जी के पास पहुंचा। वैद्य आत्मा सिंह जी मुझे परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पास ले गए। वैद्य जी ने मेरा परिचय प्रेमी जसवंत सिंह चीका मण्डी जिला कै थल के रूप में करवाया तथा बताया कि प्रेमी (जसवंत सिंह) ने पीलिए के रोगियों के लिए दवाई तैयार की है।
इस पर दयालु हजूर पिता जी ने आदेश फरमाया, ‘बेटा! दवाई नारा लाकर पार्इं, आराम आएगा।’ इसके बाद मैंने परम पूजनीय हजूर पिताजी को बताया कि मैंने बेपरवाह परम संत शाह मस्ताना जी महाराज से नाम दात ली है। इस वाक्य को सुनकर परम पूजनीय हजूर पिताजी ने फरमाया, ‘बेटा! तेरे सामने तो बैठे हैं।’ लेकिन मेरा मन भ्रम में पड़ गया कि स्वयं पूज्य हजूर पिताजी शहनशाह मस्ताना जी कैसे हो सकते हैं! मैं मन ही मन में सोचने लगा कि अगर बेपरवाह मस्ताना जी ही हजूर पिता जी हैं तो उस वक्त का कोई वचन सुनाएं।
मैं अपने मन में इस प्रकार सोच ही रहा था कि सर्व सामर्थ सतगुरु परम पूजनीय हजूर पिता जी ने फरमाया, ‘जलंधरिया बेटा! ठीक हो गया।’ शहनशाह हजूर पिताजी का इतना ही कहना था कि मैं बेहद शर्मिदा हुआ। मुझे इतनी शर्म महसूस हुई कि जी चाहता था कि मैं पृथ्वी में धंस जाऊं कि जो मैंने कुल मालिक शहनशाह हजूर पिता जी की परीक्षा ली। पर मेरे मन के सारे भ्रम दूर हो गए थे। मेरी रूह सतगुरु का धन्य-धन्य कर उठी कि आज मेरे सतगुरु बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने अपनी तीसरी बॉडी परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां में बैठकर मुझे जलंधरिया कहा।
अब मेरा मन मान गया कि परम पूजनीय हजूर पिताजी कोई और नहीं, बल्कि शहनशाह मस्ताना जी महाराज स्वयं हैं। अब मेरे मन ने मान लिया है कि जो शहनशाह मस्ताना जी फरमाया करते थे कि असीं तीसरी बॉडी में आएंगे, वे वचन सत्य हैं और यह सच्चाई उपरोक्त प्रमाण से स्पष्ट है।
सतगुरु स्वयं ही कुल मालिक, ईश्वर, खुदा, रब्ब, अल्लाह, भगवान है। वह घट-घट की जानने वाला होता है। उसे कुछ भी बताना नहीं पड़ता। वह स्वयं ही अन्दर की बातें जानकर जवाब दे देता है जैसा कि उपरोक्त प्रमाण से स्पष्ट है।