रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा
बिगड़ी बनाने वाला गुरु बिना कौन है। दुखड़े मिटाने वाला गुरु बिन कौन है॥
मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ! आज जो आपकी सेवा में सत्संग होगा, जिस भजन पे, शब्द पे सत्संग होगा जी, वह भजन है-‘बिगड़ी बनाने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला गुरु बिन कौन है।’ यहां गुरु शब्द की महिमा आई। पहले ये जानना जरूरी है, गुरु किसे कहते हैं। गुरु का मतलब क्या है? अगर शब्दों का अर्थ निकालें तो ‘गु’ का मतलब है अंधकार और ‘रू’ का मतलब है प्रकाश। दोनों शब्दों का मतलब, जो अज्ञानता रूपी अंधकार से निकालकर ज्ञान रूपी दीपक जला दे वह सच्चा गुरु है। गुरु बिना किसी भी काम मेंं सफलता मिलना असंभव है। दुनिया में निगाह मारो, किसी भी क्षेत्र को चुन लो। सबसे पहले जो अपने बोलना, चलना, खाना-पीना सीखा है उसके लिए टीचर गुरु की जरूरत पड़ी और उस गुरु का काम किया हमारी मां-बहन ने, बाप-भाई ने।
जैसे वो बोलते थे वैसे बोलने लगे। देखा-देखी चलने लगे, पहनने लगे। फिर दुनिया में शिक्षा के लिए टीचर, मास्टर लैक्चरार की जरूरत पड़ी। जैसा लगन से पढ़े, उन्होंने पढ़ाया, आगे बढ़ते गए, फिर दुकानदारी की, बिजनेस, व्यापार किया या जो भी काम-धंधा किया उसके लिए भी गुरु की जरूरत पड़ी। छोटा सा सफर करना हो, जहां पहले आप गए नहीं हैं, या किसी देश में जाते हैं तो वहां भी गुरु, टीचर की जरूरत पड़ती है, गाईड की जरूरत पड़ती है। बिना गाईड के, बिना टीचर के वहां भी जाना मुश्किल है तो गौर करने वाली बात है कि जो रास्ते नजर आते हैं उनके लिए गाईड चाहिए, जो पुस्तके बता रही हैं उनके लिए भी गाईड चाहिए। तो क्या रूहानियत के लिए ओ३म, हरि, अल्लाह, गॉड, खुदा, रब्ब की यात्रा के लिए, वहां तक पहुंचने के लिए क्या टीचर, मास्टर, लैक्चरार की जरूरत नहीं? जब हर कार्य में टीचर, मास्टर की जरूरत है तो रूहानियत में भी टीचर मास्टर की जरूरत जरूर पड़ती है और उसे हमारे धर्मों में गुरु, संत, पीर-फकीर इत्यादि नामों से पुकारा जाता है।
कोई भी पाक-पवित्र ग्रंथ, उनको जिन्होंने भी लिखा, उनको भी गुरु, पीर, पैगम्बर या फरिश्ता कहा गया। यानि ये बात बिल्कुल सच है, दुनिया में हमेशा, हर समय गुरु की जरूरत थी, है और आगे रहेगी। इसलिए गुरु शब्द की बहुत महिमा है। गुरु बिना ज्ञान नहीं हो सकता। पुस्तकें शुरू से लेकर एम.ए., एम.एस.सी. डिग्री, डिप्लोमा, पी.एच.डी. सब पुस्तकें मौजूद हैं, क्या कोई उसे अपने आप पढ़कर डिग्रियां हासिल कर सकता है? अगर ऐसा होता तो स्कूल क्यों होते, कॉलेज क्यों होते और उनमें टीचर, मास्टर, लैक्चरारों को पढ़ाने के लिए पैसा क्यों दिया जाता। ये साफ जाहिर है कि सब कुछ सामने होते हुए भी जब तक कोई सिखाएगा नहीं, आप सीख नहीं पाएंगे। जो अर्थ अदृश्य है, दिखने में नहीं आता उसको पाने के लिए तो गुरु की जरूरत हमेशा रही है।
अगर आप ये कहें कि गुरु फकीर तो आता ही नहीं, वो एक बार था तो ये आपका भ्रम है। पिछले जमाने का कोई आॅफिसर है, आज रिटायर है, क्या आप उससे काम करवा सकते हैं? पिछले जमाने का कोई तजुर्बेकार है लेकिन आज वो नहीं है, क्या कोई अपने आप वैसा तजुर्बा सीख पाएगा? बड़ा ही मुश्किल है। इसलिए तो टीचर, मास्टर होते हैं। तो ऐसे ही रूहानियत के लिए गुरु की जरूरत थी, है और हमेशा रहेंगी। जब तक दुनिया है गुरु, पीर, पैगम्बर सच्चा समझाता था, समझाता है और समझाता ही रहेगा। पर सच्चा गुरु जो होता है वो अपने मुरीद के साजो-सामान पे निगाह नहीं रखता। किसी भी तरह का स्वार्थ, किसी भी तरह की गर्ज वो किसी से नहीं रखता।
ये नहीं होता कि वो ये सोचे कि फलां शिष्य मेरा काफी धनाढ्य है, ज्यादा शिष्य बनाने की क्या जरूरत है, क्यों न इसको ही मूंड लिया जाए। नहीं, ये उसका काम नहीं है। वो तो शिक्षा देता है, समझाता भी है और बदले में किसी को लूटता और धोखा नहीं देता। गुरु के बारे में संतों ने,महापुरुषों ने साफ लिखा भी है गुरु निरोल टीचर, मास्टर की तरह होता है जो रास्ता दिखाता है। गुरु आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है, गुरु वो शब्द देता है जिनके अभ्यास से, जिनके जाप से बेअंत फायदा हो सकता है। गुरु के शब्दों का इस्तेमाल सही तरीके से करना जरूरी है। गुरु तरीका बता देगा, युक्ति बता देगा, अब उसपे चलना तो शिष्य का काम है। गुरु ने नाम बताया, तरीका बताया। अगर कोई उसपे चलता ही नहीं, अमल करता ही नहीं तो दोष गुरु का नहीं, दोष तो न चलने वाले का है।
‘गुरु बेचारा क्या करे, जा सिक्खन में चूक’।
गुरु का काम शिक्षा देना है, अगर मुरीद उस पर चले ना तो गुरु उसमें क्या करे। गुरु-फकीर लोगों की कमियां बताते हैं, उनमें आई गिरावट बताते हैं। अब अगर मानने की बजाए गुस्सा करे कि ये कमियां क्यों बताई गई तो गुरु का क्या दोष है? आज कलियुग है, ये देखने में आता है कि लोग रूहानियत का भी, अपने गुरु, फकीर के नाम का भी बड़ा गलत उपयोग करते है। उनको रोको तो बजाए गलती मानने के वो तिलमिला जाते हैं। मैं तो सही हूँ। अपनी गलती नहीं मानते, अपने अंदर की कमियों को नहीं मानते। जो गलतियां की, जो बुरी आदतें डाल लीं अब उससे पीर-फकीर तो रोकेगा। पहले प्यार से, इशारे से, फिर कड़े शब्दों का प्रयोग करेगा।
अब इंसान अगर फिर भी कहे कि गुरु में दोष है तो आप खुद ही बताइये कि किस में दोष है। गुरु, फकीर कभी किसी को गलत रास्ता नहीं दिखाते। उनका काम लोगों को सही मार्ग दिखाना है, सही रास्ता दिखाना है। मानने वाले बहुत कम लोग होते हैं, ज्यादातर मनमर्जी करते हैं। फकीर की कही बात को सुन लिया, लेकिन अमल नहीं किया, उस पर विश्वास नहंीं किया तो फायदा कहां से हो। तो भाई! इस कलियुग में लोगों का बड़ा ही बुरा हाल है। गुण खत्म हो रहे हैं, अवगुण जोर पकड़ रहे हैं। आज ज्यादातर लोग अवगुणों का सहारा लेते नजर आते हैं। उनके अंदर बुरी सोच बैठ जाती है, गलत धारणा बन जाती है। तो ऐसा जब अंदर खुदी अहंकार आ जाता है वो किसी गुरु का नहीं रह जाता। खुद गुमराह हो जाता है और जो उसके पास बैठ जाता है उसे भी गुमराह करने की बात करता है। ऐसी बुरी सोच का कभी साथ न दो, संग न करो, कन्नी कतरा जाओ। क्योंकि जो आपको अल्लाह, राम से दूर करना चाहते हैं वो आपके साथी नहीं हैं बल्कि काल के एजेंट लगते हैं।
उनका मकसद तो अपना उल्लू सीधा करना है। ऐसे लोगों को हमने देखा जो मनमर्जी करते हैं। मन के अनुसार गलत चलना, गलत बोलना, गलत सोच रखना और उनको रोको तो और तिलमिला जाना कि हम तो चलेंगे, हमें क्यों रोका। यही तो गुरु का काम होता है, कोई गलत कर्म करे, उसे रोका जाए। ये जरूर है कि सुनने वाले को कड़वा लगता है। किसी के भी मन को ठोकर मारो वो तिलमिलाएगा। उसके अंदर बेचैनी आएगी कि मुझे क्यों कहा। वो कड़वा बोलने वाला है, हमेशा कड़वा बोलता रहता है, गुस्से में बोलता है, फकीर उसे प्यार से समझाते हैं कि कड़वा मत बोलो, गुस्से में मत बोलो। ऐसे में आप बताइए अगर फकीर ऐसा करने से रोकता है तो इससे फकीर को क्या लाखों रुपया मिल जाएगा? क्या उस फकीर का कोई अलग से फायदा हो जाएगा? बिल्कुल नहीं। फायदा होगा उस इंसान का अगर वो वचन मानेगा। अंदर-बाहर कड़वापन त्याग देगा, यानि विचारों में, जुबान पर अगर मिठास होगी तो मालिक का रहमत रूपी अमृत जरूर चखने को मिलेगा, वो मिठास जरूर चखने को मिलेगी।
अंदर अगर जहर भरा हुआ है तो जुबान पर मिठास नहीं आती, कड़वापन आता है, बुराई की बातें आती हैं, गलत सोच आती है और इंसान बुराई की दलदल में डूबता चला जाता है। तो संत तो लोगों के भले के लिए ऐसा करने से रोकते हैं, सबके भले के लिए रोकते हैं। फायदे के लिए रोकते हैं, यही गुरु की ड्यूटी होती है कि वो समाज में रहने वाले इंसानों को सिखाए कि प्रकृति की सेवा करो, सृष्टि से प्यार-मोहब्बत करो और उसमें गर्ज-स्वार्थ न रखो। निस्वार्थ भावना से,प्यार मोेहब्बत करोगे तो मालिक की रहमत आप पर जरूर बरसेगी। आप अपने अंदर की आत्मिक शांति, अमृत-आबोहयात को जरूर चख पाएंगे। तो संतों का, फकीरों का ये काम होता है।
गुरु , आपसे पैसा नहीं लेता, चढ़ावा नहीं लेता, किसी भी किस्म की आप से कोई गर्ज नहीं रखता फिर भी आप उसे ही दोष देते रहते हैं तो ये आपके ऊपर मन का जादू है जो आप पे चला हुआ है। उस मन की वजह से आप अपना अकाज कर लेते हैं। तो गुरु शब्द की बड़ी महिमा है। ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब कहां है, कैसा है, कैसे उससे मिला जाता है, चाहे मालिक की रहमत से, पर बताया गुरु ने। गुरु के बिना मालिक कभी ज्ञान नहीं देता। उसके बारे में शायद ही कोई जान पाता। इसलिए संत, पीर फकीर उस आदि-गुरु को माना करते हैं, जिसने शुरूआत की, रूहानियत का पाठ पढ़ाया, अल्लाह-मालिक के जलवों से मिलाया, जानकारी दी। और फिर फकीर अपने गुरु का अदब-सत्कार हद से ज्यादा करते हैं। तो आदि-गुरु को हमने देखा नहीं, पर वाकई ही सत्कार योग्य हैं। पर जिस गुरु ने नवाजा, दया-मेहर, रहमत की, जिसने सार-संभाल की उस गुरु, पीर, पैगम्बर को अरबों-खरबों बार भी सजदा करो, रोम-रोम आंख बनाकर भी दर्श-दीदार करो तो भी कम है। क्योंकि सच्चा गुरु जो भी कार्य करता है वो सही करता है।
तो ये ही भजन में आया-‘बिगड़ी बनाने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला गुरु बिन कौन है’
हां जी चहिए भाई
टेक:- बिगड़ी बनाने वाला गुरु बिना कौन है।
दुखड़े मिटाने वाला गुरु बिन कौन है॥
1. माया ने पल-पल है भटकाया, गफलत का है पर्दा पाया।
पर्दा हटाने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला……..
2. मन है साथी पांच चोर बनाए, सारे जगत को जो रहा भरमाए।
मन से बचाने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला…….
3. पांच चोर दिन-रात पूंजी लूटी जाते, अपनी ताकत से काबू न वो आते।
इनसे बचाने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला……..
4. इनसे बचाए न बाप कोई माई, इनसे बचाए न बहन कोई भाई।
इनसे बचाने वाला गुरु बिन कौन हैै, दुखड़े मिटाने वाला……..
5. धन और अक्ल से काबू न ये आए, इनसे बचे जो सत्संग में आए।
बचने की युक्ति बताने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला……..
6. मोह-माया (ममता) का पाया है फंदा, फंस जाता जीव हो कर अंधा।
सोझी कराने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला…….
7. नाम की साबुन से करते सफाई, जन्म-जन्म की मैल धुल जाई।
निर्मल (पवित्र) कर दे जो गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला……..
8. नैया भवसागर में गोते थी खाती, घुम्मनघेर में थी फंस जाती।
किश्ती तराने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला……..
9. ज्ञान दीप देकर अंधेर मिटाई, भेद भ्रम अब रहा न काई।
भ्रम मिटाने वाला गुरु बिन कौन हैै, दुखड़े मिटाने वाला……..
10. लम्बा चौरासी का चक्कर बनाया, जन्म-मरण का कष्ट उठाया।
काल से बचाने वाला गुरु बिन कौन है, दुखडेÞ मिटाने वाला……
11. अज्ञानता की नींदरा से गुरु ने जगाया, दीपक ज्ञान देकर घट में दिखाया।
प्रभु को दिखाने वाला गुरु बिन कौन है, दुखड़े मिटाने वाला…..
12. गुरु, गुरु, गुरु, गुरु कर मन मोर, गुरु बिना तेरा कोई न और।
‘शाह सतनाम जी’ को बताने वाला, गुरु बिन कौन है, …।।
इस बारे में जो भी संतों की, पीर-पैगम्बरों की बाणी आएगी आपको साधु सेवादार भाई पढ़कर सुनाएंगे, इस बारे में लिखा है:-
जिस किसी को संत अपनी शरण मे ले लेंवे उस पर गुरु की मोहर लगा देते हैं, उसको काल और उसके लेखों से बचा लेते हैं।
संत, पीर-फकीर की सोहबत, संग में जो रहते हैं अगर वो अमल करें तो काल उनका बाल बांका नहीं कर सकता, बुराइयां कुछ बिगाड़ नहीं सकती। क्योंकि फकीर उसको राम-नाम का कवच पहना देते हैं, ऐसे वचन करते रहते हैं जो समय-समय के अनुसार उसके काम आते रहते हैं।
तो अगर पूर्णतय अमल कर ले तो फायदा जरूर होता है, शक्ति जरूर मिलती है लेकिन जब मालिक से बिगड़ जाती है, जब मन जालिम के हत्थे इंसान चढ़ जाता है तब बिगड़ी बनाने वाला गुरु बिना कौन है। तब गुरु, पीर-फकीर आता है जो आत्मा की मालिक से बिगड़ी हुई बात है उसे सुलझा देता है, मालिक से जोड़ने का काम जरूर करता है। दुखड़े मिटाने वाला गुरु बिना कौन है। कोई भी दु:ख है- काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया का दुनिया में उनसे भी बचाने के लिए गुरु, पीर, फकीर, मुर्शिदे-कामिल रास्ता बताते हैं।
अरे! आप दुनिया में रहते हैं, दुनिया के लोगों से आपके विचार नहीं मिलते कोई बात नहीं लेकिन पीर, फकीर किसी को दुत्कारते नहीं। इंसान अपने ख्यालों से कुछ भी घटिया बात कहे पर फकीर कभी गुस्से में आकर उसे बद्दुआ या श्राप नहीं देते। संतों का ये काम है- ‘संत न छोड़े संतमयी, चाहे लाखों मिले असंत’। कोई काफिर कहने वाला मिल जाए, गुरु-फकीर को कोई गलत कहने वाला मिल जाए कि ये तो गलत है, किसी काम का नहीं, कोई ताकत नहीं, बेकार है। फकीर इस पर भी मुस्करा देते हैं कि जैसा तेरा ख्याल भाई। मालिक तुझे सद्बुद्धि दे। हम अपना नहीं कहते, उस दयाल को याद रख जो सर्वशक्तिशाली है, हमें जो मर्जी कह पर उसके साथ जुड़ा रह तो भी तुझ पर दया-मेहर, रहमत जरूर बरसेगी। ये अपने मालिक से दुआएं करते रहते हैं, मालिक तू जाने, तेरा काम जाने पर जब इंसान की अति हो जाती है, अगर वो मन के अधीन होकर कुछ करता है तो फिर सतगुरु, मालिक होता है वो जाने उसका मालिक जाने।
इसलिए ये वो उस पर छोड़ देते हैं। किसी को कुछ कहते नहीं। पर वो तो देख रहा है, वो तो जानता है कि जब फकीर किसी को कुछ कहता नहीं, कभी यह नहीं सोचता कि मालिक इस का बुरा कर वो तो बल्कि दुआ करते हैं कि मालिक तेरी अंजान औलाद हैं और वो मालिक जाने अपनी औलाद को कैसे समझाता है। अगर इंसान किसी के बल पर अहंकार करता है कि मेरे पीछे दस लोग हैं, इतना गुंडा है, वो किसी से डरता नहीं, तो भाई, फिर फकीर का भी अल्लाह, वाहेगुरु होता है। वो कहता है सच कहूँगा जो मर्जी कह ले लेकिन कहूँगा सच। अगर तेरा कोई आधार है तो मेरा भी अल्लाह, वाहेगुरु, सतगुरु, मालिक है। वो सब जानता है, वो सब कुछ देखता है।
भजन के शुरू में आया-
माया ने पल-पल है भटकाया,
गफलत का है पर्दा पाया,
पर्दा हटाने वाला गुरु बिन कौन है।
काल की एक ताकत, नेगेटिव पावर की एक शक्ति जिसे माया कहा जाता है, इसके दो रूप हैं। एक अप्रत्यक्ष, दूसरा प्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष रूप रुपया, पैसा, जमीन जायदाद जो कि अपने को पता ही है और अप्रत्यक्ष-ऐसा सूक्ष्म पर्दा है आंखों पर कि जो कुछ झूठ है उसको सच दिखाना और सच को झूठ बताना। हमारे हर धर्मों में हमने पढ़ा, ये लिखा हुआ है कि जो कुछ भी नजर आता है तबाहकारी है, फनाहकारी है, खत्म होने वाला है, कभी साथ नहीं जाता। इस धरती पर बनाओगे इस पर छोड़कर चले जाओगे। लेकिन फिर भी हैरानी है कि इसी सामान के लिए झगड़े होते हैं, इन्हीं के लिए लोग दु:खी हो रहे हैं, परेशान हो रहे हैं, गमगीन हैं। ऐसा क्यों है, क्योंकि माया का पर्दा कमजोर कर देता है। जो कुछ है उसे अपना बना ले, कोई करे, तड़पे, खपे, कुछ भी हो उनकी परवाह नहीं है अर्थात झूठ को सच यानि अपना बना देता है। और सच को झूठ। कोई अल्लाह, वाहेगुरु, राम की बातें करे तो जम्माइयां लेने लगता है, नींद आने लगती है, खाज-खुजली करने लगता है, कभी भागने की सोचता है, तो कभी और ख्यालों में चला जाता है। तो ये सब माया का जाल है।
दौलत, माया ने बुरी तरह से लोगों को जकड़ा हुआ है। गुरु-फकीर ही माया के बारे में समझाता है, माया का पर्दा उठाता है। अरे! पागल मत बनो। कमाओ, जितना मर्जी कमाओ लेकिन हक-हलाल से। कड़ा परिश्रम, मेहनत की कमाई, दसां नहु्रंआं दी किरत कमाई करके खाओ जो आपके अंदर-बाहर अमृत-आबोहयात का काम करेगी। संत रोकते नहीं कमाने से क्योंकि कर्म करना तो हर जीव का फर्ज है। कर्म करो पर ऐसे न करो जिससे कोई दूसरा तड़पे। वरना बबूल का पेड़ देखो उस पर आम नहीं लगेंगे अगर बुरे कर्म करोगे तो बुरा ही होगा। आपकी सेहत, आपका शरीर, आपकी परेशानियां बढ़ती जाएंगी, इसलिए बुरे कर्म न करो। अच्छे कर्म करो। माया के पीछे पागल मत बनो। जीने के लिए कमाओ लेकिन अगर कमाने के लिए जीने लग गए तो मशीन बन जाओगे।
‘मन ने साथी पांच चोर बनाए,
सारे जगत को जो रहा भरमाए।
मन से बचाने वाला गुरु बिन कौन है।’
इस बारे में लिखा, बताया है-
मन का ये काम है कि किसी को अपने दायरे से बाहर नहीं जाने देता। इसने जीवों को जादू करके फरेब से काबू में रखा हुआ है और हम अपने निज घर को भूल बैठे हैं और दर-बदरी हमारे भागों में लिखी गई है।
मन और माइंड एक नहीं है। आपके दिमाग में जो बुरे विचार आते हैं, धर्मों में लिखा है वो मन की देन है। आपके दिमाग में जो अच्छे विचार आते हैं उसे हिन्दू और सिक्ख धर्म में आत्मा की आवाज, अंदर की आवाज कहा जाता है, उसे मुसलमान फकीर रूह-जमीर की आवाज कहते हैं। बुरे ख्याल जो देता है वह मन है और अच्छे ख्याल जो देता है वो आत्मा-रूह की आवाज है। पर मन और माइंड एक नहीं है। मन तो बुराई की जड़ है। आप कहीं भी बैठे हैं। दिखने में आप कुछ और पर अंदर मीटिंग कुछ और ही चल रही है। दिखने में लगता है कि भक्त जी हैं लेकिन होते बगुले भक्त हैं। तो ये मन है जो आपको गलत तरफ लेकर जाता है। बुरी सोच देता है इसके हत्थे मत चढ़ो वरना ये जड़ से खत्म कर देता है। इनके पीछे लगकर अगर पागल बन गए तो मन कुछ भी नहीं छोड़ेगा। मन के बुरे विचार चलते रहते हैं।
पांच चोर पूंजी दिन-रात लूटी जाते,
अपनी ताकत से काबू न वो आते।
उनसे बचाने वाला गुरु बिन कौन है।
इस बारे में लिखा है-
अब मन जागत रहु रे भाई॥ गाफुल होइ कै जनमु गवाइओ चोरु मुसै घरु जाई॥ पंच पहरूआ दर महि रहते तिन का नही पतीआरा।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि हे भाई, तू मन कर के होशियार रह और नींद न करो क्योंकि आलस में पड़कर आपने अपना जन्म गवा लिया है और काम, क्रोध, लोेभ, मोह, अहंकार आगे चोर तेरे घर को लूट रहे हैं। चाहे पांच चोकीदार इंद्रे हैं किंतु उन पर भरोसा न करो।
ये पांच चोर काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार ये ऐसे जालिम हैं कि इन पर अगर विश्वास करो, इनपे अगर भरोसा करो तो ये आपको डुबो देते हैं। किसी के अंदर काम-वासना की आग जलती रहती है। ये अपना बेटा है, मां-बहन, बेटी, पति-पत्नी रिश्ता तो है लेकिन हर किसी को उसी नजर से देखने लगता है जब एक गंदगी का कीड़ा बन जाता है। कोई रिश्ता नहीं, सिर्फ स्त्री-पुरुष का रिश्ता रह जाता है। जब इंसान के अंदर काम-वासना का तूफान उठने लगता है तो हर किसी को गंदी नजरों से देखता है। हर किसी के बारे में गंदा सोचता है। जब इंसान को गुस्सा आ जाता है तो इंसान चंडाल बन जाता है। अपनो को भी बुरा कह जाता है, अपनी मां-बहन, भाई को। बाद में चाहे पछताता रहे। ‘लोभ है सर्व पाप का बाप’, लोभ-लालच जहां आ गया बाकी पाप अपने आप जुड़ते चले जाते हैं। लोभ-लालच के लिए तो आज सारे झगड़े होते हैं, दंगे-फसाद होते हैं, मारा-मारी चल रही है। फिर है मोह-ममता, ये भी बहुत भयानक है। जो इसमें अंधे हो जाते हैं उनके लिए इनके अलावा और कोई बात ही नहीं रह जाती। सारा दिन मोह-ममता में डूबे रहते हैं। मालिक को भूल जाते हैं। ऐसे अंधे हो जाने से न तो उनका फायदा होता जिनके लिए अंधे हो जाते हैं और खुद का नुकसान क्योंकि भगवान अल्लाह, राम से दूर हुआ। तो भाई, खुशी नहीं मिलती। इसलिए इसमें डूबना नहीं चाहिए।
फिर आता है अहंकार, खुदी। ये भी बहुत बुरी बला है। इंसान के अंदर किसी को ऊंचा धर्म, ऊंची जात, ऊंचा मजहब, रुपए पैसे का, किसी को ताकत का, शक्ति का, किसी को अक्ल, चतुराई का। ये जो अहंकार, गुमान जो आएगा वो गलत है। अहंकार को मार पड़ती आई है। इंसान बहुत तरह की बुराइयों का प्रतीक बन जाता है। रावण है, क्या आज उनकी कमी है? जो दूसरों को बुरी नजरों से देखते हैं तो रावण की याद आती है कि ये भी तो रावण है। नाम चाहे और कुछ है, जब अपनी मां-बहन या किसी की परवाह नहीं करता, गलत निगाह से देखता है। रावण ने भी पराई औरत पर निगाह रखी। अहंकार किया। अहंकार की बात आती है तो इंसान रावण नजर आता है और जो लोग अपने आप अपनी अलग हस्ती कायम कर लेते हैं कि मैं पता नहीं क्या बन गया।
मैं हूँ तो सब कुछ है, ऐसी हस्ती है तो हिरण्यकश्पु नजर आते हैं क्योंकि हिरण्यकश्पु जो था वो भी तो ये ही कहता था कि मैं भगवान हूँ। तो आज इंसान के कई रूप नजर आते हैं। कहीं रावण, कहीं कुछ, तो कहीं कुछ। तो भाई! उन हस्तियों में अगर आप पड़ोगे, बुराई के प्रतीक जब आप बन जाते हैं तब फकीर रोकता है कि मत करो ऐसा, ऐसे मत बनो। उनका हश्र क्या हुआ ये आप जानते हो आपका कोई अलग नहीं होगा। तो इन पांच चोरों से बचाने वाला अगर कोई है, ओ3म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम बताने वाला वो गुरु, पीर, फकीर है। जो अल्लाह, राम से जोड़ता है। मालिक का नाम बताता है।
इनसे बचाए न बाप कोई माई,
इनसे बचाए न बहन कोई भाई।
इनसे बचाने वाला गुरु बिन कौन हैै
इस बारे में लिखा बताया है-
इसु ग्रिह महि कोई जागतु रहै।। साबतु वसतु ओहु अपनी लहै।। सगल सहेली अपनै रस माती।। ग्रिह अपुने की खबरि न जाती।। मुसनहार पंच बटवारे।। सूने नगरि परे ठगहारे।। उन ते राखै बापु न माई।। उन ते राखै मीतु न भाई।। दरबि सिआणप ना ओइ रहते।। साध-संगि ओइ दुसट वसि होते।।
जब गुरु, फकीर सत्संग में समझाते हैं, तभी ये काबूू में आते हैं। इनको किसी डर से भगाया नहीं जा सकता। यानि काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया को किसी डर से आप चुप नहीं करा सकते। पांच इंद्रियां, जैसे आंखें हैं, नाक है, मुंह है, स्वाद है, सोचने की ताकत इनके द्वारा आप सोचते हैं कि ये आपका पहरा रखते हैं लेकिन ये तो इनके गुलाम हो जाते हैं। ये इंद्रियां तो वैसे ही चलती हैं जैसे मन जालिम कहता है। इसलिए होशियार रहिए, मालिक के नाम के द्वारा।
धन और अक्ल से काबू न ये आए,
इनसे बचे जो सत्संग में आए।
बचने की युक्ति बताने वाला गुरु बिन कौन है’
कि सत्संग में संत, पीर, फकीर युक्ति बताते हैं। राम का नाम, अल्लाह, की इबादत, वाहेगुरु की याद का तरीका बताते हैं। इसको बाकायदा प्रयोग में लाओ। नाम तो बता दिया फकीर ने, अब प्रैक्टीकल तो आप ने ही करना है। टीचर पढ़ाता है, आगे ग्रहण तो बच्चा करेगा। पढ़ेगा, होमवर्क करेगा। चलो, सब कुछ ही टीचर करवा देता है लेकिन जब पेपर देने हैं तब तो बच्चों को पढ़ना पढेÞगा। अमल न करे तो बताइये उसमें टीचर की गलती क्या है। संत, पीर-फकीर कभी किसी को गलत नहीं कहते, किसी की गलतियों को पूछते नहीं, अगर इंसान अमल करता है, अपनी गलतियों से तौबा करता है तो मालिक से प्रार्थना करके फकीर उनकी गलतियां माफ करवा देते हैं। ये समझ भी तो गुरु ही देता है कि तुझ से गलती हो गई, जाने, अंजाने में, चाहे जैसे हो गई, मन के हत्थे न चढ़कर उस अल्लाह, मालिक से क्षमा मांग, सच्चे दिल से तौबा कर, वो तेरी गल्तियां माफ करेगा और दया-मेहर, रहमत से जरूर नवाजेगा।
नाम की साबुन से करते सफाई,
जन्म-जन्म की मैल धुल जाई।।
निर्मल (पवित्र) कर दे जो गुरु बिन कौन है।
तो फिर संत, पीर-फकीर सत्संग मेें आए जीवों को राम नाम का साबुन देते हैं, अल्लाह, राम की भक्ति का, उसकी याद का साबुन देते हैं कि इसे लगाते जाओ जिससे आपकी आत्मिक मैल उतरती जाएगी, आप पाक-पवित्र बनते जाओगे,उसकी दया-मेहर, रहमत के काबिल बनोगे। तो संत, फकीरों के वचनों को अन्यथा न लो बल्कि अमल करो। उनकी किसी से कोई भी किसी भी किस्म की कभी दुश्मनी नहीं होती। आपका मन दुश्मन है आपका, जो जैसे लोगों को देखता है वैसा आपको बना देता है। और ऐसा कलियुग है कि कोई भी फकीर के पास है, मान लीजिए कोई आदमी आपके पास से आए, इधर कोई बात की और आपको जाकर कुछ और कह दिया और आप सोचते हैं कि फकीर ने ही ऐसा कह दिया होगा, ये आपकी गलतफहमी है। ऐसा कलियुग आ गया है कि वो आपको भड़काने के लिए दस कदम की दूरी में ही कुछ का कुछ बना देता है, जो मन के हत्थे मजबूर है।
इसलिए आपके अंदर कभी ऐसी बात बैठे तो फकीर से पूछ लीजिए, वो इसका जवाब जरूर देगा। अपने मन में तूफान खड़ा न कीजिए कि ये तो मैंने खुद देखा है, पास खड़ा था। ऐसा नहीं, वो भी मन के अधीन कभी भी हो सकता है। कोई भी बात बना कर कह सकता है। इसलिए आप अपनी आत्मा, अपनी जमीर की आवाज पर यकीन कीजिए, पीर-फकीर पर विश्वास कीजिए और अगर आपको कोई बात अच्छी नहीं लगी हो, आपके अंदर शक पैदा करती हो तो अपने गुरु से पूछना गलत नहीं होता। ये उत्तर लेना जरूरी है।
आप कभी भी इस कलियुग में किसी भी इंसान की कही बात का न बुरा मानें और न ही उसकी बात को फकीर से जोड़ें। आप सोच लेते हैं कि ये आदमी ऐसा करते हैं शायद फकीर ही ऐसा है। नहीं, ऐसा नहीं होता। क्योंकि पेड़ खराब नहीं होता फल खराब हो जाता है। किसी भी धर्म का पहनावा पहन कर, उस धर्म का नाम लेकर धर्म-मजहब को बुरा मत कहिए। क्योंकि आप तो पहनावे को जानते हैं, भावना को तो अल्लाह, राम जानता है। क्या धर्म की भावना उसके अंदर है? ऐसा पहनावा पहन कर अगर तू बुरा कर दे तो भाई वो करने वाला बुरा है। ऐसे ही ‘न हिंदू बुरा है न ही सिक्ख, ईसाई, मुसलमान बुरा है। बुराई पर उतर आए वो इंसान बुरा है’।
धर्म-मजहब बुरे नहीं होते। किसी धर्म में पीर-पैगम्बर, गुरु ने किसी का बुरा करने का न लिखा और न ही कहा। हां, बुराई पर जो उतर आते हैं, बुराई पर जो चल पड़ते हैं उनकी वजह से सारा धर्म-मजहब बुरा नहीं होता। इसलिए इंसान सबको एक तराजू में न तोले। इंसान आपको गलत कहता है, बुरा कहता है तो आप ये मत सोचिए कि उसको फकीर ऐसा कहता है। वो अपने मन का गुलाम है, अपने मन के हत्थे मजबूर है। फकीर तो सबके लिए दुआएं करते हैं, सबका भला मांगते हैं, नाम की दवा देते हैं ताकि सुमिरन करके आप मैल उतार सकें और मालिक के दर्श-दीदार के काबिल आप बन सकें। भजन के आखिर में आया जी-
नैया भवसागर में गोते थी खाती,
घुम्मनघेर में थी फंस जाती।
किश्ती तराने वाला गुरु बिन कौन है।
दुनिया का जो रहना है यह भवसागर है, यहां पे बुराई के तूफान उठ रहे हैं। कई बार इंसान इतना मजबूर हो जाता है कि वो खुदकुशी की सोचने लगता है। वो ऐसा कर भी लेता है लेकिन ये तो बिल्कुल गलत है, क्यो? क्योंकि ‘आत्मघाती सो महापापी’। कहने का मतलब कि ऐसा संसार में हो रहा है कि इंसान उससे हद से ज्यादा परेशान हो जाता है, उसे झेल नहीं पाता और एक ही रास्ता नजर आता है और वह मौत कि खुद का छुटकारा। तो भाई! इस झूठ के युग में, बुराई के युग में जहां बुराई की बात के लिए कोई चमत्कार की जरूरत नहीं। कोई थोड़ी सी बात छोड़ दे, जिसका कोई सिर-पैर नहीं उस पर इंसान झट से विश्वास कर लेता है लेकिन जो संतों ने रिसर्च करके लिखा कि अल्लाह है, वाहेगुरु है, राम है, उसकी दया-मेहर, रहमत बरसती है, कमी नहीं रहती।
उसके जो ग्रंथ भरे पड़े हैं, लिखा हुआ है, उनके नाम दर्ज हैं, उनपे विश्वास करने को इंसान तैयार नहीं होता और बिना सिर-पैर की कोई छोड़ दे उसको झट से पकड़ लेता है। ऐसा है ये झूठ का बोलबाला, झूठा संसार। तो इसी में जिंदगी रूपी नैया, विचार, ख्यालात घुम्मनघेरी में पड़ जाते हैं, इंसान के विचार डगमगाने लगते हैं। तो सहारा देता है वो सतगुरु, अल्लाह, राम। वो ही बांह थामता है , वरना तो इंसान सोचता है किस पर विश्वास करे। जिसे देखो बुराई में लगा हुआ है, जिसे देखो, बुरे कामों में लगा हुआ है। कैसे यकीन करे, कैसे समझे कि भाई ये सही कर रहा है पर फिर भी विश्वास तो करना ही पड़ेगा क्योंकि हर काम के लिए विश्वास करना जरूरी है। तो उन फकीरों का, जिन्होंने इतना लिखा है, रिसर्च के बाद सारी-सारी उम्र लगा दी, भलाई नेकी के लिए सब कुछ कुर्बान किया, क्या उनकी बातों पे विश्वास नहीं करना चाहिए, अगर करे तो रिजल्ट पॉजिटिव मिलेगा, मालिक की दया-मेहर, रहमत के काबिल जरूर बनेगा।
ज्ञान दीप देकर अंधेर मिटाई,
भेद-भ्रम अब रहा ना काई।
भ्रम मिटाने वाला गुरु बिन कौन है।
जो ज्ञान करवाता है, वो फकीर करवाता है, गुरु, सच्चा मुर्शिदे-कामिल करवाता है, वोही अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करवाता है। तो गुरु के वचन अगर इंसान मान ले, अमल कर ले तो जरूर बुराइयों से छुटकारा होगा। आप अपने गम दु:ख चिंताओं से आजाद होकर, उसकी दया-मेहर, रहमत के काबिल जरूर बन सकते हैं, अपने अंदर की बुराइयों पर जीत हासिल कर सकते हैं। और जब तक आप अमल नहीं करते दया-मेहर रहमत के काबिल नहीं बन सकते। तो गुरु का काम लोगों को अज्ञानता रूपी अंधकार से बाहर लाना है। पाखंडवाद मत करो। अरे! पांच-सात र्इंटें लगाते हो और उसी के आगे झुक जाते हो, क्यों वो मालिक है? मालिक वो नहीं जिसे आप बनाते हैं, मालिक वो है जिसने आपको बनाया है, मालिक वो है जिसने सारी सृष्टि को बनाया है। मालिक वो नहीं जो दो रुपए में खुश हो जाए। मालिक वो है जिसने सब कुछ बनाया है। वो इंसान के दो रुपए पर खुश नहीं होगा। अगर वो पैसे का आशिक है तो नोट बनाने वाली मशीन के ऊपर न बैठ जाएगा और वहीं से करारे-करारे नोट लेता रहेगा। तो इन पाखंडों से अगर कोई बचाने वाला है तो वो सच्चा गुरु है, जो सिखाता है। वो मालिक दया का सागर, रहमत का दाता है। वो जन्म-मरण में न आते हुए भी हर जगह मौजूद है।
आगे भजन में आया-
लंबा चौरासी का चक्कर बनाया,
जन्म-मरण का कष्ट उठाया।
काल से बचाने वाला गुरु बिन कौन है।
इस बारे में लिखा-बताया है-
जो रूहें नरकों में से निकलती हैं, वो पहले वृक्षों में प्रवेश करती हैं, फिर कीड़े-मकौड़ों में, फिर पक्षियों में और फिर मनुष्य का जन्म लेती हैं। ‘लख चउरासीह भ्रमतिआ दुलभ जनमु पाइओइ॥ नानक नामु समालि तंू सो दिनु नेड़ा आइओइ॥ कई जनम भए कीट-पतंगा॥कई जनम गज मीन कुरंगा॥ कई जनम पंखी-सरप होइओ॥कई जनम हैवर-ब्रिख जोइओ।। मिलु जगदीस मिलन की बरीआ॥ चिरंकाल इह देह संंजरीया।।’
कि चौरासी लाख जन्म-मरण में जाना पड़ता है। उससे बचाने वाला गुरु, फकीर होता है जो अल्लाह, वाहेगुरु के नाम से जोड़ कर आवागमन से मोक्ष-मुक्ति दिलवा देता है। ‘जन्म-मरण से’, इतना बड़ा रोग, जो किसी से नहीं कटता, वो फकीर अल्लाह, राम के नाम से कटवा देते हैं। जो अमल कर लेते हैं वो देख भी लेते हैं कि कैसे कट जाता है, कै से वो खण्डों-ब्रह्मण्डों को पार करते हुए निज मुकाम पहुंच कर मालिक की दया-मेहर के दर्श-दीदार कर लेते हैं।
अज्ञानता की नींदरा से गुरु ने जगाया,
दीपक ज्ञान देकर घट में दिखाया।
प्रभु को दिखाने वाला गुरु बिन कौन है।
कई बार कई लोग गुरु पीर, फकीर की बात को अमल में ना ला कर उनमें में भी कमियां निकालने लगते हैं। वो ये नहीं जानते कि इसमें उनकी क्या रजा होती है। वो मालिक, अल्लाह, वाहेगुरु की उपमा में रहते हैं, उसकी याद में रहते हंै। तो अपने मुर्शिदे-कामिल, अपने सतगुरु, अपने अल्लाह, अपने वाहेगुरु, अपने राम में दृढ़ विश्वास रखें। अगर काल आपके ऊपर कोई मुसीबत डाल देता है, मान लो आपको कोई घाटा पड़ गया, आपको कोई परेशानी हो गई, मुश्किलें आ गई तो काल ने अगर मुश्किलें डाली हैं तो आपका भी मालिक है, वो दयाल है। उस पर दृढ़ विश्वास रखिए। अगर वो मुश्किल में आपको फंसाता है तो वो निकालता भी ऐसे है जैसे मक्खन में से बाल निकाल लेते हैं। तो उस अल्लाह, वाहेगुरु, राम पे भरोसा रखिए। वो दया-मेहर का दाता है। तो भाई, फकीर अपने अल्लाह, अपने वाहेगुरु, अपने सतगुरु पर विश्वास रखते हैं, उसी के वचनानुसार चलते हैं।
भजन के आखिर में आया-
गुरु, गुरु, गुरु, गुरु कर मन मोर,
गुरु बिना तेरा कोई न और।
‘शाह सतनाम जी’ को बताने वाला
गुरु बिन कौन है।’
इस बारे में लिखा-बताया है-
‘घर के मालिक बिना होता जैसे सूना डेरा है गुरु दिखाई दे तो शिष्य के लिए प्रकाश, न दिखाई दे तो अंधेरा है। जैसे प्यासे को पानी बिना बात कोई भाती नहीं। जैसे विरह के मारे को बात किसी की भाती नहीं। जैसे सुहागन देख पति को दिल ही दिल में हर्षाती है। काले-बादल देख आकाश में मोर जैसे पैलें पाता है। ऐसे तैसे शिष्य देख गुरु को फूला नहीं समाता है।’
तो भाई! जिसने बुराइयों से बचाया, जिसने पाखण्डवाद से बचाया और जिसके प्यार-मोहब्बत की कहानियां जितनी लिख दी जाएं कम हैं। तो ऐसे गुरु मुर्शिदे-कामिल का वर्णन लिख-बोल कर करना असंभव है। हमारे गुरु-मुर्शिदे-कामिल ने डेढ़ साल साथ रहकर सारे लोगों को ये बताया कि हम कहीं भी नहीं जा रहे ‘हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे’ ऐसा वचन नहीं सुना। उनके वचनों में अरबों प्रतिशत सच्चाई है। एक प्रतिशत भी कहीं भी कोई कमी नहीं है। यदि कोई विचारों का अंधा यह सोचता है कि ये कोई और है, वो कोई और था।
तो ये अजीबोगरीब बात है। आम रूहानियत में ये बात है कि जो फकीर बॉडी स्वरूप में नाम देता है, शिष्य को अगर चाहे तो अल्लाह, राम उस शरीर में आकर दर्श-दीदार दे सकता है। वो चाहे तो कुछ भी कर दे। वो किसी भी रूप में आ सकता है। वो दया का सागर है, रहमत का दाता है। सब कुछ उसी की रहमत है। हमारे हृदय में तो सिर्फ एक ही है, एक ही शब्द है, एक ही सवाल, एक ही भजन, एक ही बात कि गुरु-गुरु-गुरु-गुरु-गुरु-गुरु-गुरु। और किसी के लिए कोई जगह नहीं है। वैसे तो उनके हिसाब से सबके लिए जगह है। चाहे पापी गुनाहगार, कोई कैसा भी आए, मालिक से जोड़ना है। पर मालिक का स्वरूप ही जब उसी के रूप में नजर आए तो उस गुरु की प्यार-मोहब्बत को गा के लिख के, बोल कर ना बता सकें और ना ही बता सकते हैं। ऐसी उसकी दया-मेहर, रहमत बरसी है, जो सामने नजर आ रही है जो कहने सुनने से परे है।
भजन के आखिर में सच्चे मुर्शिदे-कामिल परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने बताया ‘गुरु, गुरु, गुरु, गुरु कर मन मोर, गुरु बिना तेरा कोई न और। शाह सतनाम जी को बताने वाला गुरु बिन कौन है’, बेपरवाह सच्चे मुर्शिदे-कामिल शाह मस्ताना जी महाराज जिन्होंने हमारे पीरो-मुर्शिदे-कामिल को बताया, लोगों ने विश्वास नहीं किया। जब कह ही दिया कि ये रब्ब की पैड़ है तो क्या पीछे रह गया। एक मुरीद के लिए इससे बड़ी बात और क्या है।
फिर भी अगर अंधे हैं तो कोई क्या करे। तो भाई! ऐसे सच्चे मुर्शिदे-कामिल शाह मस्ताना जी महाराज का हम लाखों बार, अरबों बार धन्यवाद करते हैं, सजदा करते हैं जिन्होंने हमें ऐसा पीरो-मुर्शिदे-कामिल दिया। जिन्होंने सच का रास्ता दिखाया, सच पर चलना सिखाया। गुरु ने ही किया वो ही कर रहे हैं। ‘ना हमने कुछ किया है, न कर सकें, ना ही हम कुछ जानत। जो किया, कर रहे,करेंगे शाह सतनाम जी, भयो संत ही संत’, तो भाई! उस मुर्शिदे-कामिल ने जो राह दिखाया, लाखों, करोड़ों लोग नशा छोड़ रहे हैं, बुराइयों छोड़ रहे हैं, तो उस मालिक से प्रार्थना दुआ कि ये तेरे नाम की चर्चा आदिकाल से चली और हमेशा चलती रहे। लोग तेरे नाम की रहमत से, तेरी दया-मेहर, रहमत से बुराइयां, नशे छोड़ते रहें, तू सब पर रहमत कर, दया-मेहर कर, करने वाला मालिक, सतगुरु परमात्मा है।