बेटा! खड़ा हो जा… -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी ओम प्रकाश इन्सां पुत्र सचखण्डवासी सुंदर दास नजदीक बाल्मीकि चौक वार्ड न.2 ऐलनाबाद जिला सरसा से परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमतों का वर्णन करता है:-
मैं 1990 के आस-पास सरसा-चौपटा सड़क पर एक ठेकेदार के अधीन बिजली के खम्भे लगाने का काम करता था। हम डेरा सच्चा सौदा के आगे से गुजर जाते, हमें यह पता नहीं था कि यह इतना बड़ा धार्मिक स्थल है जहां पर दुनिया को बनाने वाला दो जहानों का मालिक परम पिता परमात्मा आदमी का चोला पहन कर रहता है।
एक बार हम डेरे के पास काम कर रहे थे तो हमने डेरे में लंगर खाया, चाय पी और परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन किए। पहले तो हम डेरे में लंगर खाकर, चाय पीकर खुश हो रहे थे कि बढ़िया खाने पीने को मिल गया है। डेरे का लंगर, चाय, पानी तथा परम पिता जी की दया दृष्टि ने इतना काम किया कि मन में नाम-शब्द लेने के लिए तड़प लग गई।
मैंने पे्रमियों को कहना शुरू कर दिया कि मुझे नाम दिलाओ। एक दिन प्रेमी मुझे साथ लाए और मैंने परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से नाम की दात ग्रहण कर ली। पहले-पहले मैं चलते-फिरते नाम का सुमिरन किया करता था। चार-पांच साल बाद मुझे ब्लॉक की तरफ से सेवादार भाई-बहनों को सरसा दरबार में सेवा पर ले जाने की सेवा मिल गई। इसी समय के दौरान मैंने ज्यादा से ज्यादा सुमिरन करना शुरू कर दिया अर्थात सेवा से सुमिरन भी बनने लगा। मैं हर रोज तीन-चार घण्टे सुबह और डेढ-दो घण्टे शाम को सुमिरन करने लगा।
मुझे परम पूजनीय हजूर पिता जी के दर्शन होने लगे और मालिक सतगुरु ने मुझे नजारे दिखाने शुरू कर दिए। नजारों में इतनी खुशी मिलती जिस का लिख बोल कर वर्णन नहीं किया जा सकता। सर्दियों में एक दिन मैं अपनी लड़की के ससुराल मण्डी आदमपुर में गया हुआ था। मैंने सुबह तीन बजे उठकर अपने आप पानी गर्म करके स्रान कर लिया और सुमिरन करने लगा। मुझे हजूर पिता सतगुरु जी ने दर्शन दिए। मैंने हजूर पिता जी से अरदास कर दी कि इस घर में नामचर्चा होनी चाहिए। मेरे सोहणे सतगुरु पिता जी ने मुझे अशीर्वाद दिया तथा वचन फरमाया, ‘बेटा! नाम चर्चा तुम्हें मिल गई।’ सुबह उठकर मैंने अपनी लड़की को कहा कि अपने घर नामचर्चा होगी। वह कहने लगी कि यह कैसे हो सकता है? नाम चर्चा तो धर्मशाला में होती है।
नामचर्चा घरों में तो देते नहीं, अपने घर कैसे होगी? मैंने कहा कि आज होकर रहेगी। मेरी लड़की प्राईवेट स्कूल में पढ़ाने चली गई। उसके बाद मैंने अपने दोहते से भंगीदास का फोन नं. लेकर भंगीदास को फोन कर दिया और पिता जी के वचनों वाली सारी बात बता दी। भंगीदास ने फोन करके बताया कि चार से पांच बजे तक आपके घर नाम चर्चा होगी। जब मेरी लड़की स्कूल से घर आई ते मैंने उसे बताया कि चार से पांच बजे तक अपने घर नामचर्चा है। उसने मेरी बात का विश्वास नहीं किया। थोड़ी देर बाद सेवादार नाम चर्चा का सामान लेकर हमारे घर आ गए। उस स्पैशल नामचर्चा में बहुत संगत आई और बड़ी धूम-धाम से नामचर्चा हुई।
अभी 5 फरवरी 2021 की बात है। हमने गीजर पर लगाने के लिए उस दिन शाम को गैस वाला सिलेण्डर भरवाया था। उसी दिन मेरे लड़के दीपक कुमार इन्सां का जन्म दिन था। इसलिए हमने साढे आठ बजे अपनी दुकान मंगल (बंद) कर दी। दीपक कुमार ने इससे पहले कभी भी अपना जन्म दिन नहीं मनाया था। हमारे परिवार ने केक काटने से पहले खाना खा लिया था। बहन अंगूरी इन्सां के लड़का-लड़की 9:15 बजे केक कटवाने के लिए हमारे घर आए। उसके बाद मैंने केक कटवा कर अशीर्वाद दे दिया और अपने बिस्तर में जाकर सो गया।
मेरे लड़कों ने पार्टी का काम समाप्त करके 10.15 बजे गैस सिलेण्डर को गीजर पर लगा दिया। जब सिलेण्डर लगाया तो उस समय पीछे गली में किसी लड़के की शादी पर डी.जे. ऊंची आवाज में चल रहे थे। आवाज इतनी ऊंची थी कि ऐसे लग रहा था जैसे धमक से धरती हिल रही हो। सिलेण्डर से गैस लीक हो रही थी परन्तु डी.जे. की ऊंची आवाज की वजह से पता नहीं चला।
रात को हम घर के सभी नौ सदस्य सोए हुए थे। मुझे आवाज सुनाई दी, ‘बेटा! खड़ा हो जा।’ मैं आवाज को अनसुनी करके सो गया। फिर आवाज आई, ‘बेटा! खड़ा हो जा।’ मेरे मन ने फिर भी मुझे उठने नहीं दिया। मैं फिर सो गया। फिर तीसरी बार आवाज आई, ‘बेटा! खड़ा हो जा।’ मैंने हजूर पिता जी की आवाज को अच्छी तरह से पहचान लिया। मैंने सोचा, पिता जी रात को मुझे क्यों उठा रहे हैं? पिता जी मुझे क्या बख्शने वाले हैं? मैंने सोचा, उठते हैं, देखते हैं। मैं अपने बिस्तर से उठा। मुझे पिता जी कहीं भी दिखाई नहीं दिए। मैंने गैलरी में आकर लाइट जगाई। मुझे एक दम गैस चढ़ गई। मुझे सांस लेने में दिक्कत हुई व सिर चकराने लगा। मुझे समझ आई कि गैस लीक हो रही है।
मैंने रैगूलेटर वाला बटन बंद कर दिया। मैंने अपने बड़े लड़के पवन कुमार व उसकी पत्नी वीना रानी को उठाया। मैंने कहा कि बेटा, देखो अपने घर में क्या हुआ पड़ा है! पवन तथा वीना मुझे कहने लगे कि पापा जी, आप ने अच्छा किया जो हमें उठा दिया वरना अपना तो सारा परिवार ही खत्म हो जाता। उन्होंने कोठी के सभी दरवाजे, खिड़कियां खोल दिए, पंखे चला दिए। पवन कुमार ने सिलेण्डर गीजर से हटा दिया जिसमें कुछ गैस बची थी। मैं अपने सतगुरु पूजनीय हजूर पिता जी के वैराग्य में आ गया। मैं पिता जी का लाख-लाख शुक्र कर रहा था जिन्होंने मुझे उठा कर हमारे सारे परिवार को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया। अब पिता जी आप जी के चरणों में मेरी यही अरदास है कि मेरे सारे परिवार को सेवा, सुमिरन परमार्थ का बल बख्शना तथा इसी तरह रहमत बनाए रखना जी।