आया तीजां का त्यौहार… रक्षाबंधन: 22 अगस्त विशेष
सावन का मौसम एक अजीब-सी मस्ती और उमंग लेकर आता है। चारों ओर हरियाली की जो चादर-सी बिखर जाती है, उसे देख कर सबका मन झूम उठता है। ऐसे ही सावन के सुहावने मौसम में आता है ‘तीज का त्यौहार’। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ‘श्रावणी तीज’ कहते हैं। उत्तरभारत में यह ‘हरियाली तीज’ के नाम से भी जानी जाती है।
सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं। यह व्रत अविवाहित कन्याएं योग्य वर पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए रखती हैं। देश के पूर्वी इलाकों में इसे ‘कजली तीज’ के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन अधिकतर लोग इसे ‘हरियाली-तीज’ ही कहते हैं। इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है। जगह-जगह झूले पड़ते है।ं युवा स्त्रियां समूहों में गीत गा-गाकर झूले झूलती हैं।
तीज पर मेहंदी लगाने, हरी चूड़ियां पहनने, झूले झूलने तथा लोक-गीत गाने का विशेष महत्व है। तीज के त्यौहार वाले दिन खुले स्थानों पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे के कड़ों में झूले लगाए जाते हैं, जिसे पंजाबी में ‘पीघां’ कहते हैं। इन पर (मुटियारां) युवतियां झूला झूलती हैं। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेलों का भी आयोजन होता है।
तपती गर्मी से रिमझिम फुहारें राहत देती हैं और चारों ओर हरियाली छा जाती है। यदि तीज के दिन बारिश हो रही है तब यह दिन और भी विशेष हो जाता है। जैसे मानसून आने पर मोर नृत्य कर खुशी प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार महिलाएँ भी बारिश में झूले झूलती हैं, लोक गीत गाती हैं। गीतों की लंबी हेक, गिद्दा और ठहाकों से समस्त वातावरण खुशियों से भर जाता है।
तीज का त्यौहार वास्तव में महिलाओं को सच्चा आनंद देता है। इस दिन वे रंग-बिरंगे कपड़े और लकदक करते गहने पहन दुल्हन की तरह सजी होती हैं। आजकल तो कुछ विशेष नजर आने की चाह में ब्यूटी पार्लर जाना एक आम बात हो गई है। नवविवाहिताएं इस दिन अपने शादी के जोड़े को भी चाव से पहनती हैं। वैसे तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है। तीज पर हाथ-पैरों में मेहंदी भी जरूर लगाई जाती है।
तीज के दिन खास किस्म के पकवान बनाये जाते हैं। मिठाइयों में घेवर, फिरनी व गुझिया की प्रमुखता है। जिस बेटी की नयी शादी हुई होती है, उसके घर मायके वाले गुझिया, घेवर और सिंधारा लेकर जाते हैं।
तीज का त्यौहार भारत के विभिन्न प्रांतों के साथ-साथ नेपाल में भी बड़े चाव से मनाया जाता है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान सहित अन्य प्रान्तों में तीजां का त्यौहार अपनी अपनी संस्कृति, तरीकों व रीति-रिवाजों से मनाया जाता है।
संबंधित आलेख:
इस अवसर पर युवतियां हाथों में मेंहदी रचाती हैं। तीज के गीत, हाथों में मेहंदी लगाते हुए गाए जाते हैं। समूचा वातावरण सोलह शिंगार से अभिभूत हो उठता है। इस अवसर पर पैरों में आलता लगाने की भी परंपरा है। इसे ‘सुहाग की निशानी’ माना जाता है। राजस्थान में हाथों व पांवों में भी विवाहिताएं मेहंदी रचाती हैं। राजस्थानी बालाएं दूर देश गए अपने पति के तीज पर आने की कामना करती हैं और उनकी यह कामना वहां के लोकगीतों में भी मुखरित होती है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी, यदि कन्या ससुराल में है, तो मायके से, यदि मायके में है, तो ससुराल से मिष्ठान, कपड़े आदि भेजने की परम्परा है। इसे स्थानीय भाषा में ‘तीज की भेंट’ कहा जाता है। राजस्थान हो या पूर्वी उत्तर प्रदेश, प्राय: नवविवाहिता युवतियों को श्रावण में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है। सभी विवाहिताएं सायंकाल में बन ठन कर सरोवर के किनारे तीज उत्सव मनाती हैं और उद्यानों में झूला झूलते हुए कजली के गीत गाती हैं।