रसोईघर है जीवन विज्ञान का केंद्र बिंदु
आजकल हम परिवार में रसोई घर के कार्य को बहुत कम महत्त्व देते हैं। हमारा सारा ध्यान पढ़ने-लिखने और के कैरियर बनाने की ओर है। हम समझते हैं कि अच्छे से अच्छा भोजन तो बना बनाया मिल जाएगा। एक फोन करो और आपके घर भोजन गरमा गरम टिफिन में उपस्थित। आजकल तो डिब्बा बंद भोजन भी उपलब्ध हैं। खोलो, गरम करो और खाओ। फिर दुनिया-भर के कष्ट उठा कर भोजन शाला में समय बर्बाद करने का क्या अर्थ है? इसलिए भोजन पकाने पर अब ज्यादा ध्यान हमारा नहीं है।
अब परिवारों में भी भोजन तैयार करने पर कम ध्यान दिया जा रहा है। जरा सी संपन्नता आई और कामवाली बाई भोजन बनाने के लिए रख ली।
वस्तुत: यह स्टेटस सिम्बल सा बन गया हैं। जो पुरुष और महिलाएं कामशील हैं और जिनके पास समय नहीं है, उनकी बात छोड़िए। जो शुद्ध गृहणियां हैं, वे भी स्टेट्स सिम्बल के रूप में काम वाली बाइयों के भरोसे रसोईघर छोड़ रही हैं। रसोईघर पर हमारा ध्यान कम हो रहा है। हम पैसा फेंको, तमाशा देखो का आनंद ले रहे हैं।
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रसोईघर है स्वास्थ्य का केन्द्र
हम चाहे टिफिन का गरमा गरम भोजन करें या होटल का, हमें एक रसोईघर तो चाहिए ही। क्या आप जानते हैं कि वहां के रसोईघर कैसे हैं? कोई होटल या टिफिन केंद्र आपको रसोईघर में प्रवेश की स्वीकृति नहीं देता। रसोईघर में भोजन तैयार होता है। यदि वहां गंदगी रही, कीटाणु-विषाणु रहे तो उसका प्रभाव आपके भोजन पर अवश्य पड़ेगा। आप बीमारी को निमंत्रण देना प्रारंभ कर देते हैं। होटल में भोजन पकाने वाले शेफ की स्वच्छता व मानसिक स्थिति के संबंध में हम कुछ नहीं जानते। मानसिक स्थिति का भी भोजन पर प्रभाव पड़ता है।
मां के हाथों पका भोजन इसीलिए स्वास्थ्यप्रद है क्योंकि वह हमसे प्रेम करती है। हमारे स्वास्थ्य के प्रति वह प्रतिक्षण चिंतित है। होटल में कब किस हाथ से पसीना पोंछा, कब छींक आई, हम कह नहीं सकते। मां के खाने के साथ होटल के खाने की तुलना हो ही नहीं सकती। मां पर हम विश्वास कर सकते हैं।
एक प्रयोग कीजिए। यदि आप भोजन वाली बाई के भरोसे अपने रसोईघर को रखें तो रात को कार्य संपन्न होने के बाद रसोईघर के द्वार बंद कर दीजिए। प्रात:काल द्वार खोलिए, आपकी नाक तरह तरह के मसालों की गंध और बदबू से भर जाएगी। आप समझ ही नहीं पाएंगे कि ये कहां से आ गईं। यह स्वास्थ्य के प्रति हमारी लापरवाही के लिए चेतावनी है।
रसोईघर के बरतन जिसमें भोजन पकाया जाता है, उसकी सफाई का बड़ा महत्त्व है। आप जिस थाली-कटोरी में खाना खा रहे हैं, उसका भी बड़ा महत्त्व है। यदि ये साफ नहीं हैं तो बीमारी आपके अंदर प्रवेश कर रही है, यह आप नहीं जानते। क्या आपको विश्वास है कि ये स्वच्छ हैं? तो एक प्रयोग कीजिए। आज ही आप थाली को ध्यान से देखिए-आपको एक परत सफेद सी मिलेगी। आप अब उसे कपड़े से पोंछ दीजिए, फिर भी उसकी झांई दिखेगी, तब आप पानी से धो डालिए, फिर पोंछिए। आपको अंतर समझ में आ जाएगा।
रसोईघर और पात्र जिनमें भोजन पकता है और आप भोजन करते हैं, उनका एकदम स्वच्छ होना स्वास्थ्य की दृष्टि से अनिवार्य है। इसे नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता। भारत में इसलिए रसोई की सफाई पर अत्यधिक बल दिया जाता था क्योंकि रोग के विषाणु वहीं पनपते हैं।
हम कितने ही व्यस्त हों, दूसरे के श्रम पर विश्वास कर सुखी और स्वस्थ नहीं रह सकते। हमारी रसोईघर के प्रति उदासीनता हमें महंगी पड़ेगी। अत: विचार कीजिए और रसोईघर की स्वच्छता के प्रति अधिक जागरूक बनिए।
घर का ताजा भोजन
घर का ताजा पकाया हल्का फुल्का भोजन ही सर्वश्रेष्ठ है, यह अब विज्ञान भी स्वीकार करता है। फास्ट फूड हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यह तथ्य भी अब सब जानते हैं, फिर भी समय की कमी, स्वाद और जीवन शैली के नाम पर उनका मोह हमसे छूट नहीं रहा।
हमारे स्वास्थ्य पर भोजन का शत प्रतिशत प्रभाव तत्काल पड़ता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इसीलिए अन्न को ब्रह्म कहा है। भगवद् गीता जैसे पवित्र ग्रंथ ने भोजन के सात्विक, राजस और तामस जैसे भेद किए हैं। तामस भोजन जिसे हम फास्ट फूड कहते हैं, गीता के अनुसार आलस और नींद लाता है। यह हमारी कार्य क्षमता को घटाता है। उत्पादन क्षमता को कम करता है। हमारे उत्साह, उमंग और प्रसन्नता में बाधक है।
भोजन पकाने के फायदे –
भोजन पकाना विज्ञान है। मसाले यदि उचित नाप के डाले जाएं तो वे औषधि हैं। सब्जियां भी औषधि का कार्य करती हैं। मसाले और सब्जियों की सफाई का भी हमारे स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। इसलिए इस पर भी हमें ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त हर व्यक्ति के लिए भोजन की आवश्यकताएं भी अलग अलग होती हैं। किसी को कम नमक चाहिए तो किसी को तेज। वृद्ध व्यक्ति की आवश्यकता बच्चों से अलग है। इन सब आवश्यकताओं का ध्यान घर पर ही भोजन पकाते समय रखा जा सकता है। स्वास्थ्य के अतिरिक्त मितव्ययता की दृष्टि से भी घर का पका भोजन हमारे बजट के अनुकूल होता है।
यही है गृहस्थ आश्रम
इसी आश्रम में बच्चे प्रेम त्याग, सहयोग, अपनत्व के गुण सीखते हैं। गृहस्थ आश्रम से यदि रसोई के केंद्र को हटा दीजिए तो वह आश्रम की परिभाषा को खो देगा। वह क्या रह जाएगा, इसकी कल्पना करना ही भयावह होगा। हां, तब बच्चे भारतीय संस्कारयुक्त नहीं होंगे, यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है। आश्रम शब्द में ही श्रम निहित है। बिना श्रम को सम्मान दिए जीवन-संघर्ष में सफलता की कामना करना अपने आप को धोखा देना है।
गृहस्थ आश्रम एक तपस्या है, रसोई घर उसका केंद्र है। भोजनशाला जीवन की वास्तविक शाला है जहां जीवन का विज्ञान तैयार होता है। इस विज्ञान से निकलती है भोजन की कला, जो परिवार को साथ-साथ रहने, एक-दूसरे के लिए त्याग करने और आगे बढ़ने की शिक्षा देती है।
-सत्यनारायण भटनागर