जिस तरह से इंसान अपने दुश्मनों से बचने को तमाम प्रयास करता है। खुद को सुरक्षित बनाने को या फिर दुश्मन को हराने के लिए हथियार तक उठाता है, लेकिन कीट-पतंगे crops ऐसा नहीं कर सकते। इसलिए उनके पास कुदरत का नायाब हथियार है। वह है रंग बदलने का हुनर। ये कीट-पतंगे अपना रंग बदलने में बड़े कलाकार होते हैं। फसलों पर बैठने वाले ये कीट-पतंगे जैसी फसल होगी, वैसा ही रंग धारण कर पैदा होते हैं।
वर्षों तक कीट पतंगों पर अनुसंधान करने वाले पर्यावरण जीवन विज्ञानी, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कीट विज्ञान विभाग व प्राणी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय (डीएचआरएम) के पूर्व निदेशक प्रोफेसर राम सिंह बताते हैं कि अलग-अलग महीनों में एक ही कीट के नव-निर्मित पतंगे का रंग वैसा ही होता है, जैसा मेजबान फसल का होता है। इस तरह के अनुकूलन को पॉलीफेनिज्म कहा जाता है। यह रंग परिवर्तन कीटों को उनके दुश्मनों से अदृश्य होने के लिए है।
इस तरह वे अपने दुश्मनों या शिकारियों से अपनी रक्षा कर सकते हैं। प्रो. राम सिंह ने कपास के चित्तीदार फल छेदक कीट (स्पाइनी बोलवर्म) पर विस्तृत अध्ययन किया। उनका कहना है कि एक ही कीट के व्यस्क पतंगों का रंग अलग-अलग हो सकता है। यदि सुंडी और प्यूपा को अलग-अलग तापमान पर पाला गया हो। कपास की फसल का जून से अगस्त में मुख्य रूप से हरी पत्तियों का उत्पादन काल होता है।
व्यस्क कीट पतंगों का रंग भी कपास की फसल के समान हरा होता है। अक्टूबर से दिसंबर में तापमान में गिरावट और सर्दियों की शुरूआत के कारण, पौधे भूरे रंग की पृष्ठभूमि के साथ पत्ते रहित हो जाते हैं। फिर नए उभरते व्यस्क पतंगे भी समान रंग के होंगे। व्यस्क पतंगों की शीर्ष पंक्ति हरे रंग की है और निचली पंक्ति भूरे रंग की हैं। बीच की दो पंक्तियों में मिश्रित रंग फसल की पृष्ठभूमि के अनुसार हैं।
इस कीट के पंखों का निकट का दृश्य स्पष्ट रूप से अपने दुश्मनों से आत्मरक्षण के लिए कीट के रंग में महान परिवर्तनशीलता का संकेत देता है। व्यस्क कीट पतंगों में ऐसे कई उदाहरण हैं। जहां बड़ी संख्या में ऐसे अनुकूलन से वे अपने दुश्मनों को धोखा देने में सक्षम हैं। यह आत्मरक्षा रणनीति दूसरों को हानि पहुंचाए बिना प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल है।
मनुष्य को कीड़ों crops से सीखने का सही समय
प्रोफेसर राम सिंह का मानना है कि यह मानव के लिए एक सबक है कि आत्मरक्षा में, दुश्मनों से लड़ने के लिए परमाणु बम, हाइड्रोजन बम या मिसाइल जैसे घातक हथियारों को क्यों विकसित किया जाए जो न केवल मनुष्य, बल्कि पूरे जीवित प्राणियों के लिए विनाशकारी हैं। इस असभ्य जानवर की गलती, मां प्रकृति को सुधारात्मक और प्रभावी नियंत्रण उपाय करने के लिए मजबूर कर सकती है।
आदमी को कीट पतंगों से सीखना चाहिए कि अन्य जानवरों के साथ सद्भाव के साथ कैसे रहना है। मनुष्य को सामूहिक विनाश के सभी घातक हथियारों को नष्ट करना चाहिए। आत्मरक्षा के लिए सबसे स्थायी या कम हानिकारक हथियारों जैसे कि पारंपरिक बांस का लट्ठ (लाठी चार्ज) का उपयोग करना चाहिए। या फिर व्यक्तिगत शक्ति को व्यक्त करने के लिए मलयुद्ध का चयन करना चाहिए। यह समय की तत्काल आवश्यकता है।
वरना मां प्रकृति 1927 की मानव स्थिति को बहाल करने के लिए मजबूर हो जाएगी। अब इसे सार्वभौमिक सत्य माना जाना चाहिए। मनुष्य को कोई भी दुस्साहस करने से पहले पृथ्वी पर अन्य जीवन कल्याण पर विचार करने के लिए एक तंत्र विकसित करना ही पड़ेगा।