Simple people

Simple people सद्गुणी होते हैं सीधे-सरल लोग

आवश्यकता से अधिक सीधा होना मनुष्य के लिए हितकर नहीं होता। उसे समय-समय पर हानि उठानी पड़ती है। सीधे होने का अर्थ होता है ‘सरल होना, छल-कपट से दूर रहना, दुनिया में होने वाले दुष्कृत्यों में लिप्त न होना।’ ऐसे व्यक्ति को लोग मूर्ख समझने की भूल कर बैठते हैं। जिनके मन में मैल भरा होता है, उन्हें सच्चे और सीधे लोग पिछड़े हुए प्रतीत होते हैं। आम भाषा में ऐसे लोगों को बैकवर्ड कहकर अपमानित किया जाता है।

बहुत समय पहले एक कथा पढ़ी थी कि एक साँप लोगों को बहुत परेशान करता था। उसने कई लोगों को काट लिया था जिससे कुछ लोगों की मृत्यु भी हो गई थी। उसकी हरकतों से दुखी होकर, लोग इकट्ठे होकर एक महात्मा जी के पास गए। उनसे प्रार्थना की कि वे उनकी सहायता करें। महात्मा जी उस स्थान पर गए जहाँ साँप रहता था।

उन्होंने उससे कहा- ‘तुम लोगों को काटते हो, उन्हें परेशान करते हो, यह तो बहुत गलत बात है।‘
साँप ने महात्मा जी से पूछा, ‘काटना तो मेरा स्वभाव है, इसे मैं कैसे छोड़ सकता हूँ?‘
महात्मा जी ने क्रोधित होते हुए उससे कहा, ‘तुझ अधर्मी जीव को तो नरक में भी जगह नहीं मिल सकेगी।‘ इस पर साँप ने पूछा, ‘मुझे क्या करना चाहिए।‘ उन्होंने कहा, ‘तुम लोगों को दुखी करना छोड़ दो। इससे तुम्हारा कल्याण होगा।‘

साँप ने महात्मा जी को आश्वासन देते हुए कहा, ‘मैं आपकी बात समझ गया। अब से मैं किसी को नहीं काटूँगा।‘
अब साँप अपने स्वभाव के विपरीत साधु स्वभाव का बन गया। उसने लोगों को काटना छोड़ दिया। बस फिर क्या था, शरारती बच्चों ने उसकी नाक में दम करना शुरू कर दिया। कभी वे उसकी पूँछ मरोड़ देते, तो कभी उस पर पत्थर फैंक देते। धीरे-धीरे साँप की दुर्दशा होने लगी। एक दिन लहूलुहान हुआ वह महात्मा जी के पास पहुँचा और कहने लगा, ‘महात्मा जी, मैंने आपको वचन दिया था कि अब मैं किसी को नहीं काटूँगा। मैंने अपने वचन की रक्षा की, पर देखिए तो, उन बच्चों ने मेरी कैसी दुर्दशा कर दी है!’

यह सुनकर महात्मा जी ने उससे कहा, ‘मैंने तुझे लोगों को न काटने के लिए कहा था। यह तो नहीं कहा था कि आत्मरक्षा के लिए लोगों पर फुफकारना छोड़ दो।‘ अब साँप को समझ आ गई कि सरलता एक बहुत बड़ा गुण है। उसे अवश्य अपनाना चाहिए पर सताए जाने पर उसका प्रतिकार अवश्य करना चाहिए, परन्तु अपनी आत्मरक्षा के लिए फुफकारना भी आवश्यक है जिससे लोग डरकर भाग जाएँ और सताएं नहीं, अन्यथा विष रहित साँप से कोई भी नहीं डरता।

निम्नलिखित श्लोक में भर्तृहरि जी ने ‘नीतिशतकम‘ ग्रन्थ में उदाहरण सहित इस बात को हमें समझाने का प्रयास किया है।
नात्यन्तं सरलेन भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपा:।।

Simple people अर्थात् अपने व्यवहार में बहुत सीधे न रहें। आप यदि वन जाकर देखते हैं तो पाएँगे कि जो वृक्ष सीधे उगते हैं, उन्हें काट लिया गया और जो पेड़ आड़े-तिरछे होते हैं, वे खड़े हैं। इस श्लोक से यही समझ आ रहा है कि अधिक सीधे होने पर पेड़ भी काट लिए जाते हैं और जो टेढ़े पेड़ होते हैं उन्हें छोड़ दिया जाता है। यानी आवश्यकता से अधिक सरल होने वालों को सदा हानि उठानी पड़ती है। टेढ़े या बुरे लोग उसी तरह छोड़ दिए जाते हैं जैसे दुष्ट ग्रहों को सब त्याग देते हैं और उनके प्रकोप से बचने के लिए उपाय करते हैं। सरल-सहृदय होना बहुत अच्छे गुण हैं पर इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि हर कोई कुचलकर चल दे और वह मनुष्य बस ठगा हुआ सा देखता रह जाए।

एक छोटी-सी चींटी जो किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाती है, यदि उसे छेड़ा जाए तो वह भी आत्मरक्षा के लिए प्रतिकार करती है। इसी प्रकार मनुष्य को भी अवसर आने पर विरोध करना चाहिए। और आवश्यकतानुसार थोड़ा-बहुत यानि जायज क्र ोध का प्रदर्शन भी करना चाहिए। यहाँ एक बात और कहना चाहती हूँ कि दुष्ट अपनी दुष्टता से बाज नहीं आते तो हमें अपने सद्गुणों का परित्याग नहीं करना चाहिए। -चन्द्र प्रभा सूद

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